नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने से पहले राहुल, अखिलेश, ममता व केजरीवाल को जोगेंद्र नाथ मंडल का त्यागपत्र पढऩा चाहिए
सुबह से शाम तक अल्पसंख्यक की माला जपने वाले राहुल गांधी पाकिस्तान, अफगानिस्तान व बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का विरोध कर रहे हैं। सुबह से शाम तक दलित-पिछड़ों की बात करने वाले अखिलेश यादव भी शरणार्थियों की नागरिकता का विरोध कर रहे हैं जबकि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आये 70 प्रतिशत शरणार्थी दलित और पिछड़े हिंदू हैं। सुबह से शाम तक गरीबों की बात करने वाले केजरीवाल भी शरणार्थियों को नागरिकता देने के खिलाफ हैं जबकि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आये 80 प्रतिशत शरणार्थी अत्यधिक गरीब हैं। इसीलिए राहुल गांधी, अखिलेश यादव व अरविंद केजरीवाल से आग्रह है कि एक बार पाकिस्तान के प्रथम कानून मंत्री जोगेंद्र नाथ मंडल का त्यागपत्र जरूर पढ़ें।
सत्ता के लिए जितना धोखा मंडल ने उस समय दलित पिछड़े हिंदुओं को दिया था, उससे ज्यादा धोखा अब राहुल, अखिलेश व केजरीवाल दे रहें हैं इसलिए पिछड़े दलित हिंदू भाइयों और बहनों से आग्रह है कि ऐसे पाखंडी नेताओं से बचकर रहें और इनके पाखंड को एक्सपोज भी करें।
पाकिस्तान के प्रथम कानून मंत्री जोगेंद्र नाथ मंडल का जन्म पूर्वी बंगाल के बरिसल में 1904 में हुआ था जो अब बांग्लादेश का हिस्सा है। वह नामसूद्र समुदाय के थे और बड़े होकर उन्होंने जाति व्यवस्था और छुआछूत के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन शुरू किया। मंडल ने 1937 के प्रांतीय विधानसभा चुनाव में एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में अपना राजनीतिक कैरियर शुरू किया। उन्होंने बखरागंज उत्तर पूर्व क्षेत्र (पूर्वी बंगाल अब बांग्लादेश) से चुनाव लड़ा और कांग्रेस के जिला अध्यक्ष सरकल कुमार दत्ता को पराजित किया। सुभाष चंद्र बोस और शरतचंद्र बोस ने मंडल को बहुत प्रभावित किया और जब बोस को कांग्रेस से निष्कासित किया गया तब मंडल मुस्लिम लीग के साथ जुड़ गए और मुस्लिम लीग के मुख्यमंत्री हुसैन शहीद सुहरावर्दी के मंत्रिमंडल में मंत्री बने।
जोगेंद्र नाथ मंडल ने डॉ भीमराव अंबेडकर के साथ मिलकर अनुसूचित जाति संघ को पूर्वी बंगाल में स्थापित किया। उस समय पूर्वी बंगाल की राजनीति में दलित और मुस्लिम समुदाय का वर्चस्व था। मंडल ने सांप्रदायिक मामलों पर कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच अत्यधिक राजनैतिक अंतर पाया। जब 1946 में सांप्रदायिक दंगे फैल गए तब जिन्ना के कहने पर उन्होंने पूर्वी बंगाल के सभी क्षेत्रों में यात्रा की और दलितों को मुसलमानों के खिलाफ हिंसा में भाग न लेने के लिए तैयार किया। उन्होंने दलितों को समझाया कि मुस्लिम लीग के साथ विवाद में कांग्रेस के लोग दलितों को इस्तेमाल कर रहे हैं।
भारत विभाजन के बाद मंडल पाकिस्तान के संविधान सभा के सदस्य और अस्थायी अध्यक्ष बने और बाद में पाकिस्तान के प्रथम कानून मंत्री बने। 1947 से 1950 तक वह पाकिस्तान की तत्कालीन राजधानी कराची में रहे और 1950 में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को अपना इस्तीफा देने के बाद वापस भारत लौट आये। अपने इस्तीफे में मंडल ने पाकिस्तानी प्रशासन के हिंदू विरोधी कार्यों का विस्तृत हवाला दिया। उन्होंने अपने त्याग पत्र में सामाजिक अन्याय और अल्पसंख्यकों के प्रति पक्षपातपूर्ण व्यवहार से संबंधित घटनाओं का विस्तृत उल्लेख किया।
मंडल को विश्वास था कि मुसलमान उनका साथ देंगे और उन्हें अपनाएंगे इसलिए जब पाकिस्तान बना तब मंडल के कहने पर लाखों दलित पाकिस्तान चले गये लेकिन उनके साथ क्या हुआ, इसे जानना और समझना बहुत जरूरी है। 1946 में अंतरिम सरकार बनी तो कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने अपने प्रतिनिधियों को मंत्रीपद के लिए चुना और मुस्लिम लीग ने जोगेंद्र नाथ मंडल का नाम भेजा। पाकिस्तान बनने के बाद मंडल को कानून मंत्री बनाया गया क्योंकि वह मुहम्मद अली जिन्ना के बहुत करीबी थे और असम के सयलहेट को पाकिस्तान में मिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 3 जून 1947 की घोषणा के बाद असम के सयलहेट को जनमत संग्रह से यह तय करना था कि वो पाकिस्तान का हिस्सा बनेगा या भारत का। उस इलाके में दलित मुस्लिम की संख्या बराबर थी। जिन्ना ने उस इलाके में मंडल को भेजा और मंडल ने दलितों का मत पाकिस्तान के पक्ष में कर दिया जिसके बाद सयलहेट पाकिस्तान का हिस्सा बना जो अब बांग्लादेश में है।
पाकिस्तान निर्माण के कुछ वक्त बाद ही गैर मुस्लिमों को निशाना बनाया जाने लगा। हिन्दुओं के साथ लूटमार, बलात्कार की घटनाएं सामने आने लगी। मंडल ने जिन्ना को कई खत लिखे लेकिन सरकार ने उनकी एक न सुनी। जोगेंद्र नाथ मंडल को बाहर करने के लिये उनकी देशभक्ति पर संदेह किया जाने लगा। मंडल को इस बात का एहसास हुआ कि जिस पाकिस्तान को उन्होंने अपना घर समझा था अब वह उनके रहने लायक नहीं है इससे वह बहुत आहात हुए क्योंकि उन्हें विश्वास था पाकिस्तान में दलितों के साथ अन्याय नहीं होगा। मात्र दो साल में ही दलित-मुस्लिम एकता का मंडल का ख्वाब बुरी तरह टूट गया। जिन्ना की मौत के बाद मंडल 8 अक्टूबर, 1950 को मंत्री मंडल से त्यागपत्र देकर भारत आ गये।
जोगेंद्र नाथ मंडल ने अपने त्यागपत्र में मुस्लिम लीग से जुडऩे और अपने इस्तीफे की वजह को स्पष्ट किया। मंडल ने अपने त्यागपत्र में लिखा, ”बंगाल में मुस्लिम और दलितों की एक जैसी हालात थी, दोनों ही पिछड़े और अशिक्षित थे। मुझे आश्वस्त किया गया था कि मुस्लिम लीग के साथ मेरे सहयोग से ऐसे कदम उठाये जायेंगे जिससे बंगाल की इस बड़ी आबादी का भला होगा और हम सब मिलकर ऐसी आधारशिला रखेंगे जिससे शांति और भाईचारा बढ़ेगा। इन्ही कारणों से मैंने मुस्लिम लीग का साथ दिया। 1946 में पाकिस्तान के निर्माण के लिये मुस्लिम लीग ने ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ मनाया था जिसके बाद बंगाल में भीषण दंगे हुए। कलकत्ता के नोआखली नरसंहार में हजारों हिंदुओं की हत्या हुई, सैकड़ों ने मजबूरी में इस्लाम कबूल कर लिया। सैकड़ों हिंदू महिलाओं का अपहरण और बलात्कार किया गया था। उसके बाद मैंने दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा किया। मैंने हिंदुओं के भयानक दु:ख देखे फिर भी मैंने मुस्लिम लीग के साथ सहयोग जारी रखा। 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान बनने के बाद मुझे मंत्रीमंडल में शामिल किया गया। मैंने ख्वाजा नजीममुद्दीन से बात कर पूर्वी बंगाल की कैबिनेट में दो पिछड़ी जाति के लोगो को शामिल करने का अनुरोध किया। उन्होंने मुझसे ऐसा करने का वादा भी किया लेकिन बाद में इसे टाल दिया गया जिससे मैं अत्यधिक निराश हुआ।’’
मंडल ने अपने त्यागपत्र में पाकिस्तान में दलितों पर हुए अत्याचार की कई घटनाओं का जिक्र किया है। उन्होंने अपने त्यागपत्र में लिखा है ”गोपालगंज के पास दीघरकुल में एक मुसलमान युवक की झूठी शिकायत पर स्थानीय नामशूद्र परिवारों के साथ क्रूर अत्याचार किया गया। पुलिस के साथ मिलकर स्थानीय मुसलमानों ने नामसूद्र समाज के लोगों को बेरहमी से मारा पीटा और घरों को लूटा। एक गर्भवती महिला की तो इतनी बेरहमी से पिटाई की गयी कि उसका मौके पर ही गर्भपात हो गया, निर्दोष हिंदुओं विशेष रूप से पिछड़े और दलित समुदाय के लोगों पर सेना और पुलिस ने हिंसा को बढ़ावा दिया। सयलहेट जिले के हबीबगढ़ में निर्दोष हिंदू पुरुष और महिलाओं को बुरी तरह मारा पीटा गया। सेना ने न केवल निर्दोष हिंदुओं को बेरहमी से मारा बल्कि उनकी महिलाओं को सैन्य शिविरों में भेजने के लिए मजबूर किया ताकि वे सेना की कामुक इच्छाओं को पूरा कर सके। मैं इस मामले को आपके संज्ञान में लाया था और मुझे इस मामले में रिपोर्ट देने के लिये आश्वस्त भी किया गया लेकिन रिपोर्ट कभी नहीं आई।’’
मंडल आगे लिखते हैं, ”खुलना जिले के कलशैरा में सशस्त्र पुलिस, सेना और स्थानीय मुसलमानों ने निर्दयता से हिंदुओं के पूरे गांव पर हमला किया। हिंदू महिलाओं का पुलिस, सेना और स्थानीय लोगों द्वारा बलात्कार किया गया। मैने 28 फरवरी 1950 को कलशैरा और आसपास के गांवों का दौरा किया। जब मैं कलशैरा में गया तो देखा वह स्थान खंडहर में बदल चुका है। लगभग 350 घरों को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया गया था, मैंने तथ्यों के साथ आपको यह सूचना दी लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई।’’
”ढाका में नौ दिनों के प्रवास के दौरान मैंने दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा किया। नारायणगंज और चंटगांव के बीच रेल पटरियों पर निर्दोष हिंदुओं की हत्याओं ने मुझे अंदर से झकझोर दिया। मैंने पूर्वी बंगाल के मुख्यमंत्री से मुलाकात कर दंगा रोकने के लिये जरूरी कदम उठाने का आग्रह किया लेकिन उन्होंने कोई कार्यवाही नहीं की। 20 फरवरी 1950 को मैं बरिसल पहुंचा। यहां की घटनाओं के बारे में जानकर मैं आश्चर्यचकित था। बड़ी संख्या में हिंदू पुरुषों को जिंदा जला दिया गया और महिलाओं से बलात्कार किया गया। मैंने जिले के सभी दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा किया, मधापाशा के जमींदार के घर में ही 200 लोगों की मौत हुई थी और 40 लोग घायल थे। मुलादी में एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि वहां 300 हिंदुओं का कत्लेआम हुआ। मैंने खुद वहां नर कंकाल देखे जिन्हें गिद्ध और कुत्ते खा रहे थे। पुरुषों की हत्या के बाद हिंदू लड़कियों को आपस में बांट लिया गया। राजापुर में 60 लोग मारे गये। बाबूगंज में हिंदुओं की सभी दुकानों को लूटकर आग लगा दी गयी। पूर्वी बंगाल के दंगे में 10,000 से अधिक हिंदुओं की हत्याएं हुई। अपने आसपास महिलाओं और बच्चों को विलाप करते हुए देख मेरा दिल पिघल गया और मैंने अपने आपसे पूछा, क्या मैं इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान आया था?’’
मंडल ने अपने खत में आगे लिखा है, ”पूर्वी बंगाल में आज क्या हालात हैं? विभाजन के बाद 5 लाख हिंदुओं ने देश छोड़ दिया है। मुसलमानों द्वारा हिंदू अध्यापकों, वकीलों, डॉक्टरों, व्यापारियों और दुकानदारों का बहिष्कार किया गया जिसके कारण उन्हें आजीविका के लिये देश छोड़कर पलायन करने के लिये मजबूर होना पड़ा। मुझे मुसलमानों द्वारा हिंदुओं की बच्चियों के साथ बलात्कार की लगातार जानकारी मिल रही है। हिंदुओं द्वारा बेचे गये सामान की मुसलमान पूरी कीमत नहीं देते हैं। पाकिस्तान में इस समय न कानून का राज है और न कोई न्याय व्यवस्था है इसीलिए हिंदू अत्यधिक चिंतित हैं। पूर्वी पाकिस्तान के अलावा पश्चिमी पाकिस्तान में भी ऐसे ही हालात हैं। विभाजन के बाद पश्चिमी पंजाब में एक लाख पिछड़ी जाति के हिंदू थे उनमें से बड़ी संख्या में हिंदुओं को बलपूर्वक इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर किया गया। मुझे एक लिस्ट मिली है जिसमें 363 मंदिर और गुरूद्वारों पर मुसलमानों ने कब्जा कर लिया है। इनमें से कई मंदिर और गुरुद्वारों को जूते की दुकान, कसाईखाना और होटलों में तब्दील कर दिया है। मुझे जानकारी मिली है कि सिंध में रहने वाले पिछड़ी जाति के हिंदुओं को बड़ी संख्या में जबरन मुसलमान बनाया गया है। इन सबका कारण एक ही है। हिंदू धर्म को मानने के अलावा उनकी कोई गलती नहीं है।’’
जोगेंद्र नाथ मंडल ने अंत में लिखा है, ”पाकिस्तान के वर्तमान हालात एवं हिंदुओं पर हो रहे जघन्य अपराध को यदि एकबार किनारे भी रख दें तो मेरा अपना अनुभव भी कम दुखदायी और पीड़ादायक नहीं है। आपने प्रधानमंत्री और संसदीय पार्टी के पद का उपयोग करते हुए मुझसे वक्तव्य जारी करवाया जो मैंने 8 सितम्बर को दिया था। आप जानते हैं मेरी ऐसी मंशा नहीं थी कि मैं ऐसा असत्य और असत्य से भी बुरा अर्धसत्य वक्तव्य जारी करूं। जब तक मै मंत्री के रूप में आपके साथ और आपके नेतृत्व में काम कर रहा था मेरे लिये आपके आग्रह को ठुकरा देना मुमकिन नहीं था, पर अब मैं और अधिक झूठ, दिखावा तथा असत्य को अपनी अंतरात्मा पर नहीं थोप सकता हूं। मैंने अब निश्चय किया कि मंत्री के तौर पर अपना इस्तीफा दूं। मुझे उम्मीद है कि आप बिना किसी देरी के इसे स्वीकार करेंगे। इस्लामिक स्टेट के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए अब आप इस पद को किसी को भी देने के लिये स्वतंत्र हैं।’’
पाकिस्तान में मंत्रिमंडल से इस्तीफे के बाद जोगेंद्र नाथ मंडल भारत आ गये और गुमनाम जिन्दगी जीने के बाद 5 अक्टूबर 1968 को पश्चिम बंगाल में अंतिम सांस ली।
अश्वनी उपाध्याय