जब भी कोई दंगा होता है।
मानवता कराहती है और समाज नंगा होता है।
मैं भी चाहता तो हूँ कि दिल्ली दंगों के दौरान अनेक हिंदुओं ने जिस तरह से जान पर खेलकर अनेक मुसलमानों को बचाया, और अनेक मुसलमानों ने जिस तरह से जान पर खेलकर अनेक हिंदुओं को बचाया, उससे राहत की सांस लूं और तसल्ली रखूं कि इंसानियत अभी ज़िंदा है, लेकिन कुछ सियासी दलों ने जिस तरह से खेल खेला है और बिना किसी बात के हमारे मुसलमान भाइयों-बहनों को युद्ध के मैदान में खड़ा कर दिया है, वह चिंताजनक है।
इस सियासी खेल का अंजाम यह होगा कि मुसलमान भाई-बहन दिन-ब-दिन मुख्य धारा से और कटते जाएंगे और हिंदुओं में भी मुसलमानों के प्रति शंकाएं बढ़ती ही जाएंगी, जो अंततः इस टकराव को और बढ़ाएगा। फिर,40 लोगों की मौत के बाद मेरे जैसे लोग इस बात पर गर्व नहीं कर सकते कि मारने वाले थे, तो बचाने वाले भी थे।
मैं समस्या को उसकी जड़ से खत्म होते हुए देखना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि समाज में मारने वालों का अस्तित्व होना ही नहीं चाहिए, ताकि बचाने वालों की भी ज़रूरत न पड़े। अगर इस देश में यह स्थिति हम सुनिश्चित नहीं कर पाएंगे तो जहां-जहां बचाने वाले लोग नहीं होंगे, वहां-वहां बड़ी संख्या में लोग मार दिए जाएंगे।
इसीलिए भारत में हिंदू मुस्लिम दंगे क्यों होते हैं, इनकी वजह से कैसे इतिहास का निर्माण हुआ है, इनकी वजह से हमारा वर्तमान कितना विद्रूप दिखाई दे रहा है और ये होते रहे तो हम कैसे भविष्य की बुनियाद रखने वाले हैं, मैं चाहता हूं कि इन सब पर खुलकर चर्चा हो। खुलकर चर्चा होगी, तभी लोगों की आंखें खुलेंगी। जो लोग इन सारी चीजों पर पर्दा डालना चाहते हैं, वे राजनीति कर रहे हैं, सच छिपाकर देश को दंगों की आग में झोंकना चाहते हैं और लोगों की लाशों को सत्ता के प्लेटों में रखकर खाना चाहते हैं।
याद रखिए, जहाँ सत्य मरता है, वहीं से आदमखोर जन्म लेते हैं। झूठ की सल्तनत आदमखोरों की सल्तनत होती है। झूठ बोलने वाला कभी नहीं कहता है कि वह झूठ बोल रहा है। उल्टे वह दूसरों को झूठा बताता है। इसलिए नागरिकों का अपना विवेक यहां महत्वपूर्ण हो जाता है। विवेक आँखों पर से तरह-तरह के पर्दे हटाकर देखने का नाम है। इसलिए पहले जाति और धर्म के पर्दे आँखों पर से हटाइए, तभी सत्य दिखाई देगा।
मैं मानवतावादी हूँ। हिंदुओं और मुसलमानों को भारत माता की दो आँखें मानता हूँ। इसलिए दोनों आँखों की हिफाज़त करना चाहता हूं। झूठे सेक्युलरिज्म के लिए एक आंख से अधिक प्यार करना और दूसरी आंख से कम प्यार करना किसी भी विवेकशील नागरिक के लिए संभव नहीं है। और सच्चा प्यार न करते हुए केवल प्यार का ढोंग करना तो और भी संभव नहीं है। इसलिए, जो लोग अपने लिए अन्यायपूर्ण फेवर चाहते हैं, वही मेरी निष्पक्षता पर संदेह करते हैं।
इसलिए एक बार फिर से सभी लोगों को सत्य के प्रति आगाह करना चाहता हूं-
1. CAA कानून लेश मात्र भी भारत के मुसलमानों के खिलाफ नहीं है।
2. CAA कानून में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भागकर भारत में शरण लिए अल्पसंख्यकों (हिन्दू, बौद्ध, सिख, ईसाई, जैन, पारसी) को इसलिए नागरिकता दी जा रही है क्योंकि उन मुल्कों में उनके लिए अपना जीवन बचाने तक की परिस्थितियां नहीं हैं, धर्म और इज़्ज़त बचाना तो बहुत दूर की बात है।
3. CAA कानून में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के बहुसंख्यकों (मुसलमान) को नागरिकता इसलिए नहीं दी जा रही है, क्योंकि ये तीनों मुसलमानों के ही देश हैं और इसलिए इसकी कोई तुक नहीं है।
4. इस बात को ठीक से समझ लीजिए कि मानवता के नाते गोद उन्हीं बच्चों को लिया जाता है, जो अनाथ हैं। जिनके मां-बाप जीवित हैं, अगर वे किसी नाराज़गी या परेशानी के कारण आपके पास अपने घर छोड़कर आ जाएंगे, तो आपकी पूरी कोशिश यही होगी कि या तो बच्चे को समझा-बुझाकर वापस मां-बाप के पास भेज दिया जाए, या मां-बाप को समझा-बुझाकर इस बात के लिए तैयार किया जाए कि वे आएं और अपने बच्चे को ले जाएं। यहां आपको समझना होगा कि पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान जैसे खांटी मुस्लिम देशों से भागकर भारत आए गैर-मुसलमान अनाथ बच्चों की तरह हैं, जबकि इन तीनों मुस्लिम देशों से आए मुसलमान मां-बाप वाले ऐसे बच्चों की तरह हैं।
5. मैं यह नहीं कहना चाहता कि तीनों मुस्लिम देशों से आए सभी मुसलमान घुसपैठिए ही हैं। और भारत सरकार भी ऐसा नहीं कह रही। इसीलिए अब तक भी इन मुस्लिम देशों से आए अनेक मुसलमानों को नागरिकता दी जाती रही है और आगे भी दी जाती रहेगी। लेकिन इसके लिए प्रक्रिया यह है कि आप वैध आधारों पर भारत की नागरिकता के लिए अप्लाई करें। आप बिना किसी दस्तावेज के भारत में छिपकर रहेंगे और नागरिक अधिकारों की मांग करेंगे तो यह कैसे चलेगा? इसलिए अगर उन तीनों मुस्लिम देशों से आए मुसलमान भी वैध आधारों पर नागरिकता के लिए आवेदन करें, तो सरकार उनपर विचार कर सकती है।
6. यह तो सबको समझना होगा कि अगर मां-बाप वाले बच्चों को गोद लेना है और अनाथ बच्चों को गोद लेना है, तो एक तो दोनों के तरीके अलग होंगे, दूसरी बात कि आपको अपनी हैसियत के मुताबिक प्राथमिकता भी तय करनी होगी। स्वाभाविक रूप से आप भी अनाथ बच्चों को ही प्राथमिकता देंगे और माँ-बाप वाले बच्चों को तभी अपनाएंगे, जब एक तो आप आश्वस्त हो जाएंगे कि मां-बाप के रहते इन बच्चों को गोद क्यों लिया जाना चाहिए, दूसरे आपकी हैसियत आपको इसके लिए इजाज़त देगी। भारत पहले ही जनसंख्या विस्फोट और अनेक तरह की आंतरिक व बाह्य सुरक्षा चिंताओं से त्रस्त है, इसलिए अनाथ बच्चों जैसी सुविधा वह दूसरे मां-बापों के बच्चों को किस तरह और कितनी मात्रा में दे पाएगा- यह सोचने वाली बात है।
7. जहाँ तक एनआरसी का सवाल है, यह अभी आया ही नहीं है। खुद देश के प्रधानमंत्री इसे कई बार स्पष्ट कर चुके हैं। इसलिए सभी लोगों से अनुरोध है कि जब बच्चा पैदा ही नहीं हुआ है और फिलहाल गर्भ में भी नहीं है, तो झुनझुना खरीदने का काम मत कीजिए। स्वार्थ के लिए देश में आग लगाने का मंसूबा पाले बैठे कुछ सियासतदान आपको कोई भी कुर्बानी देने के लिए भड़काकर दंगाई बनाना चाहते हैं, लेकिन आप समझदारी दिखाएं और दंगाई बनकर देश की मुख्य धारा से अलग जाने की बेवकूफी न करें।
8. जहां तक NPR यानी राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर का सवाल है, तो यह हर देश में होता है और होना चाहिए। जो इसमें दर्ज नहीं होंगे, भारत की सरकार को पूरा हक होगा कि वह उन्हें सरकारी सुविधाओं का लाभ देने सहित विशेष नागरिक अधिकारों से वंचित कर दे। इसलिए इसका विरोध करने की भी कोई तुक नहीं है। आप इस देश की किसी सरकार का, कानून का या किसी व्यवस्था का विरोध भी तभी कर सकते हैं, जब आप यहां के नागरिक रजिस्टर में दर्ज रहेंगे। इसलिए किसी के बहकावे में आकर रंगा-बिल्ला न बनें, राम और रहीम ही बने रहें।
9. याद रखिए, इस देश को राम और रहीम से नहीं, रंगा-बिल्ला से ही दिक्कत है, इसलिए भूलकर भी रंगा-बिल्ला बनने की गलती न करें। जो आपको ऐसी बेवकूफी करना सिखा रहे हैं, समझ जाएं कि वे आपको झूठ की राह पर चलना सिखाकर बहुत बड़ी मुसीबत में फंसाने का प्रयास कर रहे हैं।
इसलिए इन 7 बातों की गांठ बांध लें-
1. साम्प्रदायिक सद्भाव हर हाल में बनाए रखना है। दंगाई बनकर देश की मुख्यधारा से अलग होकर संदिग्ध नागरिकों की श्रेणी में नहीं जाना है।
2. देशहित सर्वोपरि है, इसलिए हमेशा जाति और धर्म से ऊपर उठकर सोचने की कोशिश करें।
3. झूठ के झांसे में आने से बचिए और सत्य को समझने के लिए आंखों पर से हर तरह का पर्दा उतारिए।
4. हिन्दू हैं तो मुसलमानों की वाजिब चिंताओं को और मुसलमान हैं तो हिंदुओं की वाजिब चिंताओं को हमेशा समझने की कोशिश कीजिए।
5. भारत एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र है। इसलिए न कोई इसे हिन्दू राष्ट्र बनाने का सपना देखें, न कोई इसे इस्लामिक राज्य बनाने का सपना पालें।
6.चाहे आप हिन्दू हैं या मुस्लिम, अपने को न तो विशेष समझें, न अतिरिक्त फेवर की उम्मीद रखें।
7. यह देश सबके साथ बराबरी का व्यवहार करने के लिए कृतसंकल्प है।
-अभिरंजन कुमार-