दिल्ली में दंगों की आग बुझ चुकी है, लेकिन चिंता की बात यह है कि देश के अनेक हिस्सों में मुसलमान भाइयों-बहनों के बीच अफवाहें फैलाई जा रही हैं कि दिल्ली में गुजरात दंगों जैसा कोई मॉडल आजमाया गया है। मकसद साफ है कि अन्य जगहों पर भी उन्हें दंगे करने के लिए उकसाया जा सके। देखा जाए तो यह उनकी पूरी की पूरी कम्युनिटी को दंगाई बनाने की साज़िश है, जिससे उन्हें सावधान रहना होगा।
जहां तक दिल्ली दंगों का सवाल है, मुसलमान भाइयों-बहनों को यह समझना होगा कि शातिर सियासतदानों ने उनके कंधों पर बन्दूकें रखकर 40 से ज़्यादा बेगुनाह लोगों को मरवा दिया, जिनमें दोनों समुदायों के अभागे लोग शामिल हैं। इन दंगों की तैयारी शाहीन बाग की स्थापना के साथ ही शुरू हो गई थी और मास्टरमाइंड सियासी दलों ने इसके लिए रेडिकल इस्लामिक एलिमेंट्स को इस्तेमाल किया।
आइए, कुछ तथ्यों से आप समझ जाएंगे कि इन दंगों के पीछे रेडिकल हिंदू एलिमेंट्स क्यों नहीं हो सकते।
1. अगर इन दंगों के पीछे रेडिकल हिन्दू एलिमेंट्स होते तो यह दंगा या तो दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले हुआ होता (ताकि बीजेपी को फायदा मिले) या फिर ट्रम्प दौरा खत्म होने के बाद होता (ताकि बीजेपी सरकार की बदनामी न हो), ठीक ट्रंप दौरे के दौरान नहीं होता। जिस कपिल मिश्रा के माथे पर दंगों की ज़िम्मेदारी डालने की कोशिश की गई, खुद उसने भी यही कहा था कि ट्रम्प दौरा खत्म होने तक हम जा रहे हैं।
2. जब भी अमेरिकी राष्ट्रपति भारत आते हैं, देश के किसी न किसी हिस्से में कुछ अप्रिय होता है, और यह स्पष्ट है कि इन घटनाओं में रेडिकल हिन्दू एलिमेंट्स नहीं हुआ करते।
3. अगर इन दंगों के पीछे रेडिकल हिन्दू एलिमेंट्स होते तो पुलिस को इतनी बड़ी संख्या में नुकसान नहीं हुआ होता, वो भी पहले ही दिन। विभिन्न हिन्दू-मुस्लिम दंगों का रिकॉर्ड उठाकर देखें, रेडिकल हिन्दू एलिमेंट्स आम तौर पर कभी भी पुलिस को निशाना नहीं बनाते, जबकि इन दंगों के पहले ही दिन हेड कांस्टेबल रतनलाल शहीद हुए और दो वरिष्ठ अधिकारियों सहित 56 अन्य पुलिसवाले बुरी तरह जख्मी हुए।
4. अगर इन दंगों के पीछे रेडिकल हिन्दू एलिमेंट्स होते तो हिन्दू-बहुल बस्तियों और घरों में भी उस तरह की व्यापक तैयारी के सबूत मिलते, जैसी तैयारी अनेक मुस्लिम-बहुल बस्तियों और घरों में देखने को मिली है।
5. अगर इन दंगों के पीछे रेडिकल हिन्दू एलिमेंट्स होते तो इतनी बड़ी संख्या में हिंदू भी नहीं मारे गए होते। जो लोग यह आरोप लगा रहे हैं कि गुजरात मॉडल को इम्प्लीमेंट किया गया, वे ज़रा गुजरात दंगों के आंकड़ों की दिल्ली दंगों के आंकड़ों से तुलना कर लें।
तो क्या? इन दंगों में रेडिकल हिन्दू एलिमेंट्स की कोई भूमिका नहीं रही? नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं है। जब दंगे शुरू हो गए, तो उन्होंने भी इंसानियत को यथासंभव शर्मसार किया। जब भी कोई दंगा होता है तो क्रिया और प्रतिक्रिया की एक लंबी चेन बन जाती है, जिसके कारण दोनों पक्ष एक-दूसरे को दोषी ठहराने का प्रयास करते हैं, लेकिन यह एक अटल सत्य है कि हर दंगे की शुरुआत कोई एक ही पक्ष करता है।
याद रखिए, कुछ शरारती तत्वों द्वारा की गई इस शुरुआत से पूरे समुदाय की बदनामी होती है और किसी को भी जान-माल का नुकसान झेलना पड़ सकता है, चाहे उसकी कोई भूमिका हो या न हो।
नोट:
1. न तो रेडिकल इस्लामिक एलिमेंट्स शब्द का इस्तेमाल सभी मुसलमानों के लिए किया गया है, न ही रेडिकल हिन्दू एलिमेंट्स शब्द का इस्तेमाल सभी हिंदुओं के लिए किया गया है। ये शब्द केवल दंगाइयों के लिए इस्तेमाल किये गए हैं।
2. दोनों समुदायों से अपील है कि वे किसी तरह के बहकावे में न आएं। इंसानियत को शर्मसार करने के खेल में आप जिसे अपनी जीत समझते हैं, वास्तव में वह आपकी हार होती है।
3. दिल्ली दंगे हिंदुओं द्वारा शुरू नहीं किये गए, यह इसलिए बताया, क्योंकि CAA, NRC और NPR के विरोध के नाम पर मुसलमान भाइयों-बहनों के मन में लगातार ज़हर भरा जा रहा है और ऐसा बताया जा रहा है, जैसे यह कोई आर या पार की लड़ाई देश में छिड़ी है, जिसके लिए उन्हें हर कुर्बानी देने को तैयार रहना है।
4. मेरी ख्वाहिश है कि हिन्दू भाई-बहन सभी मुस्लिम बस्तियों में हिंदू भाईचारा टोली बनाकर घूमें, ताकि उन्हें शरारती तत्त्वों के प्रोपगंडा में आने से बचाया जा सके और कोई भी देश की शान्ति भंग न कर सके।
5. समाज को हर काम सरकार के भरोसे नहीं छोड़ना चाहिए, इसलिए अगर शांति बहाल करना सरकार का काम है, तो आपसी विश्वास और भाईचारा बहाल करना समाज का काम है।
-अभिरंजन कुमार-