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नरेन्द्र मोदी की प्रेरणा देने वाली पहल

सम्पूर्ण मानवता के सम्मुख खडे़ कोरोना वायरस की महामारी के संकट से सार्क देश आपस में मिलकर लडे़, दुनिया के सामने मानवता की रक्षा की एक अनूठी मिसाल कायम करें और विश्व को सेहतमंद बनाने में अपनी भूमिका अदा करें, ऐसी भारत की पहल एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सकारात्मक भूमिका का जहां दुनिया में स्वागत हो रहा है, वही इन संकट के निवारण की चर्चा के दौरान पाकिस्तान का कश्मीर राग अलापना विडम्बपापूूर्ण है, दुर्भाग्यपूर्ण है। कोरोेना वायरस जैसे महासंकट के समय सार्क देशों के बीच भारत एक नई उम्मीद एवं रोशनी का कारण बना है। इन उजालों को निर्मित करने में नरेन्द्र मोदी की मानवतावादी सोच, दूरदृष्टिता एवं सूझबूझ की महत्वपूर्ण भूमिका है।
मनुष्य के अविनाशी जीवन के भाव को ग्रसने के लिये कोरोना वायरस का राहू मुंह बाये खड़ा है, हरेक मनुष्य के सामने यह गंभीर चुनौती है। लेकिन कुछ स्वार्थी देश इन क्षणों में भी अपनी सोच को संकीर्ण किये हुए है, एवं स्वार्थों से ग्रस्त हैं। चीन की धरती से उपजे कोरोना वायरस के संक्रमण ने जिस तरह पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है वह समस्त मानवता के लिए एक गंभीर संकट बन गया है। इस संकट से निपटने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन अर्थात दक्षेस के सदस्य देशों से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये जो संपर्क-संवाद कायम किया वह दक्षिण एशिया के साथ-साथ पूरी दुनिया को प्रेरणा देने वाली पहल है। इस पहल के जरिये भारतीय प्रधानमंत्री ने अपनी नेतृत्व क्षमता के साथ-साथ उदारता एवं दूरदर्शिता का भी परिचय दिया है।
सम्पूर्ण मानवता के विनाश का तकनीकी का जाल बिछाने वाला मछेरा यानी चीन सबसे पहले स्वयं उस जाल में उलझा है, लेकिन उसकी क्रूर एवं विनाशकारी भूल से सम्पूर्ण दुनिया पीड़ित एवं प्रभावित है। लेकिन अब इस संकट का मुकाबला करने के लिये पूरी दुनिया को हर स्तर पर एकजुटता दिखाने और साथ ही सभी का सहयोग करने की जरूरत है। दक्षेस देशों के नेताओं के साथ प्रधानमंत्री मोदी की वीडियो कांफ्रेंस ने इसी जरूरत को रेखांकित किया है, लेकिन यह अच्छा नहीं हुआ कि इस कांफ्रेंस में जब अन्य सभी देशों के शासनाध्यक्षों ने भाग लिया तब पाकिस्तान ने एक तरह से अनमने ढंग से हिस्सा लिया। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने इस कांफ्रेंस का हिस्सा बनने के बजाय अपने एक विशेष सहायक जफर मिर्जा को भेजा। दुर्भाग्य से उन्होंने यही संकेत दिया कि वह नेक इरादों से लैस नहीं हैं, पाकिस्तान की जनता की जीवनरक्षा से ज्यादा जरूरी उसके लिये कश्मीर का मुद्दा है। यही कारण है कि उनकी दिलचस्पी इसी में अधिक थी कि संकट के इस समय कश्मीर मामले का जिक्र कैसे किया जाए। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि उन्होंने इस वीडियो कांफ्रेंसिंग में कश्मीर मामले का उल्लेख स्वतः नहीं, बल्कि ऊपर के आदेशों से करके न केवल स्वयं की बल्कि अपने देश की किरकिरी करा ली।
पाकिस्तान के इस रवैये को देखते हुए भारत के साथ-साथ अन्य दक्षेस देशों को यह समझने की आवश्यकता है कि इस क्षेत्र में मिलकर विकास करने और साझा समस्याओं का समाधान करने में पाकिस्तान एक रोड़ा ही अधिक है। जो भी हो, आज की जरूरत यही है कि पड़ोसी देशों के साथ मिलकर कोरोना वायरस से उपजी चुनौती का सामना करने के लिए हरसंभव उपाय किए जाएं। यह अच्छा है कि भारत ने एक कदम आगे बढ़कर न केवल एक आपात कोष बनाने का फैसला लिया, बल्कि चिकित्सकों की एक ऐसी विशेष टीम बनाने की भी घोषणा की जो सदस्य देशों की मांग पर उनकी सहायता के लिए उपलब्ध रहेगी। इसका लाभ केवल भारत को ही नहीं, बल्कि सार्क देशों को मिलेगा, सम्पूर्ण मानवता इससे लाभान्वित होगी, एक उदाहरण बनकर भारत की अहिंसा ने, भारत के वसुधैव कुटुंबकम और सर्वे भवंतु सुखिनः के मंत्रों ने संकट के हर दौर में मानवता के हित-चिन्तन को साधा है, दुनिया को जीवन की नई दिशाएं एवं उम्मीदें दी हैं, कोरोना से मुक्ति में भी उसकी पहल अनुकरणीय बनी है। दुनिया की करीब एक तिहाई आबादी वाले दक्षिण एशिया का एक प्रमुख देश होने के नाते भारत का यह दायित्व बनता है कि वह अपने साथ-साथ पड़ोसियों की भी चिंता करे। यह वही भाव है जो दूसरे देशों से उसे अलग पहचान देता है। यह अच्छी बात है कि मोदी ने जैसी पहल दक्षिण एशियाई देशों को साथ लेकर की वैसी ही जी-20 देशों के साथ भी करने का प्रस्ताव दिया। मोदी ने कोरोना वायरस के संक्रमण से लड़ने के लिए एक मजबूत योजना बनाने का प्रस्ताव भी रखा है।

भारतीय परम्परा की यह विलक्षणता है कि वह भारत में ओतप्रोत होते हुए भी भारत तक सीमित नहीं है, वह किसी एक महजब, ईश्वर की चुनी हुई किसी एक जाति, किसी एक तंत्र- राष्ट्र से बंधी नहीं है। उसमें अपने को भी अतिक्रमण करने की क्षमता है। तभी वसुधैव कुटुंबकम एवं सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः का उद्घोष इस धरा ने दिया अर्थात सब सुखी हो, सब निरोगी हो। उसका प्रसार यदि भारत के बाहर हुआ तो न राजनीतिक दबाव में हुआ, न आर्थिक कारणों से हुआ, न मजहबी जोश से हुआ, उसका प्रसार रोपे हुए धान के पौधे की तरह हुआ, जिसने अलग-अलग मिट्टी की अलग-अलग रंगत पायी। गांधीजी ने कहा था कि जब तक एक भी आंख में आंसू है, मेरे संघर्ष का अंत नहीं हो सकता।’ उसी गुजरात की माटी के एक ओर लाल ने कोरोना वायरस के महासंकट से दुनिया को मुक्ति दिलाने तक संघर्षरत रहने का भाव दर्शाया है।
भारत ने लम्बे समय तक पाकिस्तान के आतंकवाद को झेला है, कोरोना वायरस का आतंक भी वह झेल रहा है, लेकिन इस संकटकालीन समय में भी भारत अपनी रक्षा के साथ-साथ दुनिया के अन्य देशों को सुरक्षित, निरोगी एवं कोरोना के महासंकट से बचाने के लिये तत्पर है। भले ही पाकिस्तानी आतंकवाद के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय जगत में कभी भारत की आवाज सुनी ही नहीं गयी थी लेकिन अब भारत की बातों को दुनिया मानने लगी है और एक स्वर से न केवल पाकिस्तान से पोषित आतंकवाद की निन्दा करने लगी है बल्कि भारत के विचारों एवं बातों को गौर से सुनने, मानने लगी है। कोरोना वायरस के संकट से मुक्ति के लिये भी भारत की बातों को दुनिया गौर से सुन रही हैं। क्योंकि यह ऐसा विकट संकट है कि सब मिलकर ही उससे लड़ सकते हैं। ”अब पंक्तियां मिटें।“ किसी को पंक्ति में खड़ा न होना पड़े। सभी पंक्तियां मिटें, भेद-भाव की भी, हार-जीत की भी, एक-दूसरे राष्ट्रों से दुश्मनी की भी। इस महामारी को जड़ से समाप्त करने के लिये हमारा मन बदले, मस्तिष्क बदले, मनुष्य-मनुष्य बने, मात्र मशीन नहीं बने। वरना इस महामारी से संघर्ष बेमानी होगा। नीति का प्रदूषण, विचारों का प्रदूषण हटाकर प्रामाणिकता का पर्यावरण लाना है, तो ‘‘नरेन्द्र मोदी“ को ज्यादा प्रभावी करना होगा। यह बात दुनिया तो समझ ही रही है, पाकिस्तान को भी समझनी होगी। तभी कोरोना वायरस को परास्त करने का संघर्ष सार्थक होगा। हम देख रहे हैं कि कोरोना मुक्ति के साधन सबके अलग-अलग हो सकते हैं, पर साध्य सबके एक ही है कि जन-जन कोरोना वायरस से मुक्त हो। ‘इदन्नमम्’- यह मेरे लिये नहीं, सबके लिये। ‘मेरे लिये नहीं’ का वास्तविक अर्थ है दूसरों के लिये। जो इस सत्य को समझ लेगा वही सचमुच कोरोना वायरस से मुक्ति पा सकेगा और यही ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ का वास्तविक अर्थ है, जिसे मोदी समझाने का प्रयत्न कर रहे हैं।
(ललित गर्ग)

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