यूपी में एक के बाद एक ताबड़तोड़ हो रही हत्याएं, लूटपाट, डकैती, बलात्कार, योजनाओं में बंदरबाट, यादव सिंह जैसे भ्रष्ट अफसरों को बचाने, जवाहरबाग की तर्ज पर जगह-जगह जमीन हथियाने, सरकारी नौकरियों के भर्ती में धांधली एवं मानक में अनदेखी, न्याय के लिए सड़क पर उतरे लोगों को लाठियां, सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मियों की सपाई गुंडो द्वारा सरेराह कत्लेआम, पेड़ों पर फलों की जगह लटकती बहन-बेटियों की लाशे, हाईवे पर दरिंदगी का तांडव, करोड़ों-अरबों की लागत से बनी सड़कों का छह माह में ही उखड़ जाना, मुजफ्फरनगर समेत 200 से अधिक दंगों में कत्लेआम, आगजनी व खून-खराबा तथा आरोपियों को छोड़ निर्दोषों पर फर्जी मुकदमें दर्ज कर प्रताड़ना और कार्य पूरा हुए बगैर उद्घाटन की संस्कृति, दिन-रात बिजली की अघोषित कटौती, साफ पानी को तरसते शहर, ,अपनी किस्मत पर रोता बुंदेलखंड, बालीवुड के ठुमको पर झूमता सैफई, कश्मीर बनता कैराना ही अगर आपकी उपलब्धियों है तो कोई बात नहीं, लेकिन काम बोलता है, के नारे का जवाब देने के लिए जनता ब्रेशब्री से इंतजार कर रही है। मतलब साफ है आपकी नाकामियां ही आपको बेदखल करने के लिए काफी है
एस0 पी0 सिंह
अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कह रहे है कि अब 5 प्रमुख गुनाह में यूपी सबसे आगे है, तो गलत नहीं है। क्योंकि इसकी गवाही खुद पुलिस के रोजनामचे ही दे रहे है। हर दिन 24 बलात्कार…, 21 अटेम्ट टू रेप…, 13 मर्डर.., 33 किडनैपिंग.., 19 दंगे…. और 136 चोरियां। यानी एक दिन में कुल 7650 क्राइम की घटनाएं हो रही है। अगर बात साल किया जाएं तो यह आंकड़ा 27 लाख 92 हजार 250 के आसपास है। ऐसा तब है जब यूपी पुलिस आए दिन कई अपराधों के मामलों में रिपोर्ट तक दर्ज नहीं करती है। यही अपराध अखिलेश की उपलब्धियां हैं और सत्ता छिन जाने का भयही सपा-कांग्रेस का गठबंधन है। लेकिन जनता को इंतजार है तो सिर्फ वोटिंग के जरिए फैसला सुनाने का। बाजी किसके हाथ लगेगी, यह 11 मार्च को तय हो जायेगा। लेकिन आपकी नाकामियां ही साल 2017 चुनाव का मुद्दा बन गया है। एक तरफ मायावती अपने शासनकाल के लाॅ एंड आर्डर की तुलना कर अखिलेश सरकार की गुंडागरदी व काले कारनामों को उजागर कर रही है जीताउं ग्राम प्रधानों, ब्लाक प्रमुखों व जिला पंचायत सदस्यों व अध्यक्षों को हरवाया गया। ऐसा नग्न तांडव और जिला प्रशासन की निगरानी में ब्लाक व जिला पंचायत चुनाव में खुल्लमखुल्ला गुंडई, असलहा प्रदर्शन करीब-करीब यूपी के हर जिले में दिखा, जहां लोकतंत्र का जमकर माखौल उड़ाया गया। इस लोकतंत्र में इस तरीके का हंगामा, इस तरीके की बेचैनी, इस तरीके की बदहवासी से लोग सड़क तो दूर बेडरुम में भी सुरक्षित नहीं रहे। जगह-जगह खुलेआम सपाई गुंडों द्वारा खून की होली खेली गयी। पूरे पांच साल ऐसा लगा जैसे यूपी में सिर्फ और सिर्फ गुंडो व माफियाओं का राज है, जहां जुबान की जगह बंदूके तड़तडा रही थी और सड़कों पर लाशे बिछ रही है। सूबे बिजली कटौती, जर्जर सड़कों से रोज हो रही दुर्घटनाओं, डग्गामार बसें, उटपटांग बयानबाजी, गुंडागर्दी, योजनाओं में बंदरबांट आदि से पता चलता है कि आम आदमी से जुड़े मुद्दों पर सरकार का क्या रवैया है।
सपाई गुंडों से भाभीजी भी डरीं!
इलाहाबाद में सपा प्रत्याषी रिचा सिंह के चुनाव प्रचार में गई डिम्पल भाभी भी डर गई समाजवादी गुंडों से और उन्होंने कह डाला की हम अखिलेष भैया से आप लोगों की षिकायत करेंगे तब भी नहीं मानें और इतनी ज्यादती की मंच छोड कर भागना पडा साथ में जूही सिंह भी थीं उनके समझाने पर भी सपा कार्यकर्ता् नहीं मानें और नारेबाजी करते रहे! मंच से मुख्यमंत्री की पत्नी डिम्पल ने खुद कहा कि मुझे तो डर लग रहा है कहां से टे्रनिंग ली…बेरी बैड…शांत.. एक दम शांत… फिर भी सपा कार्यकर्ता नहीं हुए शांत। उसके बाद बात इतनी बिगड़ी की डिम्पल की सुरक्षा भी खतरे में पड़ गई, और उन्हें मंच से सुरक्षित ले जाने में सुरक्षाकर्मियों को अच्छीखासी मशक्कत करनी पड़ी।
दर्जनभर पत्रकारों की हत्या
बदायूं, मुरादाबाद, गोरखपुर, फैजाबाद, वाराणसी, भदोही, मिर्जापुर, इलाहाबाद, जौनपुर, सहारनपुर, आगरा, फिरोजाबाद, मेरठ, कोशांबी, लखनउ, देवरियां, गोंडा आदि जिलों में किस कदर बंदूक संस्कृति और गुंडागर्दी हावी रही, इसका बखान करने के लिए कलम की स्याही खत्म हो जायेगी। भदोही से लेकर राजधानी समेत पूरे यूपी में सपाई गुंडों द्वारा एक-दो नहीं 200 से अधिक पत्रकारों पर फर्जी मुकदमें दर्जकर घर-गृहस्थी लूटा गया, दर्जनभर पत्रकारों की हत्या की गयी, जिंदा जलाया गया और किस तरह संविधान के चैथे स्तम्भ पर सुनियोजित तरीके से हमला अखबारों की सुर्खिया रही, यह हर किसी को मालूम है।
पूरी नहीं हो सकी पुरानी घोषणाएं
पांच साल के अपने कार्यकाल में अखिलेरा सरकार 2012 के अपनी घोषणा पत्र पूरी करना तो दूर बिजली-पानी-सड़क जैसे जरुरी आवश्यकताओं की रोडमैप तक नहीं तैयार करा सकी। सरकार की महत्वाकांक्षी योजना कन्या विद्याधन का हाल यह रहा कि लक्ष्य के सापेक्ष सिर्फ 42 फीसदी ही लाभार्थियों को धन बांटा जा सका है। 28 जिले ऐसे रहे, जहां एक भी बालिका को धन नसीब नहीं हो सका। लैपटाप योजना का सच किसी से छिपा नहीं, जबकि ये विभाग खुद सीएम के हाथों में रहा। पीड़ितों की जांच के नाम पर झूठी आश्वासन या आरोपित पुलिसकर्मियों से ही जांच कराकर झूठी रिपोर्ट देकर मामले को रफा-दफा करना, दूषित पेयजलापूर्ति, कल्याणकारी योजनाओं में बंदरबांट आदि से पता चलता है कि आम आदमी से जुड़े मुद्दों पर सरकार का क्या रवैया रहा। कहा जा सकता है तमाम प्रयासो के बावजूद अगर यूपी का विकास नहीं हो पाया है तो उसके लिए भ्रष्ट नौकरशाह ही है, जो चंद टुकड़ों की खातिर अपनी जमीर ताख पर रखकर सत्ताधारी नेताओं की कठपुतली बनकर न सिर्फ उनकी आड़ में लाखों-करोड़ो डकार लिए है बल्कि माफिया व बाहुबलि जनप्रतिनिधियों से मिलकर जुझारु लोगों फर्जी मुकदमें थोपकर निरीह जनता के साथ-साथ बर्बाद किसानों व कल्याणकारी योजनाओं को खूलेआम लूटपाट की।
दो सौ से अधिक साम्प्रदायिक दंगे
अगर अखिलेश के शासन पर नजर डालें तो राज्य कई सांप्रदायिक दंगे देख चुका है। डकैतों के पुराने गिरोह फिर से अपना सर उठा चुके थे। लगातार हो रहे बलात्कार या शारीरिक उत्पीड़न की खबरों से भी सरकार की खासी किरकिरी हुई। राज्य में हो रही लगातार ऐसी घटनाएं यह बताती हैं रही कि सूबे का नेतृत्व प्रभावशाली व्यक्ति के हाथ में नहीं रहा। बिगड़ती कानून-व्यवस्था अखिलेश यादव की अयोग्यता दर्शाती है। पुलिस, थाना, सत्ताधारी और पार्टी कार्यकर्ता सबके सब मिलकर यूपी को लूटा। बाराबंकी में जिस तरह पत्रकार की मां के साथ रेप में नाकाम पुलिस वालों ने जिंदा जलाकर मार डाला, वह बेहद शर्मनाक रहा। कानपुर में सपा नेता के घर सेक्स रैकेट का पकड़ा जाना और भी शर्मनाक है। पुलिस रिकार्ड के मुताबिक सपा के शासन के दौरान 200 से ज्यादा दंगे हुएं। स्थिति यह रही कि उच्चतम न्यायालय ने भी मुजफ्फरनगर और इसके आसपास के इलाकों में सांप्रदायिक दंगे रोकने में अखिलेश यादव सरकार की नाकामी को जिम्मेदार ठहराया। कोर्ट ने माना कि यदि राज्य सरकार अपने ही एजेंसियों को जमीनी हकीकत की जानकारी रखती तो दंगों को रोका जा सकता था। न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार ने लोगों के जीने के मूलभूत अधिकारों की रक्षा करने में गंभीर चूक की है। राज्य सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह लोगों के मूलभूत अधिकारों की रक्षा करे।
पूरे पांच साल तक रहा दहशत का माहौल
ताबड़तोड़ छिनैती, हत्या व लूट की वारदाताओं से व्यापारी दहशत में है और शाम ढलते ही दुकान की शटर गिरा देते है। खासकर महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध। अवैध खनन, जमीनों पर अवैध कब्जे, फर्जी मुकदमों की तो मानों बाढ़ आ सी गयी है। हालात यहां तक बिगड़ चुके है कि लोग अब तो यूपी का नाम ही बदल डाले है। कोई इसे दबंगों का प्रदेश बता रहा तो कोई गुंडाराज। यूपी के ये नाम अब हर सख्श की जुबा पर तो है ही पुलिस-अपराधी गठजोड़ का आरोप भी चर्चा-ए-खास है। प्रदेश में सारी व्यवस्थाएं चरमरा गई है। लाॅ एंड आर्डर नहीं रह गया है। आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2013 में पहली जनवरी से 31 मार्च तक बलात्कार के 1199 मुकदमें दर्ज हुए, जबकि वर्ष 2014 में 2584 मुकदमें पंजीकृत हुए। वर्ष 2015 में अब तक 1267 मुकदमें दर्ज हो चुके है। वर्ष 2014 के शुरुवाती 5 महीनों में सूबे में हत्या के 1961 अभियोग दर्ज हुए जबकि इस साल 2057 मुकदमें दर्ज हुए।
कर्ज में डूबा यूपी
कहा जा सकता है यूपी की सपा सरकार चीर्वाक के सिद्धांतों पर ही चली। ‘यावत जीवेत, सुखम जीवेत। ऋणम कृत्वा, घृतम पीवेत’ का चार्वाक का सिद्धांत प्रदेश की सपा सरकार ने अपनाएं रखा। जब तक जिएंगे सुख से जिएंगे, कर्ज लेंगे और घी पिएंगे के चार्वाक के इस सिद्धांत को अमल में लाते हुए पांच वर्ष में यूपी 3.66 लाख करोड़ रुपए के कर्ज में डूब चुका है। दुखद यह है कि इस कर्ज पर यह बीमारु राज्य 28 हजार 636 करोड़ 80 लाख रुपए का ब्याज भी भर रहा है। बावजूद इसके सरकार प्रदेश में विकास का दावा करते नहीं अघा रही हैं।
42 फीसदी बच्चे कुपोषित
प्रदेश के 42 फीसद बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। बेमौसम बारिश के तबाही से परेशान किसानों को दी जाने वाली राहत चेक में बड़े पैमाने पर धांधली की शिकायतें सामने आई है, सड़कों के निर्माण का हाल यह है कि बनने के 3 से 6 माह में ही उखड़ जा रहे है। कल्याणकारी योजनाओं की माफिया जनप्रतिनिधि व अधिकारी खूलेआम बंदरबांट कर रहे है। फर्जी मुकदमों की बाढ़ आ गयी है, लेकिन सरकारी दावे विकास की नई परिभाषा गढ़ने की कोशिश में हैं।
बदले की मूड में है पीड़ित
इन दिनों शहर से लेकर देहात तक के चट्टी-चैराहों से लेकर चाहखानों तक विधानसभा चुनाव की ही चर्चा है। एक चाय की दुकान पर बतिया रहे नईम अख्तर कहते है, मुझे क्षेत्र समिति के सदस्यों समर्थन प्राप्त था। मेरे समर्थकों को जबरन उठा लिया गया। विधानसभा चुनाव में अपनी ही पार्टी से ब्याज सहित इसका बदला लूंगा। बगल में खड़े बलदेव यादव कहते है जो चुनाव लड़ना चाह रहे थे, उन्हें रोकना नहीं चाहिए था, क्योंकि इस चुनाव से उनकी पार्टी सपा पर कोई फर्क न पड़ता, लेकिन चुनाव में खड़े लोगों को जिस तरह ताकत व पैसे के साथ सत्ता की धमकी व फर्जी मुकदमा का डर दिखाकर बाकी प्रत्याशियों को बैठा दिया गया उनका चुप बैठना नामुमकिन है। वह चुनाव हार जाते इसका उन्हें कोई मलाल नहीं होता, लेकिन जोर-जबरदस्ती उनके मन में जहर घोल दिया है। अब विधानसभा चुनाव मे इसका हिसाब बराबर किया जायेगा।
पेडों पर फल की जगह लटकती रही लाशे
पूरे पांच साल तक महिलाओं व युवतियों के साथ गैंगरेप कर हत्या के बाद शव को पेड़ से लटकाने सिलसिला जारी है। मउ, इटावा, गोरखपुर, बलिया, बरेली, महोबा, फर्रुखाबाद, इलाहाबाद, भदोही, बनारस, अलीगढ़ आदि जनपदों में किशोरियों संग हुई सामूहिक गैंगरेप की घटना ने पूरे प्रदेश को हिलाकर रख दी। यह सब पुलिस की घोर संवेदनहीनता, लापरवाही व संलिप्तता के चलते हो रही है। बलातकार की बढ़ती घटनाएं राज्य की शासन व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी।
जस की तस है अखिलेश की छबि
बड़ा सवाल तो यही है क्या पूर्व में लगे गुंडागर्दी, लूटपाट व आतंक के दाग से मुक्ति सपा को मुक्ति मिलेगी। शुरू के डेढ़-दो साल तो पिता से विरासत में मिले मंत्रिमंडल और अधिकारियों को समझने में ही अखिलेश ने गवा दी। लेकिन जब तक समझे चाचा के आगे बौने ही नजर आएं। परिणाम यह हुआ कि यूपी में आपके नाक के नीचे समानांतर सरकार चलती रही। हकीकत जानकर भी चुप रहना मजबूरी बनी। खनन माफिया से लेकर सारे बाहुबलि जनप्रतिनिधि भ्रष्ट अधिकारियों से मिलकर लूटपाट व योजनाओं में बंदरबांट करते रहे। फिर प्रशासन पर धीरे-धीरे पकड़ बनी तो कुछ ठोस और सूझबूझ वाले निर्णय, मसलन बेरोजगारी भत्ता बंद करने या फिर लैपटॉप वितरण को रोका तो जरुर, लेकिन तब तक काफी घपले-घोटाले हो चुके थे। जिन 15 लाख इंटर पास बच्चों को मुफ्त लैपटॉप बांटा गया, उसमें करोड़ो-अरबों का घालमेल उजागर हो चुका है। मेधावी छात्रों के नाम पर भी मिनले वाले लैपटाॅप योजना में जमकर धांधली बरती गयी।
नहीं बटी साड़ियां
मुस्लिम बालिकाओं को 10 वीं पास होने के बाद 30 हजार रुपये का अनुदान दो साल तक बांटा मगर तीसरे साल में बंद कर दिया गया। अपने ड्रीम प्रोजेक्ट्स चाहे लखनऊ में मेट्रो चलाने का महत्वाकांक्षी फैसला हो या फिर सरकारी कोष से 15 हजार करोड़ की लागत से बनाया जाने वाला सिक्स- लेन लखनऊ-आगरा हाइवे सब में जमकर घालमेल हुआ है। उपलब्धि में जनेश्वर पार्क की दुहाई दी जा रही है। जबकि सच तो यह है कि आम जनता से उसका कोई लेना देना नहीं है। लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस, मेट्रो परियोजना सरकार के ड्रीम प्रॉजेक्ट थे। मगर अपने ड्रीम प्रॉजेक्ट को जमीन पर उतारने में सरकार को ढाई साल से ज्यादा का वक्त लग गया। ढाई साल तक ये परियोजना कागजों पर चलती रही। अब जब कमीशनबाजी तय हुआ तो काम की शुरुवात सिर्फ इसलिए की गयी कि चलीचला की बेला में जो ही हाथ लग जाय वहीं सही। बीपीएल की सभी महिलाओं को दो-दो साड़ी और बुजुर्गों को कंबल देने का वादा धरा ही रह गया। दुसरे राज्यों के सापेक्ष वैट का सरलीकरण करने का ऐलान तो किया गया, मगर वैट की दरें दूसरे राज्यों के बराबर करने की बात तो दूर सरकार ने कई वस्तुओं पर वैट और भी बढ़ा दिया। व्यापारियों को सुरक्षा देने के लिए व्यापारी सुरक्षा फोरम बनाने की घोषणा हवा-हवाई होकर रह गयी।
नियुक्तियों में भारी धांधली
जहां तक नियुक्तियों का सवाल है नोएडा के चीफ इंजीनियर यादव सिंह का मामला हो या लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष अनिल यादव का, दोनों में दूसरे पावर सेंटर की वजह से सरकार की किरकिरी हुई। यादव सिंह और अनिल यादव दोनों के मामले में दिल्ली में रहने वाले सपा के एक बड़े नेता की ओर उंगली उठी, वहीं मुजफ्फरनगर दंगे में भी पार्टी के दूसरे नेताओं पर सवाल खड़े होते रहे। लोकायुक्त तैनाती मामले में भी सरकार की खूब फजीहत हुई। विवाद के चलते सुप्रीम कोर्ट को खुद ही लोकायुक्त तैनात करना पड़ा। अधीनस्थ आयोग उत्तर प्रदेष में भारी यादवों की भर्ती में सरकार ने सारे नियम कायदे ताक पर रखे! शिक्षामित्रों को नियमित करने में भी सरकार के पसीने छूटे। सुप्रीम कोर्ट ने उनका समायोजन अवैधानिक करार दे दिया। रोक लगी। सरकार एसएलपी फाइल नहीं कर सकी। शिक्षामित्र खुद अपनी लडाई कोर्ट में लड़ रहे हैं। मनोनीत एमएलसी के लिए सरकार ने जो नाम राज्यपाल के पास भेजे, उन पर भी आपत्ति लगी। गवर्नर ने मंजूरी नहीं दी तो सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा। उत्तर प्रदेष सचिवालय में भी 120 पदों पर भर्ती में नियम कायदे ताक पर रख किया गया चयन!
खूब फला-फूला खनन माफियाओं का साम्राज्य
जिस तरह यूपी में धडल्ले से रेत खनन किया या कराया जा रहा है उससे नदियों के अस्तित्व पर खतरे का बादल मंडराने लगा है। फिरहाल यूपी के भदोही, मिर्जापुर, सोनभद्र, इलाहाबाद, उन्नाव, कानपुर, मुरादाबाद, फिरोजाबाद, प्रतापगढ़, रायबरेली या जनपदों में पूरी-पूरी रात रेत या पत्थर खनन हो रहा है। गंगा में बालू खनन पर पूरी तरह रोक है, लेकिन गंगा रेती में बड़े पैमाने पर खनन किया जा रहा है। हाल यह है कि हौसले बुलंद ये खनन माफिया हाईकोर्ट की नाराजगी और सुप्रीम कोर्ट की रोक के बाद भी बिना किसी खौफ के अवैध खनन का काम धडल्ले से चला रहे है। खासियत यह है कि इस काले कारोबार के खेल में इन खनन माफियाओं को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव एवं खनन मंत्री रहे गायत्री प्रसाद प्रजापति के साथ-साथ सत्ता के शीर्ष नेतृत्व का बरदहस्त प्राप्त था। यही वजह है कि सत्ता के बाहुबलि विधायक व मंत्री खनन को धड़ल्ले से अंजाम देते रहे। अवैध खनन के विवाद में आएं दिन चलने वाली गोलियों के बीच लाशे बिछती रही। आंकड़ों पर गौर करें तो पांच साल में दर्जनों जाने जा चुकी है। आईपीएस अमिताभ ठाकुर प्रकरण में जिस तरह खनन मंत्री के बचाव में सपा सुप्रीमों ने पहले धमकी दी, फिर बलातकार की फर्जी रपट और निलंबन की कार्रवाई कराई। इतना ही नहीं इस काले कारनामें की परत खोलने पर कहीं पत्रकार को जिंदा जला दिया जाता है, तो कहीं फर्जी मुकदमा दर्ज कर घर-गृहस्थी लूटवा लिया जाता है। उससे पता चलता है कि यूपी सरकार और रेत माफियाओं के बीच कितनी गहरी साठगांठ है।
कर्ज में डूबे सैकड़ों किसानों ने की आत्महत्या
जी हां यह रामकहानी सिर्फ रसीद, सियाराम, बनवारीलाल व जगदीस की ही नहीं है, इनके जैसे हजारों-लाखों है जिनकी इस बेमौसम बारिश के चलते फसले तबाह हो गयी है। इनमें 100 से अधिक लोग ऐसे थे जो इस बर्बादी का मंजर सहन न कर सके और मौत को गले लगा लिया। जिन लोगों ने साहस का परिचय देकर फिर से दुनिया जहान आबाद करने की कसरत में जुटे है उनकी यूपी सरकार 65-100 रुपये की राहत चेक देकर खूब खिल्ली उड़ाई। खास यह है कि पिछले दिनों किसानों की आत्महत्या यूपी में आम हो गई। बता दें, यूपी कृषि आधारित राज्य है। यहां की 50 फीसदी आबादी इससे जुड़ी हुई है लेकिन राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में इसका योगदान घट कर 18 फीसदी रह गया है, इसमें से 9 फीसदी डेयरी का अंश है। कृषि आधारित राज्य होने की वजह से यहां बड़े स्तर पर कृषि प्रसंस्करण इकाइयों के लगाये जाने की जरूरत है लेकिन कच्चे माल की कमी इसमें एक बाधा है। फसलों की सही उपज न होने की वजह से कर्ज में डूबे किसानों ने अपने जीवन को ही समाप्त करने का फैसला ले लिया। किसानों पर बैंकों और देनदारों के 79,809 करोड़ रुपये कर्ज हैं। कर्ज में डूबी राज्य सरकार उन्हें मुआवजा देने की स्थिति में नहीं है। क्योंकि बाढ़, ओलावृष्टि, आंधी-तुफान में तबाह में बर्बाद किसानों को अखिलेश सरकार जब पांच सौ से बारह सौ के चेकर मुआवजा के रुप में दे रही थी तो उन्होंने लौटा दिया था। मतलब साफ है, खाली खजाने और किसानों की आत्महत्या इन चुनावों में सबसे बड़ा किरदार अदा करेंगे इसमें कोई शक नही।
सुरक्षित ही नहीं तो फ्री का मोबाइल चलायेगा कौन? े
अखिलेश यादव चुनाव पिच पर कहते फिर रहे ‘काम बोलता है…‘ और फ्री का लैपटाॅप, दूध व मोबाइल बांटने की बात कहकर दुबारा सत्ता में आने की दुहाई दे रहे है, लेकिन जनता उन्हें हर जिले में घेर रही है। जवाब मांग रही है कि जब हम सुरक्षित ही नहीं रहेंगे तो ये सब फ्री का इस्तेमाल कौन करेगा? बेशक, आंकड़े इस बात के गवाह है कि यूपी अपराध का गढ़ बन गया है। बता दें, पिछले पांच सालों अखिलेश सरकार में बलातकार, हत्या, दंगे, अपहरण, लूट, डकैती में यूपी भारत का पहला राज्य बन गया। ऐसा इतिहास में पहली बार हुआ है कि पांच अलग-अलग क्राइम में यूपी इंडिया में टॉप पर रहा हो। इससे पहले सबसे ज्यादा मायावती सरकार में प्रदेश तीन मामलों में इंडिया में पहले पायदान पर था। देश में क्राइम का रिकॉर्ड रखने वाली सरकारी संस्था नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक, पिछले चार साल में यूपी में 93 लाख से ज्यादा क्राइम की घटनाएं हुई हैं। इनमें से 71 प्रतिषत क्राइम सपा के विधायक, नेताओं या अखिलेश सरकार में अब तक बने मंत्रियों के जिलों में हुआ है। पिछले एक साल में सबसे ज्यादा 2.78 लाख अपराध की घटनाएं लखनऊ में हुई हैं।
बेरोजगारों की संख्या बढ़ी
2016 के आंकड़ों के मुताबिक यूपी के रोजगार कार्यालयों में बेरोजगारों के 4,51,297 आवेदन पेंडिंग थे। लेकिन ये आंकड़े सही स्थिति को नहीं दर्शाते क्योंकि कम शिक्षित अथवा अनपढ़ इंप्लायमेंट एक्सचेंज में रजिस्टर नहीं कराते। बेरोजगारों के सही आंकड़े नैशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक 75 लाख है। इनमें से 71 फीसदी शिक्षित जबकि 38 फीसदी तकनीकी रूप से कुशल हैं। 2015-16 के आंकड़ों के मुताबिक यहां प्रति हजार 60 लोग बेरोजगार हैं जो बिहार की स्थिति के बराबर है। यह अलग बात है कि सपा ने युवा वोटरों को रिझाने के लिए यहां नौकरी और बेरोजगारी भत्ता देने की घोषणा की है।