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येस बैंक का डूबना-उभरना एवं भारतीय अर्थव्यवस्था पर उसका प्रभाव

बैंकिग व्यवस्था किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का दर्पण होती है। बैंकिग प्रणाली में जनता के विश्वास का होना, इस बात का प्रमाण है कि उक्त देश की अर्थव्यवस्था बहुत सुदृढ़ है इसके विपरीत यदि जनता का विश्वास बैंकिंग व्यवस्था से भंग होता है तो सत्ता के प्रति भी उनका विश्वास भंग होना स्वाभाविक है। देश में अभी कुछ समय के अंतराल में न केवल येस बैंक अपितु 50 से अधिक अन्य छोटे-बड़े बैंक भी बंद हो चुके हैं। इस परिस्थिति के परिणामस्वरूप 25-30 हजार से लेकर कई लाख खाताधारकों का पैसा डूबा है, जिसके कारण आज सम्पूर्ण देश में साधारण जनता का विश्वास बैंकिग व्यवस्था से उठता जा रहा है।
 आज बैंको के डूबने के कारणों का गहनता से अध्ययन करने की आवश्यकता है। जब भी कोई बैंक डूबता है, सरकार तथा रिजर्व बैंक द्वारा साधारण जनता को यही समझाया जाता है कि उक्त बैंको के उच्च पदो पर आसीन प्रबंधक और प्रशासनिक अधिकारियों ने अपने अथवा अपने रिश्तेदारों के खातो में बैंकों के धन का अवैध रूप से स्थानान्तरण कर दिया है। आज बैंकों की स्थिति अस्थिर हो गई है और जमाकर्ता का धन खतरे में पड़ने लगा है, ऐसे सभी  बैंक रिजर्व बैंक की भाषा में एनपीआर की श्रेणी में पहुँच गए हैं, जिस कारण से इनका संचालन बंद करना पड़ा और जनता का पैसा डूब गया। जितने बैंक डूबे है, उनकी जवाबदेही सर्वप्रथम रिजर्व बैंक के अधिकारियों की होनी चाहिए, क्योंकि भारत की बैंकिंग व्यवस्था को सुदृढ़ अथवा अस्थिर स्थिति में लाने की जिम्मेदारी रिजर्व बैंक की होती है। प्रतिवर्ष रिजर्व बैंक सभी बैंको की बैलेंस शीट का अध्ययन और निरीक्षण करता है। इस प्रक्रिया के अन्तर्गत उसको यह संज्ञान होता है कि बैंको से जमाराशियों का उपयोग कैसे किया जा रहा है, कितने खर्चे हो रहे हैं, अर्थात् प्रत्येक बैंक के विषय में और किसी भी बैंक में कोई भी घोटाला होने की जानकारी इन अधिकारियों को अवश्य होती है। ऐसी परिस्थिति में होना यह चाहिए कि जब-जब उनको बैलेंस शीट में कुछ निम्न अथवा बड़े स्तर पर अनियमितता महसूस हो तब वे उक्त बैंक को उस अनियमितता को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाने के लिए निर्देश दें, क्योंकि कोई भी अनहोनी बैंकिंग पद्धति में रातों-रात सम्भव नहीं होती है। बैंको के डूबने की श्रृखला को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि रिजर्व बैंक में अभी भी पुरानी सरकार की मानसिकता से युक्त अधिकारीगण, मोदी जी की निष्छल छवि को देश-विदेश में धूमिल करने के लिए ऐसा कार्य कर रहें हैं। येस बैंक इसका सबसे उत्तम उदाहरण है।
समाचार पत्रों से ऐसा प्रतीत होता है कि येस बैंक के संस्थापक एवं पूर्व प्रबंध निदेशक राणा कपूर ने अत्यधिक मात्रा में धनराशी को अपनी बेटियों की कम्पनियों में हस्तांतरित कर दी और रिलायंस समूह के अनिल अम्बानी के ग्रुपों को विशाल ऋण दे दिये जो अब वापस नहीं आ रहें हैं। वह कैसे दिये गये उसकी जाँच अब प्रवर्तन निदेशालय कर रहा है, जिसके कारण बैंक की चलायमान मुद्रा लगभग समाप्त हो गई, फलस्वरूप येस बैंक  जमाकताओं का पैसा देने में विफल हो रहा है। जब ये धन अवैध रूप से हस्तान्तरित हो रहा था तब रिजर्व बैंक के अधिकारी बैलेंस शीट में इस सब प्रक्रिया को देखकर क्यों निष्क्रिय रहे, इसका प्रत्युत्तर कौन देगा?
 अब समाचार पत्रों के अनुसार, येस बैंक को संकटमुक्त करने के लिए भारतीय स्टेट बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, एक्सिस बैंक, बंधन बैंक आदि ने येस बैंक के शेयर खरीद लिए हैं, जिससे कि बैंक ने अपनी मौद्रिक तरलता पुनः प्राप्त कर ली है। यदि रिजर्व बैंक आज से चार-पाँच माह पूर्व इसी प्रकार से सचेत हो जाता तो सम्भवतया येस बैंक नहीं डूबता और भारत  तथा प्रधानमंत्री मोदी जी की छवि देश-विदेश में धूमिल नहीं होती तथा लाखों खाताधारकों को 18 दिन की वेदना सहनी नहीं पड़ती।
 हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री मोदी जी भारत की छवि को सम्पूर्ण विश्व के समक्ष एक नए रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहें हैं। आज सम्पूर्ण विश्व भारत की प्रगति, सुशासन एवं भारतीय संस्कृति से प्रभावित है। प्रधानमंत्री मोदी जी ने जनता को राहत प्रदान करने के लिए एक सुरक्षा नीति के अन्तर्गत यह प्रावधान किया है कि यदि कोई भी बैंक डूब जाता है तो खाताधारकों को सुरक्षा प्रदान करने हेतु न्यूनतम निश्चित धनराशि 1 लाख के स्थान पर 5 लाख इसी वर्ष से प्रदान की जाएगी, जिसके लिए सम्पूर्ण देश प्रधानमंत्री मोदी जी का हृदय से आभारी है, परन्तु रिजर्व बैंक के अधिकारियों के उदासीन व्यवहार के कारण खाताधारकों की डूबी हुई धनराशि के स्थान पर उन्हें निर्धारित न्यूनतम धनराशि भी निर्गत नहीं हो पा रही हैं, जिसके फलस्वरूप खाताधारको का वर्षों से मानसिक उत्पीड़न हो रहा है। वास्तविक स्थिति यह है कि बैंको के रिसीवर मुम्बई के केन्द्रीय कार्यलय में निरन्तर जाकर निराश होते हैं, परन्तु रिजर्व बैंक के अधिकारियों को जनता की मानसिक पीड़ा के प्रति कोई भी सहानुभूति का भाव नहीं है और इस कारण ना चाहते हुए भी भाजपा सरकार की निःष्छल छवि धूमिल हो रही है।
 रिजर्व बैंक ने जितने भी बैंको को मोदी जी के शासन काल में बंद किया है, उनको बंद करने में निहित षडयंत्र का पर्दाफाश करने का प्रयास करे, जिन भी बैंको के अधिकारियों ने धोखा धड़ी में भागीदारी की है उनके विरुद्ध कठोर-से-कठोर नियम व कानून बनाकर उन पर शीघ्रातिशीघ्र कार्यवाही की जाए। यदि डूबे हुए बैंको की स्थिति में सुधार की सम्भावना है तो उनको सरकार तथा रिजर्व बैंक यथा सम्भव सहायता प्रदान करके उनको पुनर्जीवित करें, जैसा कि वर्तमान में येस बैंक के साथ हो रहा है। तत्पश्चात जनता का बैंकिंग व्यवस्था के प्रति विश्वास एवं सम्मान पुनः जाग्रत किया जा सकेगा और लाखों घरों में आशा, विश्वास एवं प्रसन्नतारूपी दीपक प्रज्जवलित हो सकेंगे।
योगेश मोहनजी गुप्ता

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