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लाॅकडाउन में एकांकी वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल

कोरोना महामारी की गति अनियंत्रित तरीके से लगातार उफान पर है। सारे संसार में कोरोना पीड़ितों की संख्या 10 लाख के आंकड़े तक पहुँचने जा रही है। मृतकों की संख्या भी 50 हजार के निकट पहुँच रही है। सारा विश्व जानता है कि अमेरिका और इटली इस महामारी का सबसे अधिक शिकार हुए हैं। इटली में 23 प्रतिशत जनसंख्या वरिष्ठ नागरिकांे की है और अमेरिका में वरिष्ठ नागरिकों की संख्या केवल 13 प्रतिशत है। जबकि भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार वरिष्ठ नागरिकों की जनसंख्या 8.6 0प्रतिशत है। शहरों में वरिष्ठ नागरिकों को अक्सर अनेकों प्रकार के रोगों का सामना करना पड़ता है।
कोरोना से उत्पन्न परिस्थितियों ने अनेकों देशों को लाॅकडाउन के लिए मजबूर कर दिया। कोरोना रोग की बढ़ती रफ्तार को देखते हुए यह कदम आवश्यक भी हो गया। इस लाॅकडाउन व्यवस्था के परिणामस्वरूप आज देश का हर नागरिक केवल अपने घर में पारिवारिक सदस्यों के बीच बंधकर रह गया है। पारिवारिक एकता की दृष्टि से इस व्यवस्था को सकारात्मक रूप से देखना चाहिए। परन्तु इस लाॅकडाउन व्यवस्था में उन वरिष्ठ नागरिकों का क्या हाल-चाल है जो पूरी तरह से अकेला जीवन जी रहे हैं। बेटियाँ विवाह के बाद अपने ससुराल में बस जाती हैं और बेटे कहीं विदेश तो कहीं अन्य राज्यों में अपने-अपने कार्यों में स्थापित हो जाते हैं। वृद्धावस्था में एक साथी की मृत्यु के बाद तो दूसरा साथी परिवार के बीच में रहता हुआ भी अपने आपको अकेला ही महसूस करता है। ऐसी परिस्थितियों में अकेले रहने वाले वरिष्ठ नागरिकों की समस्याएँ तो और भी अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाती हैं। वास्तव में अकेले रहने वाले वरिष्ठ नागरिक तो पहले से ही लाॅकडाउन जैसी परिस्थितियों में ही जीवन जी रहे थे, परन्तु फिर भी हिम्मत करके स्वयं बाहर निकलकर स्थानीय बाजारों में जाकर अपनी व्यवस्थाएँ जुटाने में सक्षम थे। कभी-कभार किसी पड़ोसी की सहायता से या किसी सेवक आदि की सहायता से अपने कार्य सम्पन्न करवा लेते थे। परन्तु सम्पूर्ण लाॅकडाउन के बाद तो उनके लिए किसी प्रकार की बाहरी सहायता लेना भी कठिन हो गया है।
‘हेल्पएज इंडिया’ नामक एक गैर-सरकारी संगठन द्वारा करवाये गये एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत के वरिष्ठ नागरिकों में 10 से 20 प्रतिशत वरिष्ठ नागरिक पूरा एकांकी जीवन बिता रहे हैं। कोरोना जैसी छुआछूत से फैलने वाली बीमारी से वरिष्ठ नागरिकों को बचाकर रखना अत्यन्त आवश्यक है। क्योंकि इस आयु में शरीर की प्रतिरक्षा क्षमता कमजोर हो जाती है। शरीर के सारे तंत्रों में से श्वसन तन्त्र तो और भी अधिक प्रभावित रहता है। कोरोना वायरस भी गले और श्वसन तन्त्र को ही सीधा प्रभावित करता है। एक तरफ तो वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा इसी में है कि वे अपने घर तक सीमित ही रहे, परन्तु अकेले रहने वाले वरिष्ठ नागरिकों की समस्याएँ और अधिक गम्भीर हो जाती हैं क्योंकि उनके लिए दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के विकल्प भी अवरुद्ध हो जाते हैं। इन परिस्थितियों में सरकारों और विशेष रूप से स्थानीय प्रशासन और पड़ोसियों का दायित्व बढ़ जाता है क्योंकि वरिष्ठ नागरिकों की दैनिक आवश्यकताओं के साथ-साथ उनके लिए पहले से चल रहे उपचार आदि की व्यवस्था करना भी आवश्यक होता है। उनके लिए दैनिक खाने-पीने की वस्तुओं के साथ-साथ भिन्न-भिन्न प्रकार के रोगों की दवाईयों और अन्य उपचार के सामान की भी व्यवस्था करनी पड़ती है। शहरों में रह रहे एकांकी वरिष्ठ नागरिकों के लिए धन की सहायता का कोई विषय नहीं है अपितु उन्हें तो संवेदनशील सहायता और समर्थन की आवश्यकता है। उन्हें एक ऐसा तन्त्र उपलब्ध कराया जाना चाहिए जहाँ अपना अधिकार समझकर वे अपनी पहुँच बना सकें और अपनी आवश्यकतानुसार अपने खर्च पर व्यवस्थाओं की माँग कर सकें।
वरिष्ठ नागरिकों को नियमित अन्तराल के बाद ब्लड प्रेशर, शुगर और हृदय आदि की जाँच करवानी पड़ती है। कुछ लोग जो डायलिसिस पर हैं उन्हें प्रति सप्ताह डायलिसिस के लिए अस्पताल जाना पड़ता है। जिन लोगों को दमा रोग है उनके लिए नेबोलाइजर, पफ और दवाईयों की नियमित आवश्यकता पड़ती है। ऐसी परिस्थितियों में पुलिस का यह दायित्व बनता है कि वरिष्ठ नागरिकों की सूची में से एकांकी वरिष्ठ नागरिकों की अलग सूची तैयार करें और उन्हें एक ऐसा टेलीफोन नम्बर उपलब्ध कराया जाये जिस पर वे कभी भी सहायता के लिए फोन कर सकें।
भारत की संसद ने वर्ष 2007 में वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण को ध्यान में रखते हुए एक विशेष कानून भी पारित किया था। इस कानून में पारिवारिक अव्यवस्थाओं और कठिनाईयों से मुक्ति दिलाने के लिए जहाँ एक तरफ विशेष प्राधिकरण गठिन करने के प्रावधान थे तो दूसरी तरफ राज्य सरकारों को वृद्धाश्रम खोलने तथा अस्पतालों में वरिष्ठ नागरिकों को विशेष सुविधाएँ देने के प्रावधान भी शामिल किये गये थे। वरिष्ठ नागरिकों की समस्याओं को लेकर पुलिस और स्थानीय प्रशासन को विशेष रूप से संवेदनशील बनाने की भी बात कही गई है। भारत सरकार का सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय वरिष्ठ नागरिकों की समस्याओं को दूर करने के लिए समय-समय पर कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाता है।
कोरोना प्रकोप के चलते मेरे सामने भी ऐसे एकांकी वरिष्ठ नागरिकों की कुछ समस्याएँ आई। लाॅकडाउन के दौरान किसी समस्या के पता लगने पर मैं स्वयं किसी वरिष्ठ नागरिक की सेवा में उपस्थित नहीं हो सकता था परन्तु टेलीफोन पर ही मैंने स्थानीय प्रशासन तथा पुलिस की मदद ऐसे लोगों तक पहुँचाने के कई प्रयास किये हैं। मेरा राज्य सरकारों से विशेष निवेदन है कि प्रत्येक जिले में वरिष्ठ नागरिकों को किसी प्रकार की सहायता के लिए एक टोल फ्री नम्बर स्थापित करना चाहिए और पुलिस के माध्यम से वरिष्ठ नागरिकों को व्यक्तिगत रूप से यह सूचना दी जानी चाहिए कि किसी भी सहायता के लिए वे इस नम्बर पर निःसंकोच सम्पर्क कर सकते हैं। पुलिस और प्रशासन को जब कभी भी किसी वरिष्ठ नागरिक के सामने आ रही कठिनाईयों का पता लगे तो उन्हें पूरी संवेदनशीलता का परिचय देते हुए उनकी समस्याओं का निदान करना चाहिए। इस उद्देश्य को ध्यान में रखकर मुझे किसी प्रकार का कोई संकोच नहीं होगा यदि समाज का कोई भी वरिष्ठ नागरिक अपनी किसी भी प्रकार की समस्या के लिए मेरी सहायता आवश्यक समझे। मेरे व्यक्तिगत दूरभाष 9013181544, 9463600544, 9417021139 तथा 9815945432 को भी वरिष्ठ नागरिकों की किसी भी सहायता के लिए एक विनम्र प्रयास के रूप में समझा जा सकता है।

 

– अविनाश राय खन्ना, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भाजपा

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