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ऍफ़. डी. आई. नीति में बदलाव : एक अच्छी शुरुआत पर आगे लम्बी राह

 

ऍफ़. डी. आई. नीति में परिवर्तन कर भारत सरकार ने घरेलू कंपनियों में भारी निवेश के माध्यम से अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण करने के चीनी प्रयास पर अंकुश लगाया ।
चीन में उत्पन्न हुई महामारी कोविड-१९ ने सम्पूर्ण विश्व को घेर लिया है । भारत में भी इस महामारी ने फरवरी माह में दस्तक दे दी थी और भारतीय सरकार को इससे लड़ने के लिए सम्पूर्ण लॉक-डाउन जैसे कड़े कदम उठाने पड़े । सम्पूर्ण लॉक-डाउन ने इस महामारी के प्रसार पर रोक लगायी परन्तु समूचे देश के आर्थिक क्रियाकलापों पर भी अल्प विराम लगा दिया । जिसके परिणामस्वरूप भारतीय कंपनियां इस समय गंभीर आर्थिक समस्याओं से जूझ रही हैं । विडम्बना यह है कि इस महामारी का उद्गम स्थल चीन न सिर्फ इस महामारी को वश में करता प्रतीत हो रहा है अपितु इस समस्या का लाभ उठाने की लिए भी लालायित दिख रहा है । चीन अपने देश की बड़ी-बड़ी कंपनियों के माध्यम से विश्व भर में तीव्रता से निवेश के अवसर तलाश कर रहा है । इस चीनी रणनीति ने भारत में भी घरेलू कंपनियों में चीन द्वारा निवेश एवं नियंत्रण बढ़ाने की चिंता उत्पन्न की । पीपुल्स बैंक ऑफ़ चाइना द्वारा ऐच. डी. ऍफ़. सी. लिमिटेड में 1.01 प्रतिशत हिस्सेदारी का अधिग्रहण होने के बाद तो सरकार द्वारा त्वरित किसी बड़े कदम के उठाए जाने की आवश्यकता हो गयी थी ।

17.04.2020 को भारत सरकार ने भी ऍफ़. डी. आई. नीति में परिवर्तन कर दिया है और किसी भी पडोसी देश द्वारा भारतीय कंपनियों में निवेश कठिन बना दिया है । पुरानी ऍफ़. डी. आई. नीति के अंतर्गत कोई भी विदेशी इकाई भारत सरकार से पूर्व अनुमति के बिना भारत में निवेश कर सकती थी । इस पर मुख्य रूप से दो प्रकार के प्रतिबन्ध थे । पहला प्रतिबन्ध बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले निवेश पर था । और दूसरा प्रतिबन्ध कुछ क्षेत्रों (जैसे रक्षा, अंतरिक्ष, परमाणु ऊर्जा आदि) में होने वाले निवेश पर था । परिणामस्वरूप पुरानी नीति के अनुसार सभी चीनी इकाइयां प्रतिबंधित क्षेत्रों के बाहर भारतीय कंपनियों में अधिग्रहण करने के लिए स्वतंत्र थीं । अब संशोधन के बाद नयी एफ.डी.आई. नीति के अनुसार ‘भारत के साथ भूमि सीमा साझा करने वाले देश’ की किसी भी इकाई को किसी भी भारतीय कंपनी में ऍफ़. डी. आई. निवेश करने से पहले अनिवार्य रूप से भारत सरकार की पूर्व स्वीकृति की आवश्यकता होगी । यह एक स्वागत योग्य कदम है जो चीनी कंपनियों द्वारा अवसरवादी अधिग्रहण को कठिन बना देगा ।

नई नीति का आलेखन काफी रचनात्मक है और इसे प्रभावी बनाने के लिए निम्नलिखित प्रयोजन किये गए हैं –

1. यह प्रतिबंध उस देश की इकाइयों पर लगाया गया है जो भारत के साथ भूमि सीमा साझा करती है । इस प्रावधान में चीन का कोई उल्लेख किए बिना चीनी कंपनियों और संस्थाओं के द्वारा सभी संभव अधिग्रहणों को इस नीति के अंतर्गत कर लिया है ।
2. अप्रत्यक्ष अधिग्रहणों पर भी प्रतिबंध लागू होगा । संशोधित नीति उन स्थितियों पर भी लागू होती है जहां प्रत्यक्ष निवेश चीन के बाहर किसी भी इकाई द्वारा किया जाता है, लेकिन निवेश का ’लाभकारी स्वामी’ चीन या अन्य पड़ोसी राज्य का नागरिक है या इसमें स्थित है।

3. नयी नीति का पैरा 3.1.1(b) यह स्पष्टीकरण देता है कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भारत में किसी इकाई में एफ. डी. आई. के स्वामित्व का हस्तांतरण जिसके परिणामस्वरूप लाभकारी स्वामित्व पर असर पड़ता है वह भी नई नीति के दायरे में आ जाएगा।

एफ. डी. आई. नीति में बदलाव ने काफी हद तक चीनी निवेश सम्बंधित तात्कालिक मुद्दों से निपटा है, लेकिन नई नीति में कई अस्पष्टताएं भी हैं, जिनमें से कुछ पर इस लेख में चर्चा की जा रही है ।

पहला यह की विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (ऍफ़. पी. आई.) अर्थात शेयर बाजार इत्यादि के माध्यम से अपेक्षाकृत छोटे निवेश नई नीति के तहत शामिल नहीं हैं। उदाहरण के लिए, पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना द्वारा एच. डी. एफ. सी. लिमिटेड में किये गए निवेश का मामला एफ. पी. आई. था और नई नीति से भी बहार था।

दूसरे, ‘लाभकारी स्वामी’ शब्द की व्याख्या नहीं की गई है । ‘लाभकारी स्वामी’ के रूप में अर्हता प्राप्त करने के लिए स्वामित्व के प्रतिशत या नियंत्रण का कोई मानदंड नहीं है। इससे निश्चित रूप से भ्रम की स्थिति और अनुमति मिलने में विलम्ब होगा ।

  1. तीसरा, चीनी कंपनियों ने पहले ही भारतीय कंपनियों में बड़े निवेश और उन भारतीय कंपनियों पर पहले ही पर्याप्त नियंत्रण किए हुए हैं । Paytm, Ola, Byju’s, Flipkart, Zomato, Bigbasket, आदि जैसी कई बड़ी भारतीय कंपनियों में पहले ही चीनी कंपनियों की हिस्सेदारी और नियंत्रण है । साथ ही, पिछले कुछ महीनों में भी कुछ निवेश चीनी संस्थाओं द्वारा किए गए हैं जिनकी सेबी जाँच कर रही है । परन्तु नयी नीति में चीनी संस्थाओं द्वारा वर्तमान निवेश की समीक्षा करने का कोई प्रावधान नहीं है ।

    चौथा, भारतीय कंपनियों में कोविड-१९ के फैलने से पहले चीनी संस्थाओं ने गैर-अवसरवादी निवेश किया था । ऐसी कंपनियों की भविष्य में वित्त आपूर्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा ।
    1930 के बाद दुनिया सबसे खराब आर्थिक संकट से गुजर रही है और वैश्विक स्तर पर कंपनियों का मूल्यांकन बहुत नीचे चला गया है । चीनी कंपनियां ऐसे हालात का फायदा उठाने के लिए तत्पर हैं । स्पेन, ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त राज्य अमेरिका पहले ही चीनी निवेश रोकने के कदम उठा चुके थे और भारत भी समय रहते निवेश नीति में परिवर्तन करके इन देशों की कतार में खड़ा हो गया है । परन्तु इस कदम की सफलता इस बात पर निर्भर होगी कि नयी नीति का क्रियान्वयन कैसे होता है और इसकी कमियों को कैसे दूर किया जाता है। उम्मीद की जा सकती है कि भारत सरकार इस दिशा में आगे भी सभी सही कदम उठाएगी एवं भारतीय अर्थव्यवस्था की चीनी हस्तक्षेप से रक्षा करेगी ।
    विभोर अग्रवाल
    अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया

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