भारत-चीन के बीच गलवान घाटी में हुई तीखी खूनी झड़प के बाद चीन को अब समझ में आ गया है कि अब उसका पाला 2020 के नये भारत से पड़ा है। भारत अपनी एक-एक इंच भूमि के लिए कोई भी बलिदान देने के लिए तैयार है। भारत के 20 शूरवीर शहीद अवश्य हुए पर चीनी सैनिकों के हमले के बाद तत्काल जवाबी कारवाई में उन्होंने चीन को भारी क्षति पहुंचाई। 43 से अधिक चीनी जवान उनके कमांडिंग ऑफिसर समेत मारे गए। झड़प के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रतिक्रिया को ध्यान से देखने और समझने की जरूरत है । बड़े ठंढे दिमाग से नपे-तुले शब्दों में उन्होंने कहा कि भारतीय सैनिकों की शहादत बेकार नहीं जाएगी। भारतीय सैनिक मारते हुए मरे हैं। यानी प्रधानमंत्री का कहना था कि केवल भारतीय सैनिकों का ही नुक़सान नहीं हुआ है। उनके वक्तव्य को समझने की जरूरत है। संदेश साफ दे दिया गया है कि अब भारत किसी हालत में 1962 की तरह पीछे नहीं हटेगा। चीन की दादागिरी का माकूल जवाब दिया जाएगा। अब चीन को उस जमीन को भी वापस करने की प्रक्रिया चालू करनी होगी जो उसने भारत से 1962 में हड़प ली थी।
गलवान घाटी हादसे के बाद भारत का आक्रामक रवैया अपने-आप बहुत कुछ कहता है। भारत ने साफ कर दिया है कि सीमा पर जो कुछ भी हुआ है, उसके लिए शत-प्रतिशत चीन जिम्मेदार है और यह कदम उसने सोच-समझकर उठाया था। यह घटना चीन के उकसावे और पहले से सोची समझी रणनीति के तहत हुई है, जिसके चलते हिंसा हुई है। आख़िरकार, 16वीं बिहार बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल संतोष बाबू, यही तो देखने गये थे कि चीन आपसी बातचीत में तय हुई शर्त के अनुसार गलवान घाटी में अपनी सीमा पर पीछे लौटा है या नहीं, जबकि, उनके सिर के पीछे लोहे के राड से हमला कर मार दिया गया । इसके बाद तो बिहार रेजिमेंट के रण बांकुरों ने उनका जमकर जवाब दिया और 20 के बदले 43 चीनी सैनिकों को मारकर ही दम लिया ।
चौकन्ना रहने की जरूरत
बहरहाल, अब देश को कई स्तरों पर चौकन्ना रहना होगा। चीन तो हमारा शत्रु है ही, देश के भीतर भी अनेकों चीन समर्थक जयचंद मौजूद हैं। चीनी एक्शन के बाद जब खबरें छन-छन कर आने लगीं तो सोशल मीडिया पर भारतीय सैनिकों के बलिदान पर गुस्सा जताने की बजाय बहुत सारे जयचंद मोदी सरकार को ही घेर रहे थे। मोदी सरकार की नीतियों को ही बुरा-भला कह रहे थे। वे मोदी सरकार को मुसलमानों का शत्रु भी बता रहे थे। कोई इनसे पूछे कि कम से कम वक्त की नजाकत को तो समझो । देश पर एक बड़ी विपत्ति आई हुई है और आप लगे गिले-शिकवे निकालने । यह तो जिस थाली में खा रहे हो उसी में छेड़ करने वाली ही बात हुई न ? यह देश के कुछ खाते-पीते-अघाते वर्ग के दोगले किस्म के लोगों की कहानी है। इन्होंने कभी सरहद में छिड़ी जंग को देखना तो दूर, कभी सीमा को भी नहीं देखा है। हां, ये ज्ञान देने में सबसे आगे हैं। क्योंकि, इन्हें ज्ञान बाँटने के लिये विदेशी पैसे और पुरस्कार मिलते हैं । इन्हें देखकर समझ आ जाता है कि क्यों यह देश सैकड़ों साल गुलाम रहा। इनकी नीचता ने सारी हदें तब पार कर लीं जब ये कहने लगे कि शहीद हुए जवान तो बिहार से थे। इसका राजनीतिक लाभ भाजपा आगामी बिहार चुनावों में लेगी। तो समझ लें कि अब ये इस देश के शहीदों को भी किसी प्रदेश या जाति के आधार पर पहचानेंगे । यह सब भारत में कभी नहीं हुआ था जो अब हो रहा है। क्या देश के लिए कुर्बान हुए सैकड़ों शहीदों को हम उनके धर्म, जाति या प्रदेश के आधार पर जानते हैं। याद रखें कि देश के भीतर पल रहे इन शत्रुओं पर सख्त नजर रखनी होगी। इसी तरह से कुछ कथित रक्षा विशेषज्ञ भी भारतीय सेना को कमजोर दिखाने में लगे हुए हैं। मैं उनके नाम तो लेना नहीं चाहता पर वे दोनों देशों के बीच हुए झड़प को कुछ इस तरह से पेश कर रहे हैं कि नुकसान सिर्फ हमारा हुआ है। ये दिल्ली में बैठकर महाभारत के संजय की तरह रणभूमि का सूरते हाल देश को बता रहे हैं। लेकिन, उन्हें पता होना चाहिये कि अब धृतराष्ट्र का युग समाप्त हो चुका है । अब देखिए कि विश्वसनीय विश्व मीडिया यह बता रहा है कि भारतीय सेना ने चीन की सेना को भी बड़ी क्षति पहुंचाई है। चीन में एक तरह की नादिरशाही है, वहां प्रेस पर भी सरकार का ही पूरा नियंत्रण है। इसलिए चीन मृतक सैनिकों की संख्या छुपाता है। हमारे सर्वज्ञानी रक्षा जानकार बता रहे हैं कि हमारे जवान सामान्य रूप से सीमा पर तैनात थे तब चीनी सैनिकों ने उन पर लोहे के रॉड के साथ हमला कर दिया।
जब हमारी तरफ से सैनिक आये, तब तक चीनी सैनिक हज़ार से ज्यादा आ गए, एक पतली रिज पर भगदड़ मची और चट्टानें गिरने के कारण कई लोग गहरी घाटी में गिर गए। लेकिन चीनी सेना के भी पचास से अधिक जवान नीचे खाई में गिरे हैं। यह नहीं बताया जा रहा है। एक बात दुनिया जान ले कि हमारे जवान शारीरिक रूप से चट्टान की तरह मजबूत हैं। वे आमने सामने के युद्ध में किसी को भी पानी पिला देंगे। चीन हमारे जवानों से जीतने की उम्मीद नहीं कर सकता। भारतीय सेना के जवानों का प्रशिक्षण और शारीरिक क्षमताओं पर सवाल खड़े करने की कोई ना सोचे। हिंसक झड़प में चीनी सैनिकों को भी काफी नुकसान हुआ। यह बात इसलिए सामने आई, क्योंकि झड़प के बाद घटनास्थल पर कई चीनी एम्बुलेंस आईं और साथ ही चीनी हेलिकॉप्टरों की मूवमेंट भी बढ़ी। चीनी हेलीकॉप्टरों द्वारा अपने बेस कैम्प को भेजे गये संदेशों में उन्होंने मृतकों की संख्या कमांडिंग ऑफिसर सहित 43 बताई है लेकिन, यह संख्या ज्यादा हो सकती हैं क्योंकि भारतीय सैनिकों के प्रहार से रिज (ढांग) से नीचे गिरे सैनिकों की संख्या तो इसमें है ही नहीं ।
गलवान घाटी की घटना के बाद भारत तैयार है। सीमा पर सभी जगह फॉरवर्ड पोस्टों के कंपनी कमांडरों को चीन की ओर से कोई हरकत होने पर तुरंत एक्शन लेने के आदेश दिए गए हैं। सेना ने लेह और बाकी सरहदों पर अपना मूवमेंट बढ़ा दिया है। इसके साथ ही लद्दाख से जो भी यूनिट्स पीस स्टेशनों को लौटने वाली थीं, उन्हें वहीं ठहरने को कहा गया है। सेना ने लद्दाख के आसपास के इलाकों में तैनात अपनी इकाइयों को लेह में कभी भी जाने के लिए तैयार रहने के आदेश दिए हैं। खासतौर पर कश्मीर और जम्मू में मौजूद यूनिट्स को किसी भी वक्त लेह जाने के आदेश दिए जा सकते हैं। मतलब साफ है कि इस बार नीच चीन को छोड़ा नहीं जाएगा।
प्रधानमंत्री का कहना साफ है । हम कभी भी किसी को छेड़ेंगें नहीं । लेकिन, जो हमें छेड़ेगा, उसे छोड़ेंगें भी नहीं । भारत-चीन के दरम्यान जो कुछ हो रहा है, उस पर सारी दुनिया की चुप्पी सच में डरावनी सी लगती है। कोई भी देश खुलकर भारत के साथ नहीं आया है। क्या दुनिया को पता नहीं है चीन की विदेश नीति के संबंध में और उसके आक्रामक रुख के बारे में? सबको पता है, लेकिन कोई शायद खुलकर बोलेगा नहीं। अब दुनिया पहले वाली नहीं रही है। 1962 की जंग के समय जॉन एफ कैनेडी की एक धमकी के बाद चीन ने युद्ध रोका था। पर अब कैनेडी जैसी शख्यिसतें दुनिया में रही कहां है। अब भारत को अपने स्तर पर ही चीनी को जवाब देना होगा। दुनिया तो उसी के साथ होती है जो खुद मजबूती से दुश्मनों का मुकाबला करता है ।
आर.के. सिन्हा
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं )