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क्या होना चाहिए शिक्षा सत्र का इस वर्ष?

कोरोना संकट और लॉकडाउन के कारण देश  के विभिन्न शिक्षा संस्थानो में पढ़ रहे 30  करोड़ छात्र छात्राऐ अनिश्चय के दौर से गुज़र रहे हैं। इनमे से बारहवीं तक के तीन चौथाई को तो ऑनलाइन शिक्षा भी नहीं मिल पा रही है, तो उच्च शिक्षा में यह आँकड़ा लगभग आधे का है।
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सामान्यतः अप्रेल से अगस्त तक प्रवेश चलते हैं व इनके बीच जुलाई व अगस्त में कक्षायें प्रारम्भ हो जाती हैं। इस बर्ष स्थिति बिगड़ी हुई है। उच्च शिक्षा संस्थानो में नए प्रवेशों का टोटा है। बड़ी मुश्किल से विभिन्न शिक्षा बोर्डों के बारहवीं के परिणाम आए हैं किंतु छात्र व उनके माता पिता धर्म संकट में हैं। वे अपने बच्चो को उच्च शिक्षा संस्थानो में प्रवेश दिलाने से हिचक रहे हैं क्योंकि :
१) उनको डर है कि कॉलेज में सत्र शुरू होने पर कोरोना संकट के कारण वे अपने बच्चे को केम्पस में केसे भेजें?
२) उनको लग रहा है कि ये संस्थान उनसे प्रवेश के समय पूरी फ़ीस ले लेंगे किंतु उनके बच्चे को आधी अधूरी ऑनलाइन शिक्षा ही दे पाएँगे।
३) कोरोना संकट के कारण लोगों की नोकरी व व्यवसाय पर घना संकट है। यह भी नहीं स्पष्ट कि यह संकट चलेगा कितना लंबा। ऐसे में वे अपने सीमित धन को कैसे अपने बच्चों की शिक्षा के लिए निवेश कर दें?
४) कोरोना ने दुनिया की अर्थव्यव्स्थाव प्राथमिकताए बदल दी हैं किंतु शिक्षा संस्थानो के कोर्स पुरानी आवश्यकताओं के अनुरूप हैं। जब तक नए पाठ्यक्रम व कोर्स न आ जाए तब तक अनुपयोगी कोर्सेस में प्रवेश से अच्छा है कि बच्चे को घर बैठकर रखा जाए।
५) उच्च शिक्षा संस्थानो के पिछले वर्ष के छात्रों की परीक्षा अभी तक नहीं हो पायी है व अनेक प्रवेश परीक्षाएँ अभी लंबित हैं और उनकी तिथियाँ बार बार आगे बढ़ रही हैं। ऐसे में अपने बच्चे को प्रवेश दिलाना संभव ही नहीं दिख रहा।
स्कूलों में तो अप्रेल में सत्र शुरू होते ही लॉक डाउन लग गया और वे अभी तक बंद हैं और अगले तीन चार महीने खुलने मुश्किल ही हैं। ऐसे में उनके लिए इस वर्ष शिक्षा सत्र चला पाना लगभग नामुमकिन सा ही है। वैसे भी थोड़ा बहुत ऑनलाइन पढ़ाकर या दो तीन महीने कक्षाओं में बुलाकर आधी अधूरी या बिना परीक्षा लिए विद्यार्थियों को पास कर देने के कोई मायने भी नहीं।
ऐसे में बेहतर होता अगर सरकार प्राथमिक, माध्यमिक व उच्च शिक्षा के इस अकादमिक सत्र को शून्य ही घोषित कर देती । हाँ शिक्षा क्षेत्र से जुड़े नोकरीपेशा लोगों के लिए अभिभावको, संस्थान के प्रबंधकों व अपनी ओर से मिलाकर सरकार को एक राहत पैकेज की घोषणा कर देना चाहिए। निजी संस्थानो के प्रबंधन के लिए भी एक पेकेज अलग से होना चाहिए।इस बिषय पर सरकार का मौन सभी अभिभावको को चुभ रहा है। यह चुभन सभी सत्तारूढ़ दलो का गंभीर राजनीतिक नुक़सान भी कर सकती है।
अनुज अग्रवाल
संपादक, डायलॉग इंडिया
www.dialogueindia.in

– अनुज अग्रवाल

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