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राम,रामजन्मभूमि व राम का मुकदमा:एक आकलन

*बाबा कबीर* कहते हैं कि-
*सात समद की मसि  करौ, लेखनि सब  बनराइ*
*धरती सब कागद करौ,हरि गुन लिखा न जाई*
*अर्थात-* सात समुद्र के जल को स्याही बना दो,सभी जंगलों को लेखनी बना दो और पूरी धरती को कागज फिर भी ईश्वर के बारे में लिखने को ये अपर्याप्त हैं।

मेरी कोशिश होगी भाषाई अभद्रता से बचते हुए सहज साहित्य में बात लिखना। चूंकि, *”साहित्य अलंकृत होता है,सौंदर्य से भरपूर लेकिन भाषा रूढ़ होती है,अक्खड़ और कभी कभी उजड्ड भी।” अगर लेख में भाषा कहीं साहित्य से विद्रोह कर दे या बागी हो जाये तो क्षमा कीजियेगा।*

मान्यवर, मैं तो एक तुच्छ प्राणी हूँ और मेरी औकात नहीं है कि मैं अपने आराध्य प्रभु श्रीराम के विषय में कुछ लिख सकूँ। बस एक प्रयास भर है आप सब तक प्रभु श्रीराम व इस विवाद को सहज शब्दों में पहुंचाने का। मैंने उत्तर प्रदेश में उस त्रासदी को स्वयं झेला भी है और देखा भी है कि,कैसे मुल्ला मुलायम ने युवकों से लेकर बुजुर्गों तक पर बर्बरता से वार किया था। 18 बरस से 25 बरस तक के युवकों की पिटाई,भेड़ बकरियों की तरह उन्हें छात्रावासों से उठा कर अस्थाई जेलों में रखना। *भगवा गमछा का प्रयोग या जय श्रीराम बोलना ऐसा था जैसे आप किसी दलित का अपमान जातिसूचक शब्दों से कर रहे हों।* अयोध्या में कत्लोगारत भला भूलने वाली बात है।खैर कल्याण सिंह व नरसिंहराव के मदद से म्लेच्छों की मस्जिद का पतन हुआ,रामलला विराजमान हुए। *मैं उस 6 दिसम्बर 1992 के बाद पहली बार रामलला के दर्शन करने जुलाई 2019 में गया और यही मांगा कि अब तभी आऊंगा जब मन्दिर बन जायेगा।*

*आखिर  5 अगस्त को अयोध्या जी में प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि म्लेच्छों से पूर्ण रूपेण मुक्त होगी।* एक और *एकमात्र यही वजह काफी है मेरे लिए कि “नरेंद्र दामोदरदास मोदी,प्रधानमंत्री,भारतवर्ष” की चाहे तारीफ करूं या आलोचना, मैं उनके लाखों खून को भी बर्दाश्त कर सकता हूँ। हां *राममंदिर व धारा 370 के दो मसलों को  औरंगजेब की  ही शैली में निपटाना ही काफी हैं मुझे मोदी का घोर समर्थक होने के लिए* और कांगियों वामियों की निगाह में *भक्त या अंधभक्त होने या सम्बोधित किया जाना मेरे लिए गौरव की बात होगी।*

मोदी की वजह से ये म्लेच्छ जैसे बिलबिला रहे हैं वो देखकर मुझे अतीव खुशी मिलती है। *मुझे सोमनाथ के विध्वंस से लेकर कश्मीर के हिंदुओं के साथ हुए बर्बरतापूर्ण कृत्य के बदले का सुखद अहसास होता है। पूरे विश्व के म्लेच्छ 5 अगस्त को मोहर्रम जैसा मातम मनाएंगे।*

*”राम” हिंदुओं के आराध्य क्यों हैं?*
इस लेख के शीर्षक के अनुसार थोड़ा राम व राम नाम की महत्ता पर चर्चा करते हैं।

*मानव मर्यादा के शैल शिखर पर अवस्थित प्रभु श्रीराम* सम्पूर्ण सनातन जगत ही नहीं वरन भारत के तमाम हिन्दू सम्प्रदायों,जैन,बौद्धों में एकसमान पूजनीय हैं। चाहे किसी ने देखा हो या नहीं परन्तु प्रभु राम का एक बार आंख बंद करके सिर्फ स्मरण भर कर लीजिए आपके अन्तस् में बाल छवि से लेकर योद्धा राम की छवि हिलोरें मारने लगेगी। प्रभु राम नाम का सामान्य जाप ही आपको ऊर्जस्विता से भर देगा।
*आखिर क्यों है राम नाम जन जन का कंठाहार? जन्म हो या मृत्यु,शोक हो या खुशी क्यों राम नाम ही सम्बल बनता है। कभी सोचा आपने?*

*”राम”* नाम दो *बीजाक्षरों (उत्पत्ति शब्द)* से निर्मित है। *”रा” का बीजाक्षर “अग्नि”  है।* अग्नि बीज आत्मा और शरीर को शक्तिमान व जीवंत रखता है। *”म” का बीजाक्षर “अमृत”  है* जो हर प्रकार के शारीरिक रोग,कष्ट व थकान को दूर करता है या यूं कहें कि, *”चिरयुवा” (Rejuvinate)* बनाये रखता है। तो इसीलिए *”राम नाम” का बारम्बार उच्चारण ही आपको जीवंत व गतिमान रखने के लिए काफी है तथा यह किसी महाऔषधि से कम नहीं है।* इस पर तमाम शोध हो चुके और हो रहे हैं।

पूरी दुनिया ये मान चुकी है कि,कोई भी *मानव पूर्ण(Perfect) नहीं होता* है। शास्त्रों में कहा गया है कि, *भगवान राम पूर्ण अवतार नहीं थे क्योंकि वो 16 कलाओं में से सिर्फ 14 कलाओं में ही पारंगत थे।* मानव रूप में सिर्फ *भगवान श्रीकृष्ण ही 16 कलाओं में पारंगत थे।* भगवान *राम में 15वीं कला जिसे “परिपूर्ण”* कहते हैं वो नहीं थीं, वो मानव के गुण दोषों से जुड़े थे और यही कारण था कि उन्होंने मानव स्वभाववश मां सीता की अग्निपरीक्षा न चाहते हुए लिया और उन्हें निर्वासित भी किया। *16वीं कला जिसे “स्वरूपवस्थित” कहते हैं* वो भी उनमें नहीं था। जैसे श्रीकृष्ण बाल्यकाल से ही अपना विराट स्वरूप दिखा देते थे श्रीराम नहीं कर सकते थे। बाकी 16 कलाओं और उनका विश्लेषण फिर कभी होगा।

तो भगवान राम क्यों पूर्ण नहीं थे इस पर शास्त्र कहते हैं कि, रावण को वरदान मिला था कि,त्रैलोक्य में कोई सुर,असुर,किन्नर,गंधर्व,माया या स्वयं ईश्वर भी नहीं मार सकते थे। उसको सिर्फ कोई मनुष्य ही मार सकता था। तो यही कारण था प्रभु श्रीराम के अपूर्ण रहने का,क्योंकि,यदि वो 16 कलाओं में पारंगत होते तो फिर ईश्वरीय रूप में होते और रावण को मार नहीं पाते।

इसीलिए,भगवान राम ने वानर भालुओं की सहायता ली रावण से लड़ने में। *जब मां सीता का हरण हो गया तो भगवान राम फूट फूट कर रो रहे थे,क्योंकि उनमें भी मनुष्य की भावुकता विद्यमान थी।*
भगवान राम ने एक नई *सामाजिक संरचना* को जन्म दिया। ये सिद्धांत प्रतिपादित किया कि, *अच्छाई को कष्ट झेलना पड़ता है परंतु अंत मे बुराई का पराभव तय है।* मनुष्यों के लिए तमाम *आचरण सम्बन्धी सिद्धांत* भी प्रतिपादित किये गए प्रभु राम द्वारा। *समावेशी समाज* के प्रतिपादक भी राम थे। *जनता को जनार्दन का जनार्दन भी उन्होंने ही बनाया* क्योंकि,जब किसी ने कटाक्ष किया मां सीता के लिए तो श्रीराम ने अग्नि परीक्षा भी ली,मां को निर्वासित भी किया। अब कुछ तथाकथित *छद्म बुद्धिजीवी व नारीवादी इसे नारी विमर्श का सवाल बनाते रहे हैं लेकिन उन्होंने अगर मानव सभ्यता के उद्विकास (Evolution) के विषय में पढ़ा होता तो ऐसा न बोलते।*

*रामजन्मभूमि के स्थापना और विध्वंस* की बात करने से पहले हमें इतिवृत्त का थोड़ा सफर करना चाहिए।

*पहला सवाल तो यही है कि,प्रभु राम का जन्मयुग व काल क्या था?*

वस्तुतः हमारे वेदों,शास्त्रों ने पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति, सूर्य,वायु,जल,पृथ्वी, व आकाश, की सारगर्भित व्याख्या की है।हमारे ग्रंथों ने हजारों वर्ष पहले ही लिखा है कि,पृथ्वी व पृथ्वी  पर जीवन अरबों वर्ष पुराना है। हमारे मनीषियों ने वैदिक काल में पृथ्वी पर जीवन को विभिन्न युगों में विभक्त किया है और उन युगों में मानव  जीवन काल भी सुनिश्चित किया है। ये चार युग हैं सतयुग, त्रेता, द्वापर व कलयुग। *चतुर्युगी का सम्पूर्ण चक्र 4 अरब 32 करोड़ वर्ष माना है शास्त्रों ने गणना में,(गणना विधि भी किसी अन्य आलेख में प्रेषित करूँगा)। आधुनिक युग में “कार्बन डेटिंग पद्धति C-12″ के हिसाब से भी पृथ्वी का उत्पत्ति काल इसी गणना के आस पास है।*

अब प्रभु श्रीराम के जन्म काल पर विचार करते हैं। शास्त्रों की माने तो प्रभु राम का प्राकट्य त्रेता युग में हुआ था।
*वायु पुराण के श्लोक 70/48 में लिखा है:*

*त्रैतायुगे चतुर्विर्श रावणस्तपसः क्षयात्*
*रामं दाशरथिं प्राप्य सगणःक्षयमीयवानम्*

*अर्थात:-* रावण अपने दुष्कृत्यों के कारण अपने समग्र गणों के साथ,दशरथ नन्दन राम के साथ त्रेतायुग के 24वें चरण में युद्ध में मारा गया।
अब *चौबीसवें चरण* की गणना देखते हैं:
प्रत्येक युग में मानव की उम्र का निर्धारण देखें-
1.सतयुग – जीवनावधि-400 वर्ष
2.त्रेतायुग – जीवनावधि-300 वर्ष
3.द्वापर – जीवनावधि-200 वर्ष
4.कलियुग – जीवनावधि-100 वर्ष
अर्थात एक चतुर्युगी में मानव जीवन 1000 वर्षों का हुआ।

गणना के अनुसार व उपरोक्त श्लोक के हिसाब से *त्रेतायुग के चौबीसवें चरण में भगवान राम का काल तकरीबन 1 करोड़ 89 लाख वर्ष होगा।*

ये भी बताता चलूँ की *”अब्राहमिक धर्म” यथा “इस्लाम व ईसाइयत” के ग्रंथ कितने पोंगा थे जो ये मानते थे कि धरती चपटी है,सूर्य पृथ्वी का चक्कर लगाता है।गैलीलियो ने कह दिया कि धरती गोल है तो उसे तब के धर्माचार्यों ने मृत्युदंड दे दिया।* ये दोनों धर्म ये मानते ही नहीं है कि,पृथ्वी पर मानव जीवन 5000 वर्ष से ज्यादा पुराना है क्योंकि, ये अपने धर्म को थोपने में असफल रहेंगे।ईसाई मिशनरी अपने चर्चों में बाइबिल और अब्राहम के अलावा किसी को मानते ही नहीं हैं, *बाइबल के हिसाब से तो अब्राहम का काल ईसा पूर्व 2000 बीसी* है मतलब अब्राहम पहले मानव हैं जो आज से 4000 वर्ष पूर्व पैदा हुए। *इस्लाम* तो और विचित्र है, इनका *क़ुरान* कहता है- *पहले मानव आदम का जन्म अल्लाह के धरती बनाने के छठवें दिन हुआ।* मतलब *आदम से अब्राहम तक धरती पर मानव सिर्फ 4000 वर्ष पूर्व पैदा हुआ।* इनके खुद के *धर्मग्रंथों के परखच्चे इनके ही वैज्ञानिकों ने उड़ा दिए जब जीवाश्मों का अध्ययन करके बताया कि,धरती पर मानव जीवन अरबों वर्ष का है।* उन्होंने मानव उद्विकास के सिद्धान्त को प्रमाणित किया और बताया कि *कैसे मानव आधुनिक रूप में बन्दर,वनमानुष,निएंडरथल से होता हुआ वर्तमान  होमो सैपिएन्स तक पहुंचा।*
*धरती गोल ही है और सूर्य का चक्कर काटती है व अन्य खगोलीय ज्ञान पर हजारों वर्ष पूर्व ही “वराहमिहिर” व उनके तमाम पूर्ववर्ती मनीषियों ने बता रखा है जो उपलब्ध भी है और सत्यापित भी।* मानव *जीवन के अस्तित्व के लाखों वर्षों का प्रमाण तो अजंता एलोरा की गुफाएं ही हैं।*
*मैं विषयांतर नहीं हुआ हूँ बस प्रभु राम के अस्तित्व को नकारने वाले छद्म इतिहासकारों व अब्राहमिक धर्माचार्यो को उनके सनातन धर्म व हिंदुत्व के खिलाफ किये जा रहे दुष्प्रचार को एक जवाब देना चाहता हूँ।*

तो मान्यवर,वायु पुराण ही नहीं हमारे तमाम सनातन शास्त्र श्रीराम को कल्पना की उपज नहीं बल्कि जीवंत अस्तित्व को प्रमाणित करते हैं और उनका जीवन काल खंड अंततोगत्वा त्रेतायुग ही सुनिश्चित होता है।

चूंकि,शास्त्र ये भी कहते हैं कि,प्रभु राम ने सम्पूर्ण अयोध्या नगरी के साथ सरयू में जल समाधि ले लिया था। मतलब अयोध्या का अस्तित्व समाप्त हो गया तो *आज की अयोध्या कैसे अस्तित्व में आई??*

मान्यवर, आधुनिक वैज्ञानिक पद्धतियों से से हुई खुदाइयों में प्राप्त अवशेषों से, *कार्बन डेटिंग C-14 पद्धति से व जैवश्मिक अध्ययनों से ये पता चलता है कि,प्रभु राम का कालखण्ड आज से तकरीबन 18000 से 19000 वर्ष पूर्व का है।*

प्रभु श्रीराम से सम्बंधित स्थल थे *अयोध्या,बिहार में मां सीता की जन्मस्थली सीतामढ़ी,जनकपुर(अब नेपाल में),चित्रकूट,दण्डकारण्य(दक्षिण भारत में),रामसेतु रामेश्वरम व अंततोगत्वा आज का श्रीलंका।*

प्रभु श्रीराम के होने का सबसे पुष्ट प्रमाण तो *रामसेतु* ही है जो *तमिलनाडु के पम्बन द्वीप को श्रीलंका के मन्नार द्वीप से जोड़ता है।* कार्बन डेटिंग के हिसाब से इसकी आयु 18000 से 19000 वर्षों के बीच आंकी गयी है। *इस सेतु की कुल लंबाई 35 से 40  किमी के करीब बैठती है। जल में समाहित रामसेतु की चौड़ाई 100 मीटर व मोटाई 10 मीटर है।* *अब्राह्मिकों* ने ये दुष्प्रचार किया कि रामसेतु *मानव निर्मित* नहीं है बल्कि *प्राकृतिक* रूप से किसी भूकम्प अथवा सुनामी से बन गया। अरे *कूढ़ मगजों क्या ये भूकम्प या सुनामी किसी राजमिस्त्री ने पैदा किया था जो 40 किमी तक एक ही चौड़ाई और मोटाई में सेतु बन गया। तमाम शोधों में ये भी प्रमाणित हो चुका है कि,रामसेतु न केवल मानव निर्मित था वरन इस सेतु पर 15 शताब्दी के पूर्वार्ध तक आवागमन भी होता था।* सागर का जलस्तर बढ़ने से रामसेतु आज जल में करीब 40 से 50 फीट अंदर है जिसका प्रमाण उपग्रहों से प्राप्त की गईं सजीव तस्वीरें हैं। इस रामसेतु पर बड़े ही गंभीरता के साथ शोध किये जा रहे हैं और इन शोधों ने रामसेतु के मानव निर्मित होने का अकाट्य प्रमाण भी प्रस्तुत किया है। *इन शोध संस्थानों में मुख्य तीन नाम हैं, पहला, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग(ASI-Archeological Survey Of India), दूसरा, शोध संस्थान हैं सागर प्रबंधन विभाग,अन्ना विश्वविद्यालय,मद्रास व तीसरा संस्थान है मद्रास विश्वविद्यालय। मुख्य शोधकर्ता हैं सागर प्रबंधन विभाग,अन्ना विश्वविद्यालय,* *मद्रास के प्रोफेसर श्रीनिवासुलु व अन्य शोधकर्ता हैं जी.कल्पना,अन्ना विश्वविद्यालय, प्रोफेसर एन.राजेश्वर राव व प्रोफेसर एम.जयप्रकाश,अप्लाइड * भूगर्भशास्त्र विभाग,मद्रास विश्वविद्यालय। इन शोधों को वित्तीय पोषण विश्वविद्यालय अनुदान आयोग(UGC) व भारतीय राष्ट्रीय सागर सूचना सेवा केंद्र*
*(Indian National Centre for Ocean Information Service- INCOIS) द्वारा प्रदान किया जा रहा है।*

इसके इतर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने भी उपरोक्त सभी जगहों पर अध्ययन करके अवशेषों को रामसेतु के समकालीन बताया है। श्रीलंका में भी प्राप्त अवशेषों के जैवश्मिक अध्ययन व शोध प्रभु राम के प्राकट्य को सिद्ध करने के लिए बहुतायत हैं। अतः हिन्दू समाज के लिए सर्वाधिक पवित्र व पूज्यनीय स्थल है अयोध्या।
*बाबा तुलसीदास लिखते हैं:*
*प्रबिसि नगर कीजै सब काजा*
*हृदय राखि कोसलपुर राजा*

*आगे अयोध्या के विषय मे कहते हैं:*
*गंगा बड़ी गोदावरी तीरथ में परयाग*
*सबसे बड़ी अजोध्या जहं राम लीन अवतार*

प्रभु राम के होने का प्रमाण किसी सनातनी को नहीं चाहिए हां तथाकथित हिन्दू विधर्मियों व अब्राहमिक धर्मों यथा इस्लाम व ईसाइयत के धर्माचार्यों को चाहिए क्योंकि *ये बात उनको हमेशा सालती है कि उनके आदम और अब्राहम के पहले कोई कैसे हो सकता है?* जबकि सनातनी तो प्रभु राम का प्राकट्य ही करोड़ों वर्ष पूर्व का मानते हैं। यही नहीं बल्कि उनसे पूर्व भी पूर्ण विकसित मानव समाज की परिकल्पना को प्रस्तुत करते हैं। *ये अब्राहमिक धर्म बाकी सब धर्मों व सम्प्रदायों को खारिज़ करते हैं क्योंकि उनके हिसाब से जो क़ुरान व बाइबल में लिखा है वही आखिरी सत्य है बाकी सब बकवास है।*

*मैं इन कूढ़ मगज़ अब्राहमिक धर्माचार्यों व धर्मावलम्बियों से ये पूछना चाहता हूँ कि, क्या तुममें से किसी ने अपने आदम,अब्राहम,मोहम्मद या ईसा को देखा है। नहीं न। एक किताब में अपनी श्रद्धा व आस्था के आधार पर ही तो मानते हो मोहम्मद या ईसा को। तो भाई हमारे सनातन धर्म के एक नहीं तमाम पूज्यनीय ग्रंथ हैं जो प्रभु राम का व्याख्यान करते हैं और हम सनातनी भी तुम्हारी तरह अपने ग्रंथों में आस्था रखते हैं और उसी आधार पर भगवान श्रीराम हमारे आराध्य हैं।*

उपरोक्त विवेचन से ये भलीभांति सिद्ध होता है कि,हमारे ग्रंथों की परिकल्पना कोरी कल्पना नहीं थी क्योंकि हमारे ग्रंथों को आधुनिक वैज्ञानिकता की कसौटी पर भी परखा जा चुका है।

*किसी सनातनी को रत्ती भर भी संदेह नहीं होना चाहिए प्रभु राम के अस्तित्व पर ना ही रत्ती भर विश्वास होना चाहिए अब्राहमिक धर्मों व भारत के तथाकथित किस्सागो इतिहासकारों व छद्म बुद्धिजीवियों व तथाकथित सेकुलर लोगों के लिए (जिनका सेकुलरिज्म सिर्फ इस्लाम व ईसाइयत के लिए जागृत होता है) के सनातन धर्म के खिलाफ  दुष्प्रचार पर।*

मैं स्वयं से ये प्रश्न करता हूं कि, *प्रभु राम की पूजा भारतवर्ष में कब शुरू हुई? कैसे प्रभु राम प्रत्येक हिन्दू के आराध्य हो गए? प्रभु राम का आविर्भाव कैसे मर्यादा पुरुषोत्तम राम के रूप में हुआ?* आज इन्हीं प्रश्नों का विवेचन करेंगे।

मान्यवर, तमाम उत्तर वैदिक पुराणों,उपनिषदों,साहित्यिक महाकाव्यों में, 9वीं ईसा शताब्दी तक पधारे विदेशी यात्रियों व इतिहासकारों ने प्रभु राम के विषय में लिखा है व पुष्टि किया है कि,श्रीराम की पूजा बहुत ही बड़े सामाजिक स्तर पर होती थी,हालांकि 583 बीसी से लेकर तकरीबन चौथी ईस्वी शताब्दी तक भारत भूमि पर बौद्ध और जैन धर्म का गहरा प्रभाव था, गुप्त वंश के शासन व सनातन धर्म के प्रथम सुधारक आदिगुरु शंकराचार्य के आविर्भाव के बाद शनै शनै बौद्ध धर्म अप्रभावी व क्षीण होता चला गया। आज 21वीं सदी में जैन धर्म तो भारत में है परंतु आपको बौद्ध भिक्षु विदेशी ही मिलेंगे।हालांकि इन दोनों धर्मों को आधुनिक भारत के कानून में हिन्दू धर्म का ही भाग माना जाता है।इन धर्मों के विवाह से मृत्यु तक में सनातन रीति रिवाजों का ही पालन होता है।यहां तक कि इन धर्मों के ऊपर हिन्दू मैरेज एक्ट 1955 ही लागू होता है।

*प्रभु श्रीराम को समर्पित पहला ग्रंथ है “महर्षि वाल्मीकि रचित रामायण”।* यह ग्रंथ पूर्णतः श्रीराम का आख्यान है और ये प्रभु श्रीराम के विषय में लिखा आदिग्रंथ है।

हालाँकि, *वामपंथी किस्सागो* इसे *आदिग्रंथ* न मानते हुए इसे एक सामान्य *”महाकाव्य”* का दर्जा देकर इसे खारिज करते हैं। *इन चमगोइंयां करनेवाले चाटुकार वामपंथी इतिहासकारों ने ये न लिखा कि,रामायण में अकेले 24000 श्लोक हैं जबकि चारों वेदों में 30,000 के करीब श्लोक हैं। अब्राहमिक क़ुरान में मात्र 6300 आयतें हैं व बाइबल के ओल्ड टेस्टामेंट व न्यू टेस्टामेंट में कुल मिला के 31102 आयत या वर्स हैं।* अब बताओ भैया चोगद इतिहासकारों,रामायण ग्रंथ क्यों नहीं है? *क़ुरान,बाइबल भी तो व्यक्ति को ही परमेश्वर का प्रतिनिधि मानते हुए उन्हें ईश्वर के तौर पर पूजते हैं। रामायण ने भी तो प्रभु राम को ईश्वर का अवतार बताया है तो छद्म बुद्धिजीवियों तुम्हें आपत्ति क्यों है?* क्योंकि तुम अपने को प्रगतिशील दिखाने की कोशिश में इन बाइबल वालों की चाटुकारिता करते हो।

*रामायण* का रचना काल आज से *2500 से 3000 वर्ष* के बीच में है। प्रभु *राम का पूजन आज से 2200 से 2300 वर्षो* के मध्य सामाजिक स्तर पर पूर्ण प्रचलन में था। इसी कालखण्ड में रामनवमी पूजा के भी प्रमाण मिलते हैं। कृपया निम्न प्रमाणों को देखें:-
1. *महाभारत* ग्रंथ के *तीर्थयात्रा पर्व* अध्याय में लिखा गया है कि, *सरयू के गुप्तार घाट* पर ही श्रीराम ने अपने अनुयायियों के साथ *जलसमाधि* ले ली थी।
*गोप्रतारम ततो गच्छेत सर्यवासतीर्थमुत्तमम।*
*यत्र रामो गत: स्वर्गम सभृत्यबलवाहनः।।*

2. *कौटिल्य चाणक्य “अर्थशास्त्र” में राम* व रामराज्य के विषय वर्णन करते हैं।राजकुमारों को कहते हैं कि *रावण व दुर्योधन के विचारों से अपने को बचाना चाहिए।*
*मानाद रावण: परदारानप्रयच्छन दुर्योधने राज्यांशम च। (1.6.8)*

3. *400 ईस्वी पूर्व में सिकन्दर के साथ आया इतिहासकार व वृतांत लेखक एरियन* लिखता है कि, राम की पूजा भारतभूमि में होती थी।एरियन ये भी कहता है कि,राम का पूजन सिंधु घाटी सभ्यता के पूर्व भी था। वो कहता है कि,मिट्टी के कुंए जगह जगह थे जिन्हें *रामकूप* कहा गया है।कई स्थलों पर *रामबाग* के विषय में लिखता है एरियन। *उसके कथन को जाने माने ब्रिटिश पुरातत्वविद ए.कनिंघम ने अपनी पुस्तक- The Ancient Geography Of India  में वर्णित व सत्यापित किया है।*

4. बौद्ध साहित्य की कृतियों यथा- *कुमारलता रचित कल्पना मन्दितिका, अश्वघोष रचित सूत्र अलंकार व अन्य ग्रंथ ये कहते हैं कि भगवान राम सर्वत्र पूजित थे।*

5. *महाकवि कालिदास* अपने कालजयी ग्रंथ *”मेघदूतम”* में प्रभु राम की अर्चना स्तुति करते हैं व दूसरे ग्रंथ *”रघुवंशम” में तो भगवान राम व राम के कुल का ही आख्यान है।* *कालिदास रामजन्म स्थल रामटेक पर अवस्थित राम सीता के मंदिर,लक्ष्मण,हुनमान मन्दिर का खूब भव्य वर्णन करते हैं। उनके समय में  रामटेक पहाड़ी पर जन्मस्थान मन्दिर था।* कालिदास ने श्रीराम की भगवान विष्णु का अवतार कहा है। *चौथी शताब्दी आते आते  श्रीराम को पूर्णरूपेण भगवान विष्णु के अवतार की मान्यता मिल चुकी थी।*

6.बिहार के *पश्चिम चंपारण में 500 ईसा पूर्व का गांव है जिसका तबका नाम रामपुरवा था और सम्राट अशोक ने वहां पत्थर की एक बहुत कलात्मक कृति बनवाई जो “युद्ध को उद्धत सांड़” की मूर्ति है। रामपुरवा गांव का उल्लेख शिलालेख में है।*

7. आदिगुरु *शंकराचार्य* ने  अपने ग्रंथ *”विष्णु सहस्रनाम”* में तमाम श्लोक प्रभु राम की स्तुति व प्रशंसा में लिखा है। वो लखते हैं:
*नित्यानंदलक्षणेस्मिन योगिनो रमन्त इति रामः*
*अर्थात-योगियों को सदैव आनंद प्रदान करनेवाले हैं राम।*

8. *अगस्त्य संहिता* में श्रीराम के विषय में काफी विस्तार से लिखा गया है व *चार उपनिषद यथा- राम रहस्योपनिषद, रामतापिनियोपनिषद,सितोपनिषद, मुक्तिकोपनिषद तो प्रभु राम व माता सीता को ही समर्पित हैं।*

9. *चंपा अर्थात वर्तमान वियतनाम* सम्राट अशोक से लेकर सातवीं शताब्दी तक भारतीय राजाओं द्वारा शासित था।यही नही वर्तमान *मलेशिया,इंडोनेशिया व थाईलैंड (प्राचीन नाम जावा,सुमात्रा व बाली)* भी भारतवर्ष  के सदियों तक भौगोलिक अधिकार में रहे। *वियतनाम* या चंपा या कम्बोडिया के *अंकोरवाट* का *राम मंदिर आज भी विश्व का सबसे विशाल मंदिर है जिसकी लम्बाई मीलों में है।* इंडोनेशिया,मलेशिया व थाईलैंड में तो बच्चों व लोगों के नाम भी हिन्दू उच्चारण वाले हैं व रखे जाते हैं व यहां तक नाम में राम का प्रयोग भी खूब होता है।तमाम हिन्दू प्रतीक उपस्थित हैं इन देशों में।

तो उपरोक्त वर्णन से ये सिद्ध होता है कि, *राम व उनके जन्मस्थान तथा उनके ईश्वर के अंश क्या ईश्वर होने  पर कोई दुविधा नहीं है।*

आज *5 अगस्त है*,ये दिन सम्पूर्ण हिन्दू सनातन समाज के लिए एक गौरवपूर्ण व ऐतिहासिक दिन है। *आज रामजन्मभूमि पर विश्व के भव्यतम राममंदिर के निर्माण की शुरुआत होगी।* आज मेरे लेख का भी समापन भाग 5 आपके सामने है।थोड़ा लम्बा हो गया है,बरदास्त करेंगे तथा मुझे क्षमा करते हुए अपना आशीष व प्रोत्साहन जरूर देंगे

अब बात करते हैं विध्वंस किये गए मन्दिर के निर्माण की। *ईस्वी सन से 57 वर्ष पूर्व उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने अयोध्या में वर्तमान  रामजन्मभूमि मन्दिर व तकरीबन अन्य 360 मंदिरों का निर्माण कराया।* अयोध्या सदी दर सदी धर्मनगरी के तौर पर मान्यता प्राप्त करता गया और हर राजा ने अपने काल में अयोध्या को संरक्षण दिया चाहे वह शैव हो या वैष्णव।

अब आते हैं *रामजन्मभूमि विध्वंस* पर। *झूठे इतिहासकार* लिखते हैं कि, रामजन्मभूमि का विध्वंस बाबर के गवर्नर *मीर बाकी* ने करवाया व उसने ही मस्जिद बनवाया जिसका नाम *”बाबरी मस्जिद”* रखा जो *साक्ष्य व सहज ज्ञान(Common Sense)* पर कतई असत्य साबित होता है।
*क्यों और कैसे?*
क्योंकि, *बाबर भारत में 1526 में आया और 1526 के पानीपत के युद्ध से लेकर अपने मृत्यु अर्थात 1530 तक तो युद्धरत रहा।* आप खुद सोचिये, *क्या बाबर क्या उसका बाप या क्या तथाकथित मीर बक़ी पूरे चार साल में भी उतने बड़े मन्दिर का विध्वंस करके फिर उसपर कई एकड़ में मस्जिद बना देते वो भी कलात्मक वास्तुशास्त्र के साथ। आज के इस मशीनी युग मे दो तीन एकड़ में बहुमंजिला अपार्टमेंट बनाने में बिल्डर लोगों को 4 से 6 बरस लग जाता है। महराज 200-400 गज का मकान बनाने में साल डेढ़ साल लग जाता है* और ये यहां मक्कार लोग बाबर को बलि का बकरा बना दिये।

*बाबा तुलसीदास ने रामचरितमानस का लेखन 1574 ईस्वी में शुरू किया* था और लेखन का प्रारम्भ अयोध्या में रामजन्मभूमि मन्दिर में प्रभु राम के चरणों में बैठ कर किया था। मतलब *बाबर के अवसान के कम से कम 44 वर्षों तक तो रामजन्मभूमि का विध्वंस नहीं हुआ था।* तो फिर किस *मुगल महात्मा* के काल में यह *पुण्य कार्य सम्पादित* किया गया जिसे अदृश्य रखने का कार्य अब्राहमिक अंग्रेजों से लेकर काले अंग्रेज शासकों व उनके चाटुकार वामपंथी इतिहासकार व वृतांत लेखकों(Chroniclers) ने क्यों किया?

*रामजन्मभूमि का वास्तविक विध्वंसक कौन था?*
जी हां वही जिसके बारे में आप सोच रहे हैं। भारत भूमि के 30 हज़ार से अधिक मंदिरों का विध्वंस करने वाला म्लेच्छ शिरोमणि,अप्रतिम लुटेरा,बलात्कारी, पितृहन्ता, हिंदुओ पर जजिया कर(गैर मुस्लिमों को जीने के लिये टैक्स) लगाने वाला  *”औरंगज़ेब”। इसी औरंगजेब ने रामजन्मभूमि का विध्वंस कराया 1660 में। इस कार्य को इसके अयोध्या के गवर्नर व सौतेले भाई फिदाई खान ने अंज़ाम दिया।* इस बात को स्वीकारने में न जाने क्यों इस देश के सरकारों की हालत खराब हो जाती है। दिल्ली में औरंगजेब रोड का नाम ए.पी.जे.अब्दुल कलाम करने में कितना हाय तौबा मचा था और वो भी तब जब भाजपा की संस्कृति रक्षक सरकार थी।

*मन्दिर पर बने विवादित मस्जिद का नाम बाबरी मस्जिद कब और क्यों पड़ा?* तो श्रीमन ये एक बहुत बड़े षड्यंत्र का हिस्सा था। चूंकि रामजन्मभूमि पर दावों प्रतिदावों का प्रारम्भ ब्रिटिशकाल में हो चुका था।
वस्तुतः 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेजों ने तमाम भारत की रियासतों,राज्यों को अपने प्रत्यक्ष या परोक्ष अधिकार में ले लिया था। अवध का राज्य भी उसी श्रेणी में था।
*अगस्त 1958 में ब्रिटिश शासन ने एकपक्षीय तरीके से आदेश पारित कर दिया कि, जन्मस्थान पर मुस्लिम अंदर नमाज़ पढ़ेंगे और हिन्दू चबूतरे पर पूजा करेंगे।*

*सन 1885 में जन्मस्थान के तत्कालीन महंत श्री रघुवर दास(निर्मोही अखाड़ा जिन्हें वैरागी साधु भी कहा गया) ने कोर्ट में चबूतरे पर मन्दिर निर्माण के लिए पिटीशन डाला जो सब जज व जिला जज ने खारिज कर दिया।*

*सन 1902 में,जिला प्रशासन ने अयोध्या के सभी स्थलों को चिन्हित* किया और सबके सामने पत्थर पर उनकी निशानदेही लिख दिया। *जन्मभूमि वाले विवादित स्थल के पूर्वी भाग पर लिखा-* *नम्बर-1-रामजन्मभूमि।*

*22 दिसम्बर 1949 की रात को मन्दिर में रामलला को स्थापित कर पूजन शुरू हो गया।परन्तु तत्कालीन नेहरू सरकार ने वहां ताला लगवा दिया।*

80 का दशक आते आते हिन्दू जनमानस रामजन्मभूमि के लिए उग्र और व्यग्र हो उठा। *अधिवक्ता उमेश चन्द्र पांडेय ने ताला खोलने के लिए याचिका डाल रखी थी।इस याचिका पर 1986 में जिला जज के.एम.पांडेय ने ताला खोलने का आदेश पारित कर दिया व पूजा अर्चना की अनुमति दे दी।*

विहिप व भाजपा ने उग्र आंदोलन चलाया।आडवाणी जी ने मंदिर निर्माण के लिए रथयात्रा निकाली परन्तु वो बिहार में गिरफ्तार कर लिए गए।कारसेवकों की अंधाधुंध हत्या कराई मुल्ला मुलायम ने 1990 में। परन्तु ऐतिहासिक क्षण आया *6 दिसम्बर 1992 को जब औरंगजेब के कुकृत्य को धूल धूसरित व भू लुंठित कर दिया गया कारसेवकों द्वारा,जिन्हें बुद्धिजीवियों ने धर्मांध हिन्दू(Fanatic Hindu ) करार दिया।*

प्रारम्भ मैंने लिखा था कि उपरोक्त ढांचे को बाबरी मस्जिद का सम्बोधन देने के पीछे एक षड्यंत्र था क्योंकि,अगर ये औरंगजेब को मन्दिर विध्वंसक लिखते तो आंदोलन और उग्र हो जाता क्योंकि औरंगज़ेब हिंदुओं की नज़र में सर्वधिक घृणा का पात्र था।

यकीन मानिए, *दिसम्बर 1949 के पहले इस विवादित ढांचे को “मस्जिद जन्मस्थान” से ही सम्बोधित किया जाता था। ये प्रमाण तमाम शिलालेखों व दस्तावेजों में आज भी उपलब्ध है व ये कोरी गप्प नहीं है।*

साल दर साल बीतते गए पर रामलला को स्थान देने को कोई तंत्र तैयार नहीं था। *विधर्मी कांग्रेस ने रामेश्वरम में  “सेतुसमुद्रम परियोजना” की घोषणा कर दिया जो रामसेतु को तोड़कर बनाया जाना था।* एक बार पुनः आस्था को चोट पहुंचाई गई। परन्तु इस बार सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगी। *कांग्रेस सरकार ने कोर्ट में हलफनामा दे दिया कि, कोई रामसेतु है ही नहीं व परोक्ष रूप से यह भी कह दिया कि राम का ही अस्तित्व नहीं है।* परंतु प्रभु राम ने उन्हें सदबुद्धि दी और जनदबाव में वो  हलफनामा माफी के साथ कांग्रेस सरकार द्वारा वापस लिया गया।

इधर 2019 में लोकसभा चुनाव आनेवाले थे तो कांग्रेसी कपिल सिब्बल ने 2018 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाल दी कि, और मांग कि की रामन्दिर केस की सुनवाई लोकसभा चुनावों के बाद हो परन्तु कोर्ट ने उन्हें फटकार लगा के भगा दिया। *सिब्बल ने शायद ये भी बयान दिया कि, “अगर मन्दिर बना तो मैं आत्महत्या कर लूंगा”।*

अक्टूबर 2019 में *मुसलमानों के वकील मुल्ला राजीव धवन ने किशोर कुणाल जी के पुस्तक में प्रदर्शित जन्मभूमि के नक्शे को कोर्ट में जजों के सामने ही फाड़ दिया क्योंकि सारे सुबूत चीख चीख कर कह रहे थे कि मंदिर को तोड़कर उसके ही नीव पर मस्जिद तामीर हुई थी।*

अभी दो दिन पहले कांग्रेसी *सांसद कुमार केतकर ने कह दिया कि,रामायण न होता तो राम न होते।राम का कोई अस्तित्व नहीं है।अगर यही बात वो कह दें मोहम्मद या ईसा का कोई अस्तित्व नहीं है तो ये अब्राहमिक उनसे तर्क नहीं करते बल्कि सर को धड़ से अलग कर चुके होते।*

*9 नवम्बर 2019* का वह ऐतिहासिक दिन समस्त सनातन व हिन्दू जगत के लिए अविस्मरणीय हो गया जब सुप्रीम कोर्ट ने जन्मभूमि को जन्मभूमि मान लिया।
और आख़िरश आज *5 अगस्त को वो शुभ घड़ी आ गयी जिस दिन मन्दिर निर्माण की दुंदुभी बजेगी,घी के दिये जलेंगे और समस्त भारत रामनाम से गुंजायमान हो जाएगा और आप हम इसके साक्षी होंगे और छोड़ जाएंगे यादें जब हमारी आने वाली पीढियां कहेंगी की हमारे लकड़दादा के सामने आंदोलन भी हुआ और मन्दिर भी बना।*
आप सभी को बहुत सारी शुभकामनाएं व बधाइयां। समापन से पहले एक करबद्ध निवेदन है कि, इस बारे में अपने नौनिहालों को भी बताएं व जागृत करें व उनमें मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम को आराध्य मानने की प्रवृति का बीजारोपण करने की कोशिश करें। मैंने पहले भाग में लिखा था कि, *साहित्य अलंकृत होता है व भाषा अक्खड़ होती है और अक्सर साहित्य से बगावत कर जाती है। मेरे आलेख के पांचों भागों में यदि भाषाई बगावत दिखी हो तो क्षमाप्रार्थी हूँ।*

सादर
जय जय श्रीराम
सन्तोष पांडेय
अधिवक्ता
दिल्ली उच्च न्यायालय
५/८/२०२०

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