(ये फायदे जिन किसानों को समय पर मिलने थे उनको मिले नहीं, उचित भू-अभिलेखों के अभाव में लाभार्थियों की पहचान की समस्याएं सामने आई और प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत जिन किसानों के बैंक खातों में पैसे तो पहुंचाए जा रहें है वो कहीं बैंक बंद होने के कारण तो कहीं बैंक से जुड़ी और कोई समस्या से किसान राशि का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं।)
— डॉo सत्यवान सौरभ,
प्रधानमंत्री किसान निधि (पीएम-केएसएएन) भारत सरकार की पहली सार्वभौमिक बुनियादी आय-प्रदान करने की योजना है, जो भूमि पर आधारित किसानों के लिए काफी फायदेमंद है। मोदी सरकार ने किसानों की सहायता के लिए इसे दिसंबर 2018 में पेश किया गया था। प्रारंभ में, इस योजना को छोटे और मध्यम भूमि वाले किसानों पर लक्षित किया गया था, लेकिन कृषि क्षेत्र के सकल मूल्य में गिरावट को देखते हुए इसे मई 2019 में सभी किसानों के लिए बढ़ा दिया गया था।नरेंद्र मोदी सरकार ने 2019 फरवरी में पीएम किसान सम्मान निधि योजना की शुरुआत की थी। सरकार की ओर से इस तर्क के साथ यह स्कीम लांच किया गया था कि कर्ज की माफी कराना स्थाई समाधान नहीं है, इसलिए इस तरह के स्कीम से किसानों को राहत मिल सकेगी और वे कर्ज में डूबने से बच सकेंगे। पीएम किसान सम्मान निधि योजना के तहत प्रत्येक वर्ष देश के करोड़ो किसानों को 6 हजार रूपये की प्रोत्साहन राशि दी जाती है। इस योजना के तहत कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों को सीधे नगद का लाभ दिया जाता है। किसान जरूरत पड़ने पर बिना किसी कर्ज के साथ अपनी खेती-बाड़ी संभाल सके, इसी उद्देश्य के साथ इस योजना की शुरूआत की गई है।
यह योजना देश भर के सभी भूमिहीन किसानों के परिवारों को आय सहायता प्रदान करके किसानों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से शुरू की गई थी, ताकि वे कृषि और संबद्ध गतिविधियों के साथ-साथ घरेलू जरूरतों से संबंधित खर्चों का ध्यान रख सकें। इस योजना के तहत उच्च आय की स्थिति से संबंधित कुछ बहिष्करण मानदंडों के अधीन, रु 6000 / – प्रति वर्ष की राशि को रु2000 / – की तीन -मासिक किस्तों में सीधे किसानों के बैंक खातों में हस्तांतरित की जाती है। योजना का फायदा उठाने के लिए किसान के नाम खेती की जमीन होनी चाहिए। अगर कोई किसान खेती कर रहा है, लेकिन खेत उसके नाम ना होकर उसके पिता या दादा के नाम है, तो वह व्यक्ति इस योजना का फायदा नहीं उठा सकता है।
गांवों में कई ऐसे किसान होते हैं, जो खेती के कार्यों से तो जु़ड़े होते हैं, लेकिन खेत उनके स्वयं के नहीं होते। अर्थात वे किसी और के खेतों में खेती करते हैं और खेत मालिक को इसके बदले हर फसल का हिस्सा देते हैं। ऐसे किसान भी पीएम किसान सम्मान निधि योजना के लाभार्थियों की सूची में शामिल नहीं होंगे। सभी संस्थागत भूमि धारक भी इस योजना के दायरे में नहीं आएंगे. अगर कोई किसान या परिवार में कोई संवैधानिक पद पर है तो उसे लाभ नहीं मिलेगा. राज्य/केंद्र सरकार के साथ-साथ पीएसयू और सरकारी स्वायत्त निकायों के सेवारत या सेवानिवृत्त अधिकारी और कर्मचारी होने पर भी योजना के लाभ के दायरे में नहीं आएंगे. डॉक्टर, इंजीनियर, सीए, आर्किटेक्ट्स और वकील जैसे प्रोफेशनल्स को भी योजना का लाभ नहीं मिलेगा, भले ही वह किसानी भी करते हों.
10,000 रुपये से अधिक की मासिक पेंशन पाने वाले सेवानिवृत्त पेंशनभोगियों को इसका लाभ नहीं मिलेगा. अंतिम मूल्यांकन वर्ष में इनकम टैक्स का भुगतान करने वाले पेशेवरों को भी योजना के दायरे से बाहर रखा गया है. किसान परिवार में कोई म्यूनिसिपल कॉरपोरेशंस, जिला पंचायत में हो तो भी इसके दायरे से बाहर होगा.
सहायता प्राप्त करने के लिए लाभार्थी की पहचान की पूरी जिम्मेदारी राज्य / केन्द्र शासित प्रदेशों की सरकारों के साथ है। इस वर्ष केंद्रीय बजट ने 2020-21 में इस योजना को 75,000 करोड़ रुपये आवंटित किए थे। लॉकडाउन अवधि के दौरान ये योजन किसानों के लिए जीवन दायिनी सिद्ध हुई है, पीएम-केएसएएन योजना को लॉकडाउन के दौरान किसानों को सहायता प्रदान करने के लिए एक उपयोगी प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज में शामिल किया गया था और 28 मार्च को यह घोषणा की गई थी कि 2,000 रुपये (6,000 रुपये में से) 8.7 मिलियन किसानों को फ्रंट-लोड किया जाएगा। ।
लेकिन ये फायदे जिन किसानों को समय पर मिलने थे उनको मिले नहीं, उचित भू-अभिलेखों के अभाव में लाभार्थियों की पहचान की समस्याएं सामने आई हैं। इसके अलावा, भूमिहीन मजदूरों या शहरी गरीबों को आय सहायता योजना से वंचित रखने का कोई विशेष कारण नहीं है। यह योजना कोई दीर्घकालिक समाधान नहीं है। पीएम-केसान सभी किसान परिवारों तक अपनी इच्छानुसार नहीं पहुंच रहे हैं। यूपी, हरियाणा और राजस्थान के अधिकांश किसानों के पास जमीन है और उन्हें लाभ मिलना चाहिए। लेकिन केवल 21 प्रतिशत कृषकों ने लाभ प्राप्त करने की सूचना दी। किसान सम्मान इसलिए पीएम-किसान की पहुंच और उसके लक्ष्य को लेकर अनिश्चितता को देखते हुए, इस अवधि के दौरान योजना की प्रासंगिकता का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।
एक सर्वेक्षण में, तालाबंदी के दौरान जिन परिवारों को अपनी दिन-प्रतिदिन की खपत की जरूरतों को पूरा करने के लिए उधार लेना पड़ता था, वे आकस्मिक मजदूरी श्रमिकों और व्यावसायिक परिवारों की तुलना में किसानों (34 प्रतिशत) के लिए अपेक्षाकृत कम थे। जबकि 7 फीसदी फार्म हाउसों में तालाबंदी के दौरान कभी-कभार भोजन की अनुपलब्धता का सामना करना पड़ा, यह आंकड़ा आकस्मिक श्रमिकों (24 प्रतिशत) और व्यावसायिक परिवारों (14 प्रतिशत) के लिए बहुत अधिक था।
कुल मिलाकर, जब पीएम-किसन (खेत और गैर-कृषि घर दोनों सहित) के गैर-प्राप्तकर्ताओं की तुलना में, इन घरों में आर्थिक संकट के निचले लक्षण दिखाई दिए।लगभग 35 प्रतिशत ग्रामीण किसान योजना प्राप्तकर्ताओं को आधे से अधिक गैर-प्राप्तकर्ताओं की तुलना में काफी हद तक आय का नुकसान हुआ। 48% गैर-प्राप्तकर्ताओं के मुकाबले इस अवधि के दौरान पीएम-केसान के एक तिहाई से अधिक लोगों ने उधार लिया। हालाँकि, ये घराने पीएम-किसान लाभ प्राप्त करने से पहले ही सामान्य ग्रामीण आबादी से कुछ बेहतर थे।
कोरोना वायरस के कारण देशभर में लॉकडाउन लागू है। लॉकडाउन का सबसे अधिक प्रभाव किसान व मजदूर तबके पर पड़ा है। ऐसे में सरकार द्वारा कई ऐसी योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिससे किसानों को थोड़ी बहुत राहत मिल सके। लेकिन इन सब के बीच में किसानों के लिए एक और बड़ी समस्या निकलकर बाहर आ रही है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत किसानों के बैंक खातों में पैसे तो पहुंच जा रही है, लेकिन कहीं बैंक बंद होने के कारण तो कहीं बैंक से जुड़ी और कोई समस्या से किसान राशि का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं।
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— डॉo सत्यवान सौरभ,
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, दिल्ली यूनिवर्सिटी,कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,