जिस दिन बाबरी ढांचा ढहा, ठीक उसी दिन शाम को मैंने दिल्ली में एक प्रेस वक्तव्य दिया ।।
यह वह समय था जब मैं स्वयं दिल्ली में पत्रकारिता के क्षेत्र में जाना पहचाना व्यक्ति था और मेरे लेख आए दिन हिंदी के सभी राष्ट्रीय अखबारों में छपते ही रहते थे।
परंतु वह वक्तव्य उन अखबारों में तो नहीं ही छपा, पाँचजन्य के संपादक श्री तरुण विजय जी जो हमारे मित्र थे ,,उन्होंने भी उसे 10 दिन तक नहीं छापा और जनसत्ता में हमारे मित्र संपादक थे ,,उन्होंने भी नहीं छापा और नवभारत टाइम्स में भी हमारे मित्र ही संपादक थे,, उन्होंने भी नहीं छापा ।।
वक्तव्य यह था:-
” राष्ट्रों और समाजों के जीवन में इतिहास में कभी-कभी ऐसे क्षण आते हैं जब लोकमानस का ज्वार उमड़ता है और विवेकशील शासन को ऐसे समय लोकमानस के समक्ष झुक जाना चाहिए ।
अतः बाबरी ढांचे के ढह जाने को लोक मानस के इसी ज्वार का सहज उमडाव मानकर इस घटना को केवल विधिक दृष्टि से देखना बंद कर देना चाहिए और इसे इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना मानकर लोकमानस के प्रति आदर भाव रखते हुए शासन को चुपचाप स्वीकार कर लेना चाहिए।।”
यह वक्तव्य उन्होंने भी नहीं छापा जो आए दिन हमारे लेख छापते रहते थे ।।
जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े थे,उन्होंने भी नहीं छापा तो इसका कारण भी स्वाभाविक है कि न तो संघ के शीर्ष नेता सहज रूप से यह स्वीकार कर रहे थे कि अगर ऐसा हुआ तो कोई बात नहीं ,हम किसी लज्जा का अनुभव नहीं करते और ना ही भाजपा के नेता।।
आडवाणी जी तो बड़े लजा रहे थे जैसे पता नहीं कैसी भयंकर भूल हो गई है।।
अन्य भाजपा नेता भी सिर झुकाए खड़े थे जैसे कि दुर्योधन की सभा में यानी धृतराष्ट्र की सभा में द्रौपदी के चीरहरण के समय भीष्म पितामह आदि सिर झुकाए थे।।
आश्चर्य होता था कि यह लोग मूर्ख हैं या कापुरुष है क्या?
परंतु अब स्पष्ट हो गया है कि यह लोग तो न कायर हैं और ना ही मूर्ख हैं अपितु बहुत चतुर लोग हैं परंतु वीरता,, साहस और तेज से रहित हैं, बहुत हिसाब से चलते हैं और इनको पता था कि अंत में इस प्रकरण में हम ही जीतेंगे और अच्छा है कि जैसा अभी लफंगों और हिंदू द्रोहियों का मीडिया में तथा अन्य संस्थानों पर कब्जा है ,,उसमें इस ज्वार को बह जाने दो और थम जाने दो और चुप रहो और यथा समय तुम जीत ही जाओगे ।।
हर विषय पर भाजपा और संघ इसी हिसाब से चल रहे हैं।।
सांसारिक चतुराई की दृष्टि से यह बहुत अच्छी दृष्टि है और इससे हिंदू समाज का हित ही है परंतु तेजस्विता और वीरता के भाव का जागरण हिंदू समाज में ऐसे नहीं हो पाता और यह दीर्घकालिक दृष्टि से हानिकारक है,, यही हमारा मानना है।
परंतु अब जो है सो है ।
वे जैसे हैं वैसे ही रहेंगे ।।
अगर हिंदुओं में कोई वीरता की वृत्ति बची हो तो उसे अन्य रूपों में संगठित होकर समाज में अभिव्यक्त होना चाहिए।।
उसके उपायों पर मैं यथा समय लिखता ही रहता हूँ ।
मुख्य बात यह है कि जो बाबरी ढांचा के प्रकरण में माननीय न्यायालय का निर्णय आया है ,,वह न्याय पूर्ण और स्वागत योग्य है और इससे भाजपा के नेता चतुर, दूरदर्शी ,,हिसाब किताब में निपुण और चालाक तो सिद्ध होते हैं। परन्तु तेजस्विता की पूरक धारा भी हिन्दुओं में उभरनी चाहिए। वह संघ के दायरे के बाहर हो सकती है।
:प्रो रामेश्वर मिश्र पंकज
Anuj Agrawal, Group Editor