फ्रांस के राष्ट्रपति इमेन्यूएल मेक्रो ने संकल्प किया है कि वे अपने देश में ‘इस्लामी अलगाववाद’ के खिलाफ जबर्दस्त अभियान चलाएंगे। इस समय फ्रांस में जितने मुसलमान रहते हैं, उतने किसी भी यूरोपीय देश में नहीं हैं। उनकी संख्या वहां 50-60 लाख के आसपास है, जो कि फ्रांस की कुल जनसंख्या की 8-10 प्रतिशत है। ये मुसलमान सबसे पहले अल्जीरिया से आए थे। छठे दशक में जब फ्रांस ने अल्जीरिया को आजाद किया तो वहां के मुसलमानों को नागरिकता प्रदान कर दी। फिर तुर्की, मध्य एशिया और अफ्रीका के मुसलमान भी काम की तलाश में फ्रांसीसी शहरों में आ बसे। फ्रांसीसियों को भी इन लोगों की उपयोगिता महसूस हुई, क्योंकि ये लोग मजदूरी के लिए आसानी से उपलब्ध हो जाते थे और फ्रांसीसियों से दबे भी रहते थे। इनमें से ज्यादातर मुसलमानों ने फ्रांसीसी भाषा और संस्कृति को अपने जीवन का अंग बना लिया है लेकिन अभी भी 40-45 प्रतिशत फ्रांसीसी मुसलमान काफी रुढ़िवादी और कट्टरपंथी हैं। युवा मुस्लिमों में तो ऐसे लोगों की संख्या 75 प्रतिशत तक है। फ्रांसीसी सरकार और कई संगठनों ने अपने मुसलमानों के बारे में विस्तृत आंकड़े इकट्ठे कर रखे हैं। लगभग आधे मुसलमान दिन में 5 बार नमाज़ पढ़ने, रोजा रखने, पर्दा करने और मदरसों की तालीम में विश्वास रखते हैं। इस वक्त फ्रांस में 2300 मस्जिदें सक्रिय हैं। कुछ नौजवान आतंकी गतिविधियों में भी संलग्न हैं। फ्रांस के मुसलमानों में ज्यादातर सुन्नी हैं। वे स्थानीय लोगों का धर्म-परिवर्तन करने में भी बड़ा उत्साह दिखाते हैं। लगभग 1 लाख लोगों ने इस्लाम को कुबूल भी किया है लेकिन उनकी जीवन-शैली, गतिविधियों और रहन-सहन से फ्रांसीसी सरकार और जनता इतनी उत्तेजित है कि कई इस्लामी रीति-रिवाजों के खिलाफ वहां कड़े कानून बना दिए गए हैं। राष्ट्रपति मेक्रो इन पुराने कानूनों को अब ज्यादा सख्ती से लागू करेंगे। उनका कहना है कि किसी भी समुदाय के मजहबी कानून राष्ट्रीय कानून से ऊंचे नहीं हो सकते। फ्रांस 19 वीं सदी के पंथ-निरपेक्षता के सिद्धांत, ‘लायेसिती’ को मानता है याने कोई भी धार्मिक कानून राष्ट्रीय कानून से ऊपर नहीं हो सकता। चर्च की दादागीरी के खिलाफ 1905 में यह सिद्धांत स्थापित हुआ था। इसीलिए फ्रांस में मुस्लिम औरतों के हिजाब, यहूदियों के यामुका और ईसाइयों के बड़े-बड़े क्राॅस गले में लटकाने पर प्रतिबंध है। राष्ट्रपति ज़ाक शिराक ने इस मुद्दे पर विशेष अभियान चलाया था। फ्रांस के कुछ उग्रवादी ईसाई संगठनों ने दर्जनों मस्जिद गिरा दी हैं, मुसलमानों को रोजगार देने का वे विरोध करते हैं और मदरसों को बंद करने की मांग कर रहे हैं। यूरोप के कुछ अन्य राष्ट्रों- जर्मनी, हालैंड और डेनमार्क- में भी इस तरह की मांगें जोरों से उठ रही हैं। बेहतर तो यह हो कि मुसलमानों पर विधर्मी हमला करें, इसकी बजाय दुनिया के मुसलमान इस्लाम और स्थानीय संस्कृति में मेल बिठाने की कोशिश करें। इस्लाम को देश—काल के मुताबिक ढाल लें।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक