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नये शिक्षक से होगा राष्ट्र का नवनिर्माण

विश्व शिक्षक (अध्यापक) दिवस प्रतिवर्ष दुनिया के लगभग एक सौ देशों में 5 अक्टूबर को मनाया जाता है। दुनिया को परिष्कृत करनेे और जिम्मेदार व्यक्तियों का निर्माण करने में शिक्षकों के प्रयासों और कड़ी मेहनत की सराहना और स्वीकार करने के अवसर के रूप में यह दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष भारत के लिये यह दिवस इसलिये महत्वपूर्ण है कि इसी वर्ष राष्ट्रीय शिक्षा नीति घोषित हुई है जिसमें शिक्षकों को अधिक सशक्त, जिम्मेदार एवं राष्ट्र- व्यक्ति निर्माण में उनकी भूमिका पर विशेष बल दिया गया है। लार्ड मैकाले की शिक्षा में अब तक भारत में गुरु एवं शिक्षक श्रद्धा का पात्र न होकर वेतन-भोगी नौकर बन गया था, शिक्षक की भूमिका गौण हो गयी थी। आजादी के बाद से चली आ रही शिक्षा प्रणाली में विद्यालय एवं विश्व विद्यालय के प्रबंध तंत्र की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई थी और शिक्षालय मिशन न होकर व्यवसाय बन गया था। इस बड़ी विसंगति को दूर करने की दृष्टि से वर्ततान शिक्षा नीति में व्यापक चिन्तन-मंथन किया गया है।
जब साल 1994 से विश्व शिक्षक दिवस 5 अक्टूबर को मनाया जाना शुरू हुआ तब हर साल के शिक्षक दिवस की एक थीम चुनी जाती है। इस दिवस का मुख्य उद्देश्य एक छात्र की जिंदगी में शिक्षकों के महत्व को रेखांकित करना है। यह शिक्षकों के योगदान के प्रति आभार जताने का दिन भी है। वर्तमान समय में शिक्षक की भूमिका भले ही बदली हो, लेकिन उनका महत्व एवं व्यक्तित्व-निर्माण की जिम्मेदारी अधिक प्रासंगिक हुई है। क्योंकि सर्वतोमुखी योग्यता की अभिवृद्धि के बिना युग के साथ चलना और अपने आपको टिकाए रखना अत्यंत कठिन होता है। फौलाद-सा संकल्प और सब कुछ करने का सामथ्र्य ही व्यक्तित्व में निखार ला सकता है। शिक्षक ही ऐसे व्यक्तित्वों का निर्माण करते हैं। महात्मा गांधी के अनुसार सर्वांगीण विकास का तात्पर्य है- आत्मा, मस्तिष्क, वाणी और कर्म-इन सबके विकास में संतुलन बना रहे। स्वामी विवेकानंद के अनुसार सर्वांगीण विकास का अर्थ है- हृदय से विशाल, मन से उच्च और कर्म से महान। भारत की प्राचीन शिक्षा व्यवस्था में सर्वांगीण व्यक्तित्व के विकास हेतु शिक्षक एवं गुरु  आचार, संस्कार, व्यवहार और विचार- इन सबका परिमार्जन एवं विकास करने का प्रयत्न करते रहते थे। जबकि मैकाले की शिक्षा विद्यार्थी को शरीर, मन, बुद्धि एवं चरित्र से रुग्ण बनाकर केवल धन कमाने की मशीन, कुसंस्कृत एवं पतनोन्मुख बनाती रही है। राजनीतिक संघर्ष से भले ही देश को शारीरिक स्वतंत्रता मिली पर विगत सात दशकों में मानसिक-बौद्धिक-भावात्मक परतंत्रता की बेड़िया मजबूत हुई है। अब नरेन्द्र मोदी सरकार ने शिक्षा की इन कमियों एवं अधूरेपन को दूर करने के लिये नयी शिक्षा नीति घोषित की है और उसमें शिक्षकों के दायित्व को महत्वपूर्ण मानते हुए उन्हें जिम्मेदार, नैतिक-चरित्रसम्पन्न नागरिकों का निर्माण करने की जिम्मेदारी दी गयी है।
भारत के मिसाइल मैन, पूर्व राष्ट्रपति डाॅ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने कहा है कि अगर कोई देश भ्रष्टाचार मुक्त है और सुंदर दिमाग का राष्ट्र बन गया है, तो मुझे दृढ़ता से लगता है कि उसके लिये तीन प्रमुख सामाजिक सदस्य हैं जो कोई फर्क पा सकते हैं वे पिता, माता और शिक्षक हैं।” डाॅ. कलाम की यह शानदार उक्ति प्रत्येक व्यक्ति के दिमाग में आज भी गूंज रही हैं। शिक्षण इस दुनिया में सबसे प्रेरक काम और एक बड़ी जिम्मेदारी है। शिक्षक ज्ञान का भंडार हैं जो अपने शिष्यों को अपना ज्ञान देने में विश्वास करते हैं जिससे उनके शिष्य भविष्य में दुनिया को बेहतर बनाने में सहायता कर सकेंगे। इससे ऐसी पीढ़ी निर्मित होगी जो उज्ज्वल और बुद्धिमान हो तथा वह जो दुनिया को उसी तरीके से समझे जैसी यह है और जो भावनाओं से नहीं बल्कि तर्क और तथ्यों से प्रेरित हो। डॉ. राधाकृष्णन के अनुसार, शिक्षक देश के निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और इसी वजह से वे अधिक सम्मान के योग्य होते हैं।’ नयी शिक्षा नीति में ऐसी संभावनाएं है कि राष्ट्र के निर्माण में शिक्षकों की भूमिका अधिक प्रभावी बनकर प्रस्तुत होगी। अब शिक्षा से मानव को योग्य, राष्ट्र-निर्माता एवं चरित्रवान बनाने का वास्तविक लक्ष्य प्राप्त हो सकेगा।
अब शिक्षक एवं शिक्षा-नीति एक क्रांतिकारी बदलाव की ओर अग्रसर हुई है। जिस तरह एक शिल्पकार प्रतिमा बनाने के लिए जैसे पत्थर को कहीं काटता है, कहीं छांटता है, कहीं तल को चिकना करता है, कहीं तराशता है तथा कहीं आवृत को अनावृत करता है, वैसे ही अब हर शिक्षक अपने विद्यार्थी के व्यक्तित्व को तराशकर उसे महनीय और सुघड़ रूप प्रदान करेंगे। हर पल उनकी शिक्षाएं प्रेरणा के रूप में, शक्ति के रूप में, संस्कार के रूप में जीवंत होंगी। अब शिक्षक अपने विद्यार्थी की निषेधात्मक और दुष्प्रवृत्तियों को समाप्त करके नया जीवन प्रदान करेंगे। वरुण जल का देवता होता है। जैसे जल वस्त्र आदि के मैल को दूर करता है, वैसे ही शिक्षक विद्यार्थी की मानसिक कलुषता को दूर कर सद्संस्कारों का बीजारोपण करेंगे एवं उसके व्यक्तित्व को नव्य और स्वच्छ रूप प्रदान कर सकेंगे। चन्द्रमा सबको शांति और आह्लाद प्रदान करता है, वैसे ही शिक्षक की प्रेरणाएं विद्यार्थी को मानसिक प्रसन्नता और परम शांति दे सकेगी। यानी शिक्षक एवं शिक्षा का वास्तविक लक्ष्य अब प्राप्त होगा। आचार्य महाप्रज्ञ के शब्दों में -‘व्यक्तित्व-निर्माण का कार्य अत्यन्त कठिन है। निःस्वार्थी और जागरूक शिक्षक ही किसी दूसरे व्यक्तित्व का निर्माण कर सकता है।’ हाल ही में आपने सुपर-30 फिल्म में एक शिक्षक के जुनून को देखा। इस फिल्म में प्रो. आनन्द के शिक्षा-आन्दोलन को प्रभावी ढंग से प्रस्तुति दी गयी है। अब नयी शिक्षा नीति से ऐसे ही आन्दोलनकारी शिक्षा उपक्रम जगह-जगह देखने को मिलें, तभी इस नवीन घोषित शिक्षा नीति की प्रासंगिकता है।
अनेकानेक विशेषताओं के बावजूद अब तक शिक्षक का पद धुंधला रहा था। जैसाकि महात्मा गांधी ने कहा था-एक स्कूल खुलेगी तो सौ जेलें बंद होंगी। पर उल्टा होता रहा है। स्कूलों की संख्या बढ़ने के साथ जेलों के स्थान छोटे पड़ते गये हैं। जेलों की संख्या भी उसी अनुपात में बढ़ रही है। स्पष्ट है- हिंसा और अपराधों की वृद्धि में मैकाले की शिक्षा प्रणाली एवं शिक्षक भी एक सीमा तक जिम्मेदार है। अशिक्षित और मूर्ख की अपेक्षा शिक्षित और बुद्धिमान अधिक अपराध करते रहे हैं। वह अपने पापों और दोषों पर आवरण डालने हेतु अधिक युक्तियां सोचने में सक्षम बने। इस स्थिति के लिये शिक्षक ही जिम्मेदार रहे हैं। पारिवारिक और सामाजिक जीवन में जो तनाव, टकराव और बिखराव की घटनाएं घटित होती रही हैं, उसके मूल में संकीर्णता और ईष्र्या की मनोवृत्ति भी एक बड़ा कारण है। व्यक्तित्व का टकराव भी इसी कारण बढ़ा है। क्या कारण है कि नयी पीढ़ी के निर्माण में ऐसी त्रुटियां के बावजूद सरकारें कुंभकरणी निद्रा में रही, शिक्षक क्यों नहीं एक सर्वांगीण गुणों वाली पीढ़ी का निर्माण कर पाएं? इसका कारण दूषित राजनीतिक सोच रही है। मानव ने ज्ञान-विज्ञान में आश्चर्यजनक प्रगति की है। परन्तु अपने और औरों के जीवन के प्रति सम्मान में कमी आई है। विचार-क्रान्तियां बहुत हुईं, किन्तु आचार-स्तर पर क्रान्तिकारी परिवर्तन कम हुए। शान्ति, अहिंसा और मानवाधिकारों की बातें संसार में बहुत हो रही हैं, किन्तु सम्यक्-आचरण का अभाव अखरता है। अब नयी शिक्षा नीति से सम्यक् चरित्र, सम्यक् सोच एवं सम्यक् आचरण का प्रादुर्भाव होगा।
‘सा विद्या या विमुक्तये’, यह भारतीय शिक्षा जगत का प्रमुख सुभाषित है। देश के हजारों सरस्वती-केन्द्रों की दीवारों पर पवित्र मंत्र के रूप में इसे बड़े-बड़े अक्षरों में अंकित किया गया है। इस सुभाषित के अनुसार सच्ची शिक्षा वह है जो विद्यार्थी को नकारात्मक भावों और प्रवृत्तियों के बंधनों से मुक्ति प्रदान करें। पर ंिचंता का विषय बना रहा कि भारत के शिक्षक ही आज इसकी उपेक्षा करते रहे हैं। ऐसा लगता है, मानो उनका लक्ष्य केवल बौद्धिक विकास ही है। अब नयी शिक्षा नीति में शिक्षक के लिये शिक्षा एक मिशन होगा, स्वदेशी, सार्थक और मूल्य आधारित शिक्षा के माध्यम से उन्नत पीढ़ी का निर्माण होगा। गुरु के महत्व को बढ़ाकर प्रबन्ध-तंत्र के वर्चस्व को घटाया जायेगा। अब भारत की नयी शिक्षा नीति में शिक्षक का चरित्र एवं साख दुनिया के लिये प्रेरक एवं अनुकरणीय बनकर प्रस्तुत होगा, जिसमें भारतीय संस्कारों एवं संस्कृति का समावेश दिखाई देगा।
– ललित गर्ग

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