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सम्हल कर चलें, छत्तीसगढ़ व्यस्क हो रहा

छत्तीसगढ़ राज्य अब वयस्क होने की दहलीज पर है, अपनी स्थापना के बीस वर्ष पूरा कर आज इक्कीसवें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। अपनी विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, संस्कृति, आर्थिक संरचना और भाषा के कारण प्रकृति ने ही इस क्षेत्र को छत्तीसगढ़ का नाम तो पहले ही दे चुकी थी, किन्तु पृथक राजनैतिक पहचान की आठ दशक की मांग के पश्चात आखिरकार 1 नवंबर 2000 के दिन मिली। पिछले 20 वर्षों में नवोदित राज्य ने विकास के अनेक सोपान तय किए हैं, इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता लेकिन अभी भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।

किसी जातक के जन्म की तरह राज्य के निर्माण के आरंभिक काल उसके शरीर को स्वस्थ रखने का होता है। इसके लिए नियमित दिनचर्या और देखभाल के अनुशासन की आवश्यकता होती है। प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने तीन वर्ष के कार्यकाल में ने राज्य के लिए प्रशासनिक अधोसंरचना का निर्माण किया और प्रदेश के विकास के लिए नीतियां तैयार की। सीमित संसाधनों में उन्होंने वित्तीय अनुशासन के साथ प्रदेश के सुनहरे भविष्य का सपना बुना। 2003 में राज्य के पहले आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को बहुमत मिला और डॉ रमन सिंह के नेतृत्व में 15 वर्षों तक प्रदेश के लिए काम करने जनता का आदेश मिला।

छत्तीसगढ़ राज्य की सामाजिक-आर्थिक के अपने मूल्य हैं, वन क्षेत्रों में रहने वाले जनजातीय समाज और ग्रामीण संस्कृति में सादगीपूर्ण जीवनशैली स्वावभाविक तत्व हैं जिसे देश-प्रदेश के बड़े शहरों में रहने वाले आर्थिक पिछड़ापन की संज्ञा देते हैं। जब पूरा देश आर्थिक विकास की दौड़ में भाग रहा हो और नई पीढ़ी को यह चकाचौंध ‌आकर्षिक किए बैठी है तो देश के एक बड़े हिस्से को इससे वंचित नहीं किया जा सकता। इसके लिए आवश्यक आर्थिक अधोसंरचना का निर्माण डॉ रमन सिंह सरकार के कार्यकाल में पर्याप्त हुआ। राज्य निर्माण के बाद की सबसे बड़ी उपलब्धि प्रदेश के चहुंओर बिछाए गए सड़कों के जाल, पुल पुलिया का निर्माण, शहरी अधोसंरचना का विकास, स्कूल एवं उच्च शिक्षा का विस्तार, स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार प्रमुख हैं। राज्य के भौतिक अधोसंरचना का पर्याप्त आधार उसके सामाजिक-आर्थिक विकास को गति प्रदान करने के लिए मौजूद हैं।

प्रदेश में पिछले 20 वर्षों में शिक्षा का प्रसार हुआ, तहसील स्तर पर महाविद्यालय और पंचायत स्तर पर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय प्रारंभ हो चुके हैं। 50 से अधिक इंजीनियरिंग कॉलेज और ब्लॉक स्तर पर पॉलीटेक्निक और आई टी आई की स्थापना हुई है जहां से पढ़कर युवा रोज़गार के लिए बाट जोह रहे हैं, अब इन युवाओं के हाथों को काम की जरूरत है।

अब छत्तीसगढ़ की आवश्यकता सामाजिक आर्थिक विकास को बल देनी की है। प्रदेश की संस्कृति भले ही सादगीपूर्ण हो लेकिन आर्थिक सांख्यिकी आंकड़ों के अनुसार देश में सर्वाधिक ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब छत्तीसगढ़ में हैं। प्रदेश की वर्तमान सरकार कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने प्रयासरत है, नरवा, गरूवा, घुरूवा, बारी को विकसित कर ग्रामीण कृषि अधोसंरचना के विकास का प्रयास कर रही है। न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोत्तरी करने और अधिशेष राशि को राजीव न्याय योजना के तहत किसानों के खातों में डालने से किसानों के हाथ पैसा तो आएगा लेकिन क्या इससे सीमांत किसानों की आर्थिक स्थिति संवर पाएगी?

प्रदेश में सत्तर फीसदी किसान सीमांत हैं और उनकी खेती एक फसली है। यही कारण है कि किसान अपनी अगली पीढ़ी को खेती नहीं करवाना चाहते। इस कारण अपनी खेत बेचकर भी बच्चों को शिक्षा के लिए शहरों में भेजा। अब समस्या यह है कि यह पढ़ लिख कर तैयार पीढ़ी खेती नहीं करना चाहती। लेकिन प्रदेश में इतने उद्योग धंधे नहीं कि उन्हें रोज़गार मिल सके। अब उसे या तो राज्य से बड़े शहरों की ओर पलायन करना होगा नहीं तो अपने पिता की तरह मजदूरी करेगा । इसका समाधान केवल इं पढ़े लिखे युवाओं को कौशल से जोड़कर स्वरोजगार के लिए प्रेरित करना होगा।

प्रदेश में एक रुपए किलो चावल के साथ राशन की दुकानों से गरीब लोगों को जो सुविधाओं मिल रही है, वह शरीर का भूख तो मिटा सकती है लेकिन यह उन गरीबों के लिए अंतिम विकल्प नहीं है। इन परिवारों को गरीबी रेखा से बाहर निकालने, उन्हें श्रम से जोड़कर स्वाभिमान के साथ अपने पैरों पर खड़ा करना होगा। प्रदेश की आयु 20 वर्ष हो गई है, उसी तरह प्रदेश के युवा इसी आयु वर्ग में बड़ी संख्या में हैं। यह उम्र भटक जाने की है, अगर सही रास्ते पर नहीं चले और गलत संस्कार पद गए तो आजीवन पीढ़ी को पछताना पड़ता है ।  इसलिए अब जरूरत प्रदेश के आर्थिक सामाजिक क्षेत्र में तीव्र विकास करने की है

राज्य निर्माण का उद्देश्य प्रदेश में विकास की गंगा बहाने और जनता के कल्याण की भावना को बल देना है । कांग्रेस पार्टी की भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली सरकार की महती जिम्मेदारी है। यह जिम्मेदारी केवल बजट बनाने और प्रशासनिक अधिकारी के भरोसे रहकर नही निभाई जा सकती। इसके लिए सरकार को पालक की भूमिका में आना होगा। राजनीति से उपर उठकर समाज को साथ लेकर काम करना होगा। पार्टी और कार्यकर्ताओं के तुच्छ स्वार्थ से ऊपर उठकर बड़ उद्देश्य लेकर काम करना होगा। इसी में राज्य निर्माण की सार्थकता है।

शशांक शर्मा, रायपुर

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