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वो डकैत याद आ रहे हैं..

वित्तीय वर्ष 2009-10 में गन्ने का समर्थन मूल्य (MSP) था 107.76 रूपये प्रति क्विंटल। लेकिन 2009-10 में चीनी बिक रही थी 42 रूपये प्रति किलोग्राम।
जबकि 2020-21 में मोदी सरकार ने लगभग 155% अधिक, अर्थात्‌ 275 रूपये प्रति क्विंटल की दर से गन्ने का MSP किसानों को दिया है. लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि 2010 में बाजार में जो चीनी 42 रूपये प्रति किलोग्राम की दर से बिक रही थी, आज 2020-21 में वही चीनी उससे लगभग 10% सस्ती क़ीमत पर 38 रुपये प्रतिकिलो की दर से बिक रही है। ध्यान रहे कि 2009-10 की तुलना में चीनी की उत्पादन लागत और ढुलाई की क़ीमत भी काफी बढ़ी है. यह भी निश्चित है कि कोई भी सुगर मिल या व्यापारी घाटा उठाकर तो चीनी नहीं ही बेंच रहा है। गन्ने के MSP और चीनी की MRP का यह अन्तर बिचौलियों व्यापरियों द्वारा 2009-10 में हो रही गन्ने के किसानों के हिस्से के लगभग 60 हजार करोड़ रुपये सालाना की लूट की कहानी सुना रहे हैं.

अब जरा ध्यान दीजिए कि 2009-10 में भारत सरकार किसानों को गेंहू का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 1080 रूपये प्रति क्विंटल दे रही थी। जबकि 2020-21 में मोदी सरकार ने लगभग 83% अधिक, 1975 रूपये प्रति क्विंटल की दर से गेंहू का MSP किसानों को दिया है लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि 2010 में बाजार में आटा 20 रूपये प्रति किलोग्राम की दर से बिक रहा था और आज 2020-21 में आटा उससे 40% महंगा ही बिक रहा है। यानी गेंहू का MSP तो 83% बढ़ा लेकिन आटे का MRP केवल 40% ही बढ़ा. ध्यान रहे कि 2009-10 की तुलना में पिसाई ढुलाई की क़ीमत भी काफी बढ़ी है. यह भी निश्चित है कि कोई भी व्यापारी घाटा उठाकर तो आटा बेंच नहीं रहा होगा। गेंहू के MSP और आटे की MRP का यह अन्तर बिचौलियों व्यापरियों द्वारा 2009-10 में हो रही गेंहू किसानों के हिस्से के लगभग 32 हजार करोड़ रुपये सालाना की लूट की कहानी सुना रहे हैं.
अंत में यह उल्लेख आवश्यक है कि 2010 की तुलना में मुद्रास्फीति लगभग 96% बढ़ी है. साधारण भाषा में इसे यूं समझिए कि 2010 के 100 रुपए की कीमत आज 196 रुपये हो चुकी है. यदि यह तथ्य भी शामिल कर दूं तो देश की दो सबसे बड़ी फसलों, केवल गन्ने और गेंहूं की खेती करने वाले किसानों के हिस्से के लगभग डेढ़ लाख करोड़ रुपये की सालाना लूट 2010 में दलालों बिचौलियों और मिल मालिकों द्वारा की जा रही थी. लेकिन जिस कांग्रेस के शासनकाल में यह लूट खुलेआम हो रही थी. वही कांग्रेस आज किसानों की हमदर्दी का नकाब पहनकर देश को अराजकता की हिंसक आग में झोंक देने का भयानक खेल खेल रही है.
पिछले वर्ष प्रकाशित हुई अपनी पुस्तक “कसौटी तथ्य की सत्य” में उपरोक्त तथ्यों सहित दलहनी और तिलहनी फसलों के किसानों के साथ भी हुई ऐसी ही लूट की कहानियां बहुत विस्तार से लिख चुका हूं. लेकिन देश की मीडिया इतने महत्त्वपूर्ण तथ्यों पर चुप है और आंख बंद कर के केवल किसान राग अलाप रही है. हद तो यह है कि न्यूजचैनलों पर आने भाजपाई प्रवक्ताओं की फौज भी इन तथ्यों का जिक्र नहीं कर रही है. शायद इन तथ्यों से पूरी तरह अनभिज्ञ और अनजान है. ऐसा क्यों है. इसपर बाद में कभी लिखूंगा. लेकिन आज किसानों के इस तथाकथित आंदोलन और उस आंदोलन की सूत्रधार ठेकेदार कांग्रेस को देखकर मुझे उन डकैतों की कहानी याद आ रही है, जो डकैत लोगों को बेरहमी से लूटने के बाद, उन लुटे हुए लोगों को न्याय दिलाने के लिए हंगामा और हुड़दंग किया करते थे.

साभार सतीश चन्द्र मिश्रा

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