गाजियाबाद श्मशान हादसे में मुख्यमंत्री योगी जी द्वारा पर मृ्तक परिवारों को दस दस लाख की आर्थिक सहायता और इनमें आवासहीन परिवारों को आवासीय सुविधा मुहैया करने का निर्देश दिया यह सरकार की मानवता का परिचायक है।
इससे हादसे से जुड़े सभी गुनाहगारों को गिरफ्तार कर लिया है। मुख्यमंत्री जी ने घटना के लिए ज़िम्मेदार इंजीनियर और ठेकेदार के खिलाफ रासुका लगाने का आदेश दिया है व पूरे नुक़सान की वसूली दोषी इंजीनियर और ठेकेदार से करने के निर्देश देते हुए संबंधित ठेकेदार को ब्लैक लिस्ट कर दिया यह सरकार का ज़ीरो टॉलरेंस गवर्नेंस का द्योतक है।
गाजियाबाद के डीएम और कमिश्नर को नोटिस जारी कर पूछा गया कि जब सितंबर में ही 50 लाख से ऊपर के निर्माण कार्यों का भौतिक सत्यापन करने का स्पष्ट निर्देश दिया गया था तो क्यूँ हुई चूक ?? यह सरकार के पास रीढ़ की हड्डी है ये दर्शाता है। खैर इनको भी दंडित होने का भय होगा तभी इस सड़े तंत्र में सुधार संभव है।
क्या वजह है सरकार की जांच महसूस होते ही माल्या, नीरव मोदी जैसे भागने में सफल हो जाते है ? क्यों कि जो इस भ्रष्टतंत्र का हिस्सा रहे हैं वे ही इसमें मददगार रहते हैं। परियोजनाओं में पाइप की जगह बांस के पाइप या सुनिश्चित अनुपात में सीमेंट व सरिया लगाने की जगह कुछ और प्रयोग करने का कारनामा आम है।
सरकारें बदलती रहती है लेकिन व्यवस्था व संस्कृति तो अभी भी उतनी ही भ्रष्ट है जिसे 73 सालों से राजनैतिक तंत्र ने पाला पोसा है। ठेकेदार हो इंजीनियर हो या प्रशासनिक अधिकारी हो सब के सब इस इस गिरोह का हिस्सा होते हैं और आमजन के सुविधा के लिए घोषित परियोजनाओं में टैक्स पेयर के पैसों की बंदरबाट व पैसों की अतृप्त प्यास के लिए संवेदनहीनता की पराकाष्ठा पार कर जाते हैं।
एक वक्त था जब कमीशनबाजी इतनी थी की ठेकेदार तक काम करने से मना कर देते थे। विभागों में बड़ी परियोजनाओं में काम करने वाली कम्पनियों को जूनियर इंजीनियर से लेकर विभागीय हेड को कम्पनी द्वारा उसके वेतन के बराबर हर माह रिश्वत दी जाती थी।ठीकेदार की तो मजबूरी है इन सभी को पोषित करना क्यों कि उसे भी अपना परिवार पालना है।
खैर यह तंत्र इतना सड़ गल गया कि इसमें आमूलचूल परिवर्तन ही एकमात्र उपाय है।
हालांकि योगी सरकार द्वारा इ टेंडरिंग की व्यवस्था की गई है जिससे न सिर्फ थोड़ी पारदर्शिता आई है बल्कि भ्रष्टाचार भी कम हुआ है लेकिन यह सिर्फ बड़ी परियोजनाओं में लागू है निचले स्तर पर अभी भी पुरानी व्यवस्था का ही बोलबाला है।
जब सरकार ने सम्पत्तियों को आधारकार्ड से जोड़ने का प्रयास किया तो सारे विपक्ष और कथित बुद्धिजीवियों ने निजता का हवाला देकर इसका प्रबल विरोध किया था, उसके पीछे भी भ्रष्टतंत्र को बचाने का उद्देश्य था। ऐसे विभागों के चपरासी से लेकर विभाग के हेड पर नकेल कसे बिना कुछ भी संभव नहीं।
सौभाग्य से कुछ ऐसे मुख्यमंत्री व कुछ मंत्री ईमानदार आ गए तो इतनी कार्यवाइयों हो गईं परन्तु इसके बाद भी कानून इनको दंडित करेगा ऐसा मुझे लगता नही है।
– शरद सिंह