Shadow

पाकिस्तान देर से ही सही परन्तु रास्ते पर आ रहा है

भारत-पाक नियन्त्रण रेखा पर शांति कायम होना भारत की अपेक्षा पाकिस्तान के हित में अधिक है। पाकिस्तान को इस वास्तविकता को हृदय से स्वीकार करना होगा कि उसका अस्तित्व भारत की अपेक्षा कमतर है। उसकी आर्थिक स्थिति अत्यधिक निम्न स्तर की हैै। इसका साक्ष्य यह है कि उसका सम्पूर्ण आर्थिक ढांचा विदेशी ऋणों पर निर्भर करता है। अपनी सम्पूर्ण फौज तथा विभिन्न आतंकी संगठनों को सीमाओं पर तैनात करने में उसकी आर्थिक स्थिति और भी अधिक निम्नतर् होती जा रही है।
वर्तमान में भारत अपनी सैन्य शक्ति को चीन के समकक्ष करने का प्रयास कर रहा है। पाकिस्तान इस शक्ति की दौड़ में कहीं भी विद्यमान नही है। ऐसे में पाकिस्तान के लिए यही हितकर होगा कि वह अपनी सीमा से लगे भारत और अफगानिस्तान की सीमाओं पर शांति बनाए रहे और जनता के हित एवं उनके उद्धार में अपना पूर्ण ध्यान लगाए।
अतीत में भी इसी प्रकार की शांति के प्रस्ताव रखे गए थे, वर्ष 2003 में रखा गया शांति का प्रस्ताव मात्र 5 वर्ष अर्थात् 2008 तक चला तत्पश्चात वर्ष 2013 तक सीमा पर छुट-पुट घटनाएँ चलती रहीं, जिसमें दोनो ही देशों का नुकसान हुआ। इसके पश्चात इन्हीं छुट-पुट घटनाओं के परिणामस्वरूप युद्ध जैसे हालात उत्पन्न हो गए। भारतीय सैन्य अधिकारियों ने पाकिस्तान के सैन्य अधिकारियों से इस विषय पर अनेकों बार वार्ता की परन्तु उनके अहम के कारण सफल ना हो सकी। भारत की अपेक्षाएँ हैं कि वर्तमान में हुए आपसी समझौते पर पाकिस्तान दृढ़ रहे और सीमारेखा पर ईमानदारी के साथ इसका पालन करे। पाकिस्तान अपने सैनिकों एवं आतंकी संगठनो को सीमा रेखा से दूर रखे। सम्भावना यह भी है कि इस समझौते के प्रस्ताव में चीन की कूटनीति भी निहित हो, क्योंकि कुछ दिन पूर्व ही चीन ने भी भारत के साथ सीमा रेखा पर शांति समझौता किया है और उसी समझौते का अनुसरण करते हुए उसने  अपनी फौजो को सीमा से हटाया है। चीन की मूल प्रवृत्ति एक चालाक देश के रूप में जानी जाती है। अतः यह भी सम्भावनाएँ हैं कि उसने पाकिस्तान को समझौते के लिए विवश किया हो, क्योंकि वह नहीं चाहता कि किसी भी प्रकार के युद्ध में उसके विरुद्ध पाकिस्तान खड़ा हो जाए और अमेरिका, भारत-पाकिस्तान को अपने प्रभाव में ले ले। चीन आज इस दोराहे पर खड़ा है, यदि उसके भारत से संबंधो में कटुता उत्पन्न होती है तो अमेरिका के हस्तक्षेप के कारण अफगानिस्तान में भी उसका प्रभाव समाप्त हो सकता है।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान अतीत में एक सफल क्रिकेटर रहें हैं और उनकी मित्रता भारत के अनेकों खिलाड़ियों से रही है। अतः उनका स्वयं भी यही प्रयास रहा है कि पाकिस्तान, भारत का मित्र देश बना रहे। ऐसी अपेक्षाओं को वास्तविक रूप देने के लिए आवश्यकता यह है कि उन्हें अपने सैन्य अधिकारियों अथवा राजनीतिज्ञों को अनर्गल वक्तव्यों को देने से रोकना होगा।
यदि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ऐसा करने में सफल होते हैं तो यह समझौता दोनों देशो के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है। हम भविष्य में यह आशा करते हैं कि भारत-पाक सीमा पर स्थायी शांति कायम हो और दोनो देश मिल कर अपनी जनता की भलाई में अपना ध्यान केन्द्रित करे।

*योगेश मोहनजी गुप्ता*

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *