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नीति आयोग द्वारा भारतीय हिमालयी क्षेत्र में स्प्रिंगशेड प्रबंधन पर संसाधन पुस्तक का विमोचन

भारतीय हिमालयी क्षेत्र में स्प्रिंगशेड प्रबंधन पर संसाधन पुस्तक का विमोचन नीति आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. राजीव कुमार द्वारा नीति आयोग के सदस्य डॉ. वी.के. सारस्वत, नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्री अमिताभ कांत, भारत व भूटान में स्विट्जरलैंड के राजदूत डॉ. राल्फ हेकनर, विकास और सहयोग के लिए स्विस एजेंसी (एसडीसी) की प्रमुख सुश्री कोरिन डेमेंगे तथा अंतर्राष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान (आईडब्ल्यूएमआई) के प्रतिनिधि डॉ. आलोक सिक्का की उपस्थिति में किया गया। इस पुस्तक को नीति आयोग ने एसडीसी और आईडब्ल्यूएमआई के सहयोग से विकसित किया था। पुस्तक का विमोचन करते हुए नीति आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. राजीव कुमार ने कहा कि हिमालय के झरने, पहाड़ों और पहाड़ी पारिस्थितिकी तंत्र में रहने वाले हमारे नागरिकों के लिए पानी का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। उन्हें संरक्षित करने की तत्काल आवश्यकता है, खासकर अब जब जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को तेजी से महसूस किया जा रहा है। यह संसाधन पुस्तक पर्वतीय झरनों के पुनरुद्धार एवं संरक्षण पर व्यावहारिक मार्गदर्शन प्रदान करती है। डॉ. राजीव कुमार ने कहा कि हिमालयी राज्यों में जमीनी कार्यकर्ताओं द्वारा इसे अपनाने के लिए इसका हिंदी अनुवाद किया जाना चाहिए।

भारत में स्विट्जरलैंड के राजदूत डॉ. राल्फ हेकनर ने कहा कि पर्वतीय समुदायों की जल सुरक्षा में झरनों की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए, उनका पुनरुद्धार और टिकाऊ प्रबंधन अधिक ध्यान देने योग्य है। उन्होंने यह भी कहा कि दस्तावेज़ विशेष रूप से प्रासंगिक है क्योंकि यह समुदायों और विशेषज्ञों के साथ समान रूप से बातचीत से उभर कर सामने आया है।

नीति आयोग के सलाहकार श्री अविनाश मिश्रा ने दस्तावेज़ को एक संसाधन पुस्तक के रूप में पेश किया, जो पर्वतीय समुदायों की जल सुरक्षा बढ़ाने के लिए भारतीय हिमालयी क्षेत्र (आईएचआर) में स्प्रिंगशेड प्रबंधन में सर्वोत्तम प्रथाओं पर एक संक्षिप्त मार्गदर्शक दस्तावेज़ है। उन्होंने बताया कि विभिन्न मॉडलों और स्प्रिंगशेड प्रबंधन के सामाजिक, जल विज्ञान, संस्थागत तथा अन्य पहलुओं पर उनके प्रभाव को समझने के लिए संकलित सर्वोत्तम प्रथाओं को आईएचआर राज्यों में सामुदायिक बातचीत के साथ स्वीकार किया गया था।

यह रिसोर्स बुक “हिमालय में जलवायु परिवर्तन अनुकूलन को मजबूत करना (एससीए-हिमालय)” परियोजना के तहत आईडब्ल्यूएमआई और एसडीसी के सहयोग से नीति आयोग द्वारा विकसित स्प्रिंगशेड प्रबंधन में सर्वोत्तम कार्यप्रणालियों पर एक संक्षिप्त मार्गदर्शक दस्तावेज है। भारतीय हिमालयी क्षेत्र (आईएचआर) में स्प्रिंगशेड प्रबंधन में सर्वोत्तम कार्यप्रणालियों के एक सेट में अपने विविध अनुभवों एवं दृष्टिकोणों को सारांशित करने के लिए विभिन्न विशेषज्ञों और चिकित्सकों का साक्षात्कार लिया गया है, इसके बाद ऑनलाइन सर्वेक्षण, इलाकों का दौरा तथा हितधारकों के साथ एक राष्ट्रीय परामर्श कार्यशाला का आयोजन किया गया।

झरने आईएचआर में 90 प्रतिशत से अधिक ग्रामीण समुदायों के लिए प्राथमिक जल स्रोत हैं। हालांकि, झरनों की गिरावट और बड़े हिमालयी भूजल प्रणालियों पर चिंता बढ़ रही है, जिससे पहाड़ी आबादी तथा पूरे भारतीय-गंगा मैदानों की जल सुरक्षा को खतरा है। हाल के दशक में, जलविज्ञान के सिद्धांतों का उपयोग करते हुए स्प्रिंग पुनरुद्धार के प्रयास हिमालय में कई नागरिक समाज संगठनों (सीएसओ) और सरकारी एजेंसियों द्वारा स्प्रिंगशेड प्रबंधन (एसएम) का व्यापक रूप से स्वीकृत मॉडल बन गए हैं। यह पुस्तक आईएचआर और पड़ोसी देशों नेपाल तथा भूटान में विभिन्न एजेंसियों द्वारा पुनरुद्धार प्रयासों के एक दशक से अधिक समय से प्रक्रियाओं, विधियों एवं सीखने पर उपयोग में आसान दस्तावेज़ का निर्माणकार्य है।

सर्वोत्तम कार्यप्रणालियों से प्रमुख सिफारिशें इस प्रकार हैं:

  • एक राष्ट्रीय स्प्रिंग्स मिशन (एनएसएम) भारत में बेहतर समन्वय, कुशल निष्पादन और स्प्रिंगशेड प्रबंधन पहलों को बढ़ाने की सुविधा प्रदान करेगा। यह एक ही छत के नीचे राज्य सरकार की एजेंसियों, सीएसओ तथा अन्य हितधारकों के सीखने और अनुभवों को समेकित, अभिसरण एवं तालमेल कर सकता है और मौजूदा तथा आने वाले पेशेवरों के लिए राष्ट्रीय या क्षेत्रीय स्तर के निर्णय समर्थन प्रणाली विकसित करने में मदद कर सकता है।
  • विभिन्न एजेंसियों द्वारा एकत्र किए गए स्प्रिंगशेड से संबंधित डेटा पर एक राष्ट्रीय डिजिटल डेटाबेस बनाने से पहुंच और अकादमिक अनुसंधान में आसानी होगी। इसके अलावा, डेटा को एक ऑनलाइन पोर्टल में एकीकृत किया जा सकता है तथा स्थानीय समुदायों सहित सभी हितधारकों के लिए खुली पहुंच साझा करने की सुविधा प्रदान की जा सकती है।
  • मौजूदा, राज्य और राष्ट्रीय स्तर के विज्ञान-नीति-अभ्यास कंसोर्टियम के लिए नए एवं सहायक उपाय तैयार करना, सभी हितधारकों के अनुभव साझा करने, पूरक ज्ञान सृजन, हस्तांतरण एवं क्षमता निर्माण की सुविधा प्रदान करेगा।

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