यह शीर्षक पढ़ कर कट्टरपंथी मुल्ला आक्रोशित अवश्य होंगे पर “देवबंद मदरसा है आतंकवाद का अड्डा” शीर्षक से सच्चाई लिखने वाले कोई और नहीं प्रसिद्ध इस्लामिक विद्वान व लेखक श्री मुजफ्फर हुसैन है। इनके उपरोक्त शीर्षक से लिखे तथ्यपरक लेख को दिल्ली से प्रकाशित होने वाले हिंदी साप्ताहिक ‘पाञ्चजन्य’ ने 15 फरवरी 2009 को प्रकाशित किया था।
आज इसकी चर्चा का अवसर क्यों आया यह भी जानना आवश्यक है। अमरीका की राजधानी वाशिंगटन के ‘यू एस कैपिटोल’ में दिल्ली के थिंक टैंक कहे जाने वाली संस्था “विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन” द्वारा 2 मार्च को आयोजित एक कार्यक्रम में वहां के एक प्रभावशाली सांसद एड रॉयस ने अपने स्पष्ट विचार व्यक्त किये। उन्होंने जिहाद को नियंत्रित करने के लिये पाकिस्तान को परामर्श देते हुए कहा कि ” पाकिस्तान को अपने यहां चल रहे देवबंदी मदरसों को बंद करने के लिऐ गंभीरता से सोचना चाहिये । उनके अनुसार ऐसे लगभग 600 देवबंदी मदरसे पाकिस्तान में है जो लोगों को भ्रमित करते है। जिससे ये लोग जिहाद के पक्ष में दलीलें देते रहते है या जिहाद करते है” ।अमरीकी सांसद ने पाकिस्तान को समझाते हुए यह भी कहा कि “अगर वह आतंकवादी आक्रमणों के दोषियों को न्याय के कटघरे में किसी कारण वश नहीं लाना चाहता तो उन्हें अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ‘ हेग ‘ को सौप देना चाहिये, जिससे वहां उनके विरुद्ध उचित कार्यवाही हो सके और सभी को न्याय मिलें “। सांसद महोदय में अपने कथन में लश्कर-ए-तोइबा जैसे आतंकी संगठनों पर कार्यवाही करने के साथ साथ ऐसे परिसरों को भी बंद करने की आवश्यकता पर जोर दिया।इस प्रकार अमरीकी सांसद के अपनी प्रभावशाली शैली में मानवतावादी संवेदनशीलता का परिचय देते हुए आतंकवाद को नियंत्रित करने के लिये देवबन्दी मदरसों की विचारधारा को प्रतिबंधित करने का एक सार्थक सुझाव देने का प्रयास किया है।
इसी देवबंद विचारधारा के संदर्भ में मुम्बई में 26 नवम्बर 2008 को हुए आतंकी हमलों के बाद अपने एक लेख में श्री मुज़फ्फर हुसैन ने लिखे थे।उसके अनुसार “उस समय आतंकी हमलों के बाद जो अनेक गुप्त जानकारियां व सूचनायें मिल रही थी उनसे पता चलता था कि देवबंद मदरसा आतंकवादियों का अड्डा है। यहां न केवल आतंकवादी जन्म लेते है बल्कि अन्य देशों में भी उनका निर्यात किया जाता है। क्योंकि देवबंद का मदरसा भारतीय उपखंड के मुसलमानों के लिए “मक्का” के समान है, इसलिये हमारी सरकारें इसके प्रति उदासीन रहती है। अगर कोई इसके विरुद्ध कुछ बोलता है तो तुरंत मुसलमान ‘मज़हब पर हमला’ कहकर हल्ला मचाने लगते है। इस मदरसे में देश-विदेश से मौलाना व मुफ्ती बनने के लिये मुस्लिम विद्यार्थी आते रहते है। इस संस्थान को भारतीयों के अतिरिक्त अन्य (मुस्लिम ) देशों से भी सहायता मिलती रहती है।इस देवबंदी मदरसे की छाप ऐसी है कि वह जो इस्लाम के विषय में कहता है उसे अंतिम शब्द माना जाता है । इसीलिये इस मदरसे के विरुद्ध बहावी और अहले हदीस पंथ का मुसलमान कुछ भी सुनना पसंद नहीं करता।भारत के मुसलमानों ने इसको जाने अनजाने में इस्लामी शिक्षा का ठेकेदार बना दिया है। इस मदरसे के मौलाना कुछ भी कहे उसे आसमान से उतरा हुआ सत्य समझ लिया जाता है। देवबंद केवल अपनी मज़हबी शिक्षा के लिये ही प्रसिद्ध नहीं है बल्कि “फतवे” जारी करने वाला भी सबसे बड़ा प्रतिष्ठान है। जब कभी उसके फतवे पर कोई मुसलमान अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है तो भारत सरकार निष्क्रिय हो जाती है। फतवो के सामने भारतीय संविधान व भारतीय दंड संहिता की धाराओं का कोई महत्व नहीं रहता “।
लेखक महोदय ने आगे लिखा है कि “जब 2008 में मुम्बई आतंकी हमला हुआ था तो सारी दुनिया सहम गयी थी । अनेक देश इस आतंकी हमलों को कैसे रोका जाये और आतंकवाद को किस प्रकार नष्ट किया जायें आदि पर विचार करने को विवश हो गये। संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रतिनिधि अब्दुल्ला हुसैन हारुन ने कहा कि ” यह देवबंदी उलेमाओं का दायित्व है कि उत्तर-पश्चिम सीमान्त प्रदेशो व कबाइली क्षेत्रो में आतंकवाद को समाप्त करने के लिये देवबंद पर शिकंजा कसें , क्योंकि आतंकवाद देवबंद मदरसे की कोख से जन्म लेता है” । उन्होंने( हुसैन) आगे कहा कि “भारत सरकार हम पर आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाती है, लेकिन वास्तविकता में पाकिस्तान में आतंकवाद का निर्यात भारत से होता है, जिसका जनक देवबंद मदरसा है”। उनके कहे अनुसार “अफगानिस्तान व पाकिस्तान में जो आतंकवाद फल फूल रहा है उसका एकमात्र जिम्मेदार देवबंद मदरसा ही है । साथ ही उन्होंने देवबंद के विरुद्ध मुस्लिम उलेमाओं को फ़तवा जारी करने को कहा जिससे इस भूभाग पर जिहादी पैदा होने बंद हो जायें”। परंतु देवबंद के समर्थकों ने पाकिस्तान के इन आरोपो की तीव्र भर्त्सना की थी और उल्टा पाकिस्तान को ही आतंक का जनक व तालिबान की शरणगाह बताया था।उनके समर्थकों ने यह भी कहा कि पाकिस्तान देवबंद का उसी समय से विरोधी है जबसे देवबंदियों ने पाकिस्तान के निर्माण का विरोध किया था।देवबंद वालो ने पाकिस्तानी प्रतिनिधि को ही षड्यंत्रकारी बताया।
परंतु श्री मुज़फ्फर हुसैन ने अपने लेख में स्पष्ट किया है कि ” पाकिस्तान के दूत ने जिस कड़वे सच को संयुक्त राष्ट्र संघ में उजागर किया उसे देवबंद के समर्थक व मौलाना कितना ही न माने लेकिन क्रोध में आदमी सच बोल जाता है । इस प्रकार पाकिस्तानी दूत हारुन ने दुनिया के सामने सच उगल दिया कि आतंकवाद का जनक केवल और केवल देवबंद है। अगर हारुन यह बात नहीं कहते तो भी दुनिया जानती है कि दुनिया में जिहाद का नारा कौन लगाता है ? एक मदरसे का काम पढ़ाना और छात्रों को बुद्धिमान बनाना होता है लेकिन देवबंद ने तो सारे मुसलमानों की हर बात का ठेका ले रखा है । वे सरकार और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के विरुद्ध आंदोलन करें , सरकार क्या पढ़ायें उसका निर्णय करें आदि आदि।संक्षेप में कहा जायें तो देवबंद का मदरसा शिक्षण संस्थान के साथ साथ मुसलमानों की राजनीति का भी एक अड्डा है बन चूका है। इसलिये अगर पाकिस्तानी दूत हारुन उन पर जो आरोप लगा रहें है उससे वे दूर नहीं भाग सकते ” । जिहाद, काफिर और दारुल-हरब जैसे घृणास्पद व वैमनस्यकारी मानसिकता बढ़ाने वाले शब्दों की सार्थकता क्या ये मदरसे वाले कभी मानवीय परिप्रेक्ष्य में प्रमाणित कर सकते है ? क्या इसके विरुद्ध इन्होंने कोई आंदोलन चलाया है ?
उपरोक्त लेख में दिये गये विवरण से अमरीकी सांसद श्रीमान एड रॉयस की विचारधारा को जोड़ कर समझा जायें तो आतंकवाद पर अंकुश लगाने के लिये देवबंदी मदरसों की विचारधाराओं में या तो आवश्यक परिवर्तन किये जायें या फिर इनको प्रतिबंधित किया जाय जिससे वैश्विक जिहाद से मानवता की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकें ।
भवदीय
विनोद कुमार सर्वोदय