जब जयललिता की मृत्यु हुयी थी तभी इस बात की आशंका व्यक्त होने लगी थी कि क्या अब उनके उत्तराधिकारी पांच साल सरकार चला पाएंगे? 2016 में हुये विधानसभा चुनावों में तमिलनाडु की जनता ने जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके को पूर्ण बहुमत दिया था। जयललिता सिर्फ छह माह ही इस सरकार का नेतृत्व कर पाईं। उनके उत्तराधिकारी के रूप में पनीरसेलवम का चुना जाना उनकी करीबी शशिकला को पसंद नहीं आया। सिर्फ दो माह में ही तमिलनाडु में इस तरह का घटनाक्रम पैदा कर दिया गया जिसमें शशिकला को जेल जाना पड़ा और पनीरसेल्वम मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाये जा चुके हैं। तमिलनाडु की राजनीति पर पैनी नजऱ रखते हुये विशेष संवाददाता अमित त्यागी पूरे घटनाक्रम पर प्रकाश डाल रहे हैं।
मिलनाडु की राजनीति एक लंबे समय से क्षेत्रीय दलों के बीच सिमटी हुयी है। वर्तमान में करुणानिधि की डीएमके और जयललिता की एआईएडीएमके दो ऐसे दल हैं जिन्होंने सत्ता का हस्तांतरण अपने ही हाथों में रखा है। इन दोनों दलों नें 1967 के बाद से किसी राष्ट्रीय दल को तमिलनाडु में स्वयं से ऊपर जाने नहीं दिया है। तमिलनाडु में न तो कांग्रेस मजबूत है न ही भाजपा। ये दोनों राष्ट्रीय दल यहां सिर्फ लोकसभा चुनावों के समय प्रस्फुटित होते हैं। उस समय डीएमके का झुकाव कांग्रेस की तरफ और एआईएडीएमके का झुकाव भाजपा की तरफ रहता है।
जयललिता के निधन के बाद उनकी पार्टी में विघटन की संभावनाएं तेज़ हो गईं थीं। ऐसे में विपक्षी डीएमके ने इस विघटन को हवा देने के लिए अपने पत्ते फेंटने शुरू कर दिये थे। जयललिता के यसमैन पनीरसेल्वम, जो की भाजपा के भी करीबी माने जाते थे, मुख्यमंत्री बने। सत्ता के लिए घात लगाये बैठी डीएमके ने शशिकला पर हाथ रख दिया। 29 दिसम्बर को शशिकला को पार्टी का महासचिव चुना गया। इसके बाद जैसे ही 05 फरवरी को शशिकला विधायक दल की नेता चुनी गयी, पनीरसेल्वम का इस्तीफा हो गया। इस बात की आशंका तो काफी समय से थी कि शशिकला किसी और को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर टिकने नहीं देंगी किन्तु पनीरसेल्वम इतनी आसानी से हथियार डाल देंगे ऐसी उम्मीद भी किसी को नहीं थी। तीन दिन तक पनीरसेल्वम खामोश रहे। 08 फऱवरी को उनकी चुप्पी टूटी और आते ही उन्होंने बयान दिया कि उनका इस्तीफा दबाव डालकर लिया गया है।
11 फऱवरी को पनीरसेल्वम अम्मा मेमोरियल पर जाकर धरने पर बैठ गये। यहां तक शशिकला के लिये सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था। वह मुख्यमंत्री बनने जा रहीं थीं। पर अचानक तभी 14 फऱवरी को उच्चतम न्यायालय ने एक पुराने मामले में शशिकला को दोष सिद्ध साबित किया। उन्हें चार साल की सज़ा सुना दी गयी। रिहा होने के बाद छह साल तक उनके चुनाव लडऩे पर रोक लगा दी गई। पनीरसेल्वम के त्यागपत्र के बाद शशिकला की गिरफ्तारी तमिलनाडु की राजनीति का दूसरा अहम मोड़ था। अब आवश्यकता थी एक ऐसे चेहरे की जो शशिकला का करीबी हो। ऐसे में प्रगट किए गये पलनीसामी।
एक लो प्रोफ़ाइल नेता की छवि है पलनीसामी की
पलनीसामी एक साधारण कार्यकर्ता से उठकर मंत्री की कुर्सी तक पहुंचे नेता हैं। दो बार मंत्री रहे पलनीसामी को लो प्रोफ़ाइल रखने वाला नेता माना जाता है। 1989 में वह एडापडी विधानसभा क्षेत्र से पहली बार विधायक बने थे किन्तु तब से इसी सीट से लगातार चुनाव जीत रहे हैं। सलेम जिले के इस निर्वाचन क्षेत्र का नाम पलनीसामी के गांव के नाम पर ही रखा गया है। शशिकला खेमे के पलनीसामी गाउंडर समुदाय से आते हैं। तमिलनाडु के पश्चिमी जिलों में गाउंडर समुदाय का ख़ासा असर है। पलनीसामी की जयललिता की नजऱ में अहमियत का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि कावेरी जल विवाद पर कर्नाटक और तमिलनाडु के मुख्यमंत्रियों की बैठक में जयललिता का लिखित भाषण उन्होंने ही पढ़ा था।
उठापटक अभी खत्म नहीं होगी तमिलनाडु में
तमिलनाडु की राजनीति में अभी भी उठापटक खत्म होती नहीं दिख रही है। हालांकि, मुख्यमंत्री पलनीसामी बहुमत साबित कर चुके हैं किन्तु पुराने मुख्यमंत्री भाजपा के करीबी माने जाते थे। वर्तमान मुख्यमंत्री शशिकला के करीबी हैं और वह कांग्रेस से खुद को ज़्यादा करीब मान रहे हैं। डीएमके इस समय को अपने लिए फायदे का सौदा मानकर एआईएडीएमके में उथल पुथल को बरकरार रखना चाहती है। तमिलनाडु में जितनी एआईएडीएमके कमजोर होगी उतनी ही करुणानिधि की डीएमके मजबूत होगी। भाजपा का ध्यान जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों पर है और वह तटस्थ रहकर एआईएडीएमएके के करीब बने रहना चाहती थी। दुर्भाग्य से भाजपा के रणनीतिकार पनीरसेल्वम से तो करीब रहे किन्तु शशिकला के इतनी जल्दी दांव चलने का एहसास उन्हें नहीं था। पनीरसेल्वम से भाजपा की बढ़ती नज़दीकियों की वजह से शशिकला का कुछ रुझान कांग्रेस की तरफ हुआ। यहीं भाजपा के तमिलनाडु के रणनीतिकार चूक कर गये। जहां पर उन्हें खेल को सिर्फ दूर से देखकर पैनी नजऱ रखनी थी वह अनजाने में ही उस खेल का हिस्सा बन गये। अब तमिलनाडु की राजनैतिक उठापटक का असर आगामी राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति चुनावों पर पडऩा तय है।
भारी हंगामे और तोडफ़ोड़ के बीच पलनीसामी ने जीता विश्वासमत
विश्वास मत जीतने का माहौल भी तमिलनाडु में कम मज़ेदार नहीं रहा। भारी हंगामे और तोडफ़ोड़ के बाद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पलनीसामी ने जब विधानसभा में विश्वासमत जीता तब उस दौरान विधानसभा में विपक्ष पूरी तरह से ग़ायब रहा। विपक्षी कांग्रेस, डीएमके और पनीरसेल्वम का खेमा विश्वासमत में गोपनीय वोटिंग की मांग कर रहा था किन्तु स्पीकर ने इस मांग को ख़ारिज कर दिया। इसके बाद विधानसभा में जमकर तोडफ़ोड़ हुई। विधानसभा अध्यक्ष का कहना था कि झड़प में उनकी शर्ट फट गई। अराजक स्थिति के बीच उन्हें अपमानित होना पड़ा। विधानसभा अध्यक्ष के मेज पर लगी माइक तोड़ दी गई और अध्यक्ष के आसन पर डीमएके सदस्य जाकर बैठ गए। हालांकि डीएमके नेता एमके स्टालिन ने बाद में दावा किया कि स्पीकर ने अपनी शर्ट ख़ुद से ही फाड़ ली थी।
बदलाव की दिशा में तमिल राजनीति
तमिलनाडु की राजनीति बहु-ध्रुवीय होने की ओर बढ़ रही है। डीएमके के सर्वोच्च नेता एम. करुणानिधि बहुत वृद्ध हो चुके हैं और बहुत दिनों तक पार्टी को नेतृत्व देने की स्थिति में नहीं हैं। उनके बाद पार्टी उनके दो पुत्रों एम. के. स्टालिन और एम. के. अड़ागिरि के बीच नेतृत्व की लड़ाई के कारण बंटवारा संभव है। ऐसे में अगले विधानसभा चुनाव में किसी एक पार्टी का अकेले बहुमत लेकर उभरना मुश्किल होगा। यह परिस्थिति कांग्रेस और भाजपा दोनों राष्ट्रीय दलों के लिये लाभ की स्थिति होगी। भाजपा की कोशिश होगी कि राज्य में अगले विधानसभा चुनाव 2019 के लोकसभा चुनाव के साथ-साथ हों। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो इस बात पर प्रयास कर ही रहे हैं कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ ही होने चाहिए। वर्तमान में भाजपा के पास तमिलनाडु में तीन प्रतिशत से भी कम वोट है लेकिन उठापटक के दौर में उसका वोट बैंक निश्चित तौर पर बढ़ेगा।
जहां तक एआईएडीएमके की बात है तो उसके सामने अपने सामाजिक आधार को बनाए रखने की चुनौती है। उसने थेवर समुदाय को अन्य पिछड़ी जाति (ओबीसी) नहीं बल्कि सर्वाधिक पिछड़ी जाति (एमबीसी) का दर्जा देने का वादा किया था। भाग्य की विडम्बना देखिये अब उसी समुदाय के पनीरसेल्वम पार्टी से अलग हो गये हैं। ऐसे में थेवरों का समर्थन पाना एआईएडीएमके के लिये आसान नहीं होगा। इससे अन्य जातियों के बीच के राजनीतिक समीकरण भी बदल सकते हैं। फिलहाल इतना तो कहा ही जा सकता है कि तमिलनाडु की राजनीति में जो भी बुनियादी बदलाव आने का संयोग बन रहा है वह तमिलनाडु में फौरी उठापटक तो पैदा कर रहा है किन्तु इसका राष्ट्रीय राजनीति पर दूरगामी सकारात्मक प्रभाव पडऩे जा रहा है। ठ्ठ
शशिकला : सज़ा के बाद टूटा मुख्यमंत्री बनने का सपना
सत्तारूढ़ एआईएडीएमके की सर्वोच्च नेता जे. जयललिता के निधन के बाद पार्टी की महासचिव बनीं वी. के. शशिकला का राज्य की मुख्यमंत्री बनने का सपना तब चूर-चूर हो गया जब आय से अधिक संपत्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें दोषी करार देते हुए चार साल कैद की सजा सुनायी। सजा समाप्त होने के बाद भी छह साल तक वह कोई चुनाव नहीं लड़ सकेंगी। शशिकला ने 10 करोड़ रुपये का जुर्माना नहीं चुकाया तो उन्हें 13 महीने की सज़ा और दी जाएगी। शशिकला पर तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता के साथ मिलकर 32 ऐसी कंपनियां बनाने का आरोप था जिनका कोई बिजनेस ही नहीं था। शशिकला और जयललिता कर्नाटक हाईकोर्ट से महज 10 सेकंड में बरी हो गई थीं। वकीलों को उनके खिलाफ दलीलें पेश करने का मौका भी नहीं मिला था। वकीलों के पास पर्याप्त सबूत थे और यही सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की वजह बनी।
जेल जाने से पहले शशिकला ने एक शातिर चाल के जरिये राज्य के कार्यवाहक मुख्यमंत्री ओ. पनीरसेल्वम की पार्टी से प्राथमिक सदस्यता समाप्त कर दी। अपने करीबी को मुख्यमंत्री की विरासत सौंप दी। इस तरह से जेल जाते जाते शशिकला एआईएडीएमके में विभाजन सुनिश्चित कर गईं। शशिकला और पनीरसेल्वम दोनों ही गुट जयललिता के नाम का जाप कर रहे हैं और उनके सपनों को पूरा करने एवं उनके ‘स्वर्णिम शासन’ को जारी रखने का वादा कर रहे हैं, लेकिन उनके लिए इस तथ्य को दबाना बहुत मुश्किल होगा कि जिस मामले में शशिकला को जेल हुई है, उसमें जयललिता मुख्य अभियुक्त थीं और उनको दोषी पाया गया है। शशिकला तो केवल सह-अभियुक्त ही थीं।
शशिकला अभी भी अपने निर्दोष होने और अंतत: ‘धर्म की विजय’ होने की बात कर रही हैं, लेकिन जयललिता के दोषी पाये जाने के कारण एआईएडीएमके पार्टी पर से यह दाग आसानी से छूटने वाला नहीं है।