अरे! यह क्या हो रहा है पंजाब में ? – अनुज अग्रवाल
पंजाब के चुनावों के जो भी अनुमान विभिन्न सर्वेक्षणों में लगाए गए थे वे सब धराशायी होने जा रहे हैं। कांग्रेस व आम आदमी पार्टी के बीच मुख्य मुक़ाबले का अनुमान हर कोई लगा रहा था किंतु पिछले दो हफ़्तों में जिस तेज़ी से घटनाक्रम बदला है उसने हाशिए पर खड़ी व उपेक्षा की शिकार भाजपा को बड़ी भूमिका में ला खड़ा किया है। आइए जाने क्या हैं प्रमुख कारण हैं –
1) बाबा राम रहीम की तीन सप्ताह के लिए जेल से फ़रलो(छुट्टी) व उनके समर्थकों द्वारा नोटा पर मुहर लगाने की डेरा समर्थकों से अपील
2) केजरीवाल के पूर्व सहयोगी व उनकी पार्टी के पंजाब के पिछले चुनावों में संयोजक रहे कुमार विश्वास द्वारा केजरीवाल पर आतंकी संगठनों , ख़ालिस्तानियो व राष्ट्रद्रोही ताक़तों से सहयोग लेने का आरोप
3) भाजपा, कांग्रेस और अकाली दल की आम आदमी पार्टी के ख़िलाफ़ जुगलबंदी
4) कांग्रस पार्टी द्वारा सीएम पद के लिए चन्नी के नाम की घोषणा
5) भाजपा व प्रधानमंत्री मोदी की अप्रत्याशित सक्रियता
सूत्र बताते हैं कि बाबा राम रहीम की रिहाई एक राजनीतिक समझौते के अंतर्गत की गयी है ताकि वे आम आदमी पार्टी के गढ़ पंजाब के मालवा क्षेत्र में अपने बड़ी मात्रा में रहने वाले डेरा समर्थकों के वोट आआपा को न डलने दें। इस खेल के कारण 15 से 20 सीटों पर आम आदमी पार्टी का गणित बिखर गया है। निश्चित रूप से इसका लाभ बाक़ी दलों को होने जा रहा है।
पूर्व साथी कुमार विश्वास के आरोपो ने भी केजरीवाल के चढ़ते ग्राफ़ को गिरा दिया है। कांग्रेस व भाजपा ने उनको बुरी तरह घेर लिया है और वे अब बचाब की मुद्रा में हैं। उनके कार्यकर्ताओं व समर्थकों का उत्साह व आत्मविश्वास डोल गया है व वोटर भी पीछे हट रहे हैं।
यह सच है कि आम आदमी पार्टी व भगवंत मान की निरंतर बढ़ती लोकप्रियता से बाक़ी दल घबरा गए हैं। यह अलग बात है कि यह लोकप्रियता मुफ़्त रेवड़ी बाँटने के वादों के कारण अधिक है। भाजपा, कोंग्रेस व अकाली दल जहां एक सुर में आम आदमी पार्टी व केजरीवाल के ख़िलाफ़ आक्रामक हुए हैं, वहीं अंदरखाने एक दूसरे के साथ वोट शेयर करने की रणनीति पर भी चल रहे हैं। जिन जिन सीटों पर ये दल कमजोर हैं वहाँ वहाँ ये अपने वोट एक दूसरे के मज़बूत प्रत्याशी के पक्ष में ट्रांसफ़र करेंगे।
कोंग्रेस पार्टी द्वारा सरकार बनने पर मुख्यमंत्री पद हेतु चरणजीत सिंह चन्नी के नाम की घोषणा से प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू बिदक गए हैं और वे अनेक सीटों पर अपने समर्थकों के वोट भाजपा व अकाली दल को ट्रांसफ़र करवाएँगे। पार्टी में मची भगदड़ भी यही कहानी कह रही है।ऐसे में कोंग्रेस पार्टी का भविष्य ही अधर में जाना तय है।
लंबे समय से मुक़ाबले से ग़ायब सी दिख रही भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री के. अमरिंदर सिंह , सुखविंदर सिंह ढिंढसा व अन्य दलों के साथ गठजोड़ कर कमबैक तो किया था किंतु उसका बढ़ा प्रभाव नहीं दिख रहा था। प्रधानमंत्री मोदी के क़ाफ़िले को रोकने के षड्यंत्र के कारण भाजपा एकदम से मुख्यधारा में आ गयी और यकायक ताबड़तोड़ बैटिंग करने लगी। एक ओर उसने अपने परंपरागत हिंदू वोट बैंक में (जो किसान आंदोलन के बाद बहुत घबराया व अलग थलग पड़ा था) आत्मविश्वास भरा वहीं सिख पंथ के सभी वर्गों के लोगों को रिझाने के सभी आवश्यक उपाय किए। मोदी की रैलियों ने भी माहौल बदला है।
इस सभी उतार चढ़ावो से एक ओर जहां आम आदमी पार्टी व कांग्रेस पार्टी का ग्राफ़ तेज़ी से गिरा वहीं भाजपा ख़ासी आगे बढ़ गयी है। यहाँ तक कि सट्टा बाजार पंजाब में भाजपा गठबंधन को 25 सीटें दे रहा है।ऐसे में अगर आम आदमी पार्टी को बहुमत से कम सीटें मिलती हैं तो सरकार भाजपा गठबंधन की बन सकती है क्योंकि एक ओर वह अपने पुराने सहयोगी अकाली दल को साथ मिला ही लेगी वहीं दूसरी ओर कांग्रेस में भी बड़ी सेंध लगा बहुमत के जादुई अंक यानि 59 तक पहुँचने की हर संभव कोशिश करेगी ही। फ़िलहाल तो तेल देखिए और तेल की धार देखिए।
अनुज अग्रवाल
संपादक, डायलॉग इंडिया
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