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रूस को लेकर भारत, चीन और UAE एक साथ क्यों

रूस को लेकर भारत, चीन और UAE एक साथ क्यों
भारत, चीन और यूएई सुरक्षा परिषद में रूस के युद्ध के खिलाफ वोटिंग में अनुपस्थित रहे. चीन, रूस का करीबी सहयोगी और अमेरिका का विरोधी है, ऐसे में अमेरिका को डर था कि चीन रूस के साथ वीटो का इस्तेमाल करेगा लेकिन वो वोटिंग से अनुुपस्थित रहा जो अमेरिका के लिए एक राहत की खबर है.”
यूक्रेन पर रूसी हमले को लेकर शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक प्रस्ताव पर वोटिंग हुई. ये प्रस्ताव यूक्रेन पर रूसी हमले की निंदा और यूक्रेन से रूसी सेना की तत्काल और बिना शर्त वापसी की मांग को लेकर था जो पास नहीं हो सका. रूस ने अपने वीटो पावर का इस्तेमाल कर इस प्रस्ताव को रोक दिया. सुरक्षा परिषद के 5 स्थाई सदस्यों के पास वीटो का अधिकार होता है. भारत, चीन और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया जिस कारण प्रस्ताव को केवल 11 सदस्यों का समर्थन मिल पाया.
सदस्यीय सुरक्षा परिषद में भारत भी एक अस्थायी सदस्य है. भारत ने वोटिंग से अलग रहते हुए एक बयान जारी कर कहा कि समस्या का कूटनीतिक हल निकाला जाना चाहिए. भारत ने हालांकि, ये जरूर कहा कि हमें सभी की संप्रभुता और अखंडता का सम्मान करना चाहिए.भारत की तरह ही सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य यूएई ने भी वोटिंग से दूरी बना ली. रूस का करीबी समक्षा जाने वाला चीन भी वोटिंग के दौरान सुरक्षा परिषद में अनुपस्थित रहा. चीन सुरक्षा परिषद का एक स्थाई सदस्य है.

भारत के वोटिंग में शामिल न होने की वजह
भारत और रूस पुराने रणनीतिक सहयोगी रहे हैं. भारत का आधे से अधिक रक्षा खरीद रूस से ही होता है. रूस भारत का एक विश्वसनीय सहयोगी रहा है. भारत-चीन में सीमा विवाद या पाकिस्तान के साथ भारत के कश्मीर विवाद पर अब तक रूस ने अपनी निष्पक्षता बरकरार रखी है. कश्मीर के मुद्दे पर रूस कह चुका है कि ये मुद्दा भारत पाकिस्तान का द्विपक्षीय मुद्दा है. ऐसे में भारत रूस के खिलाफ वोटिंग नहीं कर सकता था.

वहीं, भारत अगर रूस के पक्ष में वोटिंग करता तो अमेरिका से उसके संबंध काफी खराब हो सकते हैं. हाल के दशकों में भारत अमेरिका के संबंधों में मजबूती आई है. अमेरिका चीन के साथ भारत के सीमा विवाद पर भी भारत के समर्थन में बोलता आया है. ऐसे में भारत अमेरिका को भी नाराज नहीं कर सकता था इसलिए उसने वोटिंग से दूर रहना ही ठीक समझा. विशेषज्ञों का भी कहना है कि मुद्दे पर भारत को निष्पक्ष बने रहना चाहिए.

साल 2014 में हालांकि भारत ने ऐसे ही एक मामले में रूस का पक्ष लिया था. 2014 में यूक्रेन में रूस समर्थित सरकार के खिलाफ गृहयुद्ध छिड़ गया जिसके बाद रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया था. रूस ने यूक्रेन का हिस्सा क्रीमिया को रूस में मिला लिया. उसका तर्क था कि क्रीमिया में अधिकतर रूसी भाषी लोग हैं और उनकी सुरक्षा करना रूस का कर्तव्य है. क्रीमिया को रूस में मिलाए जाने के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए. भारत की मनमोहन सिंह सरकार ने रूस पर लगे उन प्रतिबंधों का विरोध किया था.

वहीं, साल 2020 में भी भारत रूस के खिलाफ यूक्रेन के एक प्रस्ताव के विरोध में चला गया था. यूक्रेन क्रीमिया में कथित मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर संयुक्त राष्ट्र में एक प्रस्ताव लेकर आया था जहां भारत ने प्रस्ताव के खिलाफ अपना वोट किया था.

चीन रूस का दोस्त, अमेरिका का विरोधी, फिर क्यों नहीं किया वोट?

चीन और रूस के बीच की दोस्ती पिछले कुछ समय में काफी बढ़ी है. वहीं, अमेरिका से चीन के रिश्ते निम्नतम स्तर तक पहुंच गए हैं. फिर भी चीन का रूस के समर्थन में वोटिंग न करना और वोटिंग से दूर रहना- ये अमेरिका की छोटी जीत के रूप में देखा जा रहा है. चीन ने हालांकि कुछ समय पहले यूक्रेन पर रूस के हमले को ‘हमला’ मानने से ही इनकार कर दिया था.

चीन वोटिंग से अपने हितों को देखते हुए दूर रहा. विश्लेषकों का मानना है कि चीन अपनी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था पर ब्रेक नहीं लगाना चाहता. अगर वो रूस का समर्थन करता तो पश्चिम के बाजारों में उस पर भी प्रतिबंध लगाए जा सकते थे. ऐसे समय में जब रूस पर अमेरिका और पश्चिमी देश कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा रहे हैं और उसके बैंकिंग सिस्टम पर वार कर रहे हैं, चीन का रूस के पक्ष में वोट करना उसकी अर्थव्यवस्था को गंभीर चोट पहुंचा सकता था.

साल 2014 में जब क्रीमिया को रूस में मिलाए जाने के खिलाफ पश्चिमी देश संयुक्त राष्ट्र में एक प्रस्ताव लेकर आए थे तब भी चीन ने वोटिंग से खुद को अलग रखा था.

यूएई ने भी नहीं किया अमेरिका के पक्ष में वोट, रहा अनुपस्थित

अमेरिका और यूएई के संबंध काफी मजबूत रहे हैं. खाड़ी क्षेत्र में यमन के हूती विद्रोहियों के हमले के खिलाफ यूएई और सऊदी अरब आदि देशों का एक संगठन भी है जिसे अमेरिका का समर्थन हासिल है. इधर, रूस के साथ भी यूएई के संबंध काफी मजबूत हैं. रूस दुनिया का शीर्ष तेल उत्पादक देश है और यूएई भी तेल का बड़ा उत्पादनकर्ता है. दोनों देश आर्थिक रूप से एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं. यूक्रेन के मुद्दे पर यूएई ने बिना रूस की आलोचना किए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कहा था कि मुद्दे को कूटनीतिक तरीके से सुलझाया जाना चाहिए.यूक्रेन पर तनाव के बीच बुधवार को रूसी विदेश मंत्री ने यूएई के विदेश मंत्री से फोन पर बातचीत कर अपने द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करने पर बल दिया था. शुक्रवार को जब यूक्रेन युद्ध को रोकने के प्रस्ताव पर वोटिंग हुई तो यूएई ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया.

“यूक्रेन पर रूसी हमले को लेकर शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक प्रस्ताव पर वोटिंग हुई. ये प्रस्ताव यूक्रेन पर रूसी हमले की निंदा और यूक्रेन से रूसी सेना की तत्काल और बिना शर्त वापसी की मांग को लेकर था जो पास नहीं हो सका. रूस ने अपने वीटो पावर का इस्तेमाल कर इस प्रस्ताव को रोक दिया. सुरक्षा परिषद के 5 स्थाई सदस्यों के पास वीटो का अधिकार होता है. भारत, चीन और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया जिस कारण प्रस्ताव को केवल 11 सदस्यों का समर्थन मिल पाया.भारत, चीन, यूएई आए एक साथ 15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद में भारत भी एक अस्थायी सदस्य है. भारत ने वोटिंग से अलग रहते हुए एक बयान जारी कर कहा कि समस्या का कूटनीतिक हल निकाला जाना चाहिए. भारत ने हालांकि, ये जरूर कहा कि हमें सभी की संप्रभुता और अखंडता का सम्मान करना चाहिए.भारत की तरह ही सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य यूएई ने भी वोटिंग से दूरी बना ली. रूस का करीबी समक्षा जाने वाला चीन भी वोटिंग के दौरान सुरक्षा परिषद में अनुपस्थित रहा. चीन सुरक्षा परिषद का एक स्थाई सदस्य है.भारत के वोटिंग में शामिल न होने की वजहभारत और रूस पुराने रणनीतिक सहयोगी रहे हैं. भारत का आधे से अधिक रक्षा खरीद रूस से ही होता है. रूस भारत का एक विश्वसनीय सहयोगी रहा है. भारत-चीन में सीमा विवाद या पाकिस्तान के साथ भारत के कश्मीर विवाद पर अब तक रूस ने अपनी निष्पक्षता बरकरार रखी है. कश्मीर के मुद्दे पर रूस कह चुका है कि ये मुद्दा भारत पाकिस्तान का द्विपक्षीय मुद्दा है. ऐसे में भारत रूस के खिलाफ वोटिंग नहीं कर सकता था.वहीं, भारत अगर रूस के पक्ष में वोटिंग करता तो अमेरिका से उसके संबंध काफी खराब हो सकते हैं. हाल के दशकों में भारत अमेरिका के संबंधों में मजबूती आई है. अमेरिका चीन के साथ भारत के सीमा विवाद पर भी भारत के समर्थन में बोलता आया है. ऐसे में भारत अमेरिका को भी नाराज नहीं कर सकता था इसलिए उसने वोटिंग से दूर रहना ही ठीक समझा. विशेषज्ञों का भी कहना है कि मुद्दे पर भारत को निष्पक्ष बने रहना चाहिए.साल 2014 में हालांकि भारत ने ऐसे ही एक मामले में रूस का पक्ष लिया था. 2014 में यूक्रेन में रूस समर्थित सरकार के खिलाफ गृहयुद्ध छिड़ गया जिसके बाद रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया था. रूस ने यूक्रेन का हिस्सा क्रीमिया को रूस में मिला लिया. उसका तर्क था कि क्रीमिया में अधिकतर रूसी भाषी लोग हैं और उनकी सुरक्षा करना रूस का कर्तव्य है. क्रीमिया को रूस में मिलाए जाने के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए. भारत की मनमोहन सिंह सरकार ने रूस पर लगे उन प्रतिबंधों का विरोध किया था. वहीं, साल 2020 में भी भारत रूस के खिलाफ यूक्रेन के एक प्रस्ताव के विरोध में चला गया था. यूक्रेन क्रीमिया में कथित मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर संयुक्त राष्ट्र में एक प्रस्ताव लेकर आया था जहां भारत ने प्रस्ताव के खिलाफ अपना वोट किया था. चीन रूस का दोस्त, अमेरिका का विरोधी, फिर क्यों नहीं किया वोट?चीन और रूस के बीच की दोस्ती पिछले कुछ समय में काफी बढ़ी है. वहीं, अमेरिका से चीन के रिश्ते निम्नतम स्तर तक पहुंच गए हैं. फिर भी चीन का रूस के समर्थन में वोटिंग न करना और वोटिंग से दूर रहना- ये अमेरिका की छोटी जीत के रूप में देखा जा रहा है. चीन ने हालांकि कुछ समय पहले यूक्रेन पर रूस के हमले को हमला मानने से ही इनकार कर दिया था.चीन वोटिंग से अपने हितों को देखते हुए दूर रहा. विश्लेषकों का मानना है कि चीन अपनी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था पर ब्रेक नहीं लगाना चाहता. अगर वो रूस का समर्थन करता तो पश्चिम के बाजारों में उस पर भी प्रतिबंध लगाए जा सकते थे. ऐसे समय में जब रूस पर अमेरिका और पश्चिमी देश कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा रहे हैं और उसके बैंकिंग सिस्टम पर वार कर रहे हैं, चीन का रूस के पक्ष में वोट करना उसकी अर्थव्यवस्था को गंभीर चोट पहुंचा सकता था.साल 2014 में जब क्रीमिया को रूस में मिलाए जाने के खिलाफ पश्चिमी देश संयुक्त राष्ट्र में एक प्रस्ताव लेकर आए थे तब भी चीन ने वोटिंग से खुद को अलग रखा था.यूएई ने भी नहीं किया अमेरिका के पक्ष में वोट, रहा अनुपस्थितअमेरिका और यूएई के संबंध काफी मजबूत रहे हैं. खाड़ी क्षेत्र में यमन के हूती विद्रोहियों के हमले के खिलाफ यूएई और सऊदी अरब आदि देशों का एक संगठन भी है जिसे अमेरिका का समर्थन हासिल है. इधर, रूस के साथ भी यूएई के संबंध काफी मजबूत हैं.रूस दुनिया का शीर्ष तेल उत्पादक देश है और यूएई भी तेल का बड़ा उत्पादनकर्ता है. दोनों देश आर्थिक रूप से एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं. यूक्रेन के मुद्दे पर यूएई ने बिना रूस की आलोचना किए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कहा था कि मुद्दे को कूटनीतिक तरीके से सुलझाया जाना चाहिए.यूक्रेन पर तनाव के बीच बुधवार को रूसी विदेश मंत्री ने यूएई के विदेश मंत्री से फोन पर बातचीत कर अपने द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करने पर बल दिया था. शुक्रवार को जब यूक्रेन युद्ध को रोकने के प्रस्ताव पर वोटिंग हुई तो यूएई ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया.

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