मैं घनश्याम लाल शर्मा 27/11/2016 को दैनिक हिंदुस्तान, हिंदी संस्करण, गाजिय़ाबाद का (अख़बार) पढ़ रहा था तो मेरी नजर प्रथम पेज की एक खबर पर टिकी कि माननीय रेल मंत्री सुरेश प्रभु जी किसी कार्यक्रम के लिए दादरी आये थे और वापसी स्पेशल ट्रेन से दिल्ली जा रहे थे कि अचानक गाजिय़ाबाद से पहले ट्रेन के पहिये से धुंआ निकला और ट्रेन एक्सीडेंट होने से बची, अख़बार के मुताबिक खराबी ठीक कर 20 मिनेट में ट्रेन दिल्ली को रवाना हुई।
मुझे एकदम याद आया कि वर्ष 1978 में मैं और मेरे मित्र देवेंद्र जी कानपुर से बांदा शहर ट्रेन से एक बड़े पुलिस अफसर का फ्रिज ठीक करने के लिए जा रहे थे, बांदा शहर से पहले कबरई स्टेशन से ट्रेन चली और अचानक रुक गई। हम दोनों आपस में बात कर रहे थे कि पता नहीं क्या हो गया, इसी सोच विचार करने में जब लगभग 1 घण्टे बाद नीचे उतर कर देखा तो सभी यात्री इंजन कि तरफ जा रहे थे। हम दोनों भी इंजन के पास गए और वहां देखा कि इंजन के पास अगले पहियों और रेल पटरी के बीच ढेर सारी पत्थर की गिट्टियां इकठ्ठी हैं और भाप के इंजन के पहियों को जोडऩे वाली ‘कनेक्टिंग रॉड’ का एक हिस्सा टूटा पड़ा है और दूसरा हिस्सा अगले पहिये की हाउसिंग में फंसा है।
हमने ट्रेन चालकों से पूछा कि ट्रेन कब तक चलेगी तो उन्होंने कहा कि इंजन की पहियों को जोडऩे वाली रॉड टूट गई है और इसको ठीक करने के बाद ही ट्रेन चलेगी, और इसके साथ उन्होंने कहा कि हमने बांदा स्टेशन ट्रंकाल कर दिया है दूसरा इंजन भी बांदा स्टेशन से मंगाया है। इतनी देर से सब लोग भूखे थे और यात्री भी कुछ खाने की तलाश में थे। लेकिन जंगल में कुछ नहीं था। पास के गांव के लोग बाल्टी में पानी पिला रहे थे और झाडिय़ों से बेर तोड़ कर यात्री खा रहे थे। थोड़ी देर में उसी पटरी पर एक इंजन बांदा की तरफ से आ गया और उसको भी जोड़ दिया गया तथा ट्रेन चलाने की भरपूर कोशिश की लेकिन ट्रेन टस से मस नहीं हुई। तब मैंने उन ड्राइवर लोगों से कहा कि यह टूटी रॉड का दूसरा हिस्सा अगले पहिये की हाउसिंग में ‘फसा पिस्टन’ और ‘कम्प्रेस्ड हवा ब्लॉक’ खोलना पड़ेगा, पिस्टन और टूटी रॉड अलग करनी पड़ेगी तब इंजन का पहिया फ्री होगा तभी ट्रेन चलेगी। उन सभी चालकों ने कहा कि न तो हमारे पास इसको निकालने का तजुर्बा है और न ही हमारे पास औजार है, तब हम लोगों ने उनसे कहा कि हमारे पास टूल किट है और अगर तुम लोग कहो तो हम इसे निकालने की कोशिश करे तो उन चालको ने हां भर ली।
इस विकट परिस्थिति को देखते हुए हम दोनों ट्रेन के सबसे पिछले डिब्बे में जहां हम लोग बैठे थे, गए और टूल किट लेकर इंजन के पास आ गए, जैसे ही मैं उसे ठीक करने का विचार कर रहा था, एक ड्राइवर बोला बेटे इसमे गर्म तेल भी है। मैंने इसकी परवाह नहीं की और इंजन के नीचे पटरियों में लेट गया और अपने अनुभव का प्रयोग बार बार करते हुए पिस्टन की हाउसिंग का बोल्ट खोलना शुरू किया। जैसे-जैसे बोल्ट ढीला होना शुरू हुआ गर्म तेल गिरने लगा लेकिन मैंने हार नहीं मानी। एक समय यह आया कि जब आखिरी बोल्ट खोलने लगा तो ईश्वर की तरफ से एक झटका दिमाग में आया कि इस पिस्टन को हम रोकेंगे कैसे? तो पास खड़े अपने मित्र देवेंद्र जी से कहा कि ‘ट्रेन के ड्राइवर को बुलाओ’। फिर उनसे मैंने कहा कि क्या आप के पास बड़ा पेचकस है तो उन्होंने हां कहा। हमने कहा जल्दी ले आओ क्योंकि मैं गर्म तेल से भीगता जा रहा था। खैर तुरंत पेचकस दिया। मैंने चालकों तथा अपने मित्र से कहा तुम लोग इस रॉड को पकड़ कर रखना, मैंने बड़े पेचकसों को रॉड और हाउसिंग के बीच फसाया और 2 और पेचकसों की सहायता से अंदर ऑइल रिंग जो टूट कर तिरछी होकर फसी थी उसको पिस्टन के खांचे की तरफ दबाया। एक दो प्रयास के बाद पिस्टन और टूटा हुआ रॉड का हिस्सा धड़ाम से नीचे गिरा और जिन लोगों ने रॉड का हिस्सा पकड़ रखा था तुरंत भागे लेकिन मंै साहस के साथ उस गर्म तेल से भीगता हुआ बाहर निकला। वहां पर सभी लोगों से जैसे ही मैंने कहा की अब ट्रेन चल जाएगी तो लोगों को ख़ुशी हुई और यात्रीगण अपने अपने डिब्बे की ओर भागने लगे। हम दोनों ने अपने टूल किट को समेटा और ड्राइवर लोगों से अपनी भूख का इजहार किया। वह दोनों चालक मुझे इंजन में ले गए। यहां मैं आप को बताता चलूं की पहली बार इंजन के उस हिस्से में गया जहां कोयला झोंका जाता है और स्टीम से इंजन चलता है। उन ड्राइवर लोगों ने अपना खाना खाने को दिया तथा इसके बाद पानी से अपने आप को साफ किया और जो लूज़ काटन (यानी कोयला झोकने के लिए फावड़े की मोठ को पकडऩे के काम आती) लेकर पोछा। इसके बाद हम दोनों भी डिब्बे में चढ़ गए। ट्रेन लगभग 8 से 9 घंटे के बाद चली और जैसा याद आ रहा है कि लगभग 1 घंटे में ट्रेन बांदा पहुंच गई।
जैसे ही ट्रेन स्टेशन पर पहुंची तो सवारियां मेन गेट से जा रही थीं। हम दोनों भी निकलने वाले थे कि तुरंत दोनों ड्राइवर लोगों ने कहा कि चलो बेटे तुम लोगों को स्टेशन मास्टर से मिलवाता हूं। वहां मौजूद अफसरों ने पूछा तुम लोग क्या करते हो तो हम दोनों ने कहा की हम दोनों फ्रिज रिपेयर का काम करते हैं। उन्होंने पूछा इन्जन में क्या हो गया था? उनको हमने बताया कि पहिये को जोडऩे वाली कनेक्टिंग रॉड टूट गई थी। उन्होंने पूछा कैसे टूटी तो मैंने बताया कि कनेक्टिंग रोड और पिस्टन के बीच में गजन पिन की इंड-प्ले ज्यादा थी इस लिए टूटी।
यहां आगे की बात करते हुए बताया कि ‘यह गजन पिन की आवाज जब तेज होने लगे तो समझ लो कि इंड-प्ले बढ़ रही है और इसको समय रहते ठीक नहीं किया तो रॉड टूटेगी या फिर पिस्टन की रिंग’!
इस तरह बात करते हुए वह मौजूद अफसरों ने शाबाशी दी। इसके बाद हम दोनों मेन गेट से बाहर निकले तो वहां पर बहुत सारे पुलिस के सिपाही देख हम दोनों बच कर निकलने लगे तो सिपाहियों ने आवाज लगाई ‘ऐ बैग वाले इधर आयो’। हम दोनों ने पलट कर देखा तो पुलिस वालों ने हम दोनों से कहा कि ‘चलो जीप में बैठो’। हम दोनों ने पुलिस से पूछा कि ‘सर हमें जीप में क्यों बैठना है?’, तो उन्होंने बताया कि ‘तुम कानपुर से हमारे बड़े साहब का फ्रिज ठीक करने आये हो’, तब समझ में आया और हम दोनों जीप में बैठ गए।
पुलिस की जीप और उसके साथ और भी पुलिस की गाडिय़ां तेजी से हॉर्न बजाती हुई, भीड़-भाड़ इलाके से ऊंची नीची सड़कों को पार करती हुई पुलिस के बड़े अफसर के घर पहुंच गई। हम लोग अपना टूल किट लेकर जीप से उतर गए। एक अफसर अपनी टोपी सम्भालते हुए हम दोनों को बड़े अफसर के सामने ले गए। बड़ी 2 मूंछों वाले अफसर को देख कर थोड़ा घबराया, फिर अफसर ने फ्रिज की तरफ इशारा करते हुए कुछ कहा। फिर हम टूल किट खोल कर जैसे ही फ्रिज को खिसकाकर कंडेनसर वाली साइड को लाइट में कर रहे थे, इतने में लाइट चली गई।
हमने अपना टूल किट समेट लिया और हम दोनों ने खाना खाया और सोने के लिए प्रयास करने लगे लेकिन मच्छरों के काटने की वजह से नींद नहीं आ रही थी, इस तरह धीरे-2 हम दोनों बातचीत कर रहे थे। उधर बिजली के कर्मचारी बड़ी-2 केबलें डाल कर किसी दूसरे इलाके से बिजली लाने में लगे थे। लगभग रात के ढाई बजे बिजली आई, फिर फ्रिज के कम्प्रेसर को चेक किया। कई तरह से फ्रिज के फाल्ट को दोबारा चेक करने के बाद पाया की कंप्रेसर स्टक हो गया है और टूल किट को बंद कर सोने से पहले दोनों ने विचार किया कि सवेरे अफसर को बताने से कहीं वह नाराज तो नहीं होगा, ऐसी उधेड़ बुन में नींद ली! और सवेरे वहां पर हमने कानपुर जाने की बात कही तो वहां मौजूद पुलिस वाले बड़े अफसर के पास ले गए। उन्होंने पूछा क्या हुआ तो हमने बताया की इसका कम्प्रेसर स्टक हो गया और इसे कानपुर ले जाना पड़ेगा तो अफसर ने कड़क पूछा यहां ठीक करो फिर हम लोगों ने बताया कि यह कम्प्रेसर काट कर एक सप्ताह में ठीक कर दुबारा लगाकर गैस भरने पर चलेगा, तब उन्होंने ले जाने को कहा और बातचीत में अफसर ने कहा मेरा बेटा एटा जिले का बड़ा पुलिस अफसर है, यह बात हमें समझ में नही आई और हम चल पड़े। मैं अपने ट्रेन के रॉड के टूटने तथा उसको निकालने वाली बात पर आता हूं और मेरा रेलवे के कर्मचारियों तथा अधिकारियों तथा सभी लोगो से आग्रह है कि हम सब अपना काम चाहे सरकारी हो या प्राइवेट उसको ईमानदारी और लगन पूर्वक करें।
इंजन की कनेक्टिंग रॉड और ‘गजन पिन’ की खराबी को चालक, परिचालक एवम ट्रेन को चलाने से पहले इंजन सुपरवाइजर लोगों ने अपनी ड्यूटी का पालन करते हुए दुरुस्त कर लिया होता तो शायद यात्रियों को इतनी बड़ी परेशानी उठानी नहीं पड़ती।
ये तो गनीमत रही कि ट्रेन की स्पीड कम थी, ट्रेन ने कबरई स्टेशन का आउटर सिग्नल पार किया था। यदि ट्रेन स्पीड में होती तो बहुत धन जन की हानि होती।
घनश्याम लाल शर्मा