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जब हर एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति को जीवन रक्षक दवाएं मिलेंगी तभी एड्स उन्मूलन सम्भव है

जब हर एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति को जीवन रक्षक दवाएं मिलेंगी तभी एड्स उन्मूलन सम्भव है

शोभा शुक्ला –

हर एचआईवी पॉजिटिव इंसान को सही जांच से यह पता होना चाहिए कि वह एचआईवी पॉजिटिव है, सबको जीवन रक्षक एंटीरेट्रोवायरल दवाएं मिलें, और सभी का वायरल लोड नगण्य रहे, तब ही एड्स उन्मूलन सम्भव है। न सिर्फ़ सभी एचआईवी के साथ जीवित लोग पूर्ण ज़िंदगी जी सकेंगे बल्कि एचआईवी के फैलाव पर भी रोकथाम लगेगा। एक ओर जहां नए एचआईवी सम्बंधित शोध को तेज करने की ज़रूरत है जिससे कि अधिक प्रभावकारी जांच, इलाज और बचाव साधन हम सब को मिलें, वहीं यह भी सच है कि हर एक को जाँच, एंटीरेट्रोवायरल दवा और वायरल लोड नियंत्रित करने की सेवा देना आज मुमकिन है – जिससे कि एड्स उन्मूलन की दिशा में तेजी से कदम बढ़ें।

यह कहना है डॉ ईश्वर गिलाडा का जो एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के १३ वें राष्ट्रीय अधिवेशन के अध्यक्ष हैं, और इंटर्नैशनल एड्स सोसाइटी के अध्यक्षीय मंडल के निर्वाचित सदस्य भी हैं।

एड्स सोसाइटी ओफ़ इंडिया का 13वाँ राष्ट्रीय अधिवेशन (एसीकॉन) हैदराबाद में 3-5 अप्रैल 2022 के दौरान हो रहा है। इस अधिवेशन में देश भर से अनेक सरकारी और निजी एचआईवी सम्बन्धी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र से जुड़े चिकित्सकीय और जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ भाग ले रहे हैं।

चेन्नई के वॉलंटरी हेल्थ सर्विसेज के संक्रामक रोग अस्पताल के निदेशक और एसीकॉन के वैज्ञानिक सत्र के सह-अध्यक्ष डॉ एन कुमारासामी ने कहा कि एसीकॉन हर साल अनेक एचआईवी-सम्बंधित संस्थाओं की साझेदारी में एड्स सुसाइटी ओफ़ इंडिया द्वारा आयोजित किया जाता रहा है, जिनमें प्रमुख हैं, भारत सरकार की राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संस्था, भारत सरकार का राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम, भारतीय चिकित्सकीय अनुसंधान परिषद, राष्ट्रीय चिकित्सकीय आयोग, विश्व स्वास्थ्य संगठन, संयुक्त राष्ट्र का एड्स नियंत्रण संयुक्त कार्यक्रम, आदि।
डॉ ईश्वर गिलाडा ने कहा कि वर्तमान में भारत में 23 लाख लोग एचआईवी के साथ जीवित हैं जिनमें से 76% को परीक्षण से यह मालूम है कि वह एचआईवी संक्रमित हैं, इनमें से 84% लोगों को जीवनरक्षक एंटी-रेट्रो-वायरल दवाएँ मिल रही हैं, और जिन लोगों को वायरल-लोड जाँच नसीब हुई उनमें से 84% में वायरल-लोड नगण्य है। दुनिया में पिछले दशक 2010-2019 के दौरान एचआईवी संक्रमण में सालाना गिरावट 23% की आयी पर भारत में यह 37% गिरावट आयी है। पिछले दशक में एड्स सम्बंधित मृत्यु दर में भी भारत में 66% गिरावट आयी है जबकि इसी समय अवधि में दुनिया में 39% गिरावट आयी है। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल प्रदेशों में एचआईवी-सम्बंधित मृत्यु दर में और अधिक गिरावट आयी है, ख़ासकर कि बच्चों और महिलाओं में (73.7% और 65.3%)।

अनेक सफलताओं के बावजूद यदि २०३० तक एड्स उन्मूलन के सपने को साकार करना है तो यह ज़रूरी है कि विकराल चुनौतियों को भी हम चिन्हित करें और सुनियोजित ढंग से वैज्ञानिक प्रमाण के आधार पर प्रभावकारी तरीक़े से एचआईवी कार्यक्रम की कार्यकुशलता बढ़ाएँ।

तीन प्रदेशों में २०१९ के आँकड़ों के मुताबिक़, आबादी में १% से अधिक एचआईवी संक्रमण है (मिज़ोरम 2.32%, नागालैंड 1.45%, मणिपुर 1.18%)। जो लोग नशीली दवाओं का सेवन करते हैं उनमें एचआईवी संक्रमण दर लगभग 28 गुना अधिक है। हिजरा, समलैंगिक समुदाय और महिला यौन-कर्मियों में भी एचआईवी दर 6 से 13 गुना अधिक है। केंद्रीय कारागार में भी एचआईवी संक्रमण दर लगभग 9 गुना अधिक है।

2019 में भारत में 69,000 नए लोग एचआईवी से संक्रमित हुए। गौरतलब है कि २०२० तक भारत समेत सभी देशों को एचआईवी से संक्रमित हो रहे नए लोगों के दर में 75% गिरावट लानी थी पर २०१९ में नए संक्रमित हुए लोग (69,000) इस हिसाब से दुगने से अधिक रहे।

कोविड के कारणवश एचआईवी और टीबी कार्यक्रम पर भी कुप्रभाव पड़ा। जब २०२० में सरकार ने देशव्यापी तालाबंदी की, तो एड्स सोसाइटी ओफ़ इंडिया ने सरकार के साथ समन्वय में पूरा प्रयास किया कि एचआईवी के साथ जीवित लोग, बिना नागे के जीवनरक्षक दवाएँ नियमानुसार लेते रहें और स्वस्थ रहें। सरकारी और निजी वर्ग में एचआईवी सम्बंधित स्वास्थ्य सेवाओं में समन्वयन ज़रूरी रहा है।

टीबी उन्मूलन के वादे को पूरा करने के लिए सिर्फ़ ४५ माह रह गए हैं, और एड्स उन्मूलन के वादे को पूरा करने के लिए १०५ माह रह गए हैं। एसीकॉन अधिवेशन में शोध पत्र और अन्य सत्र के ज़रिए न सिर्फ़ यह स्पष्ट होगा कि २०२५ तक टीबी उन्मूलन और २०३० तक एड्स उन्मूलन की दिशा में हम वर्तमान में कहाँ पर हैं, बल्कि यह अवसर भी रहेगा कि एचआईवी और टीबी कार्यक्रमों को कैसे अधिक कार्यकुशलता के साथ क्रियान्वित करें कि हम इन लक्ष्यों पर खरे उतरें।

एसीकॉन अधिवेशन में अमेरिका, इंग्लैंड, इटली, आदि जैसे अनेक देशों के एचआईवी वैज्ञानिक और चिकित्सकीय विशेषज्ञ सक्रिय भाग ले रहे हैं। एसीकॉन अधिवेशन में एचआईवी संबंधित अनेक मुद्दों पर विशेष ज्ञानवर्धक सत्र हैं जैसे कि, एचआईवी-टीबी सह-संक्रमण, एचआईवी और हेपटाइटिस सह-संक्रमण, एचआईवी और यौन रोग, एचआईवी वैक्सीन शोध, एचआईवी और कोविड, एचआईवी संक्रमण से बचने के लिए नए विकल्प जैसे कि प्री-एक्स्पोज़र प्रॉफ्लेक्स (प्रेप), पोस्ट-एक्स्पोज़र प्रॉफ्लेक्स, और एचआईवी के साथ जीवित लोगों के लिए जीवन रक्षक दवाएं जिन्हें एंटी-रेट्रो-वायरल दवाएँ कहते हैं उनसे सम्बंधित नवीनतम शोध, एचआईवी और बच्चे एवं महिलाएं, आदि।

एसीकॉन अधिवेशन में २०२० तक एचआईवी संबंधित वादे जैसे कि ९०:९०:९० पर हम कितने खरे उतरे, २०२५ वाले लक्ष्य और २०३० तक एड्स उन्मूलन के वादे पर प्रगति एवं उसके मूल्यांकन पर भी विचार-विमर्श हुआ।

शोभा शुक्ला

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