आजकल राष्ट्र में थोड़े-थोड़े अन्तराल के बाद ऐसे-ऐसे घोटाले, धोखाधड़ी के काण्ड या ठगी-भ्रष्टाचार के किस्से उद्घाटित हो रहे हैं कि अन्य सारे समाचार दूसरे नम्बर पर आ जाते हैं। पुरानी कहावत तो यह है कि ‘सच जब तक जूतियां पहनता है, झूठ पूरे नगर का चक्कर लगा आता है।’ इसलिए शीघ्र चर्चित प्रसंगों को कई बार इस आधार पर गलत होने का अनुमान लगा लिया जाता है। पर यहां तो सभी कुछ सच है। घोटाले-धोखाधड़ी झूठे नहीं होते। हां, दोषी कौन है और उसका आकार-प्रकार कितना है, यह शीघ्र मालूम नहीं होता। तो फिर यह प्रकरण इतना जल्दी क्यों चर्चित हुआ? सच जब अच्छे काम के साथ बाहर आता है तब गूंंगा होता है और बुरे काम के साथ बाहर आता है तब वह चीखता है। सोशल ट्रेड के नाम पर देशभर के लोगों से मोटा पैसा लेने और फिर चेन सिस्टम के माध्यम से इसे फैलाकर अरबों रुपए वसूलने वाली नोएडा की एक सोशल ट्रेड कम्पनी के गोरखधंधे का भण्डाफोड़ होने के बाद लोग हैरान भी हैं और परेशान भी। अब्लेज इन्फो सॉल्यूशन्स प्राइवट लिमिटेड, नाम की इस कम्पनी ने करीब 7 लाख लोगों से एक पोंजी स्कीम के तहत 3700 करोड़ से ज्यादा का इन्वेस्टमेंट करा लिया। एसटीएफ ने कम्पनी के संचालक अनुभव मित्तल समेत 3 लोगों को गिरफ्तार कर कम्पनी के खाते सील कर दिए हैं। पहले भी आर्थिक घोटालों व राजनैतिक नेताओं के भ्रष्टाचार में लिप्त होने की कई घटनाएं हुईं लेकिन इस घटना ने ऑनलाइन गतिविधियों एवं उसके प्रचलन को दागदार बनाकर डिजिटल दुनिया पर घातक हमला किया है।
इन दिनों बन रही ऑनलाइन दुनिया की विश्वसनीयता को भेदते हुए कम्पनी ने ऐसा जाल बुना कि पढ़े-लिखे लोग भी इस जाल में फंसते चले गए। कम्पनी ग्राहकों को एक साल में उनकी राशि दोगुनी करने का प्रलोभन देकर ग्राहकों को जोड़ रही थी। साथ ही सोशल मीडिया पर एक लाइक के 5 रुपए दे रही थी। करीब दो-तीन साल में इस कम्पनी ने 10 लाख लोग जोड़ लिए थे। हालांकि कम्पनी कुछ समय वादे के मुताबिक लोगों को पैसे भी लौटा रही थी जिससे लोगों ने मोटी कमाई भी की थी, उस कमाई को दिखाकर वे अपने दोस्तों, रिश्तेदारों को भी जोड़ते रहे। देखते ही देखते लाखों लोग जुड़ते गए और उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, पंजाब, बिहार आदि राज्यों में यह धंधा तेजी से फैला। लेकिन कुछ दिनों से कम्पनी ग्राहकों को न पैसा दे रही थी और न ही लाइक के पैसे बैंक खातों में आ रहे थे। इस तरह घर बैठे लोग ठगी के शिकार हो गये, मेहनत से जुटाया पैसा बर्बाद हो गया, इन स्थितियों में ग्राहकों ने कम्पनी के खिलाफ मामले दर्ज कराने शुरु किए तो एसटीएफ ने उक्त कार्रवाई की, जिससे यह ऑनलाइन ठगी एवं धोखाधड़ी का मामला सामने आया। यह देश की ऑनलाइन प्रणाली के लिए एक गंभीर खतरा है। ऑनलाइन ठगी का यह मामला मात्र धोखाधड़ी-ठगी ही नहीं, यह तथकथित बाजारवाद की पूरी प्रक्रिया का अपराधीकरण है। इससे हमारी साख तो गिरी ही है, नैतिकता भी आहत हुई है। देश की समृद्धि से भी ज्यादा देश की साख जरूरी है।
तकनीक के इस दौर में एक तरफ सोशल नेटवर्किंग साइटें जनजागरूकता का सबसे बड़ा माध्यम बनकर उभरी हैं वहीं दूसरी तरफ यह लोगों को लूटने का जरिया बन चुकी हैं। ठगी और फर्जीवाड़े के अनेक घोटाले समाचार पत्रों की सुर्खियां बनते हैं, कुछ समय के शोर-शराबे के बाद फिर एक नया दौर शुरु हो जाता है ठगी एवं फर्जीवाड़े का। ऐसी कई साइटें आपको दिखा देंगी जो बार-बार आपको दिखाती हैं कि ‘घर बैठे पैसा कमाएं, किसी ऑफिस की जरूरत नहीं, आज पार्ट टाइम काम करके भी पैसा बना सकते हैं।’ फिर आपको परोसे जाएंगे ढेर सारे प्लान। लोग प्लान देखते हैं, पैसा कमाने की अंधी दौड़ तो आजकल लगी हुई है, इसलिए लोग अपनी हैसियत के मुताबिक कम्पनी में निवेश कर देते हैं। आज जब हर आर्थिक गतिविधि को ऑनलाइन करने पर जोर दिया जा रहा है, हर तरह की खरीददारी ऑनलाइन होने लगी है, हर तरह का व्यापार ऑनलाइन होने लगा है, ई-बुक, ई-न्यूजपेपर, ऑनलाइन एजुकेशन, ऑनलाइन डोनेशन, ऑनलाइन रिश्ते, ऑनलाइन-बुकिंग, ऑनलाइन प्रवचन, एक तरह से ऑनलाइन जीवनशैली का प्रचलन है, इस चीज का फायदा उठाते हुए अनुभव मित्तल और उनके साथी ने रच डाला ऑनलाइन ठगी-धोखाधड़ी का काला इतिहास। विडम्बना तो यह है कि ऑनलाइन बहुत से काम अच्छे हैं वे भी इस घटना से अविश्वनीयता के शिकार होंगे।
अर्थ हमारी आजीविका का साधन था पर हमने उसे जीवन का उद्देश्य बना लिया, क्योंकि झूठी शानशौकत, प्रतिष्ठा, प्रसिद्धि, सुख-सुविधा और सत्ता आदि के सारे रास्ते वहीं से शुरू होते हैं। हमने शुद्ध-साधन तक पहुंचने का सिद्धान्त भुला दिया। इसलिये आदर्श बौने पड़ गए, उपलब्धियां अर्थशून्य! सोशल मीडिया आधुनिक जीवन का एक सशक्त माध्यम है, तकनीक है, व्याापार का जरिया है, संवाद का मंच है, इसेे सोशल ही रहने दें, फर्जी व्यापार का अड्डा नहीं बनने दे। इसके विरुद्ध कहीं भी कुछ भी होता है, तो हमें यह सोचकर निरपेक्ष नहीं रहना चाहिए कि हमें क्या? गलत देखकर चुप रह जाना भी अपराध है। इसलिये ऐसी ठगी-धोखाधड़ी से पलायन नहीं, उनको मुंह तोड़ जवाब दिया जाना चाहिए। ऑनलाइन व्यापार और सोशल ट्रेडिंग से जुड़े अपराधों के लिये ठोस कानून भी जरूरी है। अब तक इस तरह के अपराधों एवं ठगी के लिए कोई ठोस कानून न होने के कारण फ्रॉड कम्पनियों का बोलबाला बढ़ता जा रहा है।
नियंत्रण से बाहर होती हमारी आर्थिक व्यवस्था हमारे लोक जीवन को अस्त-व्यस्त कर रही है। प्रमुख रूप से गलती राजनेताओं और सरकार की है। कहीं, क्या कोई अनुशासन या नियंत्रण है? निरंतर करोड़ों-अरबों के धोखाधड़ी-घोटाले हो रहे हैं। कोई जिम्मेदारी नहीं लेता- कोई दंड नहीं पाता। भारत में मुर्गी चुराने की सजा छह महीने की है। पर करोड़ों के घोटालों के लिए कोई दोषी नहीं, कोई सजा नहीं।
अपराधी केवल वे ही नहीं जिन्होंने ऑनलाइन ठगी की है। वे भी हैं जो लोकतंत्र को तोड़ रहे हैं या जिनके दिमागों में अपराध भावना है। अपराधी नियंत्रण से बाहर हो गये हैं। अगर हम राष्ट्रीय दृष्टिकोण से विचारें तो हमें स्वीकारना होगा कि बहुत-सी बातें हमारे नियंत्रण से बाहर होती जा रही हैं।
हर राष्ट्र की तरह हमारी उम्मीदें भी ‘युवापीढ़ी’ थी और हैं। पर अब तक तो उसने भी अपने आचरण से राष्ट्र को आशा और भरोसा नहीं बंधाया। वह भी अपसंस्कृति और आर्थिक अपराधीकरण की तरफ मुड़ गई। वे कुछ प्राप्त करने के लिए सब कुछ करने को तैयार रहते हैं। संस्कृति और चरित्र के मूल्यों को उन्होंने समझा ही नहीं, न ही उन्हें समझाया गया। तब अनभिज्ञ यह युवा वर्ग उनकी स्थापना के लिए कैसे संकल्पबद्ध हो सकता है।
राष्ट्रीय जीवन की कुछ सम्पदाएं ऐसी हैं कि अगर उन्हें रोज नहीं संभाला जाए या रोज नया नहीं किया जाए तो वे खो जाती हैं। कुछ सम्पदाएं ऐसी हैं जो अगर पुरानी हो जाएं तो सड़ जाती हैं। कुछ सम्पदाएं ऐसी हैं कि अगर आप आश्वस्त हो जाएं कि वे आपके हाथ में हैं तो आपके हाथ रिक्त हो जाते हैं। इन्हें स्वयं जीकर ही जीवित रखा जाता है। कौन देगा राष्ट्रीय चरित्र को जीवित रखने का भरोसा? लगभग डेढ़ अरब की यह निराशा कितनी घातक हो सकती है।
समानान्तर काली अर्थव्यवस्था इतनी प्रभावी है कि वह कुछ भी बदल सकती है, कुछ भी बना और मिटा सकती है। आज सत्ता मतों से प्राप्त होती है और मत काले धन से। और काला धन हथेली पर रखना होता है। बस यही ठगी, धोखाधड़ी, घोटालों और भ्रष्टाचार की जड़ है। प्रजातंत्र एक पवित्र प्रणाली है। पवित्रता ही इसकी ताकत है। इसे पवित्रता से चलाना पड़ता है। अपवित्रता से यह कमजोर हो जाती है। ठीक इसी प्रकार अपराध के पैर कमजोर होते हैं। पर अच्छे आदमी की चुप्पी उसके पैर बन जाती है। अपराध, भ्रष्टाचार अंधेरे में दौड़ते हैं। रोशनी में लडख़ड़ाकर गिर जाते हैं। हमें ऑनलाइन जगत की रोशनी बनना होगा, उसे काला करने वालों से लडऩा होगा।
ललित गर्ग