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मोदी सरकार में भ्रष्ट बाबुओं की खैर नहीं

मोदी सरकार में भ्रष्ट बाबुओं की खैर नहीं – आर.के. सिन्हा

 किसी भी सरकार का जनमानस में सम्मान तब ही होता हैजब उसके कर्मचारी पूरी निष्ठामेहनत और ईमानदारी से अपने दायित्वों का निर्वाह करते हैं। देखिए सरकार को चलाने वाले नेता तो एक विजेन के साथ सत्ता पर काबिज होते हैं। फिर उनके विजेन को सरकारी बाबू अमली जमा पहनाकर जमीन पर उतारते हैं। मतलब वे ही वस्तुतः समस्त सरकारी योजनाओं- परियोजनाओं को जमीं पर लागू करते हैं। लेकिन, अगर वे ही काहिली और करप्शन के जाल में फंस जाएं तो फिर सरकार और देश का क्या होगायह भली भांति सोचा जा सकता है।

दुर्भाग्यवश हमारे यहां अब भी बड़ी तादाद में सरकारी बाबू कायदे से मन लगाकर काम करने के लिए तैयार नहीं हैं। यही नहींवे तो करप्शन करने से तनिक भी बाज नहीं आ रहे। वे चंद सिक्कों में अपना जमीर और देश को बेचने से भी पीछे नहीं हटते।

अब कुछ ताजा मामलों को ही देख लीजिए। केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने हाल ही में अपने चार अफसरों को डिसमिस करने के बाद गिरफ्तार कर लिया। इन पर चंडीगढ़ के एक बिजनेसमैन से एक करोड़ रुपए की उगाही करने के आरोप सिद्ध होने के बाद इन पर यह एक्शन लिया गया। सरकार की जीरो टोलरेंस पॉलिसी के  तहत यह एक्शन हुआ है। अब जरा सोचिए कि सीबीआई का काम बड़े घोटाले और दूसरे आपराधिक मामलों की जांच करने का है। इससे जुड़े मुलाजिमों से यह उम्मीद की जाती है कि वे अपने काम को सही से अंजाम देंगे। लेकिन, यहां पर सही की बात बहुत दूर हैइनके कुछ कर्मी भी करप्शन में बुरी तरह ही लिप्त हैं। वे खुलेआम घूस ले रहे हैं।

बहरहाल, ये मानना होगा कि सीबीआई ने अपने इन शातिर अफसरों को डिसमिस करके सबको एक कड़ा संदेश तो दे ही दिया। सरकार का अब कोई भी महकमा पहले की तरह से भ्रष्टाचार का अड्डा बनकर नहीं चल सकता। पहले तो सरकारी बाबू अपने को सरकार का दामाद समझ कर ही दफ्तर आते थे और अपना रुआब झाड़कर वापस घर चले जाते थे। कुछ सरकारी बाबुओं ने तो अपने को वक्त के साथ बदल लिया। वे अब सही से काम भी करते हैं। लेकिन, कई अब भी बाज नहीं आ रहे। वे करप्शन के किसी भी मौके भी नहीं छोड़ते। उन पर तो चाबुक चलाने की सख्त जरूरत है। सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के लागू होने के बाद सरकारी कर्मियों की सैलरी में भी तगड़ा उछाल आया है। अब छोटे से छोटे पदों पर काम करने वाले सरकरी बाबू भी ठीक-ठाक ही पगार उठाते हैं। लेकिन, लालच का कोई इलाज नहीं है। महात्मा गांधी बहुत पहले ही कह गए हैं कि मनुष्य की आवश्यकताओं को तो भरसक पूरा किया जा सकता हैलेकिन लालच को नहीं। रोटीकपड़ा और मकान आदमी की तो बुनियादी जरूरतें हैं I फिर भी देख लीजिए, जीवनशैली कैसी होती जा रही है। पृथ्वी से हमें जो कुछ मिलता हैवह हमारी आवश्यकता को पूरा करने के लिए पर्याप्त है। लेकिनउससे लालच को पूरा नहीं किया जा सकता है। हमलोग पर्यावरण के साथ अन्याय कर रहे हैं। दिन-प्रतिदिन नई-नई टेक्नोलॉजी हमें घेर रही है। लेकिनइसके प्रतिकूल प्रभावों पर कोई चर्चा तक नहीं होती। आज घरों से गोरैया लुप्त हो गई है। पर्यावरण से छेड़छाड़ के कारण गंगा की अविरलता बाधित हो रही है। यही हाल रहा तो पृथ्वी को बचाना मुश्किल हो जाएगा।

  अब वक्त आ गया है कि करप्सन में लिप्त सरकारी बाबुओं को किसी भी सूरत में न छोड़ा जाए। जब सीबीआई के कर्मियों पर एक्शन हुआलगभग तब ही झारखंड सरकार की खनन सचिव  व आईएएस अफसर पूजा सिंघल  को मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में निलंबित कर दिया है। करीब 20 करोड़ रुपए से अधिक का कैश पूजा सिंघल के करीबियों के ठिकानों से जब्‍त किया गया है। पूजा सिंघल को खूंटी में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना निधि के गबन और अन्य संदिग्ध वित्तीय लेन देन के मामले में गिरफ्तार किया था। इसके बाद पूजा सिंघल को कोर्ट के समक्ष पेश किया था। अब जरा सोचिए कि मेरठ के सोफिया स्कूल की छात्रा रही पूजा सिंघल ने 21 साल की उम्र में आईएस की परीक्षा को क्रेक कर लिया था। यानी वह मेधावी तो थी ही । लेकिन वह रास्ते से भटक गई और उसने अपनी खुद ही इज्जत तार-तार कर ली। मोदी सरकार अब निकम्मों और भ्रष्ट अफसरों के पीछे पड़ गई है। अब तो वही सरकारी नौकरी में रहेगा जो काम करेगा। बेकार-कामचोर बाबुओं के लिए अब कोई जगह नहीं बची है।

 इस बीचरेलवे ने भी हाल ही में अपने 19 आला अफसरों को एक ही दिन में जबरन रिटायर कर दिया। उन्हें स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) दी गई है। कामकाज की समीक्षा के बाद इनमें से कई अफसरों को कार्य में अक्षम पाया गया था और उन्हें बार-बार चेतावनी भी दी जा रही थी। रेलवे इससे पहले भी 75 अफसरों को वीआरएस दे चुका है। जिन्हें वीआरएस दी गई हैं उनमें इलेक्ट्रिकलपर्सनलमैकेनिकलस्टोरसिविल इंजीनियरसिग्नल इंजीनियर एवं ट्रैफिक सर्विस के वरिष्ठ अधिकारी हैं। इसमें रेलवे बोर्ड के दो सचिव स्तर के अधिकारियों सहित एक जोनल रेलवे के महाप्रबंधक भी शामिल हैं। इसके अलावा वेस्टर्न रेलवेसेंट्रल रेलवेईस्टर्न रेलवेनॉदर्न सेंट्रल रेलवेनॉदर्न रेलवे सहित रेलवे उपक्रमों रेल कोच फैक्टरी कपूरथलामॉडर्न कोच फैक्टरी रायबरेलीडीजल लोकोमोटिव वर्कस वाराणसी और आरडीएसओ-लखनऊ आदि के वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं।

 भारतीय रेलवे में अधिकारियों को वीआरएस देने का सिलसिला जुलाई2021 से शुरू हो गया था। यानी काहिल अफसरों की तो अब शामत आ गई है। इन्हें अब तबीयत से कसा जा रहा है। देखिए सख्ती होने लगी तो रेलवे के कामकाज में सुधार साफ तौर पर दिखाई दे रहा है। मैं हाल ही में आगरा गया था। इस दौरान नई दिल्ली, हज़रत निज़ामुद्दीन और आगरा कैंट रेलवे स्टेशनों को देखा। सबको देखकर दिल प्रसन्न हो गया। वहां पहले वाली अराजकता और अव्यवस्था कहीं नजर नहीं आई। इन रेलवे स्टेशनों में रेलव कर्मियों का व्यवहार भी सहयोगपूर्ण मिला। तो क्या माना जाए कि हम सख्ती के बाद ही काम करने लगते हैं? ये सख्ती सभी भ्रष्ट तथा निकम्मे सरकारी बाबुओं पर लगातार जारी रहनी चाहिए। हांसरकार को ईमानदार तथा मेहनती सरकारी अफसरों तथा कर्मियों को पुरस्कृत भी करते रहना चाहिए ताकि यह मैसेज जाता रहे कि सरकार अपने सच्चे अफसरों को हर तरह से सम्मानित और पुरस्कृत करती रहेगी।

(लेखक वरिष्ठ संपादकस्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)

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