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सूचना के अधिकार कानून से बाहर हो सेना

सूचना के अधिकार कानून से बाहर हो सेना

आर.के. सिन्हा

जरा एक बात पर गौर करें कि सूचना के अधिकार की आड़ में भारतीय सेना की तैयारियों को लेकर कुछ खास तत्वों में उत्सुकता किसलिए हो सकती है? क्या सेना के कामकाज की जानकारियां सार्वजनिक करनी चाहिए? सेना से संबंधित जानकारियां सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत सेना की विभिन्न इकाइयों, एजेंसियों तथा छावनियों से मांगने वाले कौन लोग हैं? ये तमाम सवाल इसलिए अहम हो जाते हैं क्योंकि इधर देखने में आ रहा है कि कुछ तत्व सेना की अति संवेदनशील एवं महत्वपूर्ण जानकारियों को हासिल करने में भी दिलचस्पी लेने लगे हैं। इन सब वजहों से सेना का तंत्र भी चौकन्ना हो गया। वह सारी स्थिति पर नजर रख रहा है। उसकी तरफ से हाल ही में यह भी मांग हुई है कि सेना को आरटीआई कानून से बाहर रखा जाए। ये मांग सच में बहुत ही सार्थक है तथा संकेत दे रही कि मामला कितना गंभीर है।

पिछली 28 अप्रैल को केन्द्रीय कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में हुई एक बैठक में इस बात पर गंभीर चिंता जताई गई कि आरटीआई के नाम पर सेना की अहम जानकारियां मांगी जा रही हैं। यह बैठक सेनाध्यक्ष मनोज मुकुंद नरवणे के रिटायर होने से दो दिन पहले हुई थी। सेना की तरफ से उपर्युक्त मांग को लेकर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। इस पर सरकार को देश की आतंरिक सुरक्षा तथा सेना के कामकाज को गुप्त रखने के अधिकार के आलोक में निर्णय लेना ही होगा।

निश्चिय ही देश के नागरिकों को आरटीआई कानून के तहत सूचना पाने के अधिकारों की सीमाएं हैं। सूचना अधिकार के द्वारा राष्ट्र अपने नागरिकों को, अपने कार्य को और शासन प्रणाली को सार्वजनिक करता है। लोकतंत्र में देश की जनता अपनी चुनी हुए व्यक्ति को शासन करने का अवसर प्रदान करती है और यह अपेक्षा करती है कि सरकार पूरी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के साथ अपने दायित्वों का पालन करेगी। लेकिन जनता को यह अधिकार तो कत्तई नहीं दिया जा सकता कि वह देश की सुरक्षा और शत्रु का मुकाबला के लिए की जा रही तैयारियों की ही जानकारियां मांगने लगे। जाहिर है, ये सब वे शातिर लोग करते हैं जिनके इरादे नेक नहीं होते।

ये कौन नहीं जानता कि हमारे यहां सेना की जासूसी करने वाले जयचंद और मीर जाफर भी जगह-जगह मौजूद हैं। इनमें सेना के अंदर ही छिपे कुछ गद्दारों से लेकर कुछ तथाकथित पत्रकार आदि शामिल हैं। ये आरटीआई के माध्यम से धीरे-धीरे सूचनाएं निकालने की जुगाड़ में लगे रहते हैं। इन्हें अपने आकाओं से मोटा पैसा जो मिलता है। इसलिए ये अपनी मातृभूमि का भी सौदा करने से पीछे नहीं हटते। इनका जमीर मर चुका है। इसलिए यह जायज मांग तो ये भी हो रही है कि इंटेलिजेंस ब्यूरों, रॉ, नेशनल सिक्युरिटी गार्ड्स (एनएसजी), सीमा सुरक्षा बल, केन्द्रीय सुरक्षा बल पुलिस जैसे कुछ और सरकारी विभागों को आरटीआई के दायरे से बाहर कर दिया जाए या फिर यहां से सूचनाएं प्राप्त करने की सीमा तय कर दी जायें। मतलब सिर्फ इन विभागों से जुड़े रहे मुलाजिम इनसे अपनी पेंशन और नौकरी संबंधी जानकारियां आदि ले लें।

आपको याद ही होगा कि पिछले साल चीन के लिए जासूसी करने के आरोप में राजधानी के एक कथित वरिष्ठ पत्रकार राजीव शर्मा को पकड़ लिया गया था। राजीव शर्मा के बारे में पता चला था कि वह आरटीआई से जानकारियां निकाल कर चीन को सप्लाई करता था। उसे ‘ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट’ (ओएसएस) के तहत गिरफ्तार किया गया था। उसने सेना से जुड़े कई राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से संवेदनशील सूचनाओं वाले दस्तावेज चीन को दिए थे। चीन को संवेदनशील सूचनाएं उपलब्ध कराने की एवज में उसे मोटी रकम मिलती थी।

दरअसल एक बेहद शानदार कानून का कुछ शातिर तत्व दुरुपयोग तो करने लगे हैं। इसलिए ही देश के उच्चतम न्यायालय ने दिसंबर, 2019 को कहा था कि “आरटीआई का दुरुपयोग रोकने और इसके माध्यम से ‘आपराधिक धमकी’ पर रोकथाम के लिए सूचना का अधिकार कानून के लिए दिशानिर्देश बनाने की जरूरत है।” तब प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति बी आर गवई तथा न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने कहा था, ‘‘हम आरटीआई कानून के खिलाफ नहीं हैं लेकिन हमें लगता है कि इसके नियमन के लिए किसी प्रकार के दिशानिर्देश बनाना जरूरी है।’’ पीठ ने कहा, ‘‘कुछ लोग आरटीआई दाखिल करने के विषय से किसी तरह संबंधित नहीं होते। यह कई बार आपराधिक धमकी की तरह होता है जिसे ब्लैकमेल भी कहा जा सकता है।’’

देखिए, यह सरकार को तो पता ही है कि आरटीआई के तहत आवेदकों की बाढ़ सी आ गई है। बहुत से लोग अनाप-शनाप सवाल भी पूछते रहते हैं। इसलिए यह सुनिश्चित करना होगा कि इस अधिकार का गलत इस्तेमाल न हो। मुझे केन्द्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय के एक अधिकारी बता रहे थे कि उनके विभाग से हर साल दर्जनों आरटीआई में यही पूछा जाता है कि गांधी जी को सबसे पहले महात्मा किसने बोला? संस्कृति मंत्रालय के अधीन ही काम करता है गांधी स्मृति और दर्शन समिति। यानी फिजूल की आरटीआई के तहत पूछे गए सवालों के जवाब देने में सरकारी बाबुओं का बहुत सा वक्त गुजर जाता है। लेकिन यहां पर मामला सेना और उन सरकारी विभागों से जुड़ा है जिनके ऊपर देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी है। ये देश के अति संवेदनशील तथा जरूरी विभाग हैं। भारत के अंदर तथा बाहर शत्रुओं की कोई कमी नहीं है। भारत को लगातार चीन तथा पाकिस्तान का मुकाबला करना पड़ता है। भारतीय सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे ने कहा कि भारतीय सैनिक चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा पर डटे हुए हैं। जनरल ने कहा कि सीमा विवाद को लेकर चीन की मंशा स्पष्ट नहीं है। अब उसी भारत के दुश्मन नंबर एक चीन के लिए कुछ जयचंद भी हमारे देश के अन्दर काम करते हैं। उनका भी देश को कायदे से इलाज करना होगा। इसके साथ ही सरकार को सेना से जुड़ी कोई भी जानकारी आरटीआई के माध्यम से देने से पहले सोचना होगा कि कहीं देश की सुरक्षा से संबंधित जानकारी तो किसी राष्ट्र विरोधी तत्व को नहीं दी जा रही है। इस तरह के आर.टी.आई. पूछने वालों के व्यक्तिगत चरित्र और पृष्ठभूमि की भी जाँच होना जरूरी लगता है I

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)

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