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संगीन आर्थिक अपराध के आरोपियों को गिरफ़्तार करने से क्यों बच रही है नॉएडा की पुलिस ?

संगीन आर्थिक अपराध के आरोपियों को गिरफ़्तार करने से क्यों बच रही है नॉएडा की पुलिस ?
*रजनीश कपूर
भाजपा नेता तज़िंदेर बग्गा का मामला हो या नॉएडा की एक आईएएस अधिकारी का मामला हो। यदि
किसी पर भी कोई आरोप लगता है और उसकी जाँच के लिए पुलिस उससे सहयोग की अपेक्षा करती है,
तो एक ज़िम्मेदार नागरिक होने के नाते उसका फ़र्ज़ है कि वह व्यक्ति पुलिस का सहयोग करें। पुलिस के
दृष्टिकोण से, एफ़आइआर का अर्थ उस कथित अपराध के बारे में पूरी जानकारी एकत्र करना होता है। यदि
किसी के ख़िलाफ़ कोई एफ़आइआर दर्ज हो जाती है तो पुलिस उसे पूछताछ के लिए थाने में बुलाती है और
यदि एफ़आइआर में मामला संगीन हो तो उसको गिरफ़्तार भी किया जा सकता है। अपराध की धारा पर
निर्भर करेगा कि उसे ज़मानत थाने में ही मिल जाएगी या उसे अदालत का रुख़ करना पड़ेगा।
यदि किसी को पता है कि उससे कोई जुर्म हुआ है तो उसके क़ानूनी सलाहकार उसको ज़मानत दिलाने में
जुट जाते हैं और पुलिस का सहयोग करने से मना करते हैं। आमतौर पर अगर किसी पर एक या दो
धाराओं से अधिक के तहत एफ़आइआर दर्ज हो जाती है तो पुलिस उसे तुरंत गिरफ़्तार कर लेती है।
लेकिन आज जिस मुद्दे पर हम पाठकों का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं वो धोखाधड़ी में लिप्त एक
व्यापार समूह का है। जिसके ख़िलाफ़ तमाम संगीन धाराओं में एक एफ़आइआर दर्ज होने के बावजूद
नॉएडा पुलिस द्वारा गिरफ़्तारी में देरी होना अनेक शंकाओं को जन्म दे रहा है।
मामला नॉएडा के एक व्यापारिक समूह से सम्बंधित है। आरोप है कि इस समूह ने कई निवेशकों के साथ
धोखाधड़ी कर रखी है। नॉएडा फ़ेस 1 के थाने के अंतर्गत एफ़आइआर संख्या 0047/2022 गत 23 फ़रवरी
2022 को दर्ज हुई थी। यह एफ़आइआर 13 आरोपियों के ख़िलाफ़ आईपीसी की 8 धाराओं में दर्ज कराई
गई थी। आईपीसी की धारा 406 (आपराधिक न्यासभंग के लिए दंड), 409 (लोक सेवक या व्यापारी
द्वारा आपराधिक न्यासभंग), 420 (छल), 467 (मूल्यवान प्रतिभूति, बिल इत्यादि की कूटरचना), 468
(छल के प्रयोजन से कूटरचना), 471 (कूटरचित 1 दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख का असली के रूप
में उपयोग में लाना), 477A (लेखा का मिथ्याकरण) व 120B (आपराधिक साजिश) आदि के तहत यह
मामला नॉएडा के शरद अरोड़ा और 12 अन्य व्यक्तियों के ख़िलाफ़ दर्ज हुआ है।
इस समूह के मालिक शरद अरोड़ा और राजीव अरोड़ा हैं। इसके साथ ही परिवार के अन्य सदस्यों में
अवंतिका अरोड़ा और एक वरिष्ठ नागरिक भी एफ़आईआर में आरोपी हैं। अवंतिका अरोड़ा, शरद अरोड़ा
की कम्पनी में निदेशक होने के साथ-साथ नॉएडा के एक प्रतिष्ठित स्कूल में अध्यापिका भी हैं।
एफ़आइआर को पढ़ने के बाद यह स्पष्ट होता है की आरोपी शरद अरोड़ा की कम्पनी ने करोड़ों रुपये का
ग़बन करके कई कम्पनियों को धोखा दिया है। शरद अरोड़ा की कम्पनी सोफ्टवेयर बनाने का काम करती
है और आरोप है की निवेशकों को झूठे सपने दिखा कर उनसे करोड़ों की पूँजी का निवेश करवा लिया गया
था।
साथ ही इन लोगों पर यह भी आरोप है कि इन्होंने कई फ़र्ज़ी कम्पनियाँ खोल कर निवेशकों के साथ किए
अनुबंध का भी उल्लंघन किया है। इन फ़र्ज़ी कम्पनियों में भी शरद अरोड़ा की पत्नी अवंतिका अरोड़ा और
राजीव अरोड़ा के 82 वर्षीय पिता का नाम भी शामिल है। इतना ही नहीं एफ़आइआर के अनुसार अरोड़ा
ने अपनी कम्पनी में होने वाली बोर्ड मीटिंग के दस्तावेज़ों को भी जालसाज़ी कर, फ़र्ज़ी बोर्ड मीटिंग होना
दिखाया है। इस मीटिंग में शरद अरोड़ा और राजीव अरोड़ा के अलावा दो और व्यक्तियों के नाम दर्ज किए

गये हैं जो उस मीटिंग में मौजूद ही नहीं थे। इनमें से एक निदेशक जिसे मीटिंग में मौजूद दर्ज दिखाया गया
है वो उस समय गुड़गाँव के एक नामी अस्पताल में भर्ती था। आरोप है कि ख़ानापूर्ति करने की नीयत से
इस बोर्ड मीटिंग का आयोजन कर ग़ैर क़ानूनी निर्णय लिए गए। अरोड़ा समूह पर आरोप है कि इनकी
कम्पनी ने फ़र्जीवाड़ा कर निवेशकों के करोड़ों रुपयों को ग़ैर क़ानूनी तरीक़े से कम्पनी से निकाल भी लिया
है।
जब इस मामले की और छानबीन की गई तो पता चला कि इस एफ़आइआर के ख़िलाफ़ ज़मानत लेने के
लिए इन 13 आरोपियों में से एक आरोपी ने नॉएडा कोर्ट में अर्ज़ी लगाई जिसे कोर्ट ने 25 अप्रेल 2022 को
रद्द कर दिया। कोर्ट ने अपने आदेश में इन आरोपियों को जाँच में सहयोग करने के आदेश दिए। इतना ही
नहीं अरोड़ा परिवार ने माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय में इस एफ़आइआर को रद्द करने की याचिका
भी दाखिल की। जिसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 12 अप्रेल 2022 को अपने आदेश द्वारा रद्द कर दिया।
कोर्ट के आदेश स्थानीय पुलिस को न मिले हों ऐसा हो नहीं सकता। क्योंकि जब भी कोई मामला अदालत
के समक्ष जाता है तो दोनों पक्षों को सुना जाता है।
ग़ौरतलब है कि दो-दो अदालतों के द्वारा ज़मानत व एफ़आइआर रद्द करने के आदेश के बावजूद नॉएडा के
इस परिवार और उनके सहयोगियों को पुलिस अभी तक हिरासत में नहीं ले पाई। ये लोग खुलेआम घूम
रहे हैं और क़ानून की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं। उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक व आर्थिक अपराध शाखा को
इसका तुरंत संज्ञान लेना चाहिये। अब देखना यह होगा कि इतना सब होने के बावजूद करोड़ों की
धोखाधड़ी के आरोपी अरोड़ा परिवार और उनके सहयोगियों को पुलिस अपनी गिरफ़्त में लेकर जाँच कब
शुरू करेगी?
*लेखक दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्युरो के प्रबंधकीय संपादक हैं और इस मामले से जुड़े सभी
दस्तावेज़ों की जाँच कर चुके हैं।

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