लाउडस्पीकर एक धार्मिक इस्तेमाल और अदालती आदेश
यूपी हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद कि लाउडस्पीकर पर अजान देना मौलिक अधिकार न हीं है , इस मसले पर मचा कोहराम शान्ति हो जाना चाहिए | आशा की जाती है कि आगे स
भी फैसले का पालन करते हुए विवाद को आगे नहीं ले जायेंगे लेकिन वर्तमान माहौल में लगता नहीं कि बात यहीं थम जाएगी क्यूंकि यदि प्रतिवादियों की बात थामने की ही मंशा हो
ती तो आज कानून व्यवस्था के लिए विकट खतरा नहीं पैदा हो गया होता | लाउडस्पीकर पर अजान को ले कर बुद्धिजीवियों के बीच जहाँ बहस छिड़ी है वहीँ साम्प्रदायिक अलगाव
और धारदार करने के लिए दोनों समुदायों के संगठनों ने कमर कस ली है | अभी कर्नाटक में दोनों समुदायों के बीच बढ़ती कलह के रोकथाम का कोई उपाय भी नहीं हो पाया था कि
लाउडस्पीकर से अजान का विवाद महाराष्ट्र की सीमायें पार कर सारे देश में फैलने लगा है
|
लाउडस्पीकर पर अजान को ले कर विरोध का पहला मामला पांच साल पहले आया था जब सोनू निगम ने इसे नींद में खलल डालने वाला बताया | उस दौरान निगम को भारी विरो
ध का सामना करना पड़ा | इसके बाद समय समय पर देश के कुछ अन्य लोगों ने इस पर सवाल खड़े किये | यह मामला जब इलाहाबाद हाई कोर्ट के सामने आया तो उसने अपने फै
सले में बहुत महत्वपूर्ण टिप्पणी की | न्यायालय ने कहा कि लाउडस्पीकर से अजान देना इस्लाम का धार्मिक भाग नहीं है | मस्जिदों में मोअज्जिन बिना लाउडस्पीकर अजान दे स
कते हैं | आगे अदालत ने और भी अहम बात कही कि ध्वनि प्रदूषण रहित नींद का अधिकार व्यक्ति के जीवन के मूल अधिकारों का हिस्सा है और किसी को अपने मूल अधिकारों के
लिए दूसरे के मूल अधिकारों के उल्लंघन का अधिकार नहीं है |
लाउडस्पीकर या कोई भी यंत्र बजाने की आवाज कितनी होनी चाहिए इसके लिए बनाये गये नियमों के तहत तय किया गया कि अस्पताल, कोर्ट और शैक्षणिक संस्थान आदि, साइलेंस जोन घोषित क्षेत्र के 100 मीटर के दायरे में लाउडस्पीकर या कोई भी ध्वनि विस्तारक यंत्र नहीं बजाया जा सकता | औद्योगिक क्षेत्र में ध्वनि का स्तर दिन के समय 75 डेसीबल और रात के समय 70 डेसीबल से ज्यादा नहीं होगा | कमर्शियल इलाकों में दिन में 65 डेसीबल और रात के समय 70 डेसीबल से ज्यादा नहीं होगा| इस क्षेत्र के लिए दिन में 65 डेसीबल और रात में 55
डेसीबल की लिमिट है जबकि रिहायशी इलाकों में दिन के वक्त में ध्वनि का स्तर 55 डेसीबल और रात के वक्त 45 डेसीबल तय है. वहीं, साइलेंस जोन में दिन के समय 50 डेसी
बल और..रात के वक्त 45 डेसीबल की लिमिट है | इन नियमों का उल्लंघन करने पर पांच साल की कैद और एक लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान किया गया है |
इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले से पंद्रह साल पहले ऐसे ही एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने रात दस बजे से सुबह छह बजे तक लाउडस्पीकर पर प्रतिबंध लगा दिया था |2016 में मुंबई
हाईकोर्ट ने लाउडस्पीकर बजाना किसी भी धर्म का हिस्सा नहीं माना |2019 चंडीगढ़ हाईकोर्ट ने सार्वजनिक स्थलों पर लाउडस्पीकर बैन कर दिया | अदालतों के इन फैसलों पर रा
ज्य सरकारों ने कभी कोई ध्यान नहीं दिया | इसी का परिणाम है कि आज लाउडस्पीकर पर अजान का मामला साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए देशव्यापी खतरा बनके उभरने लगा है |
यदि सरकारों ने समय रहते ध्यान दिया होता , समय रहते तुष्टीकरण की प्रवृत्ति से उभर कर समग्र समाज के हित पर विचार किया होता तो समाज के दो समुदायों के बीच खाई ग
हरी नहीं होती | दक्षिणपंथी संगठनों का आरोप है कि कोर्ट के आदेश के बाद मंदिरों से लाउस्पीकर हटा दिए गए लेकिन मस्जदों में लगे रहने दिये | दक्षिण पंथियों का आरोप खारिज
करना आसान नहीं है | यूपी में सपा शासन के दौरान डीजे आदि पर पाबंदी लगा दी गयी थी लेकिन अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्थलों के लाउडस्पीकरों को पाबंदी से बाहर रखा गया
था |
एक समुदाय को अपना वोट बैंक बनाने के जुनून में राजनीतिक दलों ने ही नहीं अपने को जनवादी बताने वाले बुद्धिजीवियों के विशेष खेमें ने भी अपने समुदायिक वोटों को साधन
के लिए सारे नियम क़ानून तहा कर धार्मिक स्थलों की मीनारों पर टांग दिया | सामाजिक संगठनों ने जब इसके खिलाफ आवाज उठायी तो धर्मनिरपेक्षता के ठेकेदारों ने साम्प्र
दायिक बता कर आवाज को दबाया | साथ ही अजान समर्थकों ने जब विरोधियों पर हमले किये तो उसको भी जायज ठहराने की होड़ लग गयी |
सामाजिक असंतुलन बढ़ता चला गया | एक की साम्प्रदायिकता के खिलाफ दूसरे की साम्प्रदायिक भावनाओं को सहलाने का काम आंदोलन की तरह चलाया जाता रहा | तकलीफदे
ह यह कि टकराव के रास्ते बंद करने के लिए नहीं बल्कि राजनीतिक दल रास्ते को और चौड़ा करने के लिए संघर्ष करते दिखाई देते हैं | यूपी में बुलडोजर को मुद्दा बना कर समा
जवादी पार्टी ने चुनाव ही लड़ डाला लेकिन जनता ने बुलडोजर की गति जारी रखने के पक्ष ने मत दिया | सपा के लिए नकारात्मक स्थिति यह कि बुलडोजर का विरोध माफियाओं ,
दंगाइयों का समर्थन माना जाने लगा अलबत्ता पार्टी सुप्रीमों इस स्थिति को झटक देना चाहते हैं जबकि अब ऐसा सम्भव नहीं रहा |
यूपी हमेशा से संवेदनशील प्रदेश रहा है | सड़क रोक कर नमाज पढ़ना या जागरण कराना और लाउडस्पीकर पर तेज आवाज में अजान देना या भजन आदि बजाना आम बात रही
है | इस बार लाउडस्पीकर विवाद फैलते ही योगी सरकार ने आदेश जारी किया कि लाउडस् पीकर की आवाज धार्मिक स्थल के बाहर नहीं आनी चाहिए | धार्मिक स्थलों से लाउडस्पी
कर भी उतरवाने के आदेश जारी कर दिए गए | इसका एक सकारात्मक पहलू भी दिखाई दिया | कई मुस्लिम धार्मिक संगठनों ने लाउडस्पीकर पर अजान को धर्म का हिस्सा नहीं
माना और यूपी सरकार का समर्थन करते हुए मस्जिदों से इन्हें हटाने की अपील की गयी |
तमाम मंदिरों और मस्जिदों ने बिना दबाब के अपने लाउडस्पीकर उतार लिए | कुछ जगह पुलिस ने भी इन्हें उतरवाया | इस दौरान हजारों लाउडस्पीकर हटाए गए लेकिन कहीं शांति
भंग नहीं हुई और कहीं भी टकराव नहीं हुआ | पहली बार यूपी में ईद की नमाज सड़क पर नहीं पढ़ी गयी | सरकार की सख्ती के कारण भी और कुछ विरोध को देखते हुए मुस्लिम
धर्मगुरुओं ने भी ईद की विशेष नमाज के लिए मस्जिदों की छतों का इस्तेमाल किया |
इसके पीछे योगी सरकार की दंगे के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति भी कही जा सकती है | ऐसी कोई नीति राजस्थान या महाराष्ट्र की सरकार नहीं बना पायीं क्यूंकि उनका जोर कथित धर्मनिरपेक्षता को बचाने पर अधिक था | उसके कारण बिगड़ने वाली क़ानून व्यवस्था को बचाने के प्रति कम |यही कारण है कि दोनों प्रदेशों में हिंसा भड़क उठी | महाराष्ट्र में तो शिव सेना के
खिलाफ हिंदूवादियों ने मोर्चा ही खोल दिया है | उनकी मांग है कि सरकार 2016 में राज्य उच्च न्यायालय द्वारा इस मुद्दे पर दिए गए आदेश का पालन करे जिसमें धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर हटाने को कहा था | अभी कुछ पहले यूपी उच्च न्यायालय ने कहा कि अजान इस्लाम का महत्वपूर्ण हिस्सा है लेकिन लाउडस्पीकर से अजान देना इस्लाम का हिस्सा नहीं | अदालत ने इसे मौलिक अधिकार भी मानने से इंकार कर दिया |
महाराष्ट्र या यूपी की ही नहीं समय समय पर कई राज्यों की उच्च अदालतें इस मुद्दे पर पंद्रह – सोलह वर्षों से यही फैसला देती आ रही हैं कि लाउडस्पीकर पर अजान से लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन होता है
इसलिए इस पर रोक लगनी चाहिए | इन फैसलों का कभी भी पालन कराने का प्रयास नहीं किया गया | यदि ऐसा किया गया होता तो वर्तमान में यह विवाद दोनों सम्प्रदायों को हिंसा की ओर नहीं धकेलता | अभी भी यदि राज्य सरकारें वोट नीति के स्थान पर समाज नीति को प्राथमिकता देते हुए बिना भेदभाव के अदालत के आदेश का पालन करें तो समाज और राज्य एक बड़ी विपत्ति से बच सकते हैं और दोनों समुदायों के बीच बढ़ती खाई को रोक सकते है |
सुशील दीक्षित विचित्र
अध्यक्ष प्रवाह साहित्यिक संस्थान
शाहजहांपुर उप्र ।