वैदिक सभ्यता को भारतीय संस्कृति का आधार स्तंभ माना जाता हैं। वैदिक काल 1500 ई.पू से 600 ई.पू तक माना जाता हैं। वैदिक काल को भी दो भागों में विभाजित किया गया है पहला 1500 ई. पू. से 1000 ई. पू. तक के काल को ऋग्वेदिक काल जाता है, इस काल में ही विश्व के सबसे प्राचीन माने जाने वाला ग्रंथ ऋग्वेद की रचना हुई थी तथा बाकी के तीन वेद यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद की रचना उत्तरवैदिक काल में हुई थी जिसका काल 1000 ई.पू. से 600 ई.पू. माना जाता हैं
ऋग्वेदिक काल( 1500 ई. पू. से 1000 ई. पू.)
इस काल की जानकारी ऋग्वेद से प्राप्त होती हैं मैक्स मूलर के अनुसार आर्यों का मूल निवास स्थान मध्य एशिया था। आर्य प्रारंभ में ईरान गए वहाँ से भारत आए।आर्यों द्वारा निर्मित सभ्यता ग्रामीण थी तथा उनकी भाषा संस्कृत थी।
इस काल की सबसे पवित्र नदी सरस्वती नदी थी जिसे नदियों की माता कहा जाता था। ऋग्वेदिक काल में प्रशासनिक इकाई पांच प्रकार की थी – ग्रह, ग्राम, विश, जन एवं राष्ट्र।
ग्रह को ‘कुल’ या परिवार भी कहा जाता था यह सबसे छोटी इकाई थी। परिवार के प्रमुख को ‘कुलप’ या ‘ग्रहपति’ कहते थे।
इस काल समाज पितृसत्तात्मक था लेकिन महिलाओं को भी समाज में उचित महत्व दिया जाता था। महिलाएं शिक्षा ग्रहण करती थी एवं राजनीति में भाग लेती थी इनमें प्रमुख थी – घोषा,अपाला,विश्वावरा,लोपमुद्रा इत्यादि। जीवन भर अविवाहित स्त्री को अमाजू कहा जाता था।
ऋग्वेदिक काल में आर्यो का मुख्य व्यवसाय पशुपालन एवं कृषि था। गाय को इस काल में सबसे अधिक महत्व दिया जाता था ,गाय को ‘अघ्न्या’ कहा जाता था अर्थात न मारने योग्य। गाय की हत्या करने वाले को मृत्युदंड दिया जाता था। गाय दुहने वाले को दुहाता कहते थे।
आर्यों का पेय पदार्थ को ‘सोमरस’ कहा जाता था यह सोम नामक वनस्पति से बनाया जाता था
ऋग्वेदिक काल में सर्वाधिक प्रमुख देवता इंद्र थे जिनके लिये ऋग्वेद में 250 सूक्त है तथा दूसरे प्रमुख देवता अग्नि थे जिनके लिए 200 सूक्त हैं। प्रसिद्ध गायत्री मंत्र ऋग्वेद से लिया गया है जो सूर्य (सविता) देवता को समर्पित है। यह मंत्र पद्ध में रचित है। ऋग्वेद के भरत वंश के नाम पर ही हमारे देश का नाम भारत पड़ा।
इस काल की सबसे पवित्र नदी सरस्वती नदी थी जिसे नदियों की माता कहा जाता था। ऋग्वेदिक काल में प्रशासनिक इकाई पांच प्रकार की थी – ग्रह, ग्राम, विश, जन एवं राष्ट्र।
ग्रह को ‘कुल’ या परिवार भी कहा जाता था यह सबसे छोटी इकाई थी। परिवार के प्रमुख को ‘कुलप’ या ‘ग्रहपति’ कहते थे।
इस काल समाज पितृसत्तात्मक था लेकिन महिलाओं को भी समाज में उचित महत्व दिया जाता था। महिलाएं शिक्षा ग्रहण करती थी एवं राजनीति में भाग लेती थी इनमें प्रमुख थी – घोषा,अपाला,विश्वावरा,लोपमुद्रा इत्यादि। जीवन भर अविवाहित स्त्री को अमाजू कहा जाता था।
ऋग्वेदिक काल में आर्यो का मुख्य व्यवसाय पशुपालन एवं कृषि था। गाय को इस काल में सबसे अधिक महत्व दिया जाता था ,गाय को ‘अघ्न्या’ कहा जाता था अर्थात न मारने योग्य। गाय की हत्या करने वाले को मृत्युदंड दिया जाता था। गाय दुहने वाले को दुहाता कहते थे।
आर्यों का पेय पदार्थ को ‘सोमरस’ कहा जाता था यह सोम नामक वनस्पति से बनाया जाता था
ऋग्वेदिक काल में सर्वाधिक प्रमुख देवता इंद्र थे जिनके लिये ऋग्वेद में 250 सूक्त है तथा दूसरे प्रमुख देवता अग्नि थे जिनके लिए 200 सूक्त हैं। प्रसिद्ध गायत्री मंत्र ऋग्वेद से लिया गया है जो सूर्य (सविता) देवता को समर्पित है। यह मंत्र पद्ध में रचित है। ऋग्वेद के भरत वंश के नाम पर ही हमारे देश का नाम भारत पड़ा।
उत्तरवैदिक काल (1000 ई.पू. से 600 ई.पू.)
उत्तरवैदिक काल में आर्य पूरे गंगा दोआब क्षेत्र में फैल गए। ग्रामीण सभ्यता धीरे – धीरे नगरी सभ्यता में परिवर्तित होने लगी थी। इस काल में महिलाओं की स्थिति में थोड़ी गिरावट आई थी और उन्हें घर तक सीमित कर दिया गया। उत्तरवैदिक काल में विधवा स्त्री अपने देवर से विवाह कर सकती थी इसको नियोग प्रथा कहा जाता था।
इस काल में कबीलों से जनपद बनने लगे – गंधार, काशी, केकय, कोशल, मद्र आदि शक्तिशाली राज्य थे । राजा ‘राजसूय’, ‘ अश्वमेध ‘, ‘ वाजपेय ‘ जैसे विशाल यज्ञ का आयोजन करता था। उत्तरवैदिक काल में यज्ञ जटिल एवं खर्चीले हो गए सात पुरोहित यज्ञ में भाग लेते थे। यज्ञों का सम्पादन कार्य ‘ऋित्विज’ करते थे , इनके चार प्रकार थे ऋिचाओ का पाठ करने वाला – ‘होता ‘ , ‘ अध्वर्यु ‘ कर्मकांड का भार वहन करने वाला, गायन करने वाला उद्गाता’ और ‘ ब्रह्मा ‘ कर्म का अध्यक्ष होता था।
अथर्ववेद में ‘ सभा ‘ एवं ‘ समिति ‘ को प्रजापति की दो पुत्रियां कहा गया है इस काल में भी सभा,समिति एवं विद्थ नामक तीन राजनीतिक संस्थाएं थी परन्तु सबसे महत्वपूर्ण संस्था समिति बन गयी। इंद्र के स्थान पर प्रजापति ( ब्रह्मा) प्रमुख देवता बन गए । वर्ण विभाजन स्पष्ट एवं जन्म आधारित हो गया। ब्रह्माण को मारना सबसे बड़ा पाप माना गया।
इस काल के प्रारंभ में तीन आश्रम प्रचलित थे – ‘ ब्रह्मचर्य ‘ , गृहस्थ ‘ एवं वानप्रस्थ लेकिन अंत तक चौथा भी प्रचलित हो गया ‘ सन्यास ‘।
मित्रो वैदिक काल से संबंधित दी गई यह कुछ प्रमुख जानकारी है जो आपके लिए उपयोगी हो सकती है।
इस काल में कबीलों से जनपद बनने लगे – गंधार, काशी, केकय, कोशल, मद्र आदि शक्तिशाली राज्य थे । राजा ‘राजसूय’, ‘ अश्वमेध ‘, ‘ वाजपेय ‘ जैसे विशाल यज्ञ का आयोजन करता था। उत्तरवैदिक काल में यज्ञ जटिल एवं खर्चीले हो गए सात पुरोहित यज्ञ में भाग लेते थे। यज्ञों का सम्पादन कार्य ‘ऋित्विज’ करते थे , इनके चार प्रकार थे ऋिचाओ का पाठ करने वाला – ‘होता ‘ , ‘ अध्वर्यु ‘ कर्मकांड का भार वहन करने वाला, गायन करने वाला उद्गाता’ और ‘ ब्रह्मा ‘ कर्म का अध्यक्ष होता था।
अथर्ववेद में ‘ सभा ‘ एवं ‘ समिति ‘ को प्रजापति की दो पुत्रियां कहा गया है इस काल में भी सभा,समिति एवं विद्थ नामक तीन राजनीतिक संस्थाएं थी परन्तु सबसे महत्वपूर्ण संस्था समिति बन गयी। इंद्र के स्थान पर प्रजापति ( ब्रह्मा) प्रमुख देवता बन गए । वर्ण विभाजन स्पष्ट एवं जन्म आधारित हो गया। ब्रह्माण को मारना सबसे बड़ा पाप माना गया।
इस काल के प्रारंभ में तीन आश्रम प्रचलित थे – ‘ ब्रह्मचर्य ‘ , गृहस्थ ‘ एवं वानप्रस्थ लेकिन अंत तक चौथा भी प्रचलित हो गया ‘ सन्यास ‘।
मित्रो वैदिक काल से संबंधित दी गई यह कुछ प्रमुख जानकारी है जो आपके लिए उपयोगी हो सकती है।
हम इस पोस्ट में वैदिक काल के साहित्य की जानकारी हिन्दी में देने का प्रयास किया गया है। वैदिक साहित्य उस साहित्य को कहा जाता है
जिसकी रचना वैदिक काल में हुई वैदिक साहित्य निम्न हैं –
ऋग्वेद
ऋग्वेद की भाषा पद्यात्मक है
ऋग्वेद में 10 मण्डल 1020 स्लोक 10600 मंत्र है ।
2 से 7 तक के मण्डल को प्रचीन माना जाता है।
9 वे मण्डल की रचना सोम देवता से सम्बन्धित मंत्रों के आधार पर हुई।
पहला तथा 10 वॅा मण्डल सबसे बाद में जोड़ा गया।
10 वे मण्डल में पुरुष सूक्त का वर्णन मिलता है ।
10 वे मण्डल में पुरुष सूक्त में विराट पुरुष द्वारा वर्णों की उत्पत्ति का वर्णन किया गया है जिसके अनुसार विराट पुरुष के मुख से ब्राह्मणों की भुजाओं से क्षत्रीयो की उदर से वेश्य की तथा पैरों से शूद्रों की उत्पत्ति हुई।
गायत्री मंत्र ऋग्वेद से लिया गया है।
असतो मा सद्गमय वाक्य भी ऋग्वेद से लिया गया है
ऋग्वेद में 10 मण्डल 1020 स्लोक 10600 मंत्र है ।
2 से 7 तक के मण्डल को प्रचीन माना जाता है।
9 वे मण्डल की रचना सोम देवता से सम्बन्धित मंत्रों के आधार पर हुई।
पहला तथा 10 वॅा मण्डल सबसे बाद में जोड़ा गया।
10 वे मण्डल में पुरुष सूक्त का वर्णन मिलता है ।
10 वे मण्डल में पुरुष सूक्त में विराट पुरुष द्वारा वर्णों की उत्पत्ति का वर्णन किया गया है जिसके अनुसार विराट पुरुष के मुख से ब्राह्मणों की भुजाओं से क्षत्रीयो की उदर से वेश्य की तथा पैरों से शूद्रों की उत्पत्ति हुई।
गायत्री मंत्र ऋग्वेद से लिया गया है।
असतो मा सद्गमय वाक्य भी ऋग्वेद से लिया गया है
यजुर्वेद
यजुर्वेद की रचना तीसरे वेद के रूप में हुई।
यजु का अर्थ होता है – यज्ञ।
यह एक मात्र ऐसा वेद है जो गद्य एवं पद्य दोनों में है
इस वेद में यज्ञों के नियम मंत्र तथा प्रार्थनाएं आदि हैं।
यजुर्वेद के दो भाग हैं ‘ शुक्ल यजुर्वेद ‘ एवं ‘ कृष्ण यजुर्वेद ‘ ।
यजु का अर्थ होता है – यज्ञ।
यह एक मात्र ऐसा वेद है जो गद्य एवं पद्य दोनों में है
इस वेद में यज्ञों के नियम मंत्र तथा प्रार्थनाएं आदि हैं।
यजुर्वेद के दो भाग हैं ‘ शुक्ल यजुर्वेद ‘ एवं ‘ कृष्ण यजुर्वेद ‘ ।
सामवेद
सामवेद से ही भारतीय संगीत की उत्पत्ति मानी जाती है यह ग्रंथ भारतीय संगीत का जनक माना जाता है।
इसे गाने वाले को उद्गाव कहते हैं ।
सामवेद में 1000 संहिताएं थी वर्तमान में केवल तीन संहिताएं उपलब्ध है – कौथुम, राणारणीय एवं जैमिनीय। कौथुम संहिता अधिक प्रचलित है।
सामवेद में 1810 मंत्र है जिसमें से 75 को छोड़कर सभी ऋग्वेद से लिया गया है।
इसे गाने वाले को उद्गाव कहते हैं ।
सामवेद में 1000 संहिताएं थी वर्तमान में केवल तीन संहिताएं उपलब्ध है – कौथुम, राणारणीय एवं जैमिनीय। कौथुम संहिता अधिक प्रचलित है।
सामवेद में 1810 मंत्र है जिसमें से 75 को छोड़कर सभी ऋग्वेद से लिया गया है।
अथर्ववेद
यह चौथा वेद हैं ।
अथर्ववेद में तंत्र – मंत्र, भूत – प्रेत, वशीकरण, जादू टोने, धर्म एवं रोग निवारण आदि के मंत्र है
अथर्ववेद में 731 सूक्तों है, जिसमें लगभग 6000 मंत्र है
पहले के तीनों वेद का विभाजन मण्डल में है जबकि अथर्ववेद का विभाजन ‘ काण्डों में है
इस वेद का अधिकांश भाग जादूटोना पर आधारित है। इसमें भी गद्य एवं पद्य का प्रयोग किया गया है।
वेदों के उपवेद और उनके रचनाकार
1. ऋग्वेद – आयुर्वेद ( चिकित्सा शास्त्र से संबंधित ) रचनाकार – ऋषि धनवन्तरि।
2. यजुर्वेद – धनुर्वेद ( युद्ध कला से संबंधित ) रचनाकार – विश्वामित्र।
3. सामवेद – गन्धर्वेद ( कला एवं संगीत से संबंधित ) रचनाकार- भरतमुनी।
4. अथर्ववेद – शिल्पवेद ( भवन निर्माण की कला से संबंधित ) रचनाकार – विश्वकर्मा।
ब्राह्मण ग्रंथ
वेदों को समझने के लिए ब्राह्मण ग्रंथ की रचना की गई। ब्राह्मण ग्रंथ वेदों के महत्वपूर्ण अंग है, प्रत्येक वेद के कुछ ब्राह्मण ग्रंथ है। इनकी रचना गद्य में की गई है। ब्राह्मण ग्रंथ इस प्रकार है –
ऋग्वेद – कौषितकि और ऐतरेय।
यजुर्वेद – तैतिरीय और शतपथ।
सामवेद – पंचविश, जैमिनीय और षड्विंश।
अथर्ववेद – गोपथ।
आरण्यक
आरण्यक ग्रंथ जंगल के शांत वातावरण में वनों के बीच में लिखे गए थे एवं उनका अध्ययन भी वनों में ही किया जाता था। आरण्यक शब्द ‘अरण्य’ से बना है जिसका अर्थ जंगल या वन होता है। ये दार्शनिक ग्रंथ कहलाते हैं। आरण्यक एवं उपनिषद् वेदों के अंतिम भाग कहलाते हैं इसलिए इन्हें ‘ वेदांत ‘ भी कहा जाता है।
उपनिषद
उपनिषद का अर्थ उस विद्या से है जो गुरु के समीप बैठकर सीखा जाता है। उपनिषदों की व्याख्या भारतीय दर्शन का आधार है। उपनिषद वैदिक साहित्य का अंतिम भाग हैं इसलिए इन्हें भी ‘ वेदांत ‘ कहा गया है। उपनिषदों की संख्या 108 है।
वेदांग
अथर्ववेद में तंत्र – मंत्र, भूत – प्रेत, वशीकरण, जादू टोने, धर्म एवं रोग निवारण आदि के मंत्र है
अथर्ववेद में 731 सूक्तों है, जिसमें लगभग 6000 मंत्र है
पहले के तीनों वेद का विभाजन मण्डल में है जबकि अथर्ववेद का विभाजन ‘ काण्डों में है
इस वेद का अधिकांश भाग जादूटोना पर आधारित है। इसमें भी गद्य एवं पद्य का प्रयोग किया गया है।
वेदों के उपवेद और उनके रचनाकार
1. ऋग्वेद – आयुर्वेद ( चिकित्सा शास्त्र से संबंधित ) रचनाकार – ऋषि धनवन्तरि।
2. यजुर्वेद – धनुर्वेद ( युद्ध कला से संबंधित ) रचनाकार – विश्वामित्र।
3. सामवेद – गन्धर्वेद ( कला एवं संगीत से संबंधित ) रचनाकार- भरतमुनी।
4. अथर्ववेद – शिल्पवेद ( भवन निर्माण की कला से संबंधित ) रचनाकार – विश्वकर्मा।
ब्राह्मण ग्रंथ
वेदों को समझने के लिए ब्राह्मण ग्रंथ की रचना की गई। ब्राह्मण ग्रंथ वेदों के महत्वपूर्ण अंग है, प्रत्येक वेद के कुछ ब्राह्मण ग्रंथ है। इनकी रचना गद्य में की गई है। ब्राह्मण ग्रंथ इस प्रकार है –
ऋग्वेद – कौषितकि और ऐतरेय।
यजुर्वेद – तैतिरीय और शतपथ।
सामवेद – पंचविश, जैमिनीय और षड्विंश।
अथर्ववेद – गोपथ।
आरण्यक
आरण्यक ग्रंथ जंगल के शांत वातावरण में वनों के बीच में लिखे गए थे एवं उनका अध्ययन भी वनों में ही किया जाता था। आरण्यक शब्द ‘अरण्य’ से बना है जिसका अर्थ जंगल या वन होता है। ये दार्शनिक ग्रंथ कहलाते हैं। आरण्यक एवं उपनिषद् वेदों के अंतिम भाग कहलाते हैं इसलिए इन्हें ‘ वेदांत ‘ भी कहा जाता है।
उपनिषद
उपनिषद का अर्थ उस विद्या से है जो गुरु के समीप बैठकर सीखा जाता है। उपनिषदों की व्याख्या भारतीय दर्शन का आधार है। उपनिषद वैदिक साहित्य का अंतिम भाग हैं इसलिए इन्हें भी ‘ वेदांत ‘ कहा गया है। उपनिषदों की संख्या 108 है।
वेदांग
वेदों का अर्थ समझने के लिए इनकी रचना साधारण संस्कृत भाषा में की गई। वेदांग को श्रुति भी कहा जाता है। इनकी संख्या 6 हैं।
( 1 ) – शिक्षा ,( 2 ) – कल्प , ( 3 ) – व्याकरण, (4 ) – निरुक्त, ( 5 ) – छन्द, ( 6 ) – ज्योतिष।
दर्शन एवं उनके प्रवर्तक
सांख्य दर्शन – कपिल मुनि
योग दर्शन – पतंजली
वैशेषिक – कणाद
न्याय दर्शन – गौतम
पूर्व मीमांसा – जैमिनी
उत्तर मीमांसा – बदरायण ( व्यास )
महापुराण
पुराणों की कुल संख्या 18 हैं। मत्स्य पुराण सर्वाधिक प्रचीन एवं प्रमाणिक पुराण है , इसमें विष्णु के दस अवतारों का वर्णन है।
महाकाव्य
महाभारत एवं रामायण दो महाकाव्य है। महाभारत की रचना महर्षि व्यास ने की थी। महाभारत का पुराना नाम जयसंहिता है।यह विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य है।
रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की थी, इस महाकाव्य को चतुर्विशति साहस्त्री संहिता भी कहा जाता है।