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अन्तत: बेनकाब हुई तीस्ता सीतलवाड़

अन्तत: बेनकाब हुई तीस्ता सीतलवाड़

 आर.के. सिन्हा

 तीस्ता सीतलवाड़ अब पूरी तरह  बेनकाब हो चुकी हैं। गुजरात दंगों पर एहसान जाफरी की पत्नी जाकिया जाफरी  की याचिका सुप्रीम कोर्ट  में खारिज होने के अगले ही दिन गुजरात एटीएस की टीम मुंबई में तीस्ता सीतलवाड़ के घर पहुंची और गिरफ्तार कर अहमदाबाद ले आई। तीस्ता सीतलवाड़ पर जालसाजी, आपराधिक षड्यंत्र रचने  और अन्य कई धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने 2002 गुजरात दंगों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  को एसआईटी की क्लीन चिट के खिलाफ जाकिया जाफरी की याचिका को पूरी जांच पड़ताल के बाद चार सौ पृष्ठों से ज्यादा के अपने निर्णय में खारिज किया था। सुप्रीम कोर्ट की ओर से यह गंभीर टिप्पणी भी की गई थी कुछ लोग कड़ाही लगातार खौलाते रहना चाहते हैं। इस टिप्पणी को तीस्ता सीतलवाड़ के एनजीओ के संदर्भ में देखा जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जकिया की याचिका में कोई मेरिट नहीं है।

सबसे अहम टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने यह की कि इस केस में को-पेटिशनर तीस्ता सीतलवाड़ ने जकिया जाफरी की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया और उनकी भूमिका की जांच होना जरूरी है।

तीस्ता सीतलवाड़ का असली चेहरा देश के सामने वैसे तो काफी पहले से ही आता रहा है। वह  गुजरात दंगों के पीड़ितों को इंसाफ दिलाने की कथित तौर पर लड़ाई लड़ रही थी। पर अब  सबको पता चल चुका है कि तीस्ता सीतलवाड़ के एनजीओ ‘सबरंग ट्रस्ट’ को जो  विदेशी चंदा मिलता रहा है, उसका इस्तेमाल मुख्य तौर पर वह अपनी अय्याशी के लिए ही करती थीं। उसके बिल भी अब सार्वजनिक रूप से प्रकाशित हो गये हैंI वही तीस्ता सीतलवाड़ दिल्ली के शाहीन बाग में प्रकट हो गईं  थीं जब वहां पर संशोधित नागरिकता कानून ( सीएए) के खिलाफ धरना चल रहा था। वह समाज में जहर फैलाने के काम में सबसे आगे रहती हैं।

बेशक, देश को  तीस्ता सीतलवाड़ जैसे सफेदपोश लोगों से सावधान तो रहना ही होगा।

यकीन मानिए कि देश की मानवाधिकार बिरादरी से अब जनता का विश्वास उठ गया है। ये उस तीस्ता सीतलवाड़ के लिए खड़ी होती है, जो गुजरात दंगों के पीड़ितों को इंसाफ दिलाने की कथित तौर पर लड़ाई लड़ती हैं। और जो अपने ‘सबरंग ट्रस्ट’ को मिले  विदेशी चंदों का खुलेआम उपयोग मौज मस्ती के लिए करती हैं।  इसके चलते गृह मंत्रालय ने उनके  एनजीओ का विदेशी चंदा नियमन कानून एफसीआर लाइसेंस भी रद्द कर दिया था। इसके बावजूद तीस्ता सीतलवाड़ और उनके मुस्लिम पति जावेद आनंद देश के कथित मानवाधिकार गिरोहों के बीच खासमखास की भूनिका में बने रहते हैं।ये  इनके हक में हमेशा आंखें बंद करके खड़े रहते हैं।

देश के पहले अटॉर्नी जनरल और जवाहरलाल नेहरू के अंतरंग मित्र एम.सी.सीतलवाड़ की  पौत्री तीस्ता सीतलवाड़ कहने को तो मूलत: पत्रकार थीं।  फिर वह  सामाजिक कार्यकर्ता बन गई।  तीस्ता सीतलवाड़, उनके पति जावेद आनंद और गुजरात दंगों में मारे गए कांग्रेस नेता एहसान जाफरी के बेटे तनवीर पर दंगों की शिकार गुलबर्ग सोसाइटी में संग्रहालय बनाने के नाम पर तीस्ता और जावेद के साथ मिलकर दुनिया भर से एकत्र चंदे के गबन के भी गंभीर आरोप लगते रहे हैं। गुलबर्ग सोसायटी के ही एक निवासी ने तीस्ता सीतलवाड़, उनके पति और अन्य लोगों के खिलाफ अपराध शाखा में मामला दर्ज कराया था। इन पर आरोप है कि इन लोगों ने म्यूजियम के नाम पर मोटा पैसा खुद निजी सम्पत्ति बनाने पर खर्च कर लिए। आरोप है कि इन्होंने विदेशों से भी चंदा लिया था और बाद में उसका उपयोग निजी फायदे के लिए किया।तीस्ता सीतलवाड़  सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस(सीजेपी) नाम की एक संस्था की सचिव थीं। यह संस्था बनी थी उन लोगों की मदद के लिए जिन्हें गुजरात के दंगों में नुकसान पहुंचा था। 

तीस्ता सीतलवाड़ और उनके पति जावेद आनंद पर आरोप है कि उन्होंने अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसाइटी फंड में हेराफेरी की। गुजरात हाई कोर्ट ने इनकी गिरफ्तारी के आदेश भी दिए। पर सुप्रीम कोर्ट ने इनकी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। गुजरात पुलिस का आरोप है कि सीतलवाड़ ने साल 2008 से लेकर 2012 तक 9.75 करोड़ रुपये एकत्र किए अपने इस तथाकथित एनजीओ की माध्यम से। उसमें से 3.75 करोड़ रुपये अपने ब्रांडेड कपड़ों,शूज,विदेशी यात्राओ वगैरह पर खर्च किए। हैरानी तो तब होती है कि जालसाजी और घोटाले के आरोप झेल रही तीस्ता सीतलवाड़ को लेकर जार-जार आंसू बहाने वाले भी हमारे ही देश में बेखौफ घूम रहे हैं! फिल्मकार आनंद पटवर्धन  तीस्ता सीतलवाड़ के पक्ष में खुलकर सामने आते रहते हैं। ये तमाम सेक्युलरवादी कहते रहे हैं कि तीस्ता सीतलवाड़ के साथ नाइंसाफी होती हैं। पटवर्धन ये सब तब कह रहे थे जब घोटाले के आरोपी  तीस्ता और उनके पति की बेल याचिका को गुजरात हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया था। इन सेक्युलरवादियों में तुषार गांधी भी हैं। वे गांधी जी के प्रपौत्र हैं। तुषार गांधी तीस्ता-जावेद की सुरक्षा को लेकर भी परेशान हैं। वे इनकी सुरक्षा की मांग करते रहते रहे हैं। पर अब सुप्रीम कोर्ट ने जब गुजरात के दंगों के लिए इन पर इतनी कड़ी टिप्पणी की तो ये चुप हो गए।

 इनकी इस तरह की डरावनी चुप्पी बहुत कुछ कहती है। देश को पता चल चुका है कि अपने को प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष ताकतों का हिमायती कहने-बताने वाले संगठन और लोग किस तरह से काम करते हैं। इनमें मुंबई के पाश जुहू इलाके में रहने वाली तीस्ता सीतलवाड़ को लेकर सहानुभूति का भाव है,जिस पर मोटे पैसे के गबन के आरोप हैं। पर ये तब चुप हो जाते हैं जब ट्रिपल तलाक के खिलाफ सरकार कोई प्रगतिशील कदम उठाती है।

देखिए कुछ वर्षों से भारत में अभिव्यक्ति की आजादी का अर्थ अब यह हो गया है कि देश की सुप्रीम कोर्ट,   चुनाव आयोग और संसद जैसी महत्वपूर्ण संवैधानिक संस्थानों का अपमान और अनादर करना। उनके प्रति अविश्वास जताना और तथ्यों को तोड़-मरोड़कर जनता में भ्रम फैलाना। तीस्ता सीतलवाड़ की तरह के एक शख्स पूर्व आईएएस अफसर हर्ष मंदर भी हैं। मंदर ने शाहीन बाग में प्रदर्शनकारियों के बीच में जाकर कहा था कि हमें सुप्रीम कोर्ट या संसद से अब कोई उम्मीद ही नहीं रह गई है। हमें सड़क पर उतरना ही होगा।  मंदर की सुप्रीम कोर्ट को लेकर की गई घोर आपत्तिजनक टिप्पणियों पर नोटिस लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “आप इस अदालत के बारे में यह सोचते हैं। आप इन आरोपों को देखिए और इन पर जवाब दीजिए।” हर्ष मंदर की  भी किसी प्रश्न पर अपनी व्यक्तिगत सोच हो सकती है। उसे वे कभी भी, कहीं भी खुलकर व्यक्त भी कर सकते हैं। वह राय जरूरी नहीं कि सबको पसंद आए। पर वे तो संसद से लेकर उच्चतम न्यायालय तक को भी  कुछ नहीं समझते। ये ही स्थिति तीस्ता सीतलवाड़ जैसे लोगों की भी है। इन्हें देश अब और झेल नहीं सकता।इनको जिम्मेदार नागरिक बनाने का सही सबक तो सिखाना ही होगा!

 (लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)

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