पुलिस की मजबूरी
*रजनीश कपूर
हाल ही में हुई दो पत्रकारों की गिरफ़्तारी को लेकर पुलिस की कार्यशैली पर एक बार फिर से सवाल उठने
लगे हैं। ताज़ा मामला एक राष्ट्रीय टीवी चैनल के एंकर की गिरफ़्तारी से सम्बंधित है। इस घटना में जिस
तरह दो राज्यों की पुलिस इस एंकर की गिरफ़्तारी को लेकर आपस में भिड़ी है वो नई बात नहीं है। कुछ
हफ़्तों पहले भी ऐसा कुछ हुआ था जब एक राजनैतिक पार्टी के प्रवक्ता की गिरफ़्तारी के समय पंजाब,
दिल्ली और हरियाणा की पुलिस आपस में उलझ गयी थी। जब कभी ऐसी परिस्थिति पैदा होती है पुलिस
अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल उठते आए हैं।
न्यूज़ एंकर रोहित रंजन की गिरफ़्तारी के समय हुई घटना के तथ्यों को देखें। छत्तीसगढ़ पुलिस के पास
उन्हें पूछताछ के लिए ले जाने वाला एक वारंट था। जिसका वो पालन कर रहे थे। छत्तीसगढ़ पुलिस का
आरोप है कीं नॉएडा पुलिस ने उस वारंट को अनदेखा कर रोहित को अपनी हिरासत में ले लिया। नॉएडा
पुलिस ने ऐसा एक दूसरी शिकायत के आधार पर किया। ग़ौरतलब है कि नॉएडा पुलिस को रोहित के
ख़िलाफ़ शिकायत देने वाला और कोई नहीं बल्कि वही न्यूज़ चैनल है जहां रोहित बतौर एंकर काम करते
हैं।
जब उसी चैनल को अपनी गलती का एहसास हुआ तब उन्होंने अपने चैनल पर न सिर्फ़ गलती की माफ़ी
माँगी बल्कि उस कार्यक्रम के दो निर्माताओं को भी इस गलती के लिए निलम्बित कर दिया। ऐसा इसलिए
किया गया क्योंकि न्यूज़ एंकर तो केवल लिखी हुई स्क्रिप्ट पढ़ते हैं। प्रायः अपनी तरफ़ से नहीं बोलते।
एक शिकायत पर इस नॉएडा पुलिस की तत्परता पर कई सवाल उठते हैं। आमतौर पर जब तक कोई
संगीन आरोप न हो और पुलिस को लिखित शिकायत न मिले तो पुलिस गिरफ़्तारी से पहले आरोपी को
संदेश देकर जाँच में सहयोग करने के लिए बुलाती है। यदि जाँच में यह पाया जाता है कि आरोपी पर
लगाए गए आरोप सही हैं तब उसकी गिरफ़्तारी कर ली जाती है। उसे ज़मानत मिलेगी या नहीं वो उस
आरोपी पर लगी धाराओं पर निर्भर करता है।एक राजनैतिक पार्टी के प्रवक्ता के बयान पर पंजाब, दिल्ली
और हरियाणा पुलिस के बीच हुई रस्साकशी में जो बवाल हुआ वो कोर्ट के दख़ल के बाद ही सुलझा।
वहीं देखा जाए तो सोशल मीडिया में चलने वाली खबरों के ‘फ़ैक्ट चैकर’ मोहम्मद ज़ुबैर की जब 4 साल
पुराने ट्वीट को लेकर गिरफ़्तारी हुई तो दिल्ली पुलिस के काम में दूसरे राज्य की पुलिस ने कोई दख़ल
नहीं दिया। ये बात अलग है कि ज़ुबैर के ख़िलाफ़ शिकायत करने वाला ट्वीटर हैंडल, इस गिरफ़्तारी के
बाद रहस्यमयी ढंग से डिलीट कर दिया गया। पुलिस की मुस्तैदी से अपराध रोकने में हमेशा मदद मिलती
है। परंतु जब मुस्तैदी सही समय पर न हो तो इस पर पुलिस को कई तरह के सवालों का सामना करना
पड़ता है।
परंतु पुलिस हर मामले में ऐसी ही मुस्तैदी दिखाती हो प्रायः ऐसा देखने में नहीं आता। मिसाल के तौर पर
नॉएडा के एक व्यापारिक समूह पर कई निवेशकों के साथ धोखाधड़ी के आरोप के चलते नॉएडा फ़ेस 1 के
थाने के अंतर्गत एफ़आइआर संख्या 0047/2022 गत 23 फ़रवरी 2022 को दर्ज हुई थी। यह एफ़आइआर
शरद अरोड़ा और 12 अन्य व्यक्तियों के ख़िलाफ़ आईपीसी की 8 संगीन धाराओं में दर्ज कराई गई थी।
फ़िलहाल ये मामला नॉएडा क्राइम ब्रांच के पास लम्बित पड़ा है।
एफ़आइआर पढ़ने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि आरोपी शरद अरोड़ा की कम्पनी ने करोड़ों रुपये का
ग़बन करके कई कम्पनियों को धोखा दिया है। यह कम्पनी सोफ्टवेयर बनाने का काम करती है। आरोप है
कि निवेशकों को झूठे सपने दिखा कर कम्पनी ने करोड़ों की पूँजी का निवेश करवा था। साथ ही इन पर
यह भी आरोप है कि इन्होंने कई फ़र्ज़ी कम्पनियाँ खोल कर निवेशकों के साथ किए अनुबंध का भी उल्लंघन
किया। एफ़आइआर के अनुसार अरोड़ा ने अपनी कम्पनी में होने वाली बोर्ड मीटिंग के दस्तावेज़ों को भी
जालसाज़ी कर, फ़र्ज़ी बोर्ड मीटिंग होना दिखाया है। इस पर आरोप है कि इनकी कम्पनी ने फ़र्जीवाड़ा कर
निवेशकों के करोड़ों रुपयों को ग़ैर क़ानूनी तरीक़े से कम्पनी से निकाल लिया।
इस एफ़आइआर के ख़िलाफ़ ज़मानत लेने के लिए इन 13 आरोपियों में से एक आरोपी ने नॉएडा कोर्ट में
अर्ज़ी लगाई जिसे कोर्ट ने 25 अप्रेल 2022 को रद्द कर दिया। कोर्ट ने अपने आदेश में इन आरोपियों को
जाँच में सहयोग करने के आदेश भी दिए। इतना ही नहीं मुख्य आरोपी शरद अरोड़ा ने माननीय
इलाहाबाद उच्च न्यायालय में इस एफ़आइआर को रद्द करने की याचिका भी दाखिल की। जिसे इलाहाबाद
उच्च न्यायालय ने 12 अप्रेल 2022 को अपने आदेश द्वारा रद्द कर दिया। कोर्ट के आदेश स्थानीय पुलिस को
न मिले हों ऐसा हो नहीं सकता। क्योंकि जब भी कोई मामला अदालत के समक्ष जाता है तो दोनों पक्षों को
सुना जाता है।
एक ओर कुछ ही घंटों पहले दी गई तहरीर के आधार पर आनन-फ़ानन में तथ्यों से छेड़-छाड़ के आरोप पर
न्यूज़ एंकर को उत्तर प्रदेश पुलिस गिरफ़्तार कर लेती है। वहीं करोड़ों की धोखाधड़ी के आरोपी अरोड़ा
परिवार और उनके सहयोगियों को पुलिस किस मजबूरी या दबाव के चलते पिछले पाँच महीनों से
गिरफ़्तार नहीं कर पा रही? ये एक गंभीर सवाल है। इसलिये कहना पड़ता है कि कभी-कभी पुलिस अपने
ही ग़लत कारनामों से विवादों में रहती है।