राजनेता मोदी जी के पद चिह्नों पर चलें*
यह सर्वविदित है कि जब मोदी जी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के पद को त्यागकर प्रधानमंत्री के पद को गृहण किया तो उन्होंने अपने बैंक में संचित सम्पूर्ण धनराशि अपने सेवकों में वितरित कर दी और अपनी संचित निधि को शून्य कर दिया था। यदि वे चाहते तो उस संचित धनराशि को अपनी जन्मदात्री माता जी एवं अपने परिवार के सदस्यों को वितरित कर सकते थे। इतना ही नहीं अपितु उन्होंने समय-समय पर देश-विदेश के भ्रमण के पश्चात प्राप्त हुए कीमती उपहारों को तथा अपने बहुमूल्य वस्त्रों की भी निलामी कराकर उससे प्राप्त धनराशि को गरीबों के हितार्थ सरकारी कोषों में दान कर दिया। उन्होंने कभी भी निजी सेवाओं के लिए गुजरात सरकार से पेंशन अथवा अन्य कोई सरकारी सुविधा की मांग नहीं की। यह एक आदर्श नेता की पहचान है।
आज भारतीय संसद में अधिकांश सांसद भाजपा के हैं, सम्भव है कि इस वर्ष राज्यसभा में भी उनकी भागीदारी पूर्णरूपेण हो जाएगी। अधिकांश राज्यों की विधानसभाओं में भी बहुमत भाजपा का ही है। यदि वे सब राजनेतागण, भाजपा तथा संघ की संस्कृति से ओतप्रोत श्री नरेन्द्र मोदी जी के पद चिह्नों पर चलने का निर्णय लेते हैं तो यह विरोधी पक्ष के नेताओं के लिए भी एक उदाहरण बन जाएगा और जो नेताओं के प्रति नकारात्मकता का भाव जनमानस में रहता है वह स्वयं ही समाप्त हो जाएगा परिणामस्वरूप जनता इन नेताओं के प्रति अटूट विश्वास से नतमस्तक हो जाएगी।
जहाँ एक ओर ये नेता स्वयं को जनता का सेवक कहते हैं, वहीं दूसरी ओर ये अपना वेतन और अपनी सुविधाएँ स्वेच्छा से निर्धारित करते हैं। इससे बड़ा अपराध और कोई हो ही नहीं सकता। इसी के प्रभावस्वरूप जनता से वोट प्राप्त करने के पश्चात इन नेताओं के हावभाव पूर्णतया परिवर्तित हो जाते हैं और वे स्वयं को जनता का सेवक ना मानकर उनका स्वामी मान लेते हैं। पुनः चुनावी शंखनाद होने पर जब ये नेतागण जनता के समक्ष वोट प्राप्त करने हेतु पुनः जाते हैं और जनता को अनेकों प्रलोभन देते हैं तो जनता उनको पूर्व में किए गए कर्मो के आधार पर सजा देने में भी नहीं चूकती है। वास्तविकता यह है कि किसी भी सांसद अथवा विधायक का वेतन अथवा पेंशन का कोई औचित्य ही नहीं होता है, क्योंकि यदि हम भारत देश के महान नेताओं की चर्चा करें तो ये सभी नेतागण यथा – लौहपुरुष सरदार पटेल, लाल बहादुर शास्त्री, श्यामाप्रसाद मुखर्जी, राममनोहर लोहिया, लाला लाजपत राय आदि ऐसे व्यक्तित्व रहे हैं जिन्होंने अपना सम्पूर्ण राजनीतिक जीवन साधारण वस्त्रों में व्यतीत किया और वातानुकूलित कमरें, गाड़ी अथवा ऐश्वरर्यपूर्ण जीवन की कामना कभी नही की, वे जीवनपर्यन्त त्याग की मूर्ति बने रहे। यही कारण है कि उनके स्वर्गवासी होने के वर्षों बाद भी जनता उन्हें बड़े आदर के साथ स्मरण करती है। इसके विपरीत आज के राजनीतिज्ञों को जनता उनके अपदस्थ होने के पश्चात श्रृद्धा के साथ कभी स्मरण नहीं करती।
आज देश की जनता की पुरजोर मांग है कि सभी माननीय अपना वेतन, पेंशन एवं अन्य सरकारी सुविधाएँ स्वयं ही त्याग दें अथवा भाजपा द्वारा केन्द्र एवं भाजपा शासित राज्यों में सभी माननियों का पेंशन, वेतन एवं अन्य सुविधाएँ अविलम्ब समाप्त कर दी जाएं, क्योंकि हर माननीय करोड़ों-अरबों का मालिक है एवं किसी के पास भी धन की कोई कमीं नहीं है। वैसे भी जब उन्होंने सांसद और विधायक बनने का निर्णय लिया तो इसका अर्थ यह है कि वे अपना जीवन देश की सेवा देने हेतु तत्पर हैं। लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरी है, यदि राजनेता निःस्वार्थ भाव से जनता की सेवा में संलग्न होगा तो निश्चिततः जनता भी उन्हें स्नेह देगी, वे चिरंजीवी बने रहेंगे और इसी के फलस्वरूप देश फले फूलेगा। उनको दी जाने वाली राशि का सदुपयोग जनता और देश की भलाई के लिए उपयोग में लाया जाएगा।
*योगेश मोहन*