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आदिपुरुष तुलसीराम लोहार

आदिपुरुष” – तुलसीराम लोहार

हमारे इंजीनियरिंग सेल्स की एक बहुत ही प्रसिद्ध कहावत है, “कस्टमर को कंविन्स न कर पाओ तो कन्फ्यूज कर दो!”

बॉलीवुड के चरसी जब अपनी सारी शक्ति झोंक देने के बावजूद भी राष्ट्रवादियों के उभरते हुए वर्चस्व को तोड़ नहीं सके, झुका नहीं सके, हरा नहीं सके तो अब इस ‘कन्फ्यूज कर दो’ वाले नए पैंतरे पर कार्य कर रहे हैं। और आप तो कन्फ्यूज होने के लिए बैठे हैं। हाँ, वही आप जो एक अफवाह पर अपना दिमाग गिरवी रख कर चार सौ रुपये किलो नमक बिकवा देते हैं बिना तनिक भी यह सोचे कि प्राचीन काल में समुद्र से दूर-दराज के क्षेत्रों तक नमक पहुंचना दुष्कर था। जबकि आज तो समुद्र भरे पड़े हैं नमक से तथा परिवहन की सुविधाएं हजार गुना बढ़ी हुई हैं, उस पर भी कि करोड़ों लोग डॉक्टर से कहने से नमक छोड़ते जा रहे हैं।

ऐसे समय में आप नमक ब्लैक में बिकवा दिए। मान क्यों नहीं लेते कि आप औसत बुद्धि में भी औसत स्तर ही रखते हैं?

आपने छः सात साल पहले से बॉलीवुड के बॉयकॉट का सिलसिला शुरू किया और सफलता से आप सीढ़ियाँ चढ़ते गए। आप कभी नहीं हारे और अपने सांस्कृतिक मूल्यों के साथ साथ नैतिक मूल्यों की भी जोरदार जीत दर्ज की। यह एकतरफा जीत और भी विकराल हो गई जब चरसी झुण्ड उस फिल्म को नीचे गिराने की जी जान से कोशिश किया जिसको आप प्रमोट कर रहे थे। फिल्म में कुछ भी फिल्म जैसा नहीं था, एकदम बोर एकदम निम्न निर्देशन क्षमता की फिल्म ‘कश्मीर फाइल्स’ केवल तथ्य पर आधारित एक डाक्यमेन्टरी ही थी। परन्तु आपके प्रयासों के आगे भारत को नीचा दिखाने वाली शक्तियों की अपार पराजय हुई और एक निम्न सी फिल्म भी करोड़ों कमा गई। यह आपकी दोधारी जीत थी जिसका डंका सम्पूर्ण विश्व में बजा था।

मैं आज आपको औसत में भी औसत बुद्धि क्यों कह रहा हूँ? क्योंकि आपमें वह देखने की न क्षमता है न धैर्य, कि आपका वास्तविक लक्ष्य क्या है और उससे कितनी दृढ़ता से जुड़ा रहा जाए, यह आपको समझ ही नहीं आता है।

“भारतीय जनता की याददाश्त बहुत कमजोर होती है!” कुटिल मुस्कान के साथ यह डाईलॉग कहते हुए नेताओं के चेहरे याद करते हुए आप यह बताइए कि, “हमने फिल्मों का बॉयकॉट क्यों आरम्भ किया था?” याद करके बताइए।

क्योंकि जे-हा दि-यों की स्वर्णलंका बन चुका बॉलीवुड जोकि 30-35 वर्षों में सनातनविरोधी एक विकराल राक्षस बन चुका था, उसका वध करके अपनी भूमि को उससे मुक्त कराया जा सके, इसलिए हमने यह सब शुरू किया था। इन राक्षसों की नाभि यानि कि इनके पेट पर लात मारी जा सके जिससे ये रक्तबीज पुनः जन्म ही न ले सकें। ताकि हमें चिढ़ाने, हमें छटपटाने पर मजबूर करने के लिए जिन लोगों ने कायर आतंकियों का महिमांडन करने के लिए अपने बच्चों का नाम तैमूर तक रख दिया, उनको ऐसा झापड़ लगे कि उनके पुरखे भी कब्र में सड़ते सड़ते काँप उठें।

और हम उसमें सफल भी हो रहे थे। बाहुबली, ट्रिपल आर जैसी फिल्में, जिनमें भी थोड़ा बहुत तुष्टीकरण हुआ था, तथापि इन्होंने सनातन के आदर्शों की वो ऊंचाई खींच दी कि तुष्टीकरण जैसे कुछ दृश्य इनके समक्ष चींटी जैसे भी नहीं नजर आ सके। ऐसी फिल्मों ने हमारा साथ भी भरपूर दिया और हमने भी अपना प्रेम न्योछावर किया।

उसके बाद जिस प्रकार यहाँ के भांड़ों की फिल्मों की दुर्गति की गई, दुनिया की सबसे बड़ी फिल्म इंडस्ट्री का वो हाल किया गया कि सारी दुनिया ही हिल गई। त्राहि त्राहि मच गई थी यहाँ अभी दो महीने पहले ही।

उसके बाद इस विकराल राक्षस रूपी अजगर ने करवट लिया।

वह भयभीत हो गया था, परन्तु उसने ऐसे विरोध के दिन बहुत बार देखे हैं। पुराना पापी है तथा दुनिया के सबसे शातिर पापियों की फौज है उसके पास। आपको क्या लग रहा था? वे हमेशा के लिए भयभीत हो गए हैं? जिन्होंने साईं जैसे मलेच्छ तक को हमसे पुजवा दिया, हमारे मंदिरों में हमारे ही हनुमान जी को उस मलेच्छ के चरणों में हाथ झुकाए खड़ा कर दिया, वे डर गए? वे अचानक सुशांत सिंह जैसों के हत्यारे अंगुलीमाल से ऋषि अहिंसका में परिवर्तित होकर ‘आदिपुरुष’ के रूप में रामकथा कहने लगे?

आप महामूर्ख हैं।

आप कॉनवेंट के पढे और उच्च पदों पर सुशोभित होकर भी मुझ काम करके जीवन यापन करने वाले ग्रामवासी से बहुत छोटा विवेक, बहुत छोटी बुद्धि का स्तर रखते हैं। आपको यह नहीं दिख रहा है कि आदिपुरुष के आपके ही धन से उन घमण्डी रक्तबीजों को पुनः नया जीवन मिलने जा रहा है? आपके सारे पवित्र अभियान, आपके सारे आंदोलन आदि सब ध्वस्त होने जा रहे हैं, यह बिल्कुल भी नहीं दीख रहा है आपको?

वे आपको रो गा कर कंविन्स करके नहीं तोड़ पाए तो अब आप कन्फ्यूज हो रहे हैं। राम, हनुमान, रावण के वस्त्रों-दाढ़ी आदि पर चर्चा करके वे आपको कन्फ्यूज कर महामूर्ख घोषित कर चुके हैं। आप मान क्यों नहीं लेते कि आप पढे लिखे उच्च पदासीन मूर्ख भेड़ ही हैं जिनको कोई भी आठवीं पास चरवाहा अपने मनमुताबिक हाँक ले रहा है और आपके दृष्टिभ्रमित झुण्डों पर ठहाका लगा कर हँस भी रहा है?

हम कन्फ्यूज ही क्यों हों? हम वस्त्रों, दाढ़ी और ‘रावण तो बुरा ही था’ पर जाएँ ही क्यों?

मुझे आजतक यह विश्वास ही नहीं हो पाता है कि ‘बीआर चोपड़ा’ के ‘महाभारत’ में अर्जुन दरअसल ‘फिरोज खान’ था। याद करिए उसका चेहरा, याद करिए उसका रो कर आंसु भरे नेत्रों के साथ हाथ जोड़कर ‘हे गोविंद’ कहना। ये होता है अभिनय। यह होती है किसी भी पात्र को रचने की भावना। यह होती है श्रद्धा तथा अपने धर्म के प्रति आस्था।

क्या आपको लगता है कि दो चार चरसियों द्वारा दो चार महीने में प्रभास और मुंत शिर शुक्ला को जोड़कर एक कार्टून बना देना, धर्म के प्रति श्रद्धा है? प्रभास एक नंबर का भोंदू लगता है, वह केवल अभिनय में अच्छा दिखता है। निर्देशक जो कह देगा, यह आँख मूँद कर कर देगा। और मुंतशिर शुक्ला??? मेरे सारे लेख पलट डालिए, आजतक मैंने इस मुंतशिर के समर्थन में एक शब्द नहीं बोला है। आजतक। यह और दूसरा कविराज विश्वास, दोनों धन के शातिर लोभी हैं, इनको पैसे दो और किसी भी विषय पर लच्छेदार भाषा में समर्थन ले लो।

अच्छा, पहले तो आप एक काम करिए, इस आदिपुरुष को किसी कैटगरी में रखिए।

यदि आप रामकथा की धार्मिक श्रेणी में रख रहे हैं इस फिल्म को, तो सच बताइए कि रामानन्द सागर के रामायण की तुलना में एक प्रतिशत भी आप इसमें धर्म देख पाए? मुझे केवल भौंडा प्रदर्शन लगा जोकि मुझे मूर्ख बनाकर मेरे पैसे हड़पने की साजिश दिख रही है।

और यदि आप इसे केवल एक सामान्य फिल्म की श्रेणी में रख रहे हैं तो हनुमान की दाढ़ी की चिंता छोड़िए, यह बताइए कि इन जि-हा-दि-यों के आपके बॉयकॉट वाले विषय क्या हुआ???? तैमूर की अम्मी और अब्बा जब हँस कर शान से बताते हैं कि लँगड़ा तैमूर भारत पर भयंकर अत्याचार किया था, इसीलिए हमने अपने बेटे का नाम तैमूर रखा। इस बात को सुनकर अब कैसा लग रहा है आपको? वो भारत की सर्वाधिक धार्मिक कथा में एक महत्वपूर्ण पात्र बनेगा, और सबकुछ अच्छा करेगा?

उससे लाख गुना अच्छा और बहुत कम पैसे में वह अभिनय आशुतोष राणा और पुनीत इस्सर जैसे सैकड़ों लोग कर देते। तैमूर के अब्बा को ही क्यों लिया गया? और किसके किसके पैसे लगे हैं इस लूट प्रोजेक्ट में?

आपको लगता है कि ऐसी मानसिकता वाले केवल आपके बॉयकॉट से डरकर, हत्यारे अंगुलीमाल से सीधे ऋषि अहिंसका में परिवर्तित होकर ‘आदिपुरुष’ के रूप में रामकथा कहने लगे?

बच्चों के कार्टून भी इससे भली धार्मिक भावनाएं दिखाते हैं मित्र! बस आप अपनी आँखों पर चढ़े घमण्डी बुद्धिजीवी मोतियाबिंद का परदा हटा लें, आपको भी लक्ष्य दिखने लगेगा। आप बहुत बुद्धिमान हैं, आपको इस फिल्म के विरोध का कोई तुक नहीं दिख रहा है। मैं गाँव का एकदम देशी मनई हूँ, मुझे बिना किसी किन्तु परन्तु के, इनकी कोई भी फिल्म देखने का कोई तुक ही नहीं दिख रहा है। आप अपनी बुद्धि रख लीजिए, मैं अपनी रख लेता हूँ।

बाकि सनातन के नाश, अपमान आदि का स्वप्न लिए जब असली लँगड़े तैमूर जैसों की कब्रें भी सड़ गईं, तो ये आज के टिन के दूध पीने वाले क्या ही खाकर हमें मिटाएंगे।

“सनातन श्रद्धा में संसार की सबसे बड़ी शक्ति सन्निहित होती है।”

जय जय भारत — 🙏

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