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ये मौतें रोकी जा सकती हैं

ये मौतें रोकी जा सकती हैं

यूँ तो हर दिन सडक दुर्घटना की खबर मीडिया में आती हैं | कई नामचीन हस्ती सडक दुर्घटना के शिकार हुई , परन्तु कुछ दुर्घटना ह्रदय विदारक होती हैं |सरकार, उसके कारकून और समाज इसे गंभीरता से क्यों नहीं लेता एक बड़ा प्रश्न है |२ ०२१ के आंकड़े कोई ५ लाख लोगों की सडक दुर्घटना की बात कहते हैं | जैसे टाटा सन्स के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री उनके दोस्त जहांगीर पंडोले की सडक दुर्घटना में मृत्यु हो गई|इस साल फरवरी में पंजाबी एक्टर दीप सिद्धू ,राज्यसभा सांसद और तेलुगु अभिनेता नंदमुरी हरिकृष्णा, तेलंगाना के नलगोंडा जिले के पास कार हादसे में मृत्यु हो गई। अन्य प्रमुख सड़क दुर्घटना में भाजपा नेता गोपीनाथ मुंडे, साहेब सिंह वर्मा और व्यंग्यकार जसपाल भट्टी शामिल हैं।
ये सारी खबरे विचलित करती है, पर हाल ही में गुरुग्राम द्वारका एक्सप्रेस-वे के किनारे बने गड्ढे में भरे बरसाती पानी में डूबकर छह बच्चों की मौत हो गई, ये ह्रदय विदारक है । ये बच्चे पास ही की एक श्रमिक बस्ती के थे। हम अक्सर खबर में मरने वालों को आंकड़ा देखते हैं लेकिन उस परिवार के दर्द को महसूस नहीं करते, जिसने एक या अधिक बच्चों को खोया। ये कई संभावनाओं और उम्मीदों का अंत है। उन परिवारों पर भी वज्रपात है जो बच्चे के लिये तमाम धार्मिक स्थलों में मन्नतें मांगते तथा अस्पतालों के चक्कर लगाते रहे।
निश्चित तौर पर एक्सप्रेस-वे के निकट मिट्टी खोदने से बने गड्ढे के पास चेतावनी संकेत नहीं लगाये गये होंगे, जो बताते कि ये गड्ढे मौत का सबब बन सकते हैं। आखिर निर्माण कार्य से जुड़े अधिकारियों, इंजीनियरों व ठेकेदारों की जवाबदेही क्यों नहीं तय की जाती? क्यों निर्माण से जुड़ा तंत्र किसी जान की कीमत का अहसास नहीं करता? निस्संदेह, यह पहली घटना नहीं है जिसमें बेकसूर बच्चों या लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी हो। देश में आये दिन ऐसे हादसे होते रहते हैं कि फलां जगह खोदे गड्ढे में गिरकर किसी की मौत हो गई, कभी ओवर ब्रिज का निर्माणाधीन हिस्सा गिरने से लोग मर गये।
दरअसल, हमारे देश में सार्वजनिक निर्माण से जुड़े मानकों में कामचलाऊ रवैया अख्तियार किया जाता है। लेकिन इसकी कीमत उस व्यक्ति व परिवार को चुकानी पड़ती है, जिसका कोई कसूर नहीं होता। वो बेमौत मारा जाता है। मृतकों के परिजनों की क्षति को संवेदनशील ढंग से महसूस करना चाहिए। साथ ही आपराधिक लापरवाही बरतने वालों को कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए। लगभग सभी विकसित देशों में सार्वजनिक निर्माण में न केवल गुणवत्ता के उच्च मानकों का निर्धारण होता है, बल्कि हादसे होने पर न्यायालय के जरिये मोटा जुर्माना देने को भी बाध्य किया जाता है। जिसके चलते सुरक्षा मानकों का सख्ती से पालन होता है।
देश के राष्ट्रीय राजमार्गों की दशा भी गंभीर है, जहां हर साल लाखों निर्दोष लोग मौत का शिकार बन जाते हैं। इसमें जहां तेज रफ्तार, नशे में ड्राइविंग व लापरवाही की भूमिका होती है, वहीं राजमार्गों के निर्माण संबंधी खामियां भी जिम्मेदार होती हैं। इन जोखिमभरी राहों के निर्माण में डिजाइन में खोट पाया जाता रहा है। यही वजह है कि भारत में विकसित देशों के मुकाबले प्रति व्यक्ति कम वाहन होने के बावजूद सड़क दुर्घटनाओं में मरने वाले लोगों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा है। दुख की बात है कि लाखों बेकसूर किसी दूसरे की गलती से मारे जाते हैं। लाखों की संख्या ऐसे लोगों की भी है जो इन दुर्घटनाओं में जीवनभर के लिये विकलांग हो जाते हैं।
इसमें भी दुखद यह है कि मरने वालों में सबसे ज्यादा संख्या युवाओं की है जो कामकाज के लिये घर से निकलते हैं। उनके निधन से पूरा परिवार गरीबी के दलदल में चला जाता है। ये अभागे उन डेढ़ लाख लोगों में शामिल हैं जो हर साल सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं। मुंबई-अहमदाबाद राजमार्ग पर सौ किलोमीटर के दायरे में इस साल साठ लोगों की मौत हो चुकी है। जिसमें राजमार्ग में निर्माण की तकनीक में चूक को भी जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। लेकिन इस तकनीकी खामी पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय देश का ध्यान पिछली सीट पर बेल्ट लगाने के मुद्दे पर केंद्रित कर दिया गया। जबकि राष्ट्रीय विमर्श राजमार्गों में निर्माण संबंधी खामियों को दूर करने पर केंद्रित होना चाहिए था।
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार राष्ट्रीय राजमार्गों में ३०.३ प्रतिशत दुर्घटनाएं दर्ज की गई । राज्य राजमार्गों में २३.९ हादसे हुए हैं। एक्सप्रेस वे पर कुल १८९९ सड़क दुर्घटनाएं हुई । २०२१ में अन्य सड़कों पर दुर्घटनाओं के कारण कुल ४०.५ प्रतिशत लोगों की मौत हुई। २०२१ में दोपहिया वाहनों में अधिकतम मृत्यु ६९२४० मौतें हुई। यह कुल मौतों का४४.५ प्रतिशत था। इसके बाद कारों में २३५३१ मौतें (१५.१ प्रतिशत )और ट्रक/लॉरी १४६२२ मौतें दर्ज हैं|
निस्संदेह, बेकसूर लोगों का असमय जाना रोकने के लिये राष्ट्रीय राजमार्गों में सुरक्षा मानकों में सुधार प्राथमिकता के आधार पर किया जाना चाहिए। साथ ही दोषपूर्ण निर्माण के लिए दोषी एजेंसियों तथा अधिकारियों के खिलाफ भी सख्त दंडात्मक कार्रवाई होनी चाहिए। राजमार्गों में गति जरूरी है, लेकिन उससे पहले मार्गों का रखरखाव व नागरिकों की जीवन रक्षा की प्राथमिकता तय की जानी चाहिए। दुर्घटना उन्मुख क्षेत्रों की पहचान करके उनके डिजायनों में अविलंब सुधार हो।

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