Shadow

मदरसा

अभी सिर्फ 25 % सर्वे पूरा हुआ है,जिसमे यूपी में लगभग 6500 ऐसे मदरसे पकड़े गए हैं,जो कि कहीं भी पंजीकृत नही हैं ! मुद्दा यह होना चाहिए था ,इनमें 'पढ़ने ' वाले लाखों 'छात्र ' कौन हैं... कहीं यह 'छात्र' रोहिंग्या या बांग्लादेशी तो नहीं हैं ? मदरसों के 'शिक्षकों' को वेतन कहाँ से और कौन दे रहा है ? इसमे कितने मदरसे सरकारी भूमि पर बने हैं ?....  'फंड मैनेजर' कौन है ? इन तथ्यों की जांच होनी चाहिए थी !

यह मदरसे चहुँओर हैं… लेकिन सीमांत क्षेत्रों में इनकी बाढ़ क्यों आई हुई है ? बगैर बैंकों में खाते खोले…. करोड़ों -अरबों रु की व्यवस्था कैसे हो रही हैं ? इन मदरसों में बंगाल,असम और बिहार से आये…. मोमिन बच्चों की इतनी बहुलता क्यों है  ? 

         इन प्रश्नों के उत्तर तलाशने के बजाए यूपी मदरसा बोर्ड के चेयरमैन जनाव जावेद इफ्तखार का कहना है कि इन मदरसों को गैर कानूनी कहना ‘गलत’ है… यही नहीं ,वह इन मदरसों के ऊपर कोई भी कार्यवाही न करके…. इनको भी वह आधुनिक बनाने की अनुशंसा करते हैं ! 

         यूपी सरकार ने वाकायदा एक पोर्टल खोला था/है जहां इन गैर कानूनी मदरसों को पंजिकृत कराने हेतु आवेदन किया जा सकता है,लेकिन हज़ारों ऐसे ‘गैरकानूनी’ मदरसों ने इसके लिए ऑनलाइन अप्लाई ही नहीं किया !

           बताते चलें… यूपी सहित देश के लगभग सभी प्रदेशों में सरकारी मदरसा बोर्ड हैं,जिन्हें सरकार … अपने मोमिन अधिकारियों की मदद से चलाती हैं ! इन मदरसों पर सरकार अरबों रु वेतन… प्रशासनिक खर्चों और आधुनिकीकरण पर खर्च करती है…. इन मदरसों के टीचर भी अधिकांश मदरसा एजकुटेड…. इन्ही मदरसों के पूर्व छात्र ही हैं ! कंप्यूटरीकरण पर अरबों रु खर्च हुए हैं ! मदरसे से निकला… बगैर कम्प्यूटर ज्ञान वाला शिक्षक….  कैसे कम्प्यूटर सिखाता होगा, अल्लाह ही जानता होगा ! इस कम्प्यूटर ज्ञान का क्या हो रहा है …. किसी को कुछ नहीं, मालूम !

          इन मदरसों में अंग्रेज़ी,गणित,सामाजिक शास्त्र और हिंदी तक की पढ़ाई नहीं होती ! दरअसल मदरसों की स्थापना सिर्फ कुरान के पठन-पाठन और इस्लाम के विस्तारीकरण हेतु हुई है…. भारत अकेला देश है जहां मज़हबी शिक्षा को भारत सरकार अपने ख़ज़ाने से फंड करती है…. यहां तक इमामों,मुअज़्ज़िनो और खादिमों को सरकारी वेतन मिलता है….

           बहरहाल,मदरसों का विकास और उनका आधुनिकीकरण अब सरकारों का ‘पवित्र’ उद्देश्य बन चुका है…. ऐसे ही दिल जीते जाते हैं ,भारत में…. मदरसों को अरबों रु प्रतिवर्ष देकर !

लेखक – पवन सक्सेना

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *