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क्या हम दिल्ली में बदलाव ला सकते हैं

लगभग हर दूसरे दिन हम टाइम्स ऑफ इण्डिया और अन्य समाचार पत्रों में दिल्ली के बारे में निम्न शीर्षकों के अंतर्गत ख़बरें पढ़ते हैं-

 

  • उपराज्यपाल की अनुमति का इंतज़ार न करें, दिल्ली गृह मंत्रालय से अधिकारियों को निर्देश
  • अधिकारियों से बात करें, उपराज्यपाल के आदेशों का पालन न करें
  • सिविक सेंटर के स्वामित्व को लेकर कॉर्पोरेशन में झगड़ा
  • बलात्कार के तमाम मामलों के बाद दिल्ली को मिला असुरक्षित राजधानी का तमगा
  • सड़कों पर कचरे का ढेर, बीमारियों को खुला निमंत्रण
  • एक ही घंटे की बारिश के बाद हर जगह पानी- ड्रेनेज सिस्टम फेल
  • अधिकरण कार्यवाही, प्रतिपूर्ति जारी करने और भूमि पाने के मामले में दिल्ली सरकार और डीडीए के बीच तनातनी
  • दिल्ली सबसे प्रदूषित शहर है
  • दिल्ली महिला आयोग के सदस्य सचिव की नियुक्ति पर हमारे माननीय मुख्यमंत्री ने उपराज्यपाल को हिटलर की संज्ञा दी
  • स्थानीय नागरिकों की शिकायत है कि नालियां सही से साफ नहीं होती हैं जिसका नतीजा है न जाने कितनी जगहों पर पानी का भराव
  • उच्च न्यायालय- ऑटो परमिट योजना में गड़बड़ी थी
  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि उपराज्यपाल ही राजधानी का प्रमुख है, जिसका अर्थ है सभी नियुक्तियों में उनका अनुमोदन चाहिए
  • पीडब्ल्यूडी की सभी सड़कों में मरम्मत होनी है मगर केवल गड्ढों की ही मरम्मत की जा रही है। दूसरी तरफ कॉर्पोरेशन की तरफ से दिल्ली सरकार पर सड़कों पर मुख्य मरम्मत कार्य न करने के लिए राशि न जारी करने का आरोप लगाया गया है।
  • आरोप प्रत्यारोपण का खेल : दिल्ली में नागरिक निकायों ने दावा किया कि नगर निगमों और सरकार के बीच तालमेल का अभाव है। सरकार निगमों पर आरोप लगाकर अपनी विफलताओं को छिपाने की कोशिश कर रही है।
  • कूड़े से भरी पूर्वी दिल्ली में सेहत के खतरे उभर कर आए हैं। अधिकतर कचरा सड़कों पर है और उसके कारण बच्चे और वृद्ध बीमार पड़ रहे हैं।

यह दिल्ली है, भारत की राजधानी, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की राजधानी, और जैसा हम जानते हैं दिल्ली ही पूरी दुनिया में भारत का चेहरा है। दिल्ली एक बहुत ही अलग शहर है जिसमें अत्याधुनिक इमारतों के साथ साथ ऐतिहासिक इमारतों और स्मारकों को भी देखा जा सकता है, जो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं। आंकड़ों के अनुसार भारत आने वाले पर्यटकों में से 30 प्रतिशत पर्यटक दिल्ली आते हैं, जो किसी भी अन्य शहर की तुलना में सबसे अधिक है। इसके साथ ही हर देश के दूतावास भी दिल्ली में स्थित हैं और पूरी दुनिया से अधिकारी व गणमान्य हस्तियां दिल्ली में समय समय पर भ्रमण करती रहती हैं। जब वे इन सब ख़बरों को पढ़ते होंगे तो उन पर क्या असर पड़ता होगा और जब वे शहर के विभिन्न क्षेत्रों में झुग्गी/झोपड़ी आदि को देखते होंगे तो आखिर उनके मन में दिल्ली और भारत की क्या छवि बनती होगी? विदेशी मेहमानों और अधिकारियों को छोड़ भी दें तो भी प्रश्न यही उठता है कि क्या इस शहर के नागरिकों के पास एक साफ सुथरे स्वस्थ वातावरण में रहने का अधिकार नहीं है? क्या उन्हें यह अधिकार नहीं कि उनके शहर में पानी के निकास की उचित व्यवस्था हो जिससे लोगों को केवल दो ही घंटों की बारिश के चलते एक जगह से दूसरी जगह तैर कर न जाना पड़े? क्या उनके पास गड्ढे से मुक्त सड़कों पर यात्रा करने का अधिकार नहीं है? क्या हम सभी इस अव्यवस्था के प्रति शर्मिंदा नहीं है?

यह स्थिति पिछले दो वर्षों में केजरीवाल सरकार के अंतर्गत और भी खराब हुई है। हर दूसरे दिन केजरीवाल और उपराज्यपाल के बीच विवादों की खबर हमारे सामने होती है। हर रोज़ केजरीवाल और उपराज्यपाल के बीच कई मामले उच्च न्यायालय के बीच भेजे जाते हैं। क्या माननीय उच्च न्यायालय का समय इन मामलों में बर्बाद करना उचित है? उच्च न्यायालय के पास और भी अधिक जरूरी मुद्दे हैं। केजरीवाल को स्वास्थ्य सेवाओं आदि में सुधार या आधारभूत ढांचे में सुधार आदि में कोई भी रूचि नहीं है, उनका एकमात्र एजेंडा है दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलवाना। केजरीवाल यहां तक कह चुके हैं (टाइम्स ऑफ इण्डिया की रिपोर्ट) कि ”हम दिल्ली के लिए पूर्ण राज्य का दर्जा चाहते हैं और हमें रास्ता पता है। यदि हम शराफत से मांगेंगे तो ये गुंडे हमें रास्ता नहीं देंगे!’’ दिल्ली में क़ानून व्यवस्था की स्थिति दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है। कोई भी सरकारी विभाग शायद ही काम कर रहा है। आप पार्टी के विधायक विभिन्न जघन्य अपराधों के अंतर्गत गिरफ्तार किए जा रहे हैं। दिल्ली की जनता दिल्ली में होने वाले सभी घटनाओं से अब त्रस्त हो चुकी है, वह परेशान हो चुकी है। दिल्ली के उपराज्यपाल और सरकार के बीच रस्साकशी के इस खेल में राजधानी के नागरिक यह सोचने के लिए मजबूर हो गए हैं कि क्या भारत जैसे उस महान देश में जो दुनिया की पहली पांच आर्थिक शक्तियों में से एक बनना चाहता है, वहां राजनीतिक दलों के बीच इस तरह की नूराकुश्ती का खेल और नफरतों का खेल जरूरी है क्या?

इस समस्या का हल दिल्ली विधानसभा से छुटकारा पाकर यहां पर कोई भी चुनाव न कराने से हो सकता है जिससे कोई भी राजनीतिक दल अपना व्यक्तिगत एजेंडा महज राजनीतिक लोकप्रियता के लिए न चला सके, वह तुष्टिकरण के कारण जनता की नजऱों में महान न बन सके, और उसके साथ ही देश के अन्य राज्यों एवं बांग्लादेश जैसे देशों से नागरिकों के आने पर रोक लगानी होगी जो यहां पर केवल चुनावों के समय राजनीतिक दलों के द्वारा अपने समर्थन के लिए लाए जाते हैं। वर्तमान आप सरकार ने तो इन लोगों को कई स्थानों पर झुग्गी बनाने की अनुमति देकर स्थिति को और भी खराब कर दिया है, इन लोगों ने दिल्ली की कई पॉश कॉलोनी में भी झोपड़ी बना ली हैं। ये झुग्गी वाले अपना खाना पकाने के लिए और सर्दियों में खुद को गर्माहट देने के लिए लकड़ी और चारकोल जैसे ईंधन जलाते हैं, जिससे खतरनाक स्तर पर फैला प्रदूषण और भी गहरा हो जाता है। क्या इससे कोई फर्क पड़ेगा कि भारत की कुल 125 करोड़ की जनसंख्या में से मात्र 50 लाख लोग (मतदाता) अपने उस शहर के सुधार के लिए मतदान से वंचित कर दिए जाएं, जिस शहर में उन्होंने अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण समय को बिताया है?

केंद्र में वर्तमान सरकार का नेतृत्व इस समय बहुत ही शक्तिशाली, उत्साही, विकासशील और निष्पक्ष नेता श्री नरेंद्र मोदी के हाथ में है, जिनका मुख्य लक्ष्य है, विकास, गरीबों के जीवन में सुधार, आधारिक संरचना में निवेश, नौकरी निर्माण, सभी गांवों में बिजली पहुंचाना, मेक इन इण्डिया पर जोर आदि- जिसका अर्थ है भारत को दुनिया के सबसे विकसित देशों में से एक बनाना। उनके कुशल नेतृत्व में ही यह संभव है कि दिल्ली की स्थिति में परिवर्तन आ जाए। दिल्ली को केंद्र द्वारा शासित होने का एक ख़ास स्टेटस मिलना चाहिए और दिल्ली में किसी भी प्रकार का चुनाव नहीं होना चाहिए। यह ख़ास स्टेटस संसद में बिल पारित करवाकर संविधान में संशोधन करने के द्वारा हासिल किया जा सकता है।  इस सरकार ने काले धन पर प्रहार करने के द्वारा, विमुद्रीकरण के मास्टर स्ट्रोक के द्वारा नकद लेनदेन को कम करने के द्वारा बहुत ही मजबूत कदम उठाए हैं। इसलिए इस सरकार के लिए दिल्ली को इस मुश्किल स्थिति से निकालने के लिए संविधान में संशोधन एक बहुत मुश्किल कार्य नहीं है।

इस प्रणाली के लाभ आशातीत होंगे और उनमें से कुछ नीचे दिए गए हैं

  • केंद्र में सरकार के पास भारत के राष्ट्रपति के अनुमोदन के साथ उपराज्यपाल की नियुक्ति करने की पूरी शक्ति होनी चाहिए।
  • केंद्र सरकार को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में दिल्ली के उपराज्यपाल की सहायता करने के लिए विभिन्न विभागों के सचिवों की टीम का चयन करने के लिए तीन कैबिनेट मंत्रियों की एक समिति बनानी चाहिए जैसे गृह सचिव, शिक्षा सचिव, स्वास्थ्य सचिव आदि।
  • ये सचिव या तो केंद्र में किसी राजनीतिक दल से हो सकते हैं या आईएएस कैडर के हो सकते हैं या विभिन्न सरकारी विभागों के विभागाध्यक्ष हो सकते हैं। ये इन तीनों का समन्वय भी हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, स्वास्थ्य सचिव या तो एम्स से सबसे अनुभवी डॉक्टर हो सकते हैं, जिससे उन्हें बीमारी की तलाश करने के लिए किसी भी तरह से गूगल की मदद न लेनी पड़े, जैसा वर्तमान की आप सरकार के स्वास्थ्य मंत्री कर रहे हैं।
  • विभिन्न नगर निगमों के अध्यक्ष की नियुक्ति भी उचित क्षमतावान व्यक्तियों का चयन करने के लिए सचिवों की समितियों के द्वारा उप राज्यपाल की अध्यक्षता के अंतर्गत होनी चाहिए, ये व्यक्ति या तो उनके राजनीतिक दल से हो सकते हैं, या अकादमिक सर्कल से हो सकते हैं या नागरिक कल्याण संघों (रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन) से हो सकते हैं।
  • उपराज्यपाल को हर महीने सभी सचिवों और विभिन्न विभागों एवं निगमों के प्रमुखों के साथ विकास मुद्दों का आंकलन करने के लिए और प्रगति की समीक्षा करने के लिए एक बैठक करनी चाहिए। यह प्रक्रिया ‘आरोप प्रत्यारोप’ के इस खेल को पूरी तरह से रोकेगी, जो वर्तमान व्यवस्था में दोनों ही पक्षों द्वारा खेला जा रहा है।
  • यह प्रणाली सभी विभागों और संस्थानों के बीच बेहतर समन्वय में सहायता करेगी और दिल्ली की स्थिति में सुधार आएगा।

दिल्ली की वर्तमान स्थिति इस समय पूरी तरह से प्रशासनिक अव्यवस्था में डूबी हुई है और यह न केवल आप की अक्षमताओं के कारण है बल्कि इसके पीछे केंद्र सरकार, उपराज्यपाल और नागरिक निकायों के साथ विश्वास, समझ और समन्वय के अभाव के कारण भी है।

इसने देश की राजधानी और उसके वफादार नागरिकों के लिए एक सुरक्षित भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए केंद्र के शासन के अंतर्गत दिल्ली को लाने के लिए उपरोक्त सुझावों के क्रियान्वयन के प्रति कार्य करने के लिए पृष्ठभूमि का निर्माण किया है।

 

सुरेन्द्र नायर

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