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सेमीकंडक्टर चिप 

सेमीकंडक्टर चिप 

50 वर्ष पूर्व सेमीकंडक्टर चिप (कंप्यूटर, सेल फ़ोन, फ़्लैश ड्राइव इत्यादि में लगने वाली चिप) बनाने के लिए सिलिकॉन वेफर (पापड़ से कई गुना पतली प्लेट) पर कुछ विशेष रसायन की एक पतली फिल्म छिडकी जाती थी और फिर उस पर एक मास्क एवं लेंस के माध्यम से साधारण प्रकाश स्रोत डाला जाता था। वेफर के जिस भाग पर प्रकाश पुंज पड़ता था, वहां मास्क पर बना पैटर्न रसायन पर छप जाता था।

ठीक वैसे ही जैसे एक समय नेगेटिव से फोटो डेवेलप की जाती थी।

इस पैटर्न, जिस पर विद्युत् प्रवाह हो सकती थी, पर किसी आभूषण में जड़े हीरे के सामान ट्रांजिस्टर बैठा दिए जाते थे। इसे इंटीग्रेटेड सर्किट का नाम दिया गया जिसे चिप भी कहा जाता है।

ट्रांजिस्टर की विशेषता यह है कि इन्हे विदूयत प्रवाह के द्वारा ऑन-ऑफ किया जा सकता है जो कंप्यूटर की भाषा भी है। अंक 1 – ऑन; अंक 0 – ऑफ। 1,0,1,0 … सभी सॉफ्टवेयर कोड इन्ही दो अंको – शून्य एवं एक – के द्वारा लिखे जाते है।

जैसे-जैसे कंप्यूटिंग पावर बढ़ती गयी, नए, सूक्ष्म ट्रांजिस्टर एवं चिप की आवश्यकता बढ़ती गयी। सूक्ष्म इसलिए क्योकि जितनी बड़ी चिप होगी, उतना ही बिजली या बैटरी पावर खायेगी।

फिर सामान्य प्रकाश पुंज की जगह अल्ट्रावायलेट पुंज का प्रयोग किया जाने लगा। क्योकि अल्ट्रावायलेट की वेवलेंथ 248 से 193 नैनोमीटर तक होती है। एक मीटर का सौ करोड़वा भाग एक नैनोमीटर होता है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि 193 नैनोमीटर कितना सूक्ष्म होता होगा।

शुरुवाती चिप पर चार मोटे ट्रांजिस्टर लगे थे। लेकिन अल्ट्रावायलेट प्रकाश पुंज के कारण 2010 के प्रारंभ में एक चिप में सौ करोड़ से अधिक ट्रांजिस्टर फिक्स होने लगे।

जब हम सेल फ़ोन पर कोई फिल्म देखते है तो हर पल करोड़ो ट्रांजिस्टर एक साथ ऑन (1) एवं ऑफ (0) होते रहते है जिससे (1) एवं (0) में कन्वर्ट की गयी फिल्म को सेल फ़ोन एक इमेज के रूप में देखता है।

लेकिन फिर 4G एवं 5G आ गया जिससे हम सेल फ़ोन पर हाई डेफिनिशन या उच्च गुणवत्ता की फिल्म देख सकते है; वीडियो गेम खेल सकते है। इसके लिए चिप पर कई सौ करोड़ अतिरिक्त ट्रांजिस्टर बैठाने होंगे। क्योकि ना केवल हमें फिल्म देखनी है, बल्कि एक पतली सी बैटरी भी एक-दो दिन चलानी है।

अतः ऐसी चिप के निर्माण के लिए एक्सट्रीम अल्ट्रावायलेट (EUV) प्रकाश पुंज – जिसकी वेवलेंथ केवल 13.5 नैनोमीटर होती है – का प्रयोग करने का प्रयास किया गया।

लेकिन समस्या यह थी कि EUV प्रकाश पुंज का बल्ब कहीं नहीं मिलता। EUV को विशेष प्रक्रिया के द्वारा बनाया जाता है। क्या है वह विशेष प्रक्रिया?

एक वैक्यूम के अंदर टिन की अति सूक्ष्म बूँद को 350 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से शूट किया जाता है जिसे एक लेज़र पुंज दो बार टक्कर मारता है। पहला प्रहार टिन की बूँद को गर्म करने के लिए, एवं द्वितीय प्रहार उस टिन को पीस कर प्लाज्मा (एक ऐसी गर्म गैस जिसका तापमान पांच लाख डिग्री होता है) में परिवर्तित कर देता है। उस समय यह प्लाज्मा सूर्य की सतह से कई गुना अधिक गर्म होता है।

अब ऐसी प्रक्रिया के द्वारा प्रति सेकंड 5 करोड़ टिन बूँद पीसी जाती है जिससे नयी चिप बनाने के लिए एक्सट्रीम अल्ट्रावायलेट प्रकाश पुंज का निर्माण होता है।

लेकिन इस प्रक्रिया के लिए विशेष लेज़र एवं अति जटिल लेंस का प्रयोग होता है जो यह सुनिश्चित करते है कि 30 मीटर दूर स्थित करोड़ो टिन की बूंदो को हर सेकंड बिना त्रुटि के दो बार हिट किया जा सके। लेज़र चैम्बर में स्पेशल गैस भरी जाती है; उस गैस का घनत्व कांस्टेंट रखा जाता है; पिसते हुए टिन के प्रकाश को स्पेशल लेंस एवं शीशे द्वारा कण्ट्रोल किया जाता है। और इस प्रकार बने हुए EUV को शुद्धतम हीरे के द्वारा सिलिकॉन वेफर पर फोकस किया जाता है। ऐसे एक EUV संयंत्र में 457,329 पुर्जे लगे होते है।

परिणाम यह हुआ कि वर्ष 2020 में बनने वाले iPhone की प्रोसेसर चिप में 1180 करोड़ ट्रांजिस्टर लगे थे। और यह विशेष चिप पूरे विश्व में केवल ताइवान की फैक्ट्री TSMC की एक यूनिट – Fab 18 – में ही बन सकती है।

प्रधानमंत्री मोदी इसी चिप बनाने की फैक्ट्री गुजरात में लगवा रहे है जो वर्ष 2025 में चिप का उत्पादन शुरू कर देगी।

अमित सिंघल

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