पंजाब, गोवा, उत्तराखंड और मणिपुर के परिणामों से देश की राजनीति में कुछ हलचल जरूर मची किंतु तूफ़ान तो यूपी के परिणामों से ही आया। सेकुलर खेमा जो माया और अखिलेश में बंट गया विचित्र स्थिति में है। सच कहें तो सन् 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए उसका अस्तित्व ही दांव पर है। बिहार के आमने सामने के मुकाबले के विपरीत त्रिकोणीय मुकाबले से दो चार यह प्रदेश पूरे उत्तर प्रदेश में बह रही आंधी के बीच भाजपा की शानदार जीत बढ़त की कहानी कह रहा है। यानि नीले और हरे के बाद अब भगवा युग की तूफानी वापसी। अब नितीश भी बिहार में लालू को लात मार भाजपा का हाथ कभी भी थाम सकते हैं। कांग्रेस पाताल में चली गयी है और मोदी अजेय हो गये हैं।
अगड़े, गैर यादव पिछड़े और गैर जाटव दलित का एक धड़ा यानि 50 प्रतिशत से भी अधिक वोट बैंक को कब्जे में करने की मोदी और शाह की कोशिशें जाटों और वैश्यों के आरंभिक विरोध के बाबजूद परवान चढ़ गयीं।
निष्कर्षत: हम कह सकते हैं कि –
- गलत टिकट बंटबारे के बाद भी मोदी और शाह की विनम्र शैली, ताबड़तोड़ रैलियां, रूठों को मनाने के लिए हर संभव प्रयास, अगड़ों और पिछड़ों की अपने पक्ष में सफल लामबंदी, हर चरण के लिए गहराई से आक्रामक रणनीति, विपक्षी दलों में तोडफ़ोड़, ब्राह्मणों, राजपूतों और राजनाथ सिंह, पार्टी के पिछड़ों और दलित नेताओं को एक साथ कर सफलतापूर्वक इस्तेमाल करना, सभी क्षेत्रीय नेताओं का चतुराई से इस्तेमाल, बेहतर मीडिया मैनेजमेंट, मोदी मैजिक को चतुराई से भुनाना, ओम् माथुर, सुनील बंसल और केशव प्रसाद मौर्या की तिकड़ी का ज़मीनी हकीकत और वास्तविक मुद्दों का सही आंकलन तो है ही साथ ही पहले दो चरणों में यानि पश्चमी उत्तर प्रदेश में विकास के नारे के बीच मुस्लिम मतों का सपा और बसपा के बीच बंटवारा कराने में सफलता और बाकी पांच चरणों में आक्रामक हिंदुत्व के मुद्दे का नारा लगा हिन्दुओं का ध्रुवीकरण कराने में सफल होना भाजपा की जीत में निर्णायक रहा।
- मायावती को कांग्रेस से हाथ न मिलाना हमेशा सालता रहेगा। नोटबंदी की मार और चुनावों में करारी हार के बाद अब कानून के वार भी उन पर होने तय हैं। दलित राजनीति की इस सबसे बड़ी नेता का अवसान अब तय है। कहीं न कहीं अंदरखाने वो मोदी सरकार के दबाव में भी कांग्रेस से हाथ मिलाने से हिचकती रही। मुस्लिमों पर जरुरत से ज्यादा भरोसा भी उन्हें ले डूबेगा क्योंकि मुस्लिम जहां भी सपा का उम्मीदवार मजबूत दिखा वहां बसपा से किनारा कर गए और दलित वोटों की लामबंदी भी काम न आ सकी।
- सपा और अखिलेश पारिवारिक सियासी ड्रामे के बीच अपनी छवि बचाने और बनाने के खेल में ज्यादा ही डूब गए और बहुत देर से मैदान में उतरे। नोटबंदी की मार के कारण काफी समय बड़े लोगों से उगाही और बैंकों से जबरन पुरानी करेंसी बदलवाने में भी लग गया तो मुलायम, अमर और शिवपाल खेमे से भी खिंचाखिची महंगी पड़ती दिख रही है। राहुल से जोड़ी बनाने और सरकारी विज्ञापनों के जरिये प्रचार कुछ उसी तरह लगा जैसे अटल सरकार का शाइनिंग इंडिया कार्यक्रम। पुराने घोटाले, लूट, अनाचार, कुकर्म और पाप, अति नाटकीयता और प्रचार उस पर वोटविहीन कांग्रेस का साथ अन्तत: घाटे का सौदा बन गया।
तालिबानी शासन से उत्तर प्रदेश को क्या निकाल पाएंगे योगी ?
योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनते ही पहली बार देश को पता चला कि उत्तर प्रदेश में दो लाख करोड़ रुपयों का मांस का कारोबार होता है और इसमें से 80 प्रतिशत तक अवैध था। इस कारण पशुधन और खेती को कई गुना अधिक नुकसान हो रहा था।
सच तो यह है कि उत्तर प्रदेश में तंबाकू, गुटखे और देसी/अंग्रेजी शराब का कारोबार भी 4 से 5 लाख करोड़ तक का है। हर वर्ष प्रदेश के लाखों परिवार नशे की भेंट चढ़ जाते हैं। प्रदेश में अवैध देसी, सस्ती मगर जहरीली शराब पड़ोसी राज्य हरियाणा से आती है जहां भाजपा की ही सरकार है। अब मात्र सरकारी दफ्तरों में गुटखा तंबाकू प्रतिबंधित करने से काम नहीं होने वाला बल्कि समग्र रूप से नशाबंदी लागू करनी पड़ेगी। क्या योगी जी इस पर कुछ करेंगे?
उत्तर प्रदेश के माध्यमिक स्कूल फर्जी विद्यार्थियों से भरे हैं। 10 वी और 12वी के लाखों विद्यार्थियों के फर्जी प्रवेश और नकल माफिया की कारगुजारी सर्वविदित है। क्या योगी जी इस पर रोक लगा पाएंगे?
प्रदेश में ट्रांसफर और पोस्टिंग तथा विभिन्न चयन बोर्डों द्वारा चयन अब तक एक सुनियोजित धंधा था। आईएएस और पी सी एस अधिकारी विभाग ठेके पर लेकर सत्तारूढ़ दल को मोटा माल देकर खुली लूट करने के आदि रहे हैं। कोई भी विभाग ऐसा नहीं जहां लूट न हो।
पुलिस थाने सुनियोजित अपराध के अड्डे हैं क्या उन पर नियंत्रण संभव है? प्रत्येक शहर का विकास प्राधिकरण जमीन, प्लाट और मकानों की खुली लूट का अड्डा है जो मुख्यमंत्री कार्यालय से निर्देशित होता रहा है क्या यह खेल रुकेगा?
सरकारी खजाने को लूटकर नेताओ, अफसरों, दलालों और ठेकेदारों ने समानांतर अर्थव्यवस्था खड़ी कर ली है। क्या इन सिंडिकेट के खिलाफ कोई कार्यवाही योगी सरकार करेगी?
पिछले 15 वर्षों में उत्तर प्रदेश को योजनाबद्ध रूप से सेकुलर खेमे ने माया- मुलायम- अखिलेश के नेतृत्व में अराजकता और लूट की ओर धकेला है। अगर कानून का शासन और व्यवस्था बनानी है तो अपराधियों और कानून तोडऩे वालों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करनी पड़ेगी। अगर जनता को लगा कि अपराधी नेता और सरकारी कर्मचारी बख्शे जा रहे हैं तो सन् 2019 के लोकसभा चुनावों में हाथ से जीत फिसल भी सकती है।
अनुज अग्रवाल