अथक परिश्रम के पश्चात प्राप्त की गई विजय का सुख स्वयं में अत्यधिक लुभावना होता है और उस सुख को चाटुकार लोग अपनी चाटुकारिता से अत्यधिक मिठास से भर देते हैं। वास्तव में गुजरात विधानसभा चुनावों में भाजपा को एक श्रेष्ठ जनाधार के साथ विजयश्री प्राप्त हुई। अब इस विजयश्री प्राप्ति के पश्चात भाजपा के नीतिकारों को स्व-आंकलन करना भी आवश्यक है। यदि भाजपा की विजय का आंकलन निष्पक्षता के साथ किया जाए तो केजरीवाल जी का दिवास्वप्न इस चुनाव परिणाम के माध्यम से हकीकत में तो नहीं बदल सका परन्तु उसने प्रदेश से कांग्रेस को समाप्त कर भाजपा को प्रचण्ड जीत की ओर उन्मुख अवश्य किया।
गुजरात विधानसभा चुनाव के परिणाम के विषय में भाजपा को और अधिक मंथन करने की आवश्यकता है। इस विजयश्री को प्राप्त करने के लिए भाजपा ने क्या-क्या दांव पर लगाया यह जानना अतिआवश्यक है। इन चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री मोदी जी एवं गृह मंत्री अमित शाह जी की साख तो दांव पर लगी ही थी, वहीं सम्पूर्ण केन्द्रीय मंत्री मण्डल, भाजपा शासित मुख्यमंत्री, भाजपा के अधिकांश सांसद एवं सम्पूर्ण भाजपा के पदाधिकारी भी इस विजयश्री को प्राप्त करने के लिए प्रयासरत् थे। आज सम्पूर्ण देश में भाजपा मोदी जी के कंधो पर ही सवार होकर विजयश्री प्राप्त करने का प्रयास कर रही है, क्या यह विश्व की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा की पहचान (भाजपा बनाम मोदी जी) नहीं बन गई है? इस प्रश्न का उत्तर इसी से प्राप्त होता है कि अधिकांश प्रदेश नेतृत्व आज मोदी जी के वर्चस्व से ही अपनी साख को बचाने में सफल हो रहे हैं। इस पर भाजपा को सच्चें हृदय से मंथन करने की आवश्यकता है। एक समय था जब प्रदेशों के चुनावों में प्रधानमंत्री जाते ही नहीं थे और तब भी चुनाव जीते जाते थे और आज यह समय आ गया है कि यदि आज प्रधानमंत्री मोदी जी चुनाव प्रचार प्रसार में अपनी भागीदारी न करें तो किसी भी प्रदेश के नेतृत्व में चुनाव को जीतने की क्षमता अथवा स्वयं पर विश्वास नहीं है।
यदि हम हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव परिणाम का विश्लेषण करें तो भाजपा के हिमाचल प्रदेश नेतृत्व के लिए बहुत बड़ी सीख है, क्योंकि भाजपा के केन्द्रीय अध्यक्ष स्वयं हिमाचल प्रदेश के ही निवासी हैं। यदि अध्यक्ष के प्रदेश में ही पार्टी हार जाती है तो इस विषय में गम्भीर चिन्तन की आवश्यकता स्वयं उत्पन्न हो जाती है।
खतौली की विधानसभा सीट भी भाजपा की ही सीट थी तथा प्रदेश में भाजपा का शासन है। इस सीट को जीतने के लिए अत्यधिक प्रचार प्रसार भी किया, फिर भी यह सीट नहीं जीती जा सकी। इस हार के संदेश को भी भाजपा नेतृत्व द्वारा गम्भीरता से लेने की आवश्यकता है।
दिल्ली नगर पालिका के चुनाव परिणाम को सहजता से लेना घातक होगा, क्योंकि दिल्ली भारत का दिल है, वहाँ पर भाजपा का शासन भी है, केन्द्रीय शासन का मुख्यालय भी है। वहाँ पर प्रधानमंत्री से लेकर सम्पूर्ण मंत्रीमण्डल विद्यमान रहता है, जिसके निवासी सम्पूर्ण भारत की जनता का प्रतिनिधित्व करते है, वहाँ पर भाजपा को विजयश्री प्राप्त न हो पाना निश्चितः आसानी से सहन नहीं किया जा सकता
मैनपुरी उपचुनाव में भाजपा की हार कोई विशेष बात नहीं है, क्योंकि वहाँ सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव जी की सहानुभूति और शिवपाल जी का सपा में मिल जाना स्वयं में बहुत बड़ी चुनौती थी, जिसको नकारा नहीं जा सकता। वहाँ की हार सहजता के साथ स्वीकार की जा सकती है, परन्तु हिमाचल प्रदेश, खतौली और दिल्ली नगर पालिका की चुनावी हार से जो संदेश मिल रहा है, उसकी गम्भीरता को समझना अति आवश्यक है। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव भी अधिक दूर नहीं है। अभी तक प्राप्त क्षेत्रीय/प्रदेशीय चुनावों के परिणामों को सहज रूप में लेना श्रेयस्कर नहीं होगा। अब समय आ गया है कि क्षेत्रीय नेतृत्व को भी अपनी जिम्मेदारी को सुनिश्चित करना होगा और पार्टी में इस बदलाव की सोच को भी क्रियान्वित करना होगा, जिससे आगामी सभी चुनावों को जीतने की चुनौती का सामना केवल माननीय मोदी जी के कंधों पर ही नहीं होगा अपितु उस जीत में समस्त पार्टी के सदस्यों का भी समान योगदान होगा।
*योगेश मोहन*