Shadow

जैन तीर्थ के अस्तित्व एवं अस्मिता से खिलवाड़ क्यों?

– ललित गर्ग-

जैन समाज के सर्वोच्च तीर्थ सम्मेद शिखर को लेकर देशभर में गुस्सा और आक्रोश का उबरना झारखंड सरकार की दूषित नीति को दर्शा रहा है। गिरिडीह जिले में स्थित पारसनाथ पहाड़ी को पर्यटन केन्द्र घोषित किया जाना, जैन समाज की आस्था एवं भक्ति से खिलवाड़ है, उनकी धार्मिक भावनाओं को आहत करना है। इसके खिलाफ देशभर में जैन समाज के लोग इसलिये प्रदर्शन कर रहे हैं कि पारसनाथ पहाड़ी दुनिया भर के जैन धर्मावलंबियों में सर्वाेच्च तीर्थ सम्मेद शिखर के तौर पर प्रसिद्ध है। इसे पर्यटन केन्द्र घोषित करने से इसकी पवित्रता खण्डित होगी, मांस-मदिरा का सेवन करने वाले लोग आने लगेगे। यह मौज-मस्ती का अड्डा एवं अनेक अधार्मिक गतिविधियों का यह केन्द्र बन जायेंगा। किसी व्यक्ति के बारे में सबसे बड़ी बात जो कही जा सकती है, वह यह है कि ”उसने अपने चरित्र पर कालिख नहीं लगने दी।“  जब व्यक्ति अपने पर कालिख नहीं लगने देता तो उसकी धार्मिक आस्था के सर्वोच्च पर कालिख पोतने के प्रयासों को कैसे सहन कर सकेगा? अपने धर्म दीप को दोनों हाथों से सुरक्षित रखकर प्रज्वलित रखने का प्रयास जायज है। ऐसा करना हर व्यक्ति, धर्म, आस्था के मानने वाली परम्परा का लोकतांत्रिक अधिकार है, इस पर किसी सरकार के द्वारा कालिख पोतने का प्रयास एक तरह से आकाश में पैबंद लगाना या सछिद्र नाव पर सवार होना है।
इस तीर्थस्थल की श्वेतांबर और दिगंबर जैनियों के लिए वही पवित्रता, महत्ता, दिव्यता है, जो मक्का-मदीना, येरुशलम, स्वर्ण मंदिर और वैष्णो देवी मंदिर आदि की है। चूंकि पर्यटन स्थल विकसित किया जाना है, लिहाजा सरकारी अधिसूचना में मछली और मुर्गी पालन का उल्लेख है। पर्यटकों के लिए होटल, रिजॉर्ट बनेंगे, लिहाजा पेड़ों के अवैध कटान और खनन अभी से जारी हैं। वन-विभाग अलग-अलग संगठनों और कंपनियों को जमीन बेच रहा है, नतीजतन अभी से अतिक्रमण शुरू हो गए हैं। बोर्ड तोड़ दिए गए हैं, असामाजिक तत्त्व सक्रिय हैं, वाहनों की आवाजाही बढ़ गई है, लिहाजा पर्यावरण छिल रहा है। इसका अर्थ यह नहीं है कि श्री सम्मेद शिखरजी जैसे सुरम्य पर्वतीय स्थलों पर पर्यटक जाएं ही नहीं। वे वहां जाएं लेकिन उनका आचरण नियंत्रित हो, मर्यादित हो और धर्मप्रेमी लोगों का ध्यान भंग करनेवाला न हो।
श्री सम्मेद शिखरजी ऐसा पवित्र स्थल है, इस पुण्य क्षेत्र में जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों (सर्वाेच्च जैन गुरुओं-तीर्थंकरों) ने मोक्ष की प्राप्ति की। यहीं 23 वें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ ने भी निर्वाण प्राप्त किया था। हर जैन धर्मावलम्बी के लिये यह ऐसा तीर्थ है, जहां जीवन में बार- बार दर्शन की भावना रहती है, जहां  मुंहपट्टी लगाए रखते थे या मुंह खोलते ही नहीं थे ताकि किसी जीव की हिंसा न हो जाए। बिना जूते-चप्पल जाते हैं। बिना आहार ग्रहण करने की भावना रहती है, ऐसा पवित्र भाव जिस तीर्थ के लिए करोड़ों लोगों के दिल में रहता हो, यदि उसे सरकार एक पर्यटन स्थल बना दे तो वहां क्या नहीं होगा? तब क्या वहां लोग मौज-मजा करने के लिए नहीं आने लगेंगे? वे वहां शराब पियेंगे, मांसाहार करेंगे और बहुत-से अनैतिक काम भी वहां होने लगेंगे, सारे भारत का जैन समाज इस आशंका से उद्वेलित है। क्योंकि ”सम्मेद शिखरजी“ जैन संस्कृति है, सभ्यता है, आस्था है, इतिहास है, विरासत है और धार्मिकता का सर्वोच्च शिखर है।

सम्मेद शिखरजी 1,350 मीटर (4,430 फ़ुट) ऊँचा यह पहाड़ झारखंड का सबसे ऊंचा स्थान भी है। यहाँ हर साल लाखों जैन धर्मावलंबियों आते है, साथ-साथ अन्य पर्यटक भी पारसनाथ पर्वत की वंदना करना जरूरी समझते हैं। गिरिडीह स्टेशन से पहाड़ की तलहटी मधुवन तक क्रमशः 14 और 18 मील है। पहाड़ की चढ़ाई उतराई तथा यात्रा करीब 18 मील की है। यह जैन तीर्थों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। यह ‘सिद्धक्षेत्र’ कहलाता है और जैन धर्म में इसे तीर्थराज अर्थात् ‘तीर्थों का राजा’ कहा जाता है। जैन ग्रंथों के अनुसार सम्मेद शिखर और अयोध्या, इन दोनों का अस्तित्व सृष्टि के समानांतर है। इसलिए इनको ‘शाश्वत’ माना जाता है। प्राचीन ग्रंथों में यहाँ पर तीर्थंकरों और तपस्वी संतों ने कठोर तपस्या और ध्यान द्वारा मोक्ष प्राप्त किया। यही कारण है कि जब सम्मेद शिखर तीर्थयात्रा शुरू होती है तो हर तीर्थयात्री का मन तीर्थंकरों का स्मरण कर अपार श्रद्धा, आस्था, उत्साह और खुशी से भरा होता है। इन स्थितियों की जगजाहिर जानकारी के बावजूद झारखंड सरकार ने क्या सोचकर इसे पर्यटन केन्द्र घोषित किया। वैसे भी कोई भी धार्मिक स्थल पर्यटन केन्द्र नहीं हो सकता।
जैन शास्त्रों में लिखा है कि अपने जीवन में सम्मेद शिखर तीर्थ की एक बार भावपूर्ण यात्रा करने पर मृत्यु के बाद व्यक्ति को पशु योनि और नरक प्राप्त नहीं होता। यह भी लिखा गया है कि जो व्यक्ति सम्मेद शिखर आकर पूरे मन, भाव और निष्ठा से भक्ति करता है, उसे मोक्ष प्राप्त होता है और इस संसार के सभी जन्म-कर्म के बंधनों से अगले 49 जन्मों तक मुक्त वह रहता है। यह सब तभी संभव होता है, जब यहाँ पर सभी भक्त तीर्थंकरों को स्मरण कर उनके द्वारा दिए गए उपदेशों, शिक्षाओं और सिद्धांतों का शुद्ध आचरण के साथ पालन करें। इस प्रकार यह क्षेत्र बहुत पवित्र माना जाता है। पर्यटन केन्द्र बन जाने से इसकी पवित्रता कैसे सुरक्षित रहेगी? क्योंकि पर्यटन केन्द्र बन जाने से लोग वहां भक्ति के लिये मनोरंजन के लिये जाने लगेंगे।
सम्मेद शिखर तीर्थ का धार्मिक के साथ साथ सांस्कृतिक, सामाजिक एवं ऐतिहासिक महत्व भी है। इस क्षेत्र की पवित्रता और सात्विकता के प्रभाव से ही यहाँ पर पाए जाने वाले शेर, बाघ आदि जंगली पशुओं का स्वाभाविक हिंसक व्यवहार नहीं देखा जाता। इस कारण तीर्थयात्री भी बिना भय के यात्रा करते हैं। संभवतः इसी प्रभाव के कारण प्राचीन समय से कई राजाओं, आचार्यों, भट्टारक, श्रावकों ने आत्म-कल्याण और मोक्ष प्राप्ति की भावना से तीर्थयात्रा के लिए विशाल समूहों के साथ यहाँ आकर तीर्थंकरों की उपासना, ध्यान और कठोर तप किया। इसके तीर्थ के महत्व को बहुगुणित करने की बजाय उस पर कालिख लगाने की कुचेष्टा एवं षडयंत्र असहनीय ही माना जायेगा। प्रश्न है कि इसके लिये जैन समाज का सर्वोच्च राजनीतिक नेतृत्व क्या सोचकर चुप्पी साधे रहा? देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी निभाने वाले इस अहिंसा एवं शांति के पुजारी समाज को आखिर क्यों आहत किया जा रहा है? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं गृहमंत्री अमित शाह को इसमें दखल देकर जैन समाज के उबलते गुस्से को शांत करना चाहिए। अन्यथा इसे पर्यटन केन्द्र बनाए जाने का विरोध कर रहे जैन मुनि सुज्ञेयसागर महाराज ने जिस तरह प्राण त्यागे, अन्य ऐसी बलिदान की घटनाएं भारत की सर्वधर्म समन्वय संस्कृति एवं विरासत को धुंधली करती रहेगी। इस प्रकार की उद्देश्यहीन, उच्छृंखल, विध्वंसात्मक नीति के द्वारा किसी का भी हित सधता होे, ऐसा प्रतीत नहीं होता। यह एक तरह का दूषित राजनीति का द्योतक है, इस दूषित एवं अपरिपक्व राजनीति सोच से ठीक उसी प्रकार लड़ना होगा जैसे एक नन्हा-सा दीपक गहन अंधेरे से लड़ता है। छोटी औकात, पर अंधेरे को पास नहीं आने देता। क्षण-क्षण अग्नि-परीक्षा देता है। कहा तो यही जाता है कि सरकारें निष्पक्ष होती हैं और सभी धर्मों का समान सम्मान करती हैं। सभी धर्मों को समान रूप से देखती हैं। फिर इन झारखंड सरकार को ऐसा क्या हो गया है कि वे जैन लोगों की धार्मिक भावनाओं के खिलाफ निर्णय लेने में जरा भी नहीं हिचकिचाई।
एक बड़ा प्रश्न है कि झारखण्ड सरकार इसे पर्यटन स्थल बनाने पर क्यों तुली हुई है? सवाल ये भी उठता है कि क्या राज्य सरकार ने ऐसा निर्णय लेने से पहले जैन समाज से पूछा? या ऐसा कोई सर्वे करवाया जिसमें आया हो की अधिसंख्य जैनों ने कहा हो कि हाँ, बना दीजिए सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल। हमें कोई आपत्ति नहीं हैं। दरअसल, सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया। क्यों? किसी को नहीं पता। तीर्थ स्थल की पवित्रता बनाए रखना सरकार का पहला धर्म होना ही चाहिए। ऐसी कोई जानकारी नहीं मिलती कि अहिंसक जैन समाज ने कभी इतना व्यापक आंदोलन ने छेड़ा हो और देशभर में स्थान-स्थान पर नौबत सडकों पर बिछ जाने तथा क्रमिक अनशन तक की आ गई हो। शांत, संयमी, उद्यमी और अहिंसक जैनियों की आध्यात्मिक आस्थाओं पर प्रहार किया गया है। उनके दिव्य, भव्य और परम पावन तीर्थ ‘श्री सम्मेद गिरिराज’ को मांस-मदिरा, ऐशपरस्ती का अड्डा बनाने की कोशिश झारखंड सरकार ने की है, लेकिन सवालों के कटघरे में भारत की केन्द्र सरकार भी है। अब झारखंड एवं केन्द्र सरकार को अपनी इस भूल को सुधारना चाहिए। प्रेषकः

 (ललित गर्ग)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *