अमेरिकी राष्ट्रपति के बारे में दो-ढाई माह पहले मेरी जो धारणा बनी थी, वह अब सही निकलती जा रही है। राष्ट्रपति बनते ही डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया था कि वे सिर्फ ‘अमेरिका महान’ का ख्याल रखेंगे। उन्होंने पिछले राष्ट्रपतियों की तरह सारी दुनिया को सुधारने का ठेका नहीं ले रखा है। उन्होंने अमेरिका के सबसे ज्यादा प्रिय सैनिक गठबंधन, ‘नाटो’ से भी निकल जाने की धमकी दी थी। लेकिन हमें तब ही लग रहा था कि ट्रंप नौसिखिए हैं। उनके मन में जो भी आता है, उसे वे उगल देते हैं या फिर उनके आस-पास मंडरानेवाले चाटुकार उनके कान में जो भी फूंक मार देते हैं, उसे वे अपने बयान की शक्ल दे देते हैं। उन्होंने सीरिया में जो प्रक्षेपास्त्र दागे हैं, वह इसी प्रवृत्ति का प्रमाण हैं। इसमें शक नहीं कि सीरिया के शेखों नामक स्थान पर जहरीली गैस छोड़कर बशर-अल-असद की फौज ने बहुत ही निंदनीय कार्य किया है। इस नर-संहार के जो चित्र छपे हैं, उन्हें देखकर पत्थरदिल आदमी का कलेजा भी दहल जाता है। ट्रंप का कलेजा भी दहल गया। यह अच्छी बात है लेकिन जो ट्रंप 2013 में इसी तरह की घटना घटने पर ओबामा को सीरिया पर हमला न करने की सलाह दे रहे थे, उनका अचानक यह शीर्षासन करना कहां तक उचित है? यह कोरी भावुकता नहीं है तो क्या है? क्या ट्रंप प्रशासन ने असद-सरकार को गिराने का फैसला कर लिया है? इसके कोई संकेत नहीं हैं। क्या अमेरिका, सीरिया में भी वही हालात पैदा करेगा, जो उसने ईराक और लीबिया में किए थे? क्या वह ओबामा के आखिरी दिनों में रुस के साथ बनी संयुक्त रणनीति को तिलांजलि दे रहा है? क्या अब सीरिया में रुस और अमेरिका आमने-सामने आकर लड़ेंगे? असद को भगाकर क्या अमेरिका आईएसआई के आतंकवादियों के हाथ मजबूत नहीं करेगा? सीरिया के गृहयुद्ध में पहले पांच लाख लोग मारे जा चुके हैं और लगभग सवा करोड़ लोग उजड़ चुके हैं। रुस और ईरान ने ट्रंप के इस हमले को अन्तरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन बताया है और असद के प्रति अपना समर्थन घोषित किया है। यदि ट्रंप की सीरिया में की गई यह सैनिक कार्रवाई अचानक आई एक छींक की तरह है तो ठीक है। वह आई और गई। लेकिन इसने यदि अमेरिकी नीति का रुप धारण कर लिया तो ट्रंप को लेने के देने पड़ जाएंगे। अमेरिकी जनता के पास ट्रंप को चार साल तक झेलते रहने के अलावा क्या विकल्प है?
डॉ. वेदप्रताप वैदिक