भारत के प्रधानमंत्री मोदी जी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिरमीर पुतिन को एक शुभचिन्तक के रूप में यह सलाह दी कि युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं होता है। निश्चितः मोदी जी द्वारा प्रदत्त यह नेक सलाह एक बहुत ही सोची-समझी तथा कूटनीतिपूर्ण सलाह थी, जिसको राष्ट्रपति पुतिन कितना आत्मसात् कर पाए यह तो स्वयं पुतिन द्वारा अथवा भविष्य में ही स्पष्ट होगा, परन्तु इतना अवश्य है कि रूस-यूक्रेन युद्ध को चलते हुए 1 वर्ष पूर्ण होने वाला है, फिर भी महाशक्तिशाली रूस, यूक्रेन पर विजयश्री प्राप्त करने में समर्थ नहीं हो पाया है। अभी तक रूस, यूक्रेन देश के 10 प्रतिशत क्षेत्र को भी अधिकृत नहीं कर पाया है, परन्तु आशिंक सफलता प्राप्त करने में उसने स्वयं को कितनी हानि पहुँचाई है, यह सर्वविदित है। रूस की अर्थव्यवस्था पर भी इस युद्ध का नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
रूस, अमेरिका और चीन के द्वारा बनाए गए हथियारों की बिक्री ही उनकी सुदृढ् अर्थव्यवस्था का एक बहुत बड़ा स्रोत है। ये तीनों देश कितना भी अपने हथियारों की प्रशंसा करते रहे, परन्तु उनके हथियारों की वास्तविकता से सम्पूर्ण विश्व तभी परिचित हो पाता है जब उनका वास्तविक रूप में उपयोग होता है और उनके परिणाम सामने आते हैं। वर्तमान में इस युद्ध में प्रयुक्त हुए रूस के हथियारों की वास्तविकता से सम्पूर्ण विश्व परिचित हो रहा है और भविष्य में रूस के द्वारा तैयार किए गए हथियारों की बिक्री पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की आशंका है जो परोक्ष रूप से रूस की अर्थव्यवस्था पर भी कुप्रभाव डालेगा।
यूक्रेन के विरूद्ध युद्ध में रूस का प्रतिदिन का व्यय 100 करोड़ से भी अधिक है और 1 वर्ष के युद्ध में रूस को 100 बिलियन डालर की हानि हो चुकी है, इसी के साथ-साथ रूस अपने देश के हजारों शूरवीरों के प्राणों की भी आहुति दे चुका है। परिणामस्वरूप रूसी नागरिकों में राष्ट्रपति पुतिन के विरूद्ध विरोध की ज्वाला धधक रही है। नाटों गुट जो यूक्रेन को अपरोक्ष रूप में सहायता प्रदान कर रहा है, उसकी यह दूरदर्शिता थी कि रूस-यूक्रेन युद्ध जितना अधिक समय तक चलेगा, रूस को उतनी ही अधिक हानि उठानी पड़ेगी। अब यूरोप के 50 देश एकसाथ मिलकर यूक्रेन को फौजी सहायता तथा हथियार प्रदान कर रहें हैं ये सब हथियार अधिकांशतया अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस, इजराइल के द्वारा उत्पादित होंगे। यदि इन हथियारों की मारक क्षमता रूस के हथियारों से ज्यादा प्रभावी हो जाती है, तो यूरोप के उपरोक्त देशों के हथियारों की मांग विश्व में एकदम बढ़़ जाएगी और भविष्य में ये देश रूस और चीन को पीछे धकेल कर हथियार निर्माता देश के रूप में विश्व के सिरमोर बन जाएंगे। वर्तमान में रूस दो प्रकार के युद्ध का सामना कर रहा है, पहला वह स्वयं युद्ध लड़ रहा है, दूसरा उसके हथियारों की सम्पूर्ण विश्व में उपयोगिता पर प्रश्न चिह्न लगने प्रारम्भ हो गए हैं।
भारत की जी 20 बैठक की अध्यक्षता अब इस युद्ध में बहुत बड़ी भूमिका निभा सकती है। मोदी जी एक अत्यधिक सशक्त नेता हैं और आज सम्पूर्ण जी 20 के सदस्य देश उनका सम्मान करते हैं। वे रूस-यूक्रेन युद्ध के सन्दर्भ में एक शान्ति प्रस्ताव जी20 बैठक के माध्यम से ला सकते हैं और उस शांति प्रस्ताव का पालन करने के लिए रूस भी बाध्य होगा तभी वहाँ शान्ति स्थापित हो पायेगी, यदि यह युद्ध नहीं रुका तो रूस का सर्वनाश कोई भी नहीं रोक पाएगा। इस तथ्य को पुतिन भी भलीं-भांति समझ रहें हैं और मध्यस्थ समाधान का कोई उपाय वो भी तलाश रहें हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध का परिणाम अनिश्चित स्थिति में है, अतः मोदी जी इस परिस्थिति का राजनीति लाभ लेने हेतु मध्यस्थता करके, शांति स्थापित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है।
*योगेश मोहन*
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