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ये बाबा न तो धार्मिक हैं,न प्रजातांत्रिक*

भारत की वर्तमान दशा को देखकर कार्ल मार्क्स और हेगेल अपनी कब्र में यह देखते हुए करवट ले रहे होंगे कि किस तरह से उनके विचारों ने भारत में आकार लिया है। धर्म के नाम पा यहाँ कुछ भी चल रहा है। प्रबुद्ध,और संतजन तक अपनी राय प्रतिक्षण बदल रहे हैं। सरकार तो कोई स्पष्ट बात करने से बच रही है। सत्तारूढ़ दल और प्रतिपक्ष आगामी लोकसभा और उससे पहले होने जा रहे विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र अपनी -अपनी चाल चल रहे हैं ।

मार्क्स मानते थे कि धर्म, भ्रमजाल खड़ा कर जनता के दुखों को तत्काल कम करने का राज्य का हथकंडा है। भारत में यह सब हुआ पिछले चुनावों में राम और राम मंदिर मुद्दे थे अब अपने को सबसे बड़ा दल कहने वालों का निशाना ‘पसमांदा’ मुसलमान समूह है। वोटरों के बड़े हिस्से को ‘बाबाओं’ ने भरमाना शुरू ही कर दिया है। भारत में धर्म अब एक खतरनाक विचार प्रक्रिया में तब्दील हो रहा है जिसका परिणाम एक प्रजातांत्रिक राज्य की तबाही दिख रही है।

धार्मिकता की जगह पूजा और भक्ति को स्थापित किया जा रहा है जिसकी दिशा किसी खास व्यक्ति या छवि की तरफ है। मूर्तियों की उपासना और मंदिर में पूजा चिंता की बात नहीं, बल्कि वे पंथ हैं जो सत्ता को चुनौती देने का प्रयास कर रहे हैं। सभी प्रमुख धर्मों में इस तरह के विशाल पंथों या बाबाओं का उभार हुआ है जो अपने ही धर्म पर हावी होकर भक्ति के पात्र बन जाते हैं, भक्ति के पात्र बनने से लेकर देवत्व का दावा करना सिर्फ एक छोटी सी छलांग है।

कई मंत्रियों, प्रतिष्ठित सैन्य अधिकारियों, नामी वैज्ञानिकों और पूंजीपतियों को अपना वफादार भक्त बताने वाले प्रचार और कमाई के मामले में सफल धर्मगुरू या बाबा बन रहे हैं। वे रहस्यमय अंदाज में यहाँ तक कहने नहीं चूक रहे कि ‘मैं भगवान हूं ।’ भौतिकता की शक्ति के रूप में हाथ की सफाई और विज्ञान के कौशल से अपने श्रद्धालुओं के बीच यह स्थान हासिल किया है ।

संभव है कि ये कथित धर्मगुरू अलग-अलग कई ईश्वरों की सिफारिश करते हों, लेकिन एक बात सभी में समान है कि सभी बाबाओं का अपने श्रद्धालुओं और भक्तों पर मंत्रमुग्ध कर देने वाला नियंत्रण है। उन्हें जो बात आपस में अलग करती है, वह उनके अनुयायियों की संख्या है और वे अजीबोगरीब मांगें हैं जो अपने अनुयायियों की निष्ठा की जांच के लिए वे उनके सामने रखते हैं। हाल ही में दोषी ठहराए गए डेरा सच्चा सौदा के राम रहीम की माँग ने सेक्स की मांग और बड़े कमाल के साथ माफी किसी से छिपी नहीं है।

धर्मगुरुओं के पास मंत्रमुग्ध करने वाली कथित शक्ति होती है, इसलिए नेता वोटों के रूप में उनका आशीर्वाद हासिल करने के लिए उनकी शरण में जाते हैं। तब ये धर्मगुरू अपनी दिव्य शक्ति को साबित करने के बदले अपने या अपने चहेतों के लिए फायदा चाहते हैं।एक बाबा के दर्शन के लिए एक प्रमुख उद्योगपति के घर पर बैठ कर एक प्रधानमंत्री ने घंटों इंतजार किया था। दर्शन नहीं होने वे बहुत ज्यादा परेशान थे। सत्ता के शीर्ष पर बैठे इस हस्ती को मानसिक शांति तभी जाकर मिली जब बाबा ने नरम पड़ते हुए उन्हें दर्शन दिए। इसके लिए उन्हें कहां-कहां हस्ताक्षर करने पड़े, यह बात आज भी बड़ी पहेली बनी हुई है।ये बाबा अपने लोगों को उच्च पदों पर बैठाने के लिए अपने राजनैतिक साथियों और श्रद्धालुओं से सिफारिश किया करते हैं । ऐसे लोगों को यह भी पता होता है कि किस तरह के फायदे के लिए शक्तिशाली लोगों की आस्थाओं का इस्तेमाल किया जा सकता है।

पंथों में सुकून ढूढ़ना एक सामान्य मानवीय गतिविधि है। किसी समाज की शिक्षा और संपति के स्तर से आस्था के मसलों का बहुत कम लेना-देना है। अगर ऐसा नहीं होता तो टेक्सास में एफबीआई से टकराव के बाद अपने 77 अनुयायियों को दर्दनाक मौत के लिए प्रेरित करने वाला डेविडपंथियों की शाखा का प्रमुख डेविड कोरेश नहीं होता या फिर गुयाना में पीपल्स टेम्पल का जिम जोन्स भी नहीं होता जिसने अपने 900 अनुयायियों को जहर मिला ठंडा पेय पदार्थ कूल एड पीने के लिए प्रेरित किया था।

यह तथ्य भी जग ज़ाहिर है कि बिली ग्राहम, जिम बेकर और जेरी फेल्वेल जैसी कथित शक्तियों ने रिचर्ड निक्सन और रोनाल्ड रीगन जैसे राजनेताओं को अपने दरबार में हाजिरी लगाने और धार्मिक अधिकारों को लेकर अपनी नीतियों का समर्थन करने के लिए मजबूर किया था। जापान में टोक्यो मेट्रो स्टेशन पर भीड़-भाड़ वाले वक्त में सारीन गैस से हमला करने के लिए शोजी असारा द्वारा अपने पंथ को दिए संदेश भी सबने देखे हैं। तो भारत अपवाद क्यों होना चाहिए? धर्म के प्रति झुकाव मानवीय जीवन का हिस्सा है।

इसके बावजूद देश के राज्यों में डेराओं का बढ़ता प्रसार सरकार की चिंता का विषय होना चाहिए। कुछ आंकड़ों के अनुसार आज की तारीख में इनकी संख्या 9 हजार है। जैसाकि इनके नाम से मालूम होता है, ये एक शांत मठ की बजाय कुछ और ही है।

कोई भी, कथित धर्मगुरू जनरैल सिंह भिंडरावाले और उसके छोटे से आतंक काल का अंत स्वर्ण मंदिर को मुक्त कराने के लिए सेना की कार्रवाई को नहीं भूला है। 2014 में एक और कथित धर्मगुरू रामपाल के अनुयायियों ने हत्या, राजद्रोह और षड्यंत्र के केस में उसे गिरफ्तार करने के लिए पुलिस को डेरे में प्रवेश नहीं करने दिया था। उसे गिरफ्तार करने के लिए हरियाणा के 5 हजार से ज्यादा पुलिसकर्मियों को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी।

इसी तरह एक विचारधारा पर केंद्रित एक पंथ ने मथुरा स्थित जवाहर बाग पर कब्जा कर लिया था। जवाहर बाग को मुक्त कराने के लिए उत्तर प्रदेश सशस्त्र पुलिस को एक बड़ा अभियान चलाना पड़ा,जिसमें अपने 29 अनुयायियों समेत इस पंथ का नेता रामवृक्ष यादव भी मारा गया। 25 अगस्त 2017 भारत की न्यायपालिका के लिए कभी न भूलने वाला दिन है जब उसने राजनीतिक दबावों और अधिकारियों की कमजोरियों को नजरअंदाज कर खुद को साबित किया।

इस सबके साथ यह भी तय है कि राजनीति तर्क या अच्छाई से नहीं चलती, बल्कि वोट से चलती है। ये बाबा वोट कबाड़ने की सबसे बड़ी मशीन जो है।

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