“परीक्षा पे चर्चा 2023″ में छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों के साथ बातचीत के दौरान प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ
नमस्ते!
शायद इतनी ठंड में पहली बार परीक्षा पे चर्चा हो रही है। आमतौर पर फरवरी में करते है। लेकिन अब विचार आया कि आप सबको 26 जनवरी का भी लाभ मिले, फायदा उठाया ना जो बाहर के है उन्होंने। गए थे कर्तव्य पथ पर। कैसा लगा? बहुत अच्छा लगा। अच्छा घर जाकर क्या बताएंगे? कुछ नहीं बताएंगे। अच्छा साथियों समय ज्यादा लेता नहीं हूं, मैं लेकिन मैं इतना जरूर कहूंगा कि परीक्षा पे चर्चा मेरी भी परीक्षा है। और देश के कोटि-कोटि विद्यार्थी मेरी परीक्षा ले रहे हैं। अब मुझे ये परीक्षा देने में खुशी होती है, आनंद आता है, क्योंकि मुझे जो सवाल मिलते हैं, लाखों की तादाद में। बहुत proactively बच्चे सवाल पूछते हैं, अपनी समस्या बताते हैं, व्यक्तिगत पीड़ा भी बताते हैं। मेरे लिए बड़ा सौभाग्य है कि मेरे देश का युवा मन क्या सोचता है, किन उलझनों से गुजरता है, देश से उसकी अपेक्षाएं क्या हैं, सरकारों से उसकी अपेक्षाएं क्या हैं, उसके सपने क्या हैं, संकल्प क्या है। यानी सचमुच में मेरे लिए ये बहुत बड़ा खजाना है। और मैं तो मेरे सिस्टम को कहा हुआ है कि इन सारे सवालों को इकट्ठा करके रखिए। कभी 10-15 साल के बाद मौका मिलेगा तो उसको social scientists के द्वारा उसका analysis करेंगे और पीढ़ी बदलती जाती है वैसे, स्थितियां जैसे बदलती जाती है वैसे, उनके सपने, उनके संकल्पों, उनकी सोच कैसे बहुत माइक्रो तरीके से बदलती हैं। इसका एक बहुत बड़ा thesis शायद ही इतना सिंपल किसी के पास नहीं होगा, जितना आप लोग मुझे सवाल पूछकर भेजते हैं। चलिए लंबी बातें नहीं करते हैं। मैं चाहूंगा कि कहीं से शुरू करें, ताकि हर बार मुझे एक शिकायत आती है कि साहब ये कार्यक्रम बहुत लंबा चलता है। आपका क्या मत है? लंबा चलता है। लंबा चलना चाहिए। अच्छा मुझे और कोई करना नहीं है। अच्छा ठीक है, आप ही के लिए हूं। बताइएं क्या करेंगे, कौन पहले पूछते हैं?
प्रस्तुतकर्ता– दुनिया को बदलने की तमन्ना हो अगर, दुनिया को बदलने की तमन्ना हो अगर। दुनिया को नहीं खुद को बदलना सीखें। माननीय प्रधानमंत्री जी, आपका प्रेरक एवं ज्ञानवर्धक उद्बोधन सदैव हमें सकारात्मक ऊर्जा एवं विश्वास से भर देता है, आपके बेहद अनुभव एवं ज्ञानपूर्ण मार्गदर्शन की हम सब उत्सुकता से प्रतिक्षा कर रहे हैं। माननीय आपके आशीर्वाद एवं अनुमति से हम इस कार्यक्रम का शुभारंभ करना चाहते हैं। धन्यवाद मान्यवर।
माननीय प्रधानमंत्री जी अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और स्थापत्य सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध शहर मदुरई से अश्विनी एक प्रश्न पूछना चाहती है। अश्विनी कृपया अपना प्रश्न पूछिए।
अश्विनी– Hon’ble Prime Minister Sir, Namaskar. My Name is Ashwini. I am a student of Kendriya Vidyalaya No. 2 Madurai, Tamil Nadu. My question to you Sir is how do I deal with my family disappointment if my results are not good. What if I don’t get the marks, I am expecting. Being a good student is also not an easy job expectations of elders become so high that the person who is giving exam gets so much stress and they go into depression. Nowadays it is common for students to cut their hands and become irritated and there is no one they could trust with their feelings. Kindly guide me on this. Thank You Sir.
प्रस्तुतकर्ता– धन्याद अश्विनी. Hon’ble Prime Minister Sir, Navdesh Jagur, he is from the heart of India’s capital Delhi. The imperial seed of several empires with his charming length of grand medieval history and amazing architectural styles. Navdesh is seated in the hall and wishes to discuss an identical issue through his question. Navdesh please ask your question.
Navdesh- Good Morning, Hon’ble Prime Minister Sir. I am Navdesh Jagur of Kendriya Vidyalaya, Pitam Pura, Delhi region. Sir, my question to you is how do I deal with my family situation when my results are not good? Kindly guide me Sir, Thank You very much.
प्रस्तुतकर्ता– Thank You Navdesh, माननीय प्रधानमंत्री जी, संसार को शांति और करुणा का संदेश देने वाले भगवान बुद्ध, गुरू गोविंद सिंह तथा वर्धमान महावीर की जन्मभूमि प्राचीन नगर पटना से प्रियंका कुमारी कुछ इसी प्रकार की समस्या से जूझ रही हैं और आपका मार्गदर्शन चाहती हैं। प्रियंका कृपया अपना प्रश्न पूछिए।
प्रियंका– नमस्ते। माननीय प्रधानमंत्री जी मेरा नाम प्रियंका कुमारी है। मैं रवीन बालिका प्लस टू विद्यालय से राजेन्द्र नगर पटना से 11वीं की छात्रा हूं। मेरा प्रश्न यह है कि मेरे परिवार में सब अच्छे नंबर से पास हुए हैं। मुझे भी अच्छे नंबर लाना है। इसके लिए मैं तनाव में चली गई हूं, इसके लिए आप मुझे मार्गदर्शन दें। धन्यवाद।
प्रस्तुतकर्ता– धन्यवाद प्रियंका। माननीय प्रधानमंत्री जी। अश्विनी, नवदेश एवं प्रियंका यह महसूस करते हैं कि ये महत्वपूर्ण मुद्दा कई छात्रों को प्रभावित करता है और इसे हल करने के लिए आपका मार्गदर्शन चाहते हैं।
प्रधानमंत्री– अश्विनी आप क्रिकेट खेलती हैं क्या? क्रिकेट में गुगली बॉल होती है। निशाना एक होता है दिशा दूसरी होती है। मुझे लगता है कि आप पहले ही बॉल में मुझे आउट करना चाहती हो। परिवार के लोगों की आपसे बहुत अपेक्षाएं होना बहुत स्वाभाविक है। और उसमें कुछ गलत भी नहीं है। लेकिन अगर परिवार के लोग अपेक्षाएं Social Status के कारण mark कर रहे हैं तो वो चिंता का विषय है। उनका Social Status का उन पर इतना दबाव होता है, उनके मन पर इतना प्रभाव होता है कि उनको लगता है कि जब सोसाइटी में जाएंगे तो बच्चों के लिए क्या बताएंगे। अगर बच्चे weak हैं तो कैसे उनके सामने चर्चा करेंगे और कभी-कभी मां-बाप भी आपकी क्षमताओं को जानने के बावजूद भी अपने Social Status के कारण अपने आस-पास के साथियों, दोस्तों में, क्लब में जाते हैं, सोसाइटी में जाते हैं कभी तालाब में कपड़े धोए जाते हैं, बैठते हैं, बातें करते हैं, बच्चों की बातें निकलती हैं। फिर उनको एक inferiority complex आता है और इसलिए बाहर बहुत बड़ी-बड़ी बातें बता देते हैं अपने बच्चों के लिए। और फिर धीरे-धीरे वो internalise कर लेते हैं और फिर घर में आकर के भी वही अपेक्षाएं करते हैं। और समाज जीवन में ये सहज प्रवृत्ति बनी हुई है। दूसरा आप अच्छा करेंगे तो भी हर कोई आपसे नई अपेक्षा करेगा। हम तो राजनीति में हैं, हम कितने ही चुनाव क्यों न जीत लें। लेकिन ऐसा दबाव पैदा किया जाता है कि हमें हारना ही नहीं है। 200 लाएं हैं तो बोले 250 क्यों नहीं लाए, 250 लाए तो 300 क्यों नहीं लाएं, 300 लाएं तो 350 क्यों नहीं लाएं। चारों तरफ से दबाव बनाया जाता है। लेकिन क्या हमें इन दबावों से दबना चाहिए क्या? पल भर सोचिये कि आपको जो दिन भर कहा जाता है, चारों तरफ से जो सुना जाता है। उसी में अपना समय बर्बाद करेंगे कि आप अपने भीतर देखेंगे। अपनी क्षमता, अपनी Priority, अपनी आवश्यकता, अपने इरादे थोड़ा हर अपेक्षाओं को उसके साथ जोड़िए। आप कभी क्रिकेट मैच देखने गए होंगे तो आपने देखा होगा कि कुछ बैट्समैन खेलने के लिए आते हैं। अब पूरा स्टेडियम हजारों लोग होते हैं स्टेडियम में। वे चिल्लाना शुरू करते हैं। चौका, चौका, चौका, छक्का, छक्का, सिक्सर। क्या वो ऑडियंस की डिमांड के ऊपर चौके और छक्के लगाता है क्या? ऐसा करता है क्या कोई प्लेयर? चिल्लाते रहे कितना ही चिल्लाते रहे। उसका ध्यान उस बॉल पर ही होता है। जो आ रहा है। उस बॉलर के माइंड को स्टडी करने की कोशिश करता है और जैसा बॉल है वैसा ही खेलता है। न कि ऑडियंस चिल्लाता है, फोकस रहता है। अगर आप भी अपनी एक्टिविटी में फोकस रहते हैं। तो जो कुछ भी दबाव बनता है, अपेक्षाएं बनती हैं, कभी न कभी आप उससे पार पाएंगे। आप उस संकटों से बाहर आ जाएंगे। और इसलिए मेरा आपसे आग्रह होगा कि आप दबावों के दबाव में ना रहें। हां कभी-कभी दबाव को analysis कीजिए। कहीं ऐसा तो नहीं है कि आप स्वंय के विषय में underestimate कर रहे हैं। आपकी क्षमता बहुत है, लेकिन आप खुद ही इतने depressed mentality के हैं कि नया करने के लिए सोचते नहीं हैं। तो कभी-कभी वो अपेक्षाएं बहुत बड़ी ताकत बन जाती हैं। बड़ी ऊर्जा बन जाती है और इसलिए अपेक्षाएं मां-बाप को क्या करना वो मैंने पहले ही कहा। सामाजिक दबाव में मां-बाप ने बच्चों पर दबाव ट्रांसफर नहीं करना चाहिए। लेकिन बच्चों ने अपनी क्षमता से कम भी अपने आप को नहीं आंकना चाहिए। और दोनों चीजों को बल देंगे तो मुझे पक्का विश्वास है कि आप ऐसी समस्याओं को बहुत आराम से सुलझा लेंगे। कहां गए एंकर?
प्रस्तुतकर्ता– माननीय प्रधानमंत्री जी! आपका कोटि-कोटि धन्यवाद। आपके प्रेरक वचनों से अभिभावकों को अपने बच्चों को समझने का मार्ग मिला है। मान्यवर, हम दबाव में नहीं रहेंगे और हम गांठ बांधकर परीक्षा में उत्साह बनाये रखेंगे, आपका धन्यवाद।
प्रस्तुतकर्ता– माननीय प्रधानमंत्री जी। चंबा प्रकृति के अनछुए सौंदर्य को समेटे भारत के पेरिस के रूप में प्रसिद्ध पर्वतीय नगर है। चंबा हिमाचल प्रदेश से आरुषि ठाकुर आभासी माध्यम से हमसे जुड़ रही हैं। आरुषि कृपया अपना प्रश्न पूछें।
आरुषि– माननीय प्रधानमंत्री जी नमस्कार। मेरा नाम आरुषी ठाकुर है और मैं केंद्रीय विद्यालय बनीखेत डलहोजी जिला चंबा की कक्षा 11वीं की छात्रा हूं। माननीय मेरा आपसे यह प्रश्न है कि परीक्षा के दौरान जो बात मुझे सबसे ज्यादा परेशान करती है, वह यह है कि मैं पढ़ाई कहां से शुरू करूं? मुझे हमेशा लगता है कि सब कुछ भूल गई हूं और मैं इसी के ही बारे में सोचती रहती हूं। जो मुझे काफी तनाव देता है। कृपया कर मार्गदर्शन कीजिए। धन्यवाद सर।
प्रस्तुतकर्ता– धन्यवाद आरुषि। माननीय प्रधानमंत्री जी, भारत में धान के कटोरा के नाम से प्रसिद्ध राज्य छत्तीसगढ़ की राजधानी है रायपुर। रायपुर की अदिति दीवान इसी समस्या पर अपनी मन की जिज्ञासा का समाधान चाहती हैं। अदिति अपना प्रश्न पूछिए।
अदितिदीवान– माननीय प्रधानमंत्री जी नमस्कार। मेरा नाम अदिति दीवान है और मैं कृष्णा पब्लिक स्कूल रायपुर छत्तीसगढ़ में कक्षा 12वीं की छात्रा हूं। मेरा आपसे यह प्रश्न है कि मैं इस बात को लेकर चिंतित रहती हूं कि मुझे बहुत कुछ करना है। लेकिन अंतिम तक मैं कुछ भी नहीं कर पाती हूं। क्योंकि मेरे पास बहुत सारे कार्य होते हैं। यदि मैं अपना कोई कार्य समय पर पूरा कर भी लूं तो और ज्यादा परेशान हो जाती हूं। क्योंकि फिर अन्य कार्यों को करने में या तो बहुत ज्यादा देर लगा देती हूं या तो उन्हें आगे तक के लिए टाल देती हूं। मैं यह जानने के लिए उत्सुक हूं कि मैं अपने सारे काम सही समय पर कैसे पूरे करूं?धन्यवाद।
प्रस्तुतकर्ता– धन्यवाद अदिति, माननीय प्रधानमंत्री जी, आरुषि और अदिति अपनी परीक्षा की तैयारी एवं समय के सदुपयोग पर आपका मार्गदर्शन चाहते हैं। कृपया उनकी समस्या का समाधान करें, माननीय प्रधानमंत्री जी।
प्रधानमंत्री– देखिए ये सिर्फ परीक्षा के लिए ही नहीं है। वैसे भी जीवन में टाइम मेनेजमेंट के प्रति हमें जागरूक रहना चाहिए। परीक्षा और नो परीक्षा। आपने देखा होगा काम का ढेर क्यों हो जाता है। काम का ढेर इसलिए हो जाता है समय पर उसको किया नहीं इसलिए। और काम करने की कभी थकान नहीं होती है। काम करने से संतोष होता है। काम न करने से थकान लगती है। सामने दिखता है, अरे इतना सारा काम, इतना सारा काम और उसी की थकान लगती है। करना शुरू करें। दूसरा आप कभी कागज पर अपनी पेन, पैंसिल लेकर डायरी पर लिखिए। एक हफ्ते भर, आप नोट कीजिए कि आप अपना समय कहां बिताते हैं। अगर पढ़ाई भी करते हैं, तो कितना समय किस विषय को देते हैं और उसमें भी शार्टकट ढूंढते हैं कि बेसिक में जाते हैं। बारीकियों में जाते हैं, थोड़ा अपना एक analysis कीजिए। मैं पक्का मानता हूं कि आपको ध्यान में आएगा कि आप जो आपकी पसंद की चीजें हैं ,उसी में सबसे ज्यादा समय लगाते हैं और उसी में खोए रहते हैं। फिर तीन विषय ऐसे हैं, जो कम पसंद हैं, लेकिन जरूरी है। वो फिर आपको बोझ लगने लगेगा। मैंने दो-दो घंटे मेहनत की, लेकिन ये तो हुआ नहीं और इसलिए आप सिर्फ पढ़ना दो घंटे ऐसा नहीं है, लेकिन पढ़ने में भी जब फ्रेश माइंड है, तब जो सबसे कम पसंद विषय है आपको सबसे ज्यादा कठिन लगता है। तय कीजिए पहली 30 मिनट इसको, फिर एक पसंद वाला विषय है, 20 मिनट उसको, फिर थोड़ा कम पसंद वाला 30 मिनट उसको। आप ऐसा स्लैप बनाइये। तो आपको relaxation भी मिलेगा और आपको धीरे-धीरे उन विषयों पर रूचि बढ़ेगी। जो आप नार्मली टालते हैं। और अच्छे विषय में खोए रहते हैं और समय भी तो बहुत जाता है। आपने देखा होगा, आपमें से जो लोग पतंग उड़ाते होंगे। मुझे तो बचपन में बहुत शौक था। पतंग का जो माँझा होता है, धागा होता है, वो कभी एक दूसरे में उलझ जाकर के एक दम से बड़ा गुच्छा बन जाता है। अब बुद्धिमान इंसान क्या करेगा। यूं-यूं खींचेगा क्या, ताकत लगाएगा क्या? ऐसा नहीं करेगा। वो धीरे से एक-एक तार को पकड़ने की कोशिश करेगा कि खुलने का रास्ता कहां है और फिर धीरे-धीरे, धीरे खोलेगा तो इतना बड़ा गुच्छा भी आराम से खुल जाएगा और सारा माँझा सारा धागा एक जैसी जरूरत है वैसा उसके हाथ लग जाएगा। हमें भी उस पर जोर जबरदस्ती नहीं करनी है। आराम से सॉल्यूशन निकालना है और अगर आराम से सॉल्यूशन निकालेंगे तो मुझे पक्का विश्वास है कि आप उसको बड़े ढंग से करेंगे। दूसरा आपने कभी घर में अपनी मां के काम को observe किया है क्या? यूं तो आपको अच्छा लगता है कि जैसे स्कूल से आए तो मां ने सब ready करके रखा था। सुबह स्कूल जाना था तो मां ने सब तैयार करके रख दिया था। लगता तो बहुत अच्छा है। लेकिन क्या कभी observe किया है कि मां का टाइम मैनेजमेंट कितना बढ़िया है। उसको पता है, सुबह ये है तो मुझे 6 बजे ये करना पड़ेगा। 6.30 बजे ये करना पड़ेगा। उसको 9 बजे जाना है तो ये करना पड़ेगा। वो 10 बजे घर आएगा तो ये करना पड़ेगा। यानि इतना परफैक्ट टाइम मैनेजमेंट मां का होता है और जबकि काम सबसे ज्यादा मां करती रहती है। लेकिन किसी काम में उसको बोझ अनुभव नहीं होता है। थक गई, बहुत काम है, बहुत ज्यादा है, ऐसा नहीं करती है क्यों उसे मालूम है कि मुझे इतने घंटे में ये-ये तो करना है। और जब एक्स्ट्रा टाइम मिलता है तब भी वो चुप नहीं बैठती। कुछ न कुछ अपना क्रिएटिव एक्टिविटी करती रहती है। सुई धागा लेकर बैठ जाएगी, कुछ न कुछ करती रहेगी। रिलैक्स करने के लिए भी उसने व्यवस्था रखी है। अगर मां की गतिविधि को ढंग से observe करोगे तो भी आपको as a student अपना time management का महत्व क्या होता है और time management में 2 घंटे, 4 घंटे, 3 घंटे ये नहीं है micro management चाहिए। किस विषय को कितना टाइम देना है, किस काम को कितना टाइम देना है और इतने बंधन भी नहीं डालने हैं कि बस 6 दिन तक ये करूंगा ही नहीं क्योंकि मुझे पढ़ना है फिर तो आप थक जाओगे। आप ढंग से उसको distribute कीजिए समय को जरूर आपको लाभ होगा। धन्यवाद।
प्रस्तुतकर्ता– Thank You Hon’ble Prime Minister Sir for guiding us to be methodical and systematic in order to be an effective student. Hon’ble Prime Minister Sir Rupesh Kashyap hailing from Bastar District of Chhattisgarh is known for its distinguished tribal art, the enchanting Chitrakoot waterfall and the finest quality of Bamboo. Rupesh is present here with us and needs your advice on a topic that is of vital significance. Rupesh please ask your question.
Rupesh- Good Morning. Hon’ble Prime Minister Sir, My Name is Rupesh Kashyap. I am a student of class 9th from Swami Atmanand Govt. English Medium School, Drabha Dist. Bastar, Chhattisgarh. Sir, my question is how can I avoid unfair means in exams. Thank You Sir.
प्रस्तुतकर्ता– Thank You Rupesh. Hon’ble Prime Minister Sir, From the heritage city of Jagannath Puri, the spiritual capital of Odisha famed for it’s magnificent concept layout Rath Yatra serene beaches. Tanmay Biswal seeks your guidance on a similar issue. Tanmay please ask your question.
Tanmay- Hon’ble Prime Minister Sir, Namaskar. My name is Tanmay Biswal. I am a student of Jawahar Navodaya Vidyalaya, Konark Puri, Odisha. My Question to you Sir is how to eliminate cheating or copying activities of the students during examination. Kindly guide me on this. Thank You Sir.
प्रस्तुतकर्ता– माननीय प्रधानमंत्री जी रूपेश और तन्मय परीक्षा में अनुचित साधनों के प्रयोग से कैसे बचा जाए, इस विषय पर आपका मार्गदर्शन चाहते हैं। श्रद्धेय प्रधानमंत्री जी।
प्रधानमंत्री– मुझे खुशी हुई कि हमारे विद्यार्थियों को भी ये लग रहा है कि परीक्षा में जो गलत practices होती हैं। Malpractices होती हैं, उसका कोई रास्ता खोजना चाहिए। खासकर जो मेहनती विद्यार्थी होते हैं उनको जरूर इसकी बहुत ही चिंता रहती हैं कि मैं इतनी मेहनत करता हूं और ये चोरी कर-कर के कॉपी करके नकल करके अपनी गाड़ी चला लेता है। पहले भी शायद चोरी तो करते होंगे लोग नकल तो करते होंगे। लेकिन छुप-छुप कर करते होंगे। अब तो बड़े गर्व से कहते हैं कि सुपरवाइजर को बुद्धु बना दिया। ये जो मूल्यों में बदलाव आया है, वो बहुत खतरनाक है और इसलिए सामाजिक सच ये हम सबको सोचना होगा। दूसरा अनुभव आया है कि उस स्कूल या कुछ ऐसे टीचर्स जो ट्यूशन क्लासेस चलाते हैं उनको भी लगता है कि मेरा student अच्छे तरह से निकल जाए, क्योंकि मैंने उसके मां-बाप से पैसे लिए हैं, कोचिंग करता था तो वे भी उसको गाइड करते हैं, मदद करते हैं, नकल करने के लिए, करते हैं ना, ऐसे टीचर्स होते हैं ना, नहीं होते, तो बोलिए ना। और उसके कारण भी, दूसरा मैंने देखा है कुछ students पढ़ने में तो टाइम नहीं लगाते, लेकिन नकल करने के तरीके ढूंढने में बड़े creative होते हैं। उसमें घंटे लगा देंगे वो कॉपी बनाएंगे तो वो इतने छोटे-छोटे अक्षरों में बनाएंगे। कभी-कभी तो मुझे लगता है कि इसके बजाय वो नकल के तरीके, नकल की टेक्नीक उसमें जितना दिमाग खपाता है, और बड़े creative होते हैं, ये चोरी करने वाले। इसके बजाय अगर उतना ही समय उसी creativity को talent को सीखने में लगा देता तो शायद वो अच्छा कर पाता। किसी को उसको गाइड करना चाहिए था, किसी को उसको समझाना चाहिए था। दूसरा ये बात समझ के चलें अब जिंदगी बहुत बदल चुकी है, जगत बहुत बदल चुका है और इसलिए ये बहुत आवश्यक है कि एक exam से निकले मतलब जिंदगी निकल गई ये संभव नहीं है जी। आज आपको डगर-डगर हर जगह पर कोई न कोई exam देना पड़ता है। कितनी जगह पर नकल करोगे जी। और इसलिए जो नकल करने वाला है, वो शायद एकाध दो exam से तो निकल जाएगा, लेकिन जिंदगी कभी पार नहीं कर पाएगा। नकल से जिंदगी नहीं बन सकती है। हो सकता है exam में marks इधर-उधर करके ले आए लेकिन कहीं न कहीं तो वो questionable होगा ही और इसलिए ये वातावरण हमको बनाना होगा कि एकाध exam में तुमने नकल की, हो गए तुम निकल गए लेकिन आगे चलकर के शायद तुम जिंदगी मे फंसे रहोगे। दूसरा जो विद्यार्थी कड़ी मेहनत करते हैं, उनसे भी मैं कहूंगा कि आपकी मेहनत आपकी जिंदगी में रंग लाएगी। हो सकता है कोई ऐसा ही फालतू 2-4 marks आपसे ऊपर ले जाएगा, लेकिन वो कभी भी आपकी जिंदगी की रूकावट नहीं बन पाएगा। आपके भीतर की जो ताकत है, आपके भीतर की जो ताकत है, वहीं ताकत आपको आगे ले जाएगी। कृपा करके, उसको तो फायदा हो गया चलो मैं भी उस रास्ते पर चल पड़ूँ, ऐसा कभी मत करना, कभी मत करना दोस्तों। Exams तो आते हैं, जाते हैं, हमें जिंदगी जीनी है, जी भर के जीनी है, जीतते-जीतते जिंदगी जीनी है और इसलिए हमें शार्ट-कट की तरफ नहीं जाना चाहिए। और आप तो जानते हैं, रेलवे स्टेशन पर आपने देखा होगा हर रेलवे स्टेशन पर पटरी जहां होती है ना, वहां ब्रिज होता है, तो लोग ब्रिज पर जाना पसंद नहीं करते, पटरी कूदकर के जाते हैं। कोई कारण नहीं बस, ऐसे ही बस मजा आता है। तो वहां लिखा है short cut will cut you short इसलिए कोई अगर short cut से कुछ कर लेता होगा आप उसके टेंशन को पालिए मत। आप अपने आप को उससे मुक्त रखिए। आप अपने पर फोकस कीजिए। आपको अच्छा परिणाम मिलेगा। धन्यवाद।
प्रस्तुतकर्ता– धन्यवाद माननीय प्रधानमंत्री जी। आपके वचन सीधे हमारे हृदय में उतर गए हैं। आपका धन्यवाद।
Hon’ble Prime Minister Sir from Palakkad the land of paddy fields whether gentle grees carries the aroma of harvested crop and the sound of traditional kerala music, Sujay K seeks your guidance. Sujay please ask your question.
सुजय– नमस्कार आदरणीय प्रधानमंत्री महोदय, मेरा नाम तेजस सुजय है। मैं 9वीं कक्षा में केंन्द्रीय विद्यालय कन्जिकोड, करनाकुलम संभा का छात्र हूं। मेरा प्रश्न ये है Hardwork और Smartwork में से कौन-सा वर्क जरूरी है। क्या अच्छे परिणामों के लिए दोनों जरूरी है। कृपया अपना मार्गदर्शन दीजिए। धन्यवाद श्रीमान।
प्रस्तुतकर्ता– Thank You Sujay , Hon’ble Prime Minister Sir.
प्रधानमंत्री– क्या सवाल था उनका, क्या पूछ रहे थे?
प्रस्तुतकर्ता– Sir, Hard work के बारे में.. Hard Work और smart Work के बारे में
प्रधानमंत्री– Hard work और smart Work,
प्रस्तुतकर्ता– Thank You Sir.
प्रधानमंत्री– अच्छा आपने बचपन में एक कथा पढ़ी होगी। सबने जरूर पढ़ी होगी। और इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि smart Work क्या होता है और Hard work क्या होता है। हम बचपन में थे तो एक कथा सुना करते थे कि एक घड़े में पानी था। पानी जरा गहरा था और एक कौवा पानी पीना चाहता था। लेकिन अंदर वो पहुंच नहीं पाता था। तो उस कौवे ने छोटे-छोटे कंकड़ उठाकर के उस घड़े में डाले, और धीरे-धीरे पानी ऊपर आया और फिर उसने आराम से पानी पीया। सुनी है ना ये कथा? अब इसको आप क्या कहेंगे हार्ड वर्क कहेंगे कि स्मार्ट वर्क कहेंगे? और देखिए ये जब कथा लिखी गई थी ना तब स्ट्रा नहीं था। वर्ना ये कौवा बाजार में जाके स्ट्रा लेकर आता। देखिए कुछ लोग होते हैं, जो hard work ही करते रहते हैं। कुछ लोग होते हैं, जिनके जीवन में हार्ड वर्क का नामोनिशान नहीं होता है। कुछ लोग होते हैं, जो hardly smart work करते हैं और कुछ लोग होते हैं, जो smartly hard work करते हैं। और इसलिए कौवा भी हमें सिखा रहा है कि smartly hard work कैसे करना है। और इसलिए हमें हर काम को, पहले काम को बारीकी से समझिए। कुछ लोग होंगे आपने देखा होगा कि चीजों को समझने के बजाय सीधा ही अपनी बुद्धि अपनाना शुरू कर देते हैं। ढेर सारी मेहनत करने पर परिणाम मिलता ही नहीं है। मुझे याद है, मैं बहुत पहले Tribal belt में काम करता था तो मुझे काफी Interior में जाना था। तो किसी ने हमें उस जमाने की जो पुरानी जीप होती थी। उसने व्यवस्था की कि आप उसको लेकर के जाइये। अब सुबह हम कोई 5.30 बजे निकलने वाले थे। लेकिन हमारी जीप चल ही नहीं रही थी। हमने ढेर सारी कोशिशें कीं, धक्के मारे, ये किया, दुनिया भर का हार्डवर्क किया। लेकिन हमारी जीप नहीं चली। 7- 7:30 बज गये तो एक mechanic को बुलाया। अब mechanic ने मुश्किल से दो मिनट लगाया होगा और दो मिनट में उसने ठीक कर दिया और फिर वो कहे साहब 200 रुपये देने पड़ेंगे। मैंने कहा यार दो मिनट का 200 रुपया। बोले साहब ये 2 मिनट का 200 रुपया नहीं है। ये 50 साल के अनुभव का 200 रुपया है। अब हम हार्ड वर्क कर रहे थे। जीप नहीं चल रही थी। उसने स्मार्टली थोड़े से बोल्ट टाइट करने थे। हार्डली उसको दो मिनट लगा होगा जी। गाड़ी चल गई।
कहने का तात्पर्य ये है कि हर चीज बड़ी मेहनत मजदूरी से करेंगे तो होगा ऐसा आपने देखा होगा पहलवान जो होते हैं यानि जो खेल-कूद की दुनिया के लोग होते हैं। उसको कौन सा खेल से वो जुड़ा हुआ है। उस खेल में उसको किस mussels की जरूरत होती है। जो ट्रेनर होता है। उसको मालूम है, अब जैसे विकेट कीपर होगा तो विकेट कीपर को ऐसे ही झुककर के घंटो तक खड़े रहना होता है। अब हमें क्लास में कुछ गलत किया और टीचर कान पकड़कर नीचे बिठा देते हैं ऐसे हाथ पैर में अंदर डालकर तो कितना दर्द होता है। होता है कि नहीं होता है? ये तो Psychological भी होता है, physical भी होता है क्योंकि पैर ऐसे करके कान पकड़कर बैठना होता है। तकलीफ होती है ना? लेकिन ये जो विकेट कीपर होता है ना उसकी ट्रेनिंग का हिस्सा होता है। उसको घंटों तक ऐसे खड़ा रखते हैं। ताकि धीरे-धीरे उसके वो mussels मजबूत हो जाएं ताकि वो विकेट कीपर के नाते अच्छा काम करे। बॉलर होता है तो उसको उस विधा की जरूरत नहीं है, उसको दूसरी विधा कि जरूरत है तो उसको वो करवाते हैं। और इसलिए हमें भी जिस चीज पर जरूरत है वहीं फोकस करना चाहिए। जो हमारे लिए उपयोगी है। हर चीज प्राप्त करने की कोशिश से मेहनत बहुत लगेगी। हाथ पैर ऊंचे करते रहो, दौड़ते रहो, ढिकना करो, फलाना करो, जनरल हेल्थ के लिए फिटनेस के लिए ठीक है। लेकिन अगर मुझे अचीव करना है, तो उस specific areas को मुझे address करना होगा। और ये जिसको समझ होती है, वो परिणाम भी देता है। अगर बॉलर है और उसके ये mussels ठीक नहीं है, तो कहां बॉलिंग कर पाएगा, कितने ओवर कर पाएगा। जो लोग वेट लिफ्टिंग करते हैं, उनके अलग प्रकार के mussels को मजबूत करना होता है। हार्ड वर्क तो वो भी करते हैं। लेकिन वो स्मार्टली हार्डवर्क करते हैं। और स्मार्टली हार्डवर्क करते हैं तब जाकर के परिणाम मिलता है। बहुत-बहुत धन्यवाद।
प्रस्तुतकर्ता– Thank You Hon’ble Prime Minister Sir for your insightful guidance on choosing consistent hard work in our life. माननीय प्रधानमंत्री जी गुरु द्रोणाचार्य के नाम से विख्यात साइबर सिटी हरियाणा के प्रसिद्ध औद्योगिक नगर गुरुग्राम की छात्रा जोविता पात्रा सभागार में उपस्थित हैं और आपसे प्रश्न पूछना चाहती हैं। जोविता कृपया अपने प्रश्न पूछें।
जोवितापात्रा– नमस्कार, Hon’ble Prime Minister Sir, My name is Jovita Patra and i am a student of class 10th of Jawahar Navodya Vidyalaya, Gurugram Haryana. It’s my privilege and quite an honor to participate in the Pariksha pe Charcha 2023. Hon’ble Prime Minister Sir, my question to you is being an average student how can i focus on my studies. Kindly guide me on this issue. Thank You Sir.
प्रस्तुतकर्ता– धन्यवाद जोविता। माननीय प्रधानमंत्री जी जोविता पात्रा एक एवरेज स्टूडेंट आपसे एग्जाम में कैसे बेहतर करें इसके बारे में आपसे मार्गदर्शन चाहती हैं। कृपया उनका मार्गदर्शन करें। माननीय प्रधानमंत्री जी।
प्रधानमंत्री– सबसे पहले तो मैं आपको बधाई देता हूं कि आपको पता है कि आप एवरेज हैं। वरना ज्यादातर लोग ऐसे होते हैं, जो below average होते हैं और अपने आप को बड़ा तीस मार खां मानते हैं। सब बंधकीय व्यापारी मानते हैं। तो मैं सबसे पहले आपको और आपके माता-पिता जी को भी बधाई देता हूं। एक बार आपने इस शक्ति को स्वीकार कर लिया कि हां भई मेरी एक क्षमता है, मेरी ये स्थिति है मुझे अब इसके अनुकूल चीजों को ढूंढना होगा। मुझे बहुत बड़ा तीस मार खां बनने की जरूरत नहीं है। हम अपने सामर्थ्य को जिस दिन जानते हैं ना तो हम सबसे बड़े सामर्थ्यवान बन जाते हैं। जो लोग खुद के सामर्थ्य को नहीं जानते, उनको सामर्थ्यवान बनने में बहुत सारी रूकावटें आती हैं। इसलिए इस स्थिति को जानना, ये अपने आप में ईश्वर ने आपको शक्ति दी है। आपके टीचर्स ने शक्ति दी है। आपके परिवार ने शक्ति दी है। और मैं तो चाहुंगा हर मां बाप से आप बच्चों का सही मूल्यांकन कीजिए। उनके अंदर हीन भावना पैदा होने मत दीजिए। लेकिन सही मूल्यांकन कीजिए। कभी-कभी आप लोग उसको कोई बहुत बड़ी महंगी चीज लानी है। तो आप आराम से उसको कहिए कि नहीं-नहीं भई अपने घर की इतनी ताकत नहीं है, ये चीज हम नहीं ला पाएंगे। ऐसा करो दो साल इंतजार करो। उसमें कुछ बुरा नहीं है। अगर आप घर की स्थिति के संबंध में बच्चे से analysis करते हैं। तो इसमें कुछ बुरा नहीं है। और इसलिए हम एक सामान्य स्तर के व्यक्ति हैं और ज्यादातर लोग सामान्य स्तर के ही होते हैं जी। Extra Ordinary बहुत कम लोग होते हैं जी। लेकिन सामान्य लोग और सामान्य काम करते हैं और जब सामान्य व्यक्ति असामान्य काम करते हैं। तब वो कहीं ऊंचाई पर चले जाते हैं। Average के मानदंड को तोड़कर के निकल जाते हैं। अब इसलिए हमें कभी भी ये सोचना है और दुनिया में आप देखिए ज्यादातर जो लोग सफल हुए हैं, वो क्या हैं जी? वो किसी जमाने में एवरेज लोग थे जी। असामान्य काम करके आए हैं। बहुत बड़ा परिणाम लेकर आए हैं। अब आपने देखा होगा इन दिनों दुनिया में पूरे विश्व की आर्थिक स्थितियों की चर्चा हो रही है। कौन देश कितना आगे गया, किसकी आर्थिक स्थिति कैसी है। और कोरोना के बाद तो ये बड़ा मानदंड बन गया है और ऐसा तो नहीं है कि दुनिया के पास अर्थव्यक्ताओं की कमी है। बड़े-बड़े नोबेल प्राइज वीनर हैं। जो गाइड कर सकते हैं कि ऐसा करने से आर्थिक स्थिति ऐसी बनेगी। ऐसा करने से ऐसी आर्थिक स्थिति बनेगी। कोई कमी नहीं है ज्ञान का प्रवाह बांटने वाले तो हर गली मोहल्ले में आजकल available हैं। और कुछ विद्वान भी available हैं, जिन्होंने बहुत कुछ किया है। लेकिन हमने देखा है कि भारत आज दुनिया में आर्थिक जो तुलनात्मक हो रहा है, भारत को एक आशा की किरण के रूप में देखा जा रहा है। आपने दो-तीन साल पहले देखा होगा, हमारी सरकार के विषय में यही लिखा जाता था कि इनके पास कोई economist नहीं है। सब एवरेज लोग हैं। Prime Minister को भी economics कोई ज्ञान नहीं है। ऐसा ही लिखा जाता था। आप पढ़ते हैं कि नहीं पढ़ते ऐसा? लेकिन आज दुनिया में वही देश जिसको एवरेज कहा जाता था, वो देश आज दुनिया में चमक रहा है दोस्तों। अब इसलिए हम इस प्रेशर में न रहें दोस्तों कि आप extra ordinary नहीं हैं। और दूसरी बात आप एवरेज भी होंगे आपके भीतर कुछ न कुछ तो extra ordinary होगा ही होगा, और जो extra ordinary हैं उनके भीतर भी कुछ न कुछ एवरेज होगा। हरेक के पास ईश्वर ने एक अभूतपूर्व क्षमता दी होती है। बस आपको उसको पहचानना है, उसको खाद पानी डालना है, आप बहुत तेजी से आगे निकल जाएंगे, ये मेरा विश्वास है। धन्यवाद।
प्रस्तुतकर्ता– Thank You Hon’ble Prime Minister Sir for your wonderful encouragement to make many students and Indians feel valued and cherished. Hon’ble Prime Minister Sir, Mannat Bajwa, he is from the capital city of Chandigarh famed for its remarkable blend of Urban planning with modern architecture and the scenic rock garden of the legendary Nek Chand. She seeks your guidance on the fundamental issue that affects many students like her. Mannat please ask your question.
मन्नतबाजवा– माननीय प्रधानमंत्री जी नमस्कार, मेरा नाम मन्नत बाजवा है। मैं St. Josheph Senior Secondary School की छात्रा हूं। मेरा आपसे प्रश्न यह है कि जब मैं अपने आपको आप जैसे प्रतिष्ठित स्थान पर रखकर कल्पना करती हूं, जहां भारत जैसे देश को चलाना, जहां इतनी बड़ी जनसंख्या है और जहां अपनी राय रखने वालों की बहुतायत है। आपके बारे में नकारात्मक राय रखने वाले लोग भी हैं। क्या वह आपको प्रभावित करते हैं। यदि हां करते हैं तो आप आत्म संदेह की भावना से कैसे उभरते हैं? मैं इसमें आपसे मार्गदर्शन चाहती हूं। धन्यवाद श्रीमान।
प्रस्तुतकर्ता– Thank You Mannat, Hon’ble Prime Minister Sir, Ashtami Sain resides in South Sikkim an area famous for its tea garden breathes taken beauty and tranquil undisturbed snow clear Himalayas. She also requests your directions on identical matter that needs to be addressed. Ashtami, please ask your question.
अष्टमी– माननीय प्रधानमंत्री जी नमस्कार। मेरा नाम अष्टमी सेन है। मैं कक्षा 11वीं की छात्रा DAV Public School रंगीत नगर दक्षिण सिक्किम से हूं। मेरा प्रश्न आपसे ये है कि जब विपक्ष और मीडिया आपकी आलोचना करते हैं तो आप कैसे इनका सामना करते हैं। जबकि मैं अपने अभिभावकों की शिकायतों एवं निराशाजनक बातों का सामना नहीं कर पाती हूं। कृपया मेरा मार्गदर्शन कीजिए। धन्यवाद।
प्रस्तुतकर्ता– Thank You Ashtami. माननीय प्रधानमंत्री जी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, सरदार पटेल और स्वामी दयानंद सरस्वती जैसे महापुरूषों की जन्मभूमि गुजरात की कुमकुम प्रताप भाई सोलंकी आभाषी माध्यम से जुड़ रही है और इसी तरह की दुविधा में है। कुमकुम आपसे मार्गदर्शन चाहती है। कुमकुम कृपया अपना प्रश्न पूछिए।
कुमकुम– माननीय प्रधानमंत्री महोदय, मेरा नाम सोलंकी कुमकुम है। मैं कक्षा 12वीं श्री हडाला बाइ हाई स्कूल जिला अहमदाबाद, गुजरात की छात्रा हूं। मेरा प्रश्न यह है कि आप इतने बड़े प्रजातांत्रिक देश के प्रधानमंत्री हैं, जिन्हें कितनी सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। आप इन चुनौतियों से कैसे लड़ते है। कृपया करके मुझे मार्गदर्शन दीजिए। धन्यवाद
प्रस्तुतकर्ता– Thank You Kumkum. Hon’ble Prime Minister Sir, Aakash Darira lives in the silicon valley of India, Bengaluru known for being a perfect getaway to plethora of activities both traditional and modern. Through his question he seeks your advice on some words similar matter that has been concerning him for a while. Aakash, please ask your question.
आकाश– नमस्ते मोदी जी। मैं आकाश दरीरा 12वीं कक्षा While Field Global School, Bangalore से। मेरा आपसे यह प्रश्न है कि मेरी नानी जी कविता ए माखीजा मुझे हमेशा सलाह देती है आपसे सीखने के लिए कि आप कैसे विपक्ष के लगाए हुए हर आरोप, हर आलोचना को टॉनिक और अवसर के रूप में देखते हैं। आप ऐसे कैसे करते हैं मोदी जी। कृपया हम युवाओं को भी प्रेरणा दें ताकि हम जीवन की हर परीक्षा में सफल हो। धन्यवाद।
प्रस्तुतकर्ता– Thank You Aakash. माननीय प्रधानमंत्री जी आपका जीवन करोड़ो युवाओं का प्रेरक रहा है मन्नत, अष्टमी, कुमकुम और आकाश जीवन में आने वाली चुनौतियों में कैसे सकारात्मक रहकर सफलता प्राप्त करें इस विषय पर आपका अनुभव जानना चाहते हैं। कृपया मार्गदर्शन करें, माननीय प्रधानमंत्री जी।
प्रधानमंत्री– आप लोग एग्जाम देते हैं और घर आकर के जब परिवार के साथ या दोस्तों के साथ बैठते हैं। कभी टीचर से निकट नाता है तो उनके पास बैठते हैं। और किसी सवाल का जवाब ठीक नहीं आया तो आपका पहला रिएक्शन होता है कि ये Out of Syllabus था। यही होता है ना। ये भी Out of Syllabus है लेकिन मैं अंदाज कर सकता हूं कि आप क्या कहना चाहते हैं। अगर आपने मुझे न जोड़ा होता तो शायद आप अपनी बात को और ढंग से कहना चाहते होंगे। लेकिन शायद आपको मालूम है कि आपके परिवार वाले भी सुन रहे हैं तो ऐसे खुलकर के बोलने में खतरा है इसलिए बड़ी चतुराई से आपने मुझे लपेट लिया है। देखिए जहां तक मेरा सवाल है, मेरा एक Conviction है और मेरे लिए ये एक Article of Faith है। मैं सिद्धांत: मानता हूं कि समृद्ध लोकतंत्र के लिए आलोचना एक शुद्धि यग्न है। आलोचना ये समृद्ध लोकतंत्र की पूर्व शर्त है। और इसलिए आपने देखा होगा कि टेक्नोलॉजी में Open Source Technology होती है मालूम है ना? Open Source होता है, उसमें सब लोग अपनी-अपनी चीजें ड़ालते हैं और Open Source Technology के माध्यम से ये allow किया जाता है कि देखिए हमने ये किया है, हम यहां जाकर के अटके है, हो सकता है कुछ कमियां होगी। तो लोग उसके अंदर अपने-अपने टेक्नोलॉजी को insert करते हैं। और काफी लोगों के प्रयास से वो एकदम से समृद्ध Software बन जाता है। ये Open Source आजकल बहुत ही ताकतवर एक Instrument माना जाता है। उसी प्रकार से कुछ कंपनियां अपनी Product को Market में रखती हैं और चैलेंज करती हैं कि उसमें जो कमियां है वो दिखाएगा उसको हम इनाम देंगे। Bound system की व्यवस्था खड़ी हुई है। इसका मतलब ये हुआ कि हर कोई चाहता है कि कमियां जो हो, उससे मुक्ति का रास्ता कोई इंगित करेगा तो होगा ना। देखिए कभी-कभी क्या होता है, आलोचना करने वाला कौन है, उस पर सारा मामला सेट हो जाता है। जैसे मान लीजिए आपके यहां स्कूल के अंदर Fancy Dress Competition है और आपने बड़े चाव से बढ़िया Fancy Dress पहनकर गए और आपका प्रिय दोस्त है एकदम प्रिय दोस्त, जिसकी बात आपको हमेशा अच्छी लगती है, वो कहेगा यार तुमने ऐसा क्या पहना ये अच्छा नहीं लग रहा है तो आपका एक Reaction होगा। और एक student है, जो आपको थोड़ा कम पसंद है negative vibrations हमेशा आते हैं उसको देखते ही, आपको उसकी बातें बिल्कुल पसंद नहीं है। वो कहेगा देखो ये क्या पहन कर आया है, क्या ऐसे पहनते हैं क्या तो आपका एक दूसरा Reaction होगा क्यों? जो अपना है, वो कहता है तो आप उसको Positive लेते हैं उस आलोचना को लेकिन जो आपको पसंद नहीं है वो वहीं कह रहा है। लेकिन आपको गुस्सा आता है तू कौन होता है मेरी मर्जी ऐसा ही होता है ना। उसी प्रकार से आप आलोचना करने वाले आदतन करते रहते हैं तो उनको एक बक्से में डाल दीजिए। दिमाग खपाइए मत ज्यादा क्योंकि उनका इरादा कुछ और है। अब घर में आलोचना होती है क्या मैं समझता हूं कुछ गलती हो रही है। घर में आलोचना नहीं होती है ये दुर्भाग्य का विषय है। आलोचना करने के लिए मां-बाप को भी बहुत अध्ययन करना पड़ता है। आपको observe करना पड़ता है, आपके टीचर से मिलना पड़ता है, आपके दोस्तों की आदतें जाननी पड़ती है, आपकी दिनचर्या को समझना-करना पड़ता है, आपको फॉलो करना पड़ता है, आपका मोबाइल फोन पर कितना टाइम जा रहा है, स्क्रीन पर कितना टाइम जा रहा है। सारा बहुत बारीकी से कुछ न बोलते हुए मां-बाप observe करते हैं। फिर कभी आप जब किसी अच्छे मूड में होते हैं तो वो देखते है और जब अच्छे मूड में होते हैं, अकेले होते है तो प्यार से वो कहते हैं अरे यार देख बेटे तुझमें इतनी क्षमता है, इतना सामर्थ्य है देख तेरी शक्ति यहां क्यों जा रही है तो वो सही जगह पर रजिस्टर होता है वो आलोचना काम आ जाएगी। क्योंकि आजकल मां-बाप को टाइम नहीं है वो आलोचना नहीं करते टोका-टोकी करते हैं और जो गुस्सा आपको आता है ना वो टोका-टोकी का आता है। कुछ भी करो, खाने पर बैठे हैं कुछ भी कहेंगे ये खाया तो भी कहेंगे, नहीं खाया तो भी कहेंगे। यही होता है ना। देखिए अब आपके माता-पिताजी आपको पकड़ेंगे घर जाकर कर आज। टोका-टोकी जो है, वो आलोचना नहीं है। अब मां-बाप से मैं आग्रह करूंगा कि कृपा करके आप अपने बच्चों की भलाई के लिए ये टोका-टोकी के चक्कर से बाहर निकलिए। उससे आप बच्चों की जिंदगी को मोल नहीं कर सकते हैं। ऊपर से इतना मन से कुछ अच्छे मूड में है, कुछ अच्छा करने के मूड में है और आपने सुबह ही कुछ कह दिया देख दूध ठंडा हो गया, तू दूध पीता नहीं है, शुरू कर दिया, तू तो ऐसा ही है। फलाना देख कैसे करता है तुरंत सुबह अपनी मां कहती है, दूध पी लेता है। फिर उसका दिमाग फड़कता है। दिन भर उसका काम है बर्बाद हो जाता है।
और इसलिए अब आप देखिए हम लोग पार्लियामेंट में कभी आप लोग पार्लियामेंट का डिबेट देखते होंगे। पार्लियामेंट का जो टीवी है कुछ लोग बहुत ही अच्छी तैयारी करके आते हैं, पार्लियामेंट में अपनी स्पीच देने के लिए। लेकिन स्वभाव से जो सामने विपक्ष के लोग होते हैं ना वो आपकी Psychology जानते हैं। तो कुछ में ऐसे ही कोई टिप्पणी कर देते हैं बैठे-बैठे और उसको मालूम है कि टिप्पणी ऐसी है कि वो रियेक्ट करेगा ही करेगा। तो हमारा एमपी होता है उसको लगता है अब important इसकी टिप्पणी है। इसलिए जो तैयारी करके आया है। वो छूट जाती है और वो उसी की टिप्पणी का जवाब देता रहता है और अपना पूरी बर्बादी कर देता है। और अगर टिप्पणी को हंसी मजाक में बॉल खेल लिया, खेल लिया छुट्टी कर दी दूसरी सेकंड में अपने विषय पर चला जाता है तो उसको फोकस एक्टिविटी का परिणाम मिलता है। और इसलिए हमें अपना फोकस छोड़ना नहीं चाहिए। दूसरी बात है, देखिए आलोचना करने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है, बहुत अध्ययन करना पड़ता है। उसका analysis करना पड़ता है। comparison करनी पड़ती है। भूतकाल देखना पड़ता है, वर्तमान देखना पड़ता है, भविष्य देखना पड़ता है, बड़ी मेहनत करनी पड़ती है, तब जाके आलोचना संभव होती है। और इसलिए आजकल शार्टकट का जमाना है। ज्यादातर लोग आरोप करते हैं, आलोचना नहीं करते हैं। आरोप और आलोचना के बीच में बहुत बड़ी खाई है। हम आरोपों को आलोचना न समझें। आलोचना तो एक प्रकार से वो nutrient है जो हमें समृद्ध करता है। आरोप वो चीजें हैं, जिसको हमने आरोप लगाने वालों को गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है। समय बर्बाद की जरूरत नहीं है। लेकिन आलोचना को कभी लाईट नहीं लेना चाहिए। आलोचना को हमेशा मूल्यवान समझना चाहिए। वो हमारी जिंदगी को बनाने के लिए बहुत काम आती है। और अगर हम ईमानदार हैं, हमने प्रमाणिक सत्य निष्ठा से काम किया है। समाज के लिए काम किया है। निश्चित मकसद के लिए काम किया है तो आरोपों की बिल्कुल परवाह मत कीजिए दोस्तों। मैं समझता हूं वो आपकी एक बहुत बड़ी ताकत बन जाएगी। बहुत-बहुत धन्यवाद।
प्रस्तुतकर्ता– माननीय प्रधानमंत्री जी, आपकी सकारात्मक ऊर्जा ने करोड़ों देशवासियों को नया मार्ग दिखाया। आपका धन्यवाद। माननीय प्रधानमंत्री जी, तालों के शहर भोपाल के दीपेश अहिरवार आभासी माध्यम से हम से जुड़े हुए हैं एवं मान्यवर प्रधानमंत्री जी से प्रश्न पूछना चाहते हैं, दीपेश कृपया अपना प्रश्न पूछे।
दीपेश– माननीय प्रधानमंत्री जी, नमस्कार! मेरा नाम दीपेश अहिरवार है। मैं शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, भोपाल का कक्षा दसवीं का छात्र हूं। आजकल बच्चों में काल्पनिक खेल और इंस्टाग्राम की लत एक सामान्य सी बात हो गई है। ऐसे समय में हम यहाँ अपनी पढ़ाई पर कैसे ध्यान केंद्रित करें? माननीय सर, मेरा आपसे यह प्रश्न है कि हम बिना ध्यान भटकाए अपनी पढ़ाई पर कैसे ध्यान केंद्रित करें? मैं इस संबंध में आपसे मार्गदर्शन चाहता हूं। धन्यवाद।
प्रस्तुतकर्ता– धन्यवाद दीपेश, माननीय प्रधानमंत्री जी, अदिताब गुप्ता का प्रश्न इंडिया टीवी द्वारा चुना गया है। अदिताब हमसे आभासी माध्यम से जुड़े रहे हैं, अदीताब अपना प्रश्न पूछिए।
अदिताबगुप्ता– मेरा नाम अदिताब गुप्ता है। मैं tenth क्लास में पढ़ता हूं। जैसे कि टेक्नोलॉजी बढ़ती जा रही है, वैसे ही हमारे डिस्ट्रेक्शंस और ज्यादा बढ़ते जा रहे हैं, हमारा फोकस पढ़ाई पर कम होता है और सोशल मीडिया पर ज्यादा होता है। तो मेरा आपसे यह सवाल है कि हम पढ़ाई पर कैसे फोकस करें और सोशल मीडिया पर कम करें क्योंकि आपके टाइम पर इतनी ज्यादा डिस्ट्रेक्शंस नहीं होती थी, जितनी अब हमारे टाइम पर हैं।
प्रस्तुतकर्ता– धन्यवाद अदिताब, Honourable Prime Minister Sir, the next question comes from Kamakshi Rai on a subject that is a center of many students. Her question has been selected by Republic TV. Kamakshi, please ask your question.
कमाक्षीराय– Greetings! Prime Minister and everyone, I am Kamakshi Rai studying in class 10th from Delhi. My question to you is what are the different ways that can be adopted by a student to not easily get distracted during their exam times. Thank You?
प्रस्तुतकर्ता– धन्यवाद कामाक्षी, माननीय प्रधानमंत्री जी, इस प्रश्न का चुनाव ज़ी टीवी द्वारा किया गया है। मनन मित्तल हमसे आभासी माध्यम से जुड़े हैं, मनन कृपया अपना प्रश्न पूछिए।
मननमित्तल– नमस्ते प्रधानमंत्री जी! मैं मनन मित्तल डीपीएस बेंगलुरु साउथ से बोल रहा हूं, मुझे आपसे एक प्रश्न है। ऑनलाइन पढ़ाई करते वक्त बहुत सारे डिस्ट्रेक्शंस होते हैं जैसे कि ऑनलाइन गेमिंग वगैरह-वगैरह हम इससे कैसे बचें?
प्रधानमन्त्री– ये स्टूडेंट है क्या? वो गेजेट में ही खोते रहते होंगे।
प्रस्तुतकर्ता– धन्यवाद मनन! माननीय प्रधानमंत्री जी दीपेश,अदिताब, कामाक्षी एवं मनन परीक्षा में आने वाले व्यवधान पर और इससे कैसे बाहर निकले, इस विषय पर आपसे मार्गदर्शन चाहते हैं। कृपया मार्गदर्शन करें, माननीय प्रधानमंत्री जी।
प्रधानमन्त्री– सबसे पहले तो निर्णय यह करना है कि आप स्मार्ट हैं कि गैजेट स्मार्ट है। कभी-कभी तो लगता है कि आप अपने से भी ज्यादा गैजेट्स को ज्यादा स्मार्ट मान लेते हैं और गलती वहीं से शुरू हो जाती है। आप विश्वास करिए परमात्मा ने आपको बहुत शक्ति दी है, आप स्मार्ट हैं, गैजेट आपसे स्मार्ट नहीं हो सकता है। आपकी जितनी स्मार्टनेस ज्यादा होगी, उतना गैजेट का सही उपयोग आप कर पाएंगे। वह एक इंस्ट्रूमेंट है जो आपकी गति में नई तेजी लाता है, यह अगर हमारी सोच बनी रहेगी, तो मैं समझता हूं कि शायद शायद आप उससे छुटकारा पाएंगे। दूसरा देश के लिए बहुत बड़ी चिंता का विषय है कि मुझे कोई बता रहा था कि भारत में एवरेज 6 घंटे लोग स्क्रीन पर लगाते हैं, 6 घंटे। अब जो इसका बिजनेस करते हैं, उनके लिए तो खुशी की बात है। जब मोबाइल फोन पर टॉकटाइम होता था, तो टॉकटाइम में कहते हैं कि उस समय एवरेज 20 मिनट जाती थी, लेकिन जब से स्क्रीन और उसमें से रील, क्या होता है? एक बार शुरू करने के बाद निकलते हैं क्या उसमें से बाहर? क्या होता है, नहीं बोलेंगे अच्छा आप लोग कोई रील देखते नहीं है? नहीं देखते हैं ना? तो फिर शरमाते क्यों हो? बताओ ना निकलते हैं, क्या बाहर अंदर से? देखिए हमारी क्रिएटिव उम्र और हमारे क्रिएटिविटी का सामर्थ्य अगर एवरेज हिंदुस्तान में 6 घंटे स्क्रीन पर जाए तो यह बहुत चिंता का विषय है, एक प्रकार से गैजेट हमें गुलाम बना देता है। हम उसके गुलाम बन कर जी नहीं सकते हैं। परमात्मा ने हमें एक स्वतंत्र अस्तित्व दिया है, स्वतंत्र व्यक्तित्व दिया है और इसलिए हमें सचेत रहना चाहिए कि कहीं मैं इसका गुलाम तो नहीं हूं? आपने देखा होगा आप कभी भी देखे होंगे, मेरे हाथ में कभी कोई मोबाइल फोन शायद आप Rarely कभी देखा होगा rarely, मैंने क्यों अपने आप को संभाल कर के रखा हुआ है, जबकि मैं एक्टिव बहुत हूं, लेकिन उसके लिए समय मैंने तय किया हुआ है, उस समय के बाहर मैं ज्यादा नहीं करता हूं और इसलिए लोग तो मैंने देखा है अच्छी मीटिंग चल रही है, बहुत अच्छी और थोड़ा सा वाइब्रेशन आया तो ऐसे निकाल कर के देखते हैं। मैं समझता हूं कि हमने खुद से कोशिश करनी चाहिए कि हम इन गैजेट्स के गुलाम नहीं बनेंगे। मैं एक स्वतंत्र व्यक्तित्व हूं। मेरा स्वतंत्र अस्तित्व है। और उसमें से जो मेरे काम की चीज है, उस तक ही में सीमित रहूंगा, मैं टेक्नोलॉजी का उपयोग करूंगा, मैं टेक्नोलॉजी से भागूंगा नहीं लेकिन मैं उसकी उपयोगिता और आवश्यकता अपने मुताबिक करूंगा। अब मान लीजिए आपने ऑनलाइन dosa बनाने की बढ़िया रेसिपी पढ़ ली, घंटा लगा दिया कौन-कौन सी इंग्रेडिएंट्स होते हैं, वह भी कर लिया, पेट भर जाएगा क्या? भर जाएगा क्या? नहीं भरेगा ना? उसके लिए तो डोसा बनाकर खाना पड़ेगा ना और इसलिए गैजेट जो परोसता है वह आपको पूर्णता नहीं देता है, आपके भीतर का सामर्थ्य। अब आपने देखा होगा पहले के जमाने में बच्चे बड़े आराम से पहाड़ा कर दे देते थे, पहाड़ा बोलते हैं ना? और बड़े आराम से बोलते थे और मैंने देखा है यह जो भारत के बच्चे विदेश जाते थे ना तो विदेश के लोगों को बड़ा आश्चर्य होता था कि यह कैसे इतना पहाड़ा बोल लेता है, अब उसको कुछ लगता नहीं था। अब आप देखिए धीरे-धीरे क्या हाल हो गया है, हमें पहाड़ा बोलने वाला बच्चा ढूंढना पड़ता है क्यों उसको अब आ गया है हो गया यानी हम अपनी क्षमता खो रहे हैं, हमें अपनी क्षमता खोए बिना क्षमता को आगे बढ़ाना यह हमें consciously प्रयास करना पड़ेगा otherwise धीरे-धीरे, धीरे करके वह विधा खत्म हो जाएगी, हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हम अपने आप को लगातार टेस्ट करते रहें मुझे ये आता है कि आता है वरना तो आजकल तो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इतने प्लेटफार्म आए हैं, आपको कुछ करने की जरूरत नहीं है, उस प्लेटफार्म पर जाकर के चैट पर चले जाइए तो आपको दुनिया भर की चीजें बता करके दे देता है वो। अब तो गूगल से भी एक स्टेप आगे चला गया है। अगर आप उसमें फंस गए तो आपकी क्रिएटिविटी खत्म हो जाएगी और इसलिए मेरा तो आग्रह रहेगा कि आप दूसरा हमारे यहां आरोग्य का जो शास्त्र है पुरातन भारत में, आरोग्य का उसमें उपवास की परंपरा होती है कि भाई कुछ जरा ऐसा लगता है कि ऐसा करो आप fasting करो। कुछ हमारे देश में कुछ रिलीजियस रिचुअल्स में भी होता है फास्टिंग करो।अब वक्त बदल चुका है, तो मैं आपको कहूंगा कि आप हफ्ते में कुछ दिन या दिन में कुछ घंटे यह टेक्नोलॉजी का fasting कर सकते हैं क्या? की उतने घंटे उस तरफ जाएंगे ही नहीं।
आपने देखा होगा कई परिवार होते हैं, घर में बड़ा दसवीं बारहवीं दसवीं बारहवीं का बड़ा टेंशन शुरू में ही हो जाता है सारे कार्यक्रम तय करते हैं परिवार वाले नहीं नहीं भाई अगले साल कुछ नहीं है, दसवीं में है वो, अगले साल कुछ नहीं वो 12वीं में है। ऐसा ही चलता है घर में और फिर टीवी पर भी कपड़ा लगा देते हैं हां no TV क्यों अच्छा दसवीं के एग्जाम हैं 12वीं के एग्जाम हैं। अगर हम इतने जागरूक होकर के टीवी पर तो पर्दा लगा देते हैं लेकिन क्या हम स्वभाव से तय कर सकते हैं कि सप्ताह में 1 दिन मेरा डिजिटल फास्टिंग होगा, नो डिजिटल डिवाइस, मैं किसी को हाथ नहीं लगाऊंगा। उसमें से जो फायदा होता है उसको ऑब्जर्व कीजिए। धीरे-धीरे आपको उसका समय बढ़ाने का मन करेगा, उसी प्रकार से हमने देखा है कि परिवार हमारे जो छोटे होते जा रहे हैं और परिवार भी इस डिजिटल दुनिया में फंस रहे हैं। एक ही घर में मां बेटा बहन भाई पापा सब रह रहे हैं और एक ही कमरे में वह उसको व्हाट्सएप कर रहा है, मैं आपकी ही बात बता रहा हूं ना। मम्मी पापा को व्हाट्सएप करेगी। देखा होगा, आपने घर में सब बैठे हैं साथ में, लेकिन हर अपने मोबाइल में खोया हुआ है, वह उधर देख रहा है, यह इधर देख रहा है, यही हो गया है ना। मुझे बताइए परिवार कैसे चलेगा जी। पहले तो बस में, ट्रेन में जाते थे तो लोग गप्पे मारते थे अब अगर कनेक्टिविटी मिल गई तो पहला काम यही जैसे दुनिया भर का काम उन्हीं पास है। उनके बिना दुनिया रुक जाने वाली है, यह जो बीमारियां हैं, इन बीमारियों को हमें पहचानना होगा। हम अगर इन बीमारियों को पहचानेंगे तो हम बीमारियों से मुक्त हो सकते हैं और इसलिए मेरा आग्रह है घर में भी क्या आप एक एरिया तय कर सकते हैं क्या परिवार में जाकर आज ही तय कीजिए। एक एरिया तय करिए यह एरिया जो है, नो टेक्नोलॉजी जोन मतलब वहां टेक्नोलॉजी को एंट्री ही नहीं मिलेगी। वहां आना है, घर के उस कोने में तो मोबाइल वहां रख के आओ और वहां आराम से बैठेंगे, बातें करेंगे। No technology zone, घर के अंदर भी एक कोना बना दीजिए, जैसे देवघर होता है ना, भगवान का मंदिर एक अलग होता है कोने में, वैसा ही बना दीजिए। कि भई इस कोने में आना है, चल वहां मोबाइल बाहर रख के आओ। यहां ऐसे ही बैठो। अब देखिए धीरे-धीरे आपको जीवन जीने का आनंद शुरू होगा। आनंद अगर शुरू होगा तो आप उसकी गुलामी में से बाहर आओगे, बहुत-बहुत धन्यवाद।
प्रस्तुतकर्ता– Thank You Honourable, Prime Minister Sir for sharing such light hearted Mantra of digital fasting to tackle challenging situations in such an easy manner.
प्रस्तुतकर्ता– माननीय प्रधानमंत्री जी, हिमालय पर्वतमाला में स्थित प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर यूनियन टेरिटरी जम्मू से निदा हमसे आभासी माध्यम से जुड़ रही हैं एवं आपसे प्रश्न पूछना चाहती हैं। निदा अपना प्रश्न पूछिए।
निदा– Honourable Prime Minister Sir, नमस्कार! I am Nida of class 10th from Government model higher secondary school Sunjwan, Jammu. Sir my question is when we work hard but do not get that desired result then how can we put that stress in a positive direction? Respected Sir, have you ever been through such a situation. Thank You.
प्रस्तुतकर्ता– धन्यवाद निदा, माननीय प्रधानमंत्री जी, भगवान कृष्ण के उपदेश की भूमि खेल, जगत में ख्याति प्राप्त नीरज चोपड़ा जैसे विख्यात खिलाड़ियों के प्रदेश हरियाणा के पलवल से प्रशांत आपसे प्रश्न पूछना चाहते हैं। प्रशांत कृपया अपना प्रश्न पूछिए।
प्रशांत– माननीय प्रधानमंत्री जी नमस्कार! मेरा नाम प्रशांत है। मैं शहीद नायक राजेंद्र सिंह राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय हथीन जिला पलवल हरियाणा के कक्षा बारहवीं विज्ञान संकाय का छात्र हूं। मेरा आपसे यह प्रश्न है कि तनाव परीक्षा के परिणामों को किस तरह प्रभावित करता है। मैं इसमें आपसे मार्गदर्शन चाहता हूं। धन्यवाद श्रीमान।
प्रस्तुतकर्ता– धन्यवाद प्रशांत, माननीय प्रधानमंत्री जी निदा और प्रशांत की तरह देश भर के करोड़ों छात्र आपसे परीक्षा परिणाम पर तनाव का प्रभाव इस विषय पर मार्गदर्शन चाहते हैं। माननीय प्रधानमंत्री जी।
प्रधानमंत्री– देखिए परीक्षा के जो परिणाम आते हैं, उसके बाद जो तनाव है, उसका मूल कारण एक तो हम परीक्षा देकर के जब घर आए तो घर के लोगों को ऐसे पाठ पढ़ाएं कि मेरा तो शानदार पेपर गया है। मेरा तो बिल्कुल 90 तो पक्का है और बहुत अच्छा करके आया हूं तो घर के लोगों का एक मन बन जाता है और हमको भी लगता है कि वह गाली खानी है, तो महीने भर के बाद खाएंगे, अभी-अभी तो बता दो उनको और उसका परिणाम यह आता है कि वेकेशन का जो टाइम होता है, परिवार ने मान लिया होता है कि तुम सच बोल रहे हो और तुमने तुम अच्छा रिजल्ट लाने ही वाले हो, ऐसा मान लेते हैं, वह अपने दोस्तों को बताना शुरू कर देते हैं, नहीं-नहीं इस बार तो बहुत अच्छा किया उसने और बहुत मेहनत करता था। अरे कभी खेलने नहीं जाता था, कभी रिश्तेदार के यहां शादी वह अपना जोड़ते रहते हैं, जैसा मिला बड़ा बड़ा और एग्जाम का रिजल्ट आने तक तो उन्होंने ऐसा माहौल बना दिया होता है कि बस यह तो फर्स्ट सेकंड के पीछे रहेगा ही नहीं और जब रिजल्ट आता है 40-45 मार्क्स। फिर तूफान खड़ा हो जाता है और इसलिए पहली बात है कि हम सच्चाई से मुकाबला करने की आदत छोड़नी नहीं चाहिए जी। हम कितने दिन तक झूठ के सहारे जी सकते हैं, स्वीकार करना चाहिए कि हां मैं आज गया, लेकिन मैं एग्जाम ठीक से नहीं गया मेरा, मैंने कोशिश की थी अच्छा नहीं हुआ। अगर पहले से ही आप कह देंगे और मान लीजिए 5 मार्क्स ज्यादा आ गए तो आपने देखा होगा घर में तनाव नहीं होगा, वह कहेंगे अरे तू तो कहता था कि बहुत खराब है तुम तो अच्छे मार्क्स लेकर के आए हो। स्टैंडर्ड वह जो मानदंड है, ना वह सेट हो जाता है उससे अच्छा दिखता है, इसलिए आपको। दूसरा है तनाव का कारण आपके दिमाग में आपके दोस्त भरे रहते हैं। वो वैसा करता है तो मैं ऐसा करूंगा वह ऐसा करता है तो मैं वैसा करूंगा। क्लास में कोई बहुत ही होनहार बच्चा होता है, हम भी होनहार होते हैं 19-20 का फर्क होता है। दिन-रात हम उस कंपटीशन के बहाव में जीते हैं तनाव का यह भी एक कारण होता है। हम अपने लिए जिए अपने में जिए अपनों से सीखते हुए जिए सीखना सबसे चाहिए, लेकिन अपने भीतर के सामर्थ्य पर बल देना चाहिए, अगर यह हम करते हैं तो तनाव से मुक्ति की संभावनाएं बढ़ जाती है। दूसरा जीवन की तरफ हमारी सोच क्या है, जिस दिन हम मानते हैं कि यह एग्जाम गई मतलब जिंदगी गई फिर तो तनाव शुरू होना ही होना है। जीवन किसी भी एक स्टेशन पर रुकता नहीं है जी। अगर एक स्टेशन छूट गया तो दूसरे ट्रेन आएगी, दूसरे बड़े स्टेशन पर ले जाएगी आप चिंता मत कीजिए। एग्जाम वह एंड ऑफ द लाइफ नहीं होता है जी। ठीक है हमारी अपनी कसौटी होनी चाहिए, हम अपने आप को कसते रहे, अपने आप को सजते रहे, ये हमारी कोशिश होनी चाहिए। लेकिन हमें इस तनाव से मुक्ति का मन में संकल्प कर लेना चाहिए, जो भी आएगा मैं जिंदगी को जीने का तरीका जानता हूं। मैं इससे भी निपट लूंगा। और यह अगर आप यह निश्चय कर लेते हैं तो फिर आराम से हो जाता है। और इसलिए मैं समझता हूं कि इस प्रकार के परिणाम के तनाव को कभी-कभी उतना मन में लेने की आवश्यकता नहीं है जी। धन्यवाद!
प्रस्तुतकर्ता– माननीय प्रधानमंत्री जी, आपका अनुभव सुनकर हमें नई चेतना आई है, आपका धन्यवाद। Honorable Prime Minister Sir, R Akshara Siri lives in Ranga Reddy district in Telangana. She is inquest of a significant subject and looks up to you for directions. Akshara please put for your question.
अक्षरा– माननीय प्रधानमंत्री जी, सादर नमस्कार! मेरा नाम है और आर अक्षरा सिरी। मैं जवाहर नवोदय विद्यालय रंगारेड्डी हैदराबाद की नवीं कक्षा की छात्रा हूं। मान्यवर मेरा प्रश्न है हमें अधिक भाषाओं में सीखने के लिए क्या करना चाहिए। मैं इसमें आपका मार्गदर्शन चाहती हूं। धन्यवाद श्रीमान।
प्रस्तुतकर्ता– Thank You Akshara. Honorable Prime Ministers Sir, इसी से मिलता-जुलता प्रश्न रितिका घोड़के भारत की ह्रदय नगरी भोपाल से आई है। वह हमारे साथ सभागार में हैं। रितिका कृपया अपना प्रश्न पूछे।
रितिकागोड– आदरणीय प्रधानमंत्री जी, नमस्कार! मेरा नाम रितिका घोड़के है, मैं भोपाल मध्य प्रदेश कक्षा बारहवीं की छात्र शासकीय सुभाष उत्कृष्ट माध्यमिक विद्यालय स्कूल फॉर एक्सीलेंस की छात्रा हूं। सर मेरा क्वेश्चन आपसे यह है कि हम अधिक से अधिक भाषाएं कैसे सीख सकते हैं और यह क्यों जरूरी है? धन्यवाद।
प्रस्तुतकर्ता– धन्यवाद रितिका माननीय प्रधानमंत्री जी कृपया अक्षरा और रितिका को बहुभाषी कौशल प्राप्त करने के लिए मार्गदर्शन करें, जो कि इस समय की आवश्यकता है। माननीय प्रधानमंत्री जी।
प्रधानमंत्री– बहुत ही अच्छा सवाल पूछा आपने। वैसे मैं शुरू में कह रहा था कि बाकी चीजें छोड़ कर के थोड़ा फोकस होते जाइए, फोकस होते जाइए, लेकिन ये एक ऐसा सवाल है कि जिसमें मैं कहता हूँ कि आप ज़रा एक्सट्रोवर्ट हो जाइए, थोड़ा बहुत एक्सट्रोवर्ट होना बहुत जरूरी होता है। और यह मैं इसलिए कह रहा हूं। भारत विविधताओं से भरा हुआ देश है, हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि हमारे पास सैकड़ों भाषाएं हैं, हजारों बोलियां हैं, यह हमारी richness है, हमारी समृद्धि है। हमें अपनी इस समृद्धि पर गर्व होना चाहिए। कभी-कभी आपने देखा होगा, कोई विदेशी व्यक्ति हमें मिल जाए और उसको पता चले कि आप इंडिया के हैं, आपने देखा होगा कि थोड़ा सा भी वह भारत से परिचित होगा तो आपको नमस्ते करेगा, नमस्ते बोलेगा, pronunciation में थोड़ा इधर उधर हो सकता है लेकिन बोलेगा। जैसा ही वह बोलेगा, आपके कान सचेत हो जाते हैं, उसको पहले राउंड में अपनापन महसूस होने लगता है। अच्छा, यह यह विदेशी व्यक्ति नमस्ते बोलता है, मतलब कि कम्युनिकेशन की कितनी बड़ी ताकत है, इसका यह उदाहरण है। इतने बड़े देश में आप रहते हैं, आपने कभी सोचा है कि शौक के नाते जैसे हम कभी सोचते हैं मैं तबला सीखूं, कभी मैं सोचता हूं मैं फ्लूट सीखूं, मैं सितार सीखूं, पियानो सीखूं, ऐसा मन में करता है कि नहीं करता है? वह भी एक हमारी अतिरिक्त विधा डिवेलप होती है कि नहीं होती है? अगर यह होता है तो मन लगा कर के अपने अड़ोस-पड़ोस के राज्य की एकाध दो भाषा सीखने में क्या जाता है? कोशिश करनी चाहिए। और सिर्फ हम भाषा सीख जाते हैं, मतलब बोलचाल के कुछ वाक्य सीख जाते हैं ऐसा नहीं है। हम वहां के अनुभवों का निचोड़ जो होता है। एक-एक भाषा की जब अभिव्यक्ति होना शुरू होती है ना तो उसके पीछे हजारों साल की एक अविरल, अखंड, अविचल, एक धारा होती है, अनुभव की धारा होती है, उतार-चढ़ाव की धारा होती है। संकटों का सामना करती हुई निकली हुई धारा होती है और तब जाकर के एक भाषा अभिव्यक्ति का रूप लेती है, हम एक भाषा को जब जानते हैं, तब आपको उस हजारों साल पुरानी दुनिया में प्रवेश करने का द्वार खुल जाता है और इसलिए बिना भोज बनाएं, हमें भाषा सीखनी चाहिए। मैं कभी भी मुझे हमेशा दुख होता है, बहुत दुख होता है हमारे देश में कहीं पर कोई एक अच्छा स्मारक हो पत्थर का बना हुआ और कोई हमें कहे कि यह 2000 साल पुराना है, तो हमें गर्व होता है कि नहीं होता है, इतनी बढ़िया चीज 2000 पहले थी। होता है कि नहीं होता है किसी को भी गर्व होगा, फिर यह विचार नहीं आता है कि किस कोने में है। अरे भाई 2000 साल पहले की यह व्यवस्था है, कितना बढ़िया बनाया है, हमारे पूर्वजों को कितना ज्ञान होगा। आप मुझे बताइए दुनिया की सबसे पुरातन भाषा दुनिया की सबसे पुरातन, सिर्फ हिंदुस्तान की नहीं, दुनिया की सबसे पुरातन भाषा जिस देश के पास हो उस देश को गर्व होना चाहिए कि नहीं होना चाहिए? सीना तान करके दुनिया को कहना चाहिए कि नहीं कहना चाहिए कि विश्व की सबसे पुरातन भाषा हमारे पास है। कहना चाहिए कि नहीं कहना चाहिए? आपको मालूम है हमारी तमिल भाषा यह दुनिया की सबसे पुरानी भाषा है, पूरी दुनिया की इतनी बड़ी अमानत किस देश के पास है। इतना बड़ा गौरव इस देश के पास है कि हम सीना तानकर के दुनिया में कहते नहीं है। मैं पिछली बार जब यूएनओ में मेरा भाषण था तो मैंने जानबूझकर कुछ तमिल बातें बताइए क्योंकि मैं दुनिया को बताना चाहता था, मुझे गर्व है कि तमिल भाषा दुनिया की श्रेष्ठ भाषा दुनिया की सबसे पुरानी भाषा, ये मेरे देश की है। हमें गर्व करना चाहिए। अब देखिए बड़े आराम से उत्तर भारत का व्यक्ति डोसा खाता है कि नहीं खाता है? खाता है कि नहीं खाता है? सांभर भी बड़े मज़े से खाता है कि नहीं खाता है? तब तो उसको उत्तर दक्षिण कुछ नजर नहीं आता है। दक्षिण में जाइए, आप तो वहाँ परांठा सब्जी भी मिल जाती है, पूड़ी सब्जी भी मिल जाती है। और बड़े चाव से लोग खाते हैं गर्व करते हैं कि नहीं करते हैं? कोई तनाव नहीं होता है, कोई रुकावट नहीं होती है। जितनी सहजता से बाकी जिंदगी आती है, उतनी ही सहजता से और मैं तो चाहूंगा हर किसी को कोशिश करनी चाहिए कि अपनी मातृभाषा के उपरांत भारत की कोई ना कोई भाषा कुछ तो सेंटेंस आने चाहिए, आप देखिए आपको आनंद आएगा, जब ऐसे व्यक्ति को मिलोगे और 2 वाक्य भी अगर आप उसकी भाषा में बोलोगे, एकदम अपनापन हो जाएगा और इसलिए भाषा को बोझ के रूप में नहीं। और मुझे याद है, मैं जब बहुत साल पहले की बात थी, सामाजिक काम में लगा था, तो मैंने एक बच्ची को और मैंने देखा है कि बच्चों में भाषा को कैच करने की बड़ी गजब की ताकत होती है। हड़प कर देती है बहुत तेजी से। तो मैं कभी हमारे यहां कैलिको मिलके एक मजदूर परिवार था, अहमदाबाद में। तो मैं कभी उनके यहां भोजन के लिए जाता था तो वहां एक बच्ची थी, वह कई भाषाएं बोलती थी, क्यों क्योंकि एक तो वह मजदूरों की कॉलोनी थी तो cosmopolitan थी ,उसकी माताजी केरल से थी, पिताजी बंगाल से थे, पूरा कॉस्मापॉलिटन होने के कारण हिंदी चलती थी बगल में एक परिवार मराठी था और स्कूल जो था वो गुजराती था। मैं हैरान था, वह 7-8 साल की बच्ची बंगाली, मराठी, मलयालम, हिंदी इतनी तेज गति से बढ़िया बोलती थी और घर में 5 लोग बैठे हैं इससे से बात करनी है तो बंगाली में करेगी, इससे करेगी तो मलयालम में करेगी, इससे करेगी तो गुजराती में करेगी। 8-10 साल की बच्ची थी। यानी उसकी प्रतिभा खिल रही थी और इसलिए मेरा तो आपसे आग्रह रहेगा कि हमें अपनी विरासत पर और मैंने तो इस बार लाल किले से भी कहा था पंच प्राण की बात, अपनी विरासत पर हमें गर्व होना चाहिए और हमें गर्व होना चाहिए कि हमारे पूर्वजों ने ऐसी भाषा हमें दी है। ये हर हिंदुस्तानी को गर्व होना चाहिए, हर भाषा पर गर्व होना चाहिए। बहुत-बहुत धन्यवाद!
प्रस्तुतकर्ता– माननीय प्रधानमंत्री जी बहुभाषिकता पर आपके मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद।
प्रस्तुतकर्ता– Honorable Prime Minister Sir, from the historical acclaim city of Cuttack Sunaina Tripathi, who is a teacher, requests your direction on an important matter. Mam, please ask your question.
सुनन्यात्रिपाठी– नमस्कार! माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी। मैं सुनैना त्रिपाठी कृष्णमूर्ति वर्ल्ड स्कूल कटक उड़ीसा से हूं। मेरा प्रश्न यह है कि कक्षा में विद्यार्थियों को रुचि पूर्व पढ़ाई के लिए कैसे आकर्षित करें तथा जीवन का सार्थक मूल्य कैसे सिखाएं, साथ ही कक्षा में अनुशासन के साथ पढ़ाई को रोचक कैसे बनाएं, धन्यवाद!
प्रस्तुतकर्ता– Honourable Prime Minister Sir, Sunaina Tripathi wishes for your guidance on motivating students for taking interest in academics. Honourable, Prime Minister Sir.
प्रधानमंत्री– यानी यह सवाल टीचर का था? सही था ना? देखिए आजकल अनुभव आता है कि टीचर अपने में खोए रहते हैं। अभी तो मैंने आधा वाक्य बोला और आपने पकड़ लिया। वह एक निश्चित सिलेबस 20 मिनट 30 मिनट बोलना है, अपना कड़क कड़ाकर बोल देते हैं। और फिर इसमें कोई हिलेगा इधर-उधर तो देखा होगा आपने। मैं तो मेरे अपने बचपन के अनुभव की बात बताता हूं, आजकल तो टीचर अच्छे होते हैं मेरे जमाने में ऐसा नहीं होगा, इसलिए मुझे टीचरों की आलोचना करने का हक नहीं है लेकिन कभी-कभी मैंने देखा था कि टीचर जो तैयारी करके आए हैं और अगर वह भूल गए तो चाहते नहीं कि बच्चे पकड़ ले उनको, उन बच्चों से छुपाना चाहते हैं। तो वो क्या करते हैं एक आँख इधर, ए खड़ा हो जा, क्यों ऐसे बैठा है, क्यों ऐसा कर रहा है, क्यों ढिकना कर रहा है। यानी पूरी 5-7 मिनट उस पर लगा देंगे। इतने में अगर विषय याद आ गया तो गाड़ी वापिस आएगी, वरना मानो कोई हंस पड़ा तो उसको पकड़ेंगे, क्यों हँसता है तू। अच्छा आज भी ऐसा ही होता है। नहीं-नहीं ऐसा नहीं होता होगा, अब तो टीचर्स बहुत अच्छे होते हैं। आपने देखा होगा, टीचर भी अभी मोबाइल फोन पर अपना syllabus लेकर आता है। मोबाइल देखकर के पढ़ाता है, ऐसा करता है ना। और कभी उंगली इधर-उधर दब गई तो वो हाथ से निकल जाता है, वो खुद ढूंढता रहता है। तो उसने पूरी तरह टेक्नोनॉजी को सीखा नहीं है जरूरी 2-4 चीजें सीख ली और इधर-उधर उंगली अड़ गई तो फिर वो डिलीट हो जाता है या खिसक जाता है, हाथ नहीं लगता है बड़ा परेशान हो जाता है। सर्दियों में भी पसीना छूट जाता है उसको, उसको लगता है ये बच्चें। अब उसके कारण जिसकी अपनी कमियां होती है, उसका एक स्वभाव रहता है, दूसरों पर extra रौब जमाना ताकि अपनी कमियां बाहर न आए। मैं समझता हूं, हमारे शिक्षक मित्र विद्यार्थियों के साथ जितना अपनापन बनाएंगे। विद्यार्थी आपके ज्ञान की कसौटी करना नहीं चाहता है जी। ये हमार भ्रम है टीचर के मन में होता है कि विद्यार्थी आपको अगर कोई सवाल पूछता है तो आपकी एग्जाम ले रहा है, जी नहीं। अगर विद्यार्थी सवाल पूछता है तो ये मान के चलिए, उसके अंदर जिज्ञासा है। आप उसकी जिज्ञासा को हमेशा प्रमोट कीजिए। उसकी जिज्ञासा ही उसकी जिंदगी की बहुत बड़ी अमानत है। किसी भी जिज्ञासु को चुप मत कीजिए, उसको टोक मत दिजिए, उसको सुनिए, आराम से सुनिए। अगर जवाब नहीं आता है तो आप उसको कहिए देख बेटे तूने बहुत अच्छी बात कही है और मैं तुम्हेंं जल्दबाजी में जवाब दूंगा तो अन्याय होगा। ऐसा करो हम कल बैठते हैं। तुम मेरे चेंबर में आ जाना, हम बातें करेंगे। और मैं भी तुमको समझने का प्रयास करूंगा कि ये विचार तुम्हें कहाँ से आया और मैं भी कोशिश करूंगा In-between मैं घर जाकर के Study करूंगा। जरा Google पर जाऊंगा, इधर-उधर जाऊंगा, पूछ लूंगा और फिर मैं तैयार होकर के आऊंगा, फिर दूसरे दिन मैं उसको पूछूंगा अच्छा भाई तुम्हें ये विचार आया कहाँ से, इतना उत्तम विचार इस उम्र में कैसे आया तुम्हेंं। उसके पुचकारते हुए फिर कहिए देख ऐसा नहीं है रिएलिटी ये है वो तुरंत स्वीकार कर लेगा और आज भी Students अपने टीचर की कही हुई बात को बहुत मूल्यवान समझता है। अगर एकाध गलत बात बता दी तो उसकी जिंदगी में वो रजिस्टर हो जाती है और इसलिए बात बताने से पहले समय लेना बुरा नहीं है। हम बाद में भी बताए तो चलता है। दूसरा Discipline का सवाल है। क्लास में कभी-कभी टीचर को क्या लगता है, अपना प्रभाव पैदा करने के लिए जो सबसे दुर्बल student होता है ना उसको पूछेंगे बताओ तुम समझे के नहीं समझे तो अ.ब.अ.ब करता रहेगा तू.तू.मैं.मैं चलेगी फिर डाट देंगे। मैं इतनी मेहनत कर रहा हूं, इतना पढ़ा रहा हूं और तुमको कुछ समझ नहीं आ रही है। अगर मैं टीचर होता तो मैं क्या करता जो बहुत ही अच्छे Bright Student हैं उनको कहता अच्छा बताओ भाई तुम कैसे समझे इसको, वो बढ़िया से समझाएगा, तो जो नहीं समझ रहा है वो student की भाषा अच्छी तरह समझेगा, उसको समझ आ जाएगा। और जो अच्छे student हैं, उनको मैं प्रतिष्ठा दे रहा हूं तो अच्छे बनने की competition शुरू होगी, स्वाभविक competition शुरू होगी।
दूसरा जो इस प्रकार से अनुशासन में नहीं हैं, ध्यान केंद्रीत नहीं करता है क्लास में भी कुछ न कुछ और activity करता है। टीचर अगर उसको अलग बुला लें, अलग बुलाकर के बात करें, प्यार से बात करें देख यार कल कितना बढ़िया विषय था, अब तुम खेल रहे थे, अब चलो आज खेलो मेरे सामने खेलो तुम्हेंं भी मजा आएगा। मैं भी देखूं क्या खेलते थे। अच्छा बताओ तुम! ये खेलने का काम बाद में करते हैं, और तुमने ध्यान दिया होता तो फायदा होता कि नहीं होता। उससे अगर संवाद करते तो उसको एक अपनापन महसूस होता है वो कभी indiscipline नहीं करता जी। लेकिन उसके इगो को अगर आपने हर्ट किया तो फिर दिमाग फटकेगा। कुछ लोग चतुराई भी करते हैं, चतुराई भी कभी-कभी काम आती है, जो सबसे शरारती लड़का होता है उसी को मॉनिटर बना देते हैं। बनाते हैं ना। वो मॉनिटर बन जाता है, तो उसको भी लगता है यार मुझे तो ठीक से व्यवहार करना पड़ेगा। तो वो फिर खुद को अपने आप को जरा ठीक करता है और सबको ठीक रखने के लिए अपने आप को adjust करता है। अपनी बुराईयों को control करने की कोशिश करता है। शिक्षक का प्रिय होने का प्रयास करता है और ultimately परिणाम ये आता है, उसकी जिंदगी बदल जाती है और उसके माध्यम से क्लासरूम का environment भी सुधर जाता है। तो अनके तरीके हो सकते हैं। लेकिन मैं मानता हूं कि हमें डंडा लेकर के discipline वाले रास्ते नहीं चुनने चाहिए। हमें अपनापन का ही रास्ता चुनना चाहिए। अपना रास्ता चुनेंगे, तभी लाभ होगा। बहुत-बहुत धन्यवाद।
प्रस्तुतकर्ता– माननीय प्रधानमंत्री जी, इतनी सरलता एवं गइराई से जीवन मूल्यों की प्रेरणा पर आपका कोटि-कोटि धन्यवाद। माननीय प्रधानमंत्री जी परीक्षा पर चर्चा 2023 के अंतिम प्रश्न के लिए मैं आमंत्रित कर रही हूं, दिल्ली से श्रीमती सुमन मिश्रा जो कि एक अभिभावक हैं, वे सभागार में उपस्थित हैं और आपसे अपनी जिज्ञासा का समाधान चाहती हैं। मैम कृपया अपना प्रश्न पूछिए।
सुमनमिश्रा– Good Morning Hon’ble Prime Minister, Myself Suman Mishra. Sir, I seek your advice on how should student behave in a society. Thank You Sir.
प्रस्तुतकर्ता– धन्यवाद मैम। माननीय प्रधानमंत्री जी।
प्रधानमंत्री– Students सोसाइटी में कैसे behave करें, यही पूछना है न आपको। मैं समझता हूं कि इसको थोड़ा अलग दायरे में रखना चाहिए। हम किस सोसाइटी की बात करते हैं, जो हमारा सर्कल है वो जिनके बीच हम बैठते-उठते हैं, कभी अच्छी-बुरी बातों में टाइम बिताते हैं, टेलीफॉन पर घंटे बीता देते हैं अगर उस लिमिटेड वर्चुअल की बात करते हैं तो आप बच्चे को जैसा कहोगे, वैसा भई यहाँ जूते पहन कर के आओ, यहां जूते निकालो, यहां इस ढंग से व्यवहार करो, यहां उस ढंग से करो। ऐसा आप कह सकते हैं। लेकिन हकीकत ये है उसको एक घर के दायरे में बंद नहीं रखना है उसको, उसको समाज में जितना व्यापक उसका विस्तार हो, होने देना चाहिए। मैंने तो कभी कहा था, शायद परीक्षा पे चर्चा पे ही कहा, कही और कहा मुझे याद नहीं है। मैंने कहा था कि 10वीं, 12वीं के एग्जाम के बाद कभी बच्चे को पहले अपने स्टेट में उसको कहो कि लो ये पैसे तुम्हेंं इतना देती हूं और 5 दिन के लिए तुम इतनी जगह पर घूमकर के वापिस आओ। और वहां के फोटो वहां का वर्णन सब लिखकर के ले आओ। फेंको उसको हिम्मत के साथ। आप देखिए वह बच्चा बहुत कुछ सीखकर आएगा। जीवन को जानकर के उसमें विश्वास बढ़ेगा। फिर वो आपको ये नहीं चिल्लाएगा और 12वीं का है तो उसको कहो तुम राज्य के बाहर जाकर के हो आओ। देखिए ये इतने पैसे हैं, ट्रेन में जाना है without reservation जाना है। सामान इतना होगा, ये तुझे खाना दे दिया है। जाओ इतनी चीजें देखकर के आओ और आकर के सबको समझाओ। आपने सचमुच में अपने बच्चों का ट्रायल लेते रहना चाहिए। उनको समाज के भिन्न भिन्न वर्गों में जाने के लिए प्रेरित करना चाहिए। उसको कभी पूछना चाहिए कि भई तुम्हारे स्कूल में इस बच्चे ने इस बार कबड्डी में अच्छा खेला तो तुम उसको मिले क्या? जाओ उसके घर जाकर मिलकर आ जाओ। फलाने बच्चे ने विज्ञान मेले में अच्छा काम किया था। तुम जाकर के मिलकर आए क्या? अरे जाओ जरा मिलकर के आओ। उसको उसका विस्तार करने का उसको आपको अवसर देना चाहिए। उसको आप ऐसा करना चाहिए, वैसा करना चाहिए, ये करना चाहिए, वो नहीं करना चाहिए, कृपा करके उसको बंधनों में मत बाँधिए। आप मुझे बताइये, कोई ये फरमान निकाले कि अब पतंगों को पतंगे बोलते हैं ना? पतंगों को यूनिफार्म पहनाएंगे तो क्या होगा? क्या होगा? कोई लॉजिक है क्या? हमें बच्चों का विस्तार होने देना चाहिए। उनको नए-नए दायरे में ले जाना चाहिए, मिलवाना चाहिए, कभी हमें भी ले जाना चाहिए उसको। हमारे यहां छुट्टियों में रहता था कि मामा के घर जाना, फलानी जगह पर जाना, ये क्यों होता था? इसका अपना एक आनंद होता है, उसके एक संस्कार होते हैं। एक जीवन की रचना बनती है। हम अपने दायरे में बच्चों को बंद मत करें। हम जितना ज्यादा उनका दायरा बढ़ाएंगे। हां, हमारा ध्यान रहना चाहिए। हमारा ध्यान रहना चाहिए कि उसकी आदतें कहीं खराब तो नहीं हो रही हैं। कमरे में खोया हुआ तो नहीं रहता है। उदासीन तो नहीं रहता है। पहले भोजन पर बैठता था तो कितनी हंसी मजाक करता था। आज कल हंसी-मजाक बंद कर दी क्या प्राब्लम है? मां बाप का तुरंत स्पार्क होना चाहिए। ये तब होता है जब बच्चों को वो एक अमानत के रूप में ईश्वर ने उसको एक अमानत दी है। इस अमानत का संरक्षण संवर्धन उसका दायित्व है। ये भाव अगर होता है तो परिणाम अच्छे आते हैं। ये भाव अगर होते हैं, ये मेरा बेटा है, मैं जो कहूंगा वही करेगा। मैं ऐसा था, इसलिए तुझे ऐसा बनना है। मेरी जिंदगी में ऐसा था, इसलिए तेरी जिंदगी में ऐसा होगा। तो फिर बात बिगड़ जाती है। और इसलिए आवश्यकता यही है कि खुलेपन से हमें समाज के विस्तार की तरफ उसको ले जाने का प्रयास करना चाहिए। उसको जीवन की भिन्न-भिन्न चीजों में जुड़ने के लिए प्रेरित करना चाहिए। मैं तो कभी कहूंगा मान लीजिए, आपके यहां वो सांप छछूंदर वाले लोग आते हैं कभी। बच्चों को कहो भई तुम जाओ इसके साथ बात करो वो कहां का रहने वाला है। कहां से निकला, इस धंधे में कैसे आ गया? क्यों सीखा, चलो मुझे समझाओ वो उसको पूछकर के आओ। उसकी संवेदनाएं जग जाएगी जी, वो क्यों ये काम कर रहा है। जानना, सीखना सहज बन जाएगा। कोशिश करनी चाहिए कि आपके बच्चों का विस्तार ज्यादा हो, वो बंधनों में न बंध जाए। उसको खुला आसमान दीजिए आप। उसको अवसर दीजिए, वो समाज में ताकत बनकर उभरेगा। बहुत-बहुत धन्यवाद।
प्रस्तुतकर्ता– Thank You Hon’ble Prime Minister Sir for your inspirational insights in matters that had been concerning many exam warriors and for making exams not a reason to worry but a season to celebrate and enjoy. This brings us to the culmination of spectacular event that was a symphony of inspiration and encouragement. A melody of memories that will forever resonate within our hearts. We extend our deepest thanks and gratitude to the Hon’ble Prime Minister for gracing this hall with his presence and infusing us with his radiant spirit.
प्रधानमंत्री जी द्वारा परीक्षा पर चर्चा ने हमारे जैसे करोड़ों बच्चों की बैचेनी घबराहट एवं हार मानने की प्रवृत्ति को उत्साह, उमंग एवं सफलता की ललक में बदल दिया है। धन्यवाद माननीय प्रधानमंत्री जी, कोटि-कोटि धन्यवाद।
प्रधानमंत्री– आप सबका भी बहुत-बहुत धन्यवाद और मैं जरूर चाहूंगा कि हमारे विद्यार्थी, हमारे अभिभावक, हमारे टीचर्स ये अपने जीवन में तय करें कि परीक्षा का जो बोझ बढ़ता चला जा रहा है, एक वातावरण create हो रहा है, उसको जितना ज्यादा हम dilute कर सकते हैं, करना चाहिए। जीवन को उसका सहज हिस्सा बना देना चाहिए। जीवन का एक सहज क्रम बना देना चाहिए। अगर ये करेंगे तो परीक्षा अपने आप में एक उत्सव बन जाएगी। हर परीक्षार्थी का जीवन उमंग से भर जाएगा और ये उमंग उत्कर्ष की गारंटी होता है। उस उत्कर्ष की गारंटी उमंग में है। उस उमंग को लेकर के आप चलें, यही मेरी आपको शुभकामनाएं हैं। बहुत-बहुत धन्यवाद।