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भाजपा और उसकी रूठी तीन देवियां

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को अगले लोकसभा चुनाव तक अध्यक्ष पद का कार्य विस्तार मिल चुका है। अगले लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए नड्डा ने अपने संगठन को पुनर्गठित और चुस्त-दुरुस्त करना शुरू कर दिया है। लोकसभा चुनाव से पूर्व जम्मू-कश्मीर सहित दस प्रदेशों की विधानसभाओं के चुनाव होने हैं। जिनके नतीजों से पता चल जाएगा कि अगले लोकसभा चुनाव में कौन-सी पार्टी केंद्र में सरकार बना सकेगी। फ़िलहाल भाजपा की तीन बड़ी नेता सुश्री उमा भारती, वसुंधरा राजे और मेनका गांधी भाजपा से क़दमताल नहीं कर रही है। इनके चेहरों पर दिखती तुर्शी और मिज़ाज की तुरखी कुछ नया होने के संकेत देते हैं।

वैसे चुनाव में जा रहे दस राज्यों से लोकसभा की कुल 121 सीटें आती हैं। ऐसे में जिस पार्टी की भी सरकार इन प्रदेशों में बनेगी, लोकसभा चुनाव में उसी पार्टी का अधिक प्रभाव दिखने कि सम्भावना है । वैसे तो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा खुद अपने गृह प्रदेश हिमाचल प्रदेश में भाजपा की सरकार को नहीं बचा सके और वहां पर कांग्रेस भारी बहुमत के साथ सरकार बनाने में कामयाब हो गई। इससे लगता है कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में नड्डा शायद ही कुछ करिश्मा दिखा पाए। वैसे भी पूरा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इर्द-गिर्द ही रहता लग रहा है।भाजपा तीसरी बार केंद्र में सरकार बनाने का सपना देख रही है। ऐसे में भाजपा की ही महिला नेताओं की नाराजगी आने वाले चुनाव में भाजपा को भारी पड़ सकती है।

सबसे पहले मध्यप्रदेश, मध्य प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती शिवराज सिंह चौहान सरकार पर लगातार हमलावर हो रही हैं। शराबबंदी के बहाने उमा भारती लगातार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को घेर रही हैं। राजनीति में खुद को हाशिए पर डाले जाने से नाराज उमा भारती भाजपा आलाकमान से बहुत नाराज दिखती हैं। उमा भारती ने ही मेहनत कर दस साल से मध्य प्रदेश में शासन कर रही कांग्रेस की दिग्विजय सिंह सरकार को उखाड़ फेंका था। जिसके बाद उनको मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री तो बनाया गया था, मगर एक अदालती फैसले के कारण उनको पद छोड़ना पड़ा था। बाद में उन्हें मुख्यमंत्री बनने का फिर से मौका नहीं दिया गया। शिवराज सिंह चौहान एक बार मुख्यमंत्री बनने के बाद कुर्सी से ऐसे चिपके कि लगातार चौथे कार्यकाल में भी वही मुख्यमंत्री के रूप में काम कर रहे हैं।

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में उमा भारती को केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया था। मगर 2019 के लोकसभा चुनाव में उनका टिकट काट दिया गया। उसके बाद से वह लगातार अपने राजनीतिक पुनर्वास हेतु प्रयास कर रही हैं। मगर उन्हें राजनीति में कहीं भी समायोजित नहीं किया गया। वे अपनी नाराजगी का खुलकर इजहार भी नहीं कर पा रही हैं। वे शराबबंदी के लिए आंदोलन करने का ऐलान करने के साथ ही शराब की दुकान पर पत्थर तक फेंक चुकी हैं। पिछले दिनों उन्होंने लोधी समाज के कार्यक्रम में यह तक कह दिया कि वे समाज के लोगों से भाजपा को वोट देने के लिए नहीं कहेंगी। समाज वोट देते वक्त अपने हितों का ख्याल जरूर रखे, यह उनकी अपील है ।

राजस्थान की राजनीति में वसुंधरा राजे का कद बहुत बड़ा माना जाता है। इस राज्य में और विशेषकर भाजपा में तो वसुंधरा राजे के कद का कोई दूसरा नेता नहीं है। वहीं राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत प्रदेश में लगातार दूसरी बार कांग्रेस की सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं। ऐसे में गहलोत का मुकाबला करने में वसुंधरा राजे ही सबसे उपयुक्त नेता लगती हैं।वैसे राजस्थान भाजपा का संगठन पूरी तरह वसुंधरा विरोधी नेताओं से भरा पड़ा है। वर्तमान परिस्थितियों में तो वसुंधरा समर्थक कई मौजूदा विधायकों को भी टिकट मिलना संदिग्ध नजर आ रहा है। अंदर खाने चर्चा है कि वसुंधरा समर्थक अपने नेता पर अलग दल बनाकर चुनाव में उतरने का दबाव डाल रहे हैं। हालांकि वसुंधरा राजे “देखो और इंतजार करो” की नीति पर चल कर आलाकमान का मूड भांपने का प्रयास कर रही हैं।

आठवीं बार की सांसद मेनका गांधी भी भाजपा आलाकमान से बहुत खफा नजर आ रही हैं। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में मेनका गांधी व उनके सांसद पुत्र वरूण गांधी में से किसी को भी मंत्री नहीं बनाया गया। इतना ही नहीं उन्हें भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से भी हटा दिया गया। मेनका गांधी के पुत्र वरुण गांधी तो लगातार केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ खुलकर बयानबाजी कर रहे हैं। 2017 में मेनका गांधी के पुत्र वरुण गांधी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनना चाहते थे। मगर योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बना दिया गया था। उसके बाद से ही वरुण गांधी पार्टी लाइन से दूर होते गये और होते जा रहे हैं।

सबसे वरिष्ठ सांसद होने के बाद भी मेनका गांधी को इस बार मंत्रिमंडल में स्थान नहीं मिलने से वह खुद को पार्टी में उपेक्षित महसूस कर रही हैं। पिछले कुछ समय से मीडिया में लगातार इस बात की चर्चा हो रही है कि वरुण गांधी ने अपने चचेरे भाई राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से भी कांग्रेस में शामिल होने पर चर्चा की है। हालांकि राहुल गांधी ने कह दिया है कि वरुण गांधी की विचारधारा हमारे से अलग है और वह जहां है वहीं रहकर राजनीति करें।

भाजपा की कद्दावर नेता वसुंधरा राजे सिंधिया, उमा भारती, मेनका गांधी की नाराजगी का असर अगले चुनावों में देखने को मिल सकता है। भाजपा आलाकमान को समय रहते उनके गिले-शिकवे पर चर्चा कर उनका समाधान करना चाहिए। तीनों ही महिला नेता अपने-अपने प्रदेशों की राजनीति में प्रभावशाली तो हैं ही, इनके साथ बड़ा समर्थक वर्ग भी जुड़ा हुआ है। इनकी नाराजगी से भाजपा द्वारा केंद्र में लगातार तीसरी बार सरकार बनाने का सपना कहीं सपना ही बनकर नहीं रह जाये। इस बात का भाजपा आलाकमान को अहसास होना चाहिये।

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