इसलिए कि अगर ये बचेगा तो उसके साथ बचेगी प्रकृति उसके साथ बचेगा अरण्य उसके साथ बचेंगी ईश्वर की बनाई हुई सारी कृतियाँ जो जीवजंतु जलचर और नभचर के रूप में हमारे चारों ओर हैं लेकिन यक्ष प्रश्न है इस धर्म को बचाएगा कौन,कौन इस धर्म को शाश्वत मूल्यों के संग जियेगा,कौन करेगा उन परंपराओं का रक्षण जो हमारे महान पूर्वजों की है क्योंकि मस्तक तिलक हीन,जिव्हा मंत्र हीन,शिक्षा धर्म हीन,हाथ शस्त्र हीन,मन श्रद्धा हीन…?
दूसरों पर टिप्पणी ना कर केवल अपनी बात करते हुए खुद स्वयं से ही ये यक्ष प्रश्न पूछता हूँ क्या मैं अपने धर्म को बचा पाऊंगा में इस समय बंगाल हु अपनी पूरी ब्रिगेड के साथ,खेर छोड़ो असल बात पर आता हु तो मित्रो में भी अभी तक और बहुत से हिंदुओ की तरह बहुत सारी ग़लतफ़हमीयां पाले हुए था कि मैं बड़ा ये हूँ में बड़ा वो हु थोड़ा सा कच्चा पक्का लिख देता हूँ लोग प्रभावित हो जाते हैं धरातल पर भी तोड़ फोड़ मचा लेता हु पर इस घटना ने सारी ग़लत फ़हमीयों को आइना दिखा दिया …?
सात आठ दिन पहले की बात है मायापुर बंगाल चंद्रोदय इस्कॉन मंदिर गया हुआ था समय दोपहर का मंदिर परिसर में टहल रहा था तभी देखता हु कि प्यास से व्याकुल एक सांड बड़ी बेचैनी से हाँफ रहा था परिसर में हमारे अलावा और भी बहुत सारे हिन्दू थे लेकिन किसी को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था अचानक देखता हु एक युवती जोकि विदेशी लग रही थी बड़ी तेज़ी से आगे आई और वहीं दुकान से बिसलेरी की दो लीटर वाली पानी की बोतल उठाई उसे खोला और सांड के मुंह को एक हाथ से पकड़ दूसरे हाथ से उसके मुँह में पूरी बोतल उड़ेल दी विशालकाय सांड को उस दो लीटर पानी से कोई फर्क नहीं पड़ा होगा लेकिन ये बात शायद युवती भी जानती थी उसने तुरंत एक बोतल और ले उसे पिलाया फिर तीसरी बोतल,अब सांड तृप्त हो चुका था युवती ने मुस्कुराते हुए उसके गालो को थप थपाया,आस पास एकत्र हुई हिंदुओ की भीड़ द्वारा बिना प्रशंसा ताली की प्रतीक्षा किये आगे बढ़ गई लेकिन इस घटनाक्रम को देख में बिलकुल जड़ हो चुका था स्तब्ध था…?
मैं जन्मना हिन्दू ऐसा कुछ करना तो दूर ऐसा करने की सोच भी नहीं सका अगर सांड की जगह प्यास से हाँफ रही गाय भी होती तो भी मैं अधिक से अधिक किसी बाल्टी में नल से पानी ले उसे पिलाता पर तीन बोतल बिसलेरी खरीदकर उसे पिलाना तो मेरी कल्पना तक में नहीं था यहाँ तो गाय नहीं सांड की बात थी,वहां जितने भी हिन्दू उनमें में भी लगभग सभी घूमने के लिए,जितने भी विदेशी सब के सब भक्ति भाव से आये थे,जितने भी हिन्दू थे सब पैंट शर्ट जींस टॉप में और जितने विदेशी थे सब धोती कुर्ता और वैष्णव तिलक में,जितने भी हिन्दू थे गले में फैशनेबल चेन या कोई और माला पर जितने भी विदेशी थे उनके गले में तुलसी या रुद्राक्ष माला थी,गोशाला में जाने वाले जितने भी हिन्दू थे वो जाकर हृष्ट पुष्ट गाय देखते जेसे किसी म्यूजियम में आये हो जब कि विदेशी वहीं जमीन पर बैठकर उन गायों और बछड़ों के पाँव दबाने बैठ जाते जो थकी हुई बीमार हो,हम झूठी प्रशंसा के लिए विदेशियों को देखकर अंग्रेजी में काट छांट रहे थे जबकि वो हम से हिन्दी और बांग्ला में बतियाने की कोशिश कर रहे थे हिन्दूओ के बच्चे कोका पेप्सी पीकर इतरा रहे थे उनके बच्चे छाछ पी रहे थे…?
पहले भगवान से शिकायत थी कृष्ण गीता में आने का वादा कर के क्यों नहीं आते हैं अब किसी भी तरह की कोई शिकायत नहीं मुझ को समझ में आ चुका है कि श्री कृष्ण भगवान के पुन आने की दो शर्तें थी जिसमें पहली शर्त को हम कभी भी पूरा नहीं कर सकते योगेश्वर ने कहा था “परित्राणाय साधूनां” अर्थात आने की पहली शर्त थी हिन्दू समाज साधु निर्मल निष्कलंक होके धर्म को अंतर्मन से जीये तो क्या हम है ऐसे,बिलकुल नही कम से कम मैं तो नहीं ही हूँ क्षुद्र अहंकार खुद को उच्च समझ अपनों को नीचा दिखाना,जाति भाषा क्षेत्र अन्य चीजों को लेके ओछापन कहीं न कहीं हमारे व्यतित्व और व्यवहार में रम चुका है जपते रटते राम को हैं पर करते रावण वाली ही हैं इसलिए श्री कृष्ण कम से कम हम जैसे ढोंगी और पाखंडियों के लिए तो नहीं आने वाले…?
Note : हिन्दू धर्म दुनिया में इकलौता ऐसा धर्म है जोकि कहता है ईश्वर को पूजना उनके जैसा ही बन जाना है “शिवो भूत्वा शिवं यजेत” अर्थात शिव बनकर शिव की पूजा करेंगे तो साक्षात शिव को प्राप्त हो जायेंगे,जितना मर्जी ज्ञान बाट लो जहां तक मुझको लगता है हिंदुओ की निष्क्रियता देखके कि जो भी हिन्दू धर्म को बचायेंगे वो जन्मना हिन्दू नहीं बाय बर्थ हिंदू भी नहीं बल्कि बाय च्वाइस हिन्दू होंगे अगर कल को कृष्ण भगवान आते भी हैं इन्हीं लोगों के उद्धार के लिए आयेंगे,हम हिन्दू कहां और किस मोड़ पे खड़े हैं एक बार पहले खुद का गिरेबान झांकना बनता है इसका नमूना आप फेसबुक पर भी देख सकते हैं हिन्दू समाज की यहां पर पूरी झांकी मौजूद है…?
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