नई दिल्ली, 14 फरवरी (इंडिया साइंस वायर): कंक्रीट एक ऐसी सामग्री है, जिसका उपयोग दुनियाभर में निर्माण कार्यों में होता है। कंक्रीट सामग्री की माँग को पूरा करने के लिए वर्तमान में व्यापक उत्खनन और खनन किया जाता है, जिससे पर्यावरणीय क्षति के साथ-साथ प्राथमिक खनिज संसाधनों की कमी हो रही है। कंक्रीट में उपयोग होने वाले रेत के खनन से भी नदियों को पारीस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुँचता है। इसीलिए, वर्तमान समय में निर्माण कार्यों में उपयोग होने वाली सामग्री का पुनर्चक्रण और इसके लिए प्रभावी विकल्प खोजा जाना महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास के शोधकर्ताओं ने निर्माण और तोड़-फोड़ से पैदा होने वाले मलबे को रिसाइकिलकरने के लिए सौर तापीय ऊर्जा से युक्त उपचार प्रक्रिया विकसित की है। इसमें सौर विकिरण के उपयोग से शोधकर्ताओं को अपशिष्ट कंक्रीट को गर्म करके पुनर्चक्रित कंक्रीट उत्पाद में रूपांतरित करने में सफलता मिली है। इस तरह प्राप्त पुनर्चक्रित कंक्रीट की गुणवत्ता को यांत्रिक क्रशिंग से प्राप्त सामग्री की तुलना में अधिक गुणवत्तापूर्ण बताया जा रहा है। शोधकर्ताओ का कहना है कि इस तकनीक से बनाया गया कंक्रीट विशिष्ट संरचनात्मक अनुप्रयोगों की आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है।
यह परीक्षण राजस्थान में ब्रह्माकुमारीज संगठन के मुख्यालय में स्थित ‘इंडिया वन सोलर थर्मल पावर प्लांट’ में किया गया है। उच्च दबाव पर उत्पन्न भाप का उपयोग करके बिजली का उत्पादन करने के लिए इसमें 770 सौर संकेन्द्रक हैं। संयंत्र 2017 से चालू है और लगभग 25,000 लोगों के समुदाय को उचित लागत और कम रखरखाव पर बिजली प्रदान करता है। अपशिष्ट कंक्रीट के उपचार के लिए पूर्ण पैमाने पर परीक्षणों में दो संकेन्द्रक का उपयोग किया गया है।
हीटिंग के लिए संकेंद्रित सौर ऊर्जा का उपयोग होता है, जिसकी मदद से कंक्रीट कचरे को रिसाइकिल किया जाता है। इस प्रकार, उच्च गुणवत्ता युक्त पुनर्चक्रित सामग्री प्राप्त होती है, जो कंक्रीट में उपयोग होने वाले पत्थर की गिट्टियों और रेत की जगह ले सकती है। इस अध्ययन में, तोड़-फोड़ वाले स्थलों से प्राप्त कंक्रीट अपशिष्ट को संकेंद्रित सौर विकिरण का उपयोग करके 550 डिग्री सेल्सियस से अधिक तक गर्म किया गया है। सौर विकिरण को बड़े परावर्तकों और कास्ट आयरन से बने रिसीवर्स के माध्यम से संकेद्रित किया गया है। मोटी और महीन निर्माण सामग्री प्राप्त करने के लिए यांत्रिक रूप से इसे साफ किया जाता है।
आईआईटी मद्रास के शोधकर्ता प्रोफेसर रवींद्र गेट्टू बताते हैं कि “इस अध्ययन का मुख्य उद्देश्य यह दिखाना था कि सौर विकिरण का उपयोग इस तरह के कार्यों में कैसे किया जा सकता है। यह अध्ययन बड़े पैमाने पर अपशिष्ट कंक्रीट के रीसाइक्लिंगका मार्ग प्रशस्त कर सकता है। यह अपशिष्ट कंक्रीट के रीसाइक्लिंग में संकेंद्रित सौर ऊर्जा के प्रभावी उपयोग को भी दर्शाता है। इससे निर्माण और तोड़-फोड़ से निकले अपशिष्ट के प्रसंस्करण में लगने वाली ऊर्जा की खपत कम करने में भी मदद मिलेगी।” प्रोफेसर रवींद्र गेट्टू के साथ इस अध्ययन के शोधकर्ताओं में रोहित प्रजापति, सुरेंद्र सिंह, बीके जयसिम्हा राठौड़ और शामिल हैं। यह अध्ययन शोध पत्रिका मैटेरियल्स ऐंड स्ट्रक्चर्स में प्रकाशित किया गया है।